DMT : प्रयागराज : (18 अप्रैल 2023) : –
“आज मुझे इलाहाबाद में धमकी दी गई है कि दो सप्ताह के भीतर आपको जेल से फिर किसी बहाने से बाहर निकाला जाएगा और आपको निपटा दिया जाएगा. ये जानकारी एक बड़े अधिकारी ने मुझे दी है.”
29 मार्च को पुलिस की क़ैदी गाड़ी के भीतर से झाँकते हुए पत्रकारों से बात कर रहे अतीक़ अहमद के साथ मारे गए उनके भाई अशरफ़ ने ये डर ज़ाहिर किया था.
इसके ठीक दो हफ़्ते बाद, 15 अप्रैल की रात पुलिस सुरक्षा में मेडिकल जाँच के लिए ले जाते समय अतीक़ और अशरफ़ की हत्या कर दी गई.
पत्रकार बनकर आए तीन हमलावरों ने लाइव कैमरों के सामने अतीक़ और अशरफ़ की हत्या की. इस घटना के वीडियो लगातार टीवी चैनलों पर प्रसारित किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं.
इस हत्याकांड की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी घटना की तह तक पहुँचने के लिए विशेष जाँच दल गठित की है. ये दल तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की निगरानी में जाँच करेगा.
गुजरात की साबरमती जेल में बंद अतीक़ अहमद को जब प्रयागराज में जाँच में शामिल होने के लिए लाया गया था, तब मीडिया में उनकी ‘गाड़ी पलटने’ के कयास लगाए गए थे.
मीडिया की भाषा में ‘गाड़ी पलटने’ का मतलब है पुलिस एनकाउंटर में मौत.
जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू कांड के अभियुक्त विकास दुबे को मध्यप्रदेश से उत्तर प्रदेश लाते समय कथित एनकाउंटर में मार दिया गया था.
पुलिस ने अपने अधिकारिक बयान में कहा था कि गाड़ी पलट जाने के बाद विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और फिर एनकाउंटर में वो मारा गया.
इस एनकाउंटर पर सवाल उठे. सुप्रीम कोर्ट के जज बीएस चौहान की निगरानी में जाँच हुई. जांच आयोग ने पाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे और उसके पाँच साथियों के एनकाउंटर में कुछ ग़लत नहीं किया है.
पुलिस रिमांड
16 मार्च को अतीक़ अहमद को पहली बार साबरमती जेल से उमेश पाल हत्याकांड मामले में पूछताछ के लिए कड़ी सुरक्षा में प्रयागराज लाया गया था.
पत्रकारों को भी उनके क़रीब तक नहीं पहुँचने दिया गया था. इसके बाद 11 अप्रैल को अतीक़ अहमद को एक बार फिर साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया. इस बार पुलिस ने उनकी रिमांड मांगी थी.
15 अप्रैल को जब अतीक़ अहमद की हत्या हुई, तब उन्हें पुलिस रिमांड से फिर से न्यायायिक हिरासत में भेजा जाना था.
पुलिस हिरासत में अतीक़ अहमद और अशरफ़ की हत्या के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं.
बीबीसी ने इन सवालों को बेहतर तरीके से समझने के लिए अतीक़ अहमद के वकील विजय मिश्रा से और मौक़े पर मौजूद एक चश्मदीद से बात की.
इन दोनों ने इस घटना को बहुत क़रीब से देखा. और दोनों ने पुलिस की मौजूदगी और उनकी प्रतिक्रिया से जुड़ी कई बातें कही हैं.
दोनों की हत्या की एफ़आईआर में लिखा है कि अतीक़ और अशरफ़ ने बताया कि दोनों को काफ़ी घबराहट हो रही थी. आपको बता दें कि एनकाउंटर में मारे जाने के बाद अतीक़ के बेटे असद को उसी दिन दोपहर में दफ़नाया गया था.
पुलिस के मुताबिक़, दोनों की बिगड़ती हालत को देखते हुए 10 बजकर 19 मिनट पर थाना धूमनगंज के एसएचओ राकेश कुमार मौर्य ने 18 पुलिसकर्मियों के साथ एक बोलेरो गाड़ी और एक जीप में अतीक़ और अशरफ़ को कॉल्विन अस्पताल पहुँचाया.
एफ़आईआर में लिखा है कि पुलिस रात 10 बजकर 35 मिनट पर दो गाड़ियों में अतीक़ और अशरफ़ को लेकर मेडिकल परीक्षण के लिए कॉल्विन अस्पताल पहुँची.
दोनों को एक ही हथकड़ी में बांधा गया था. गाड़ी से उतरने के बाद 10 से 15 क़दम चलने के बाद अतीक़ और अशरफ़ को मीडिया के हुजूम ने घेर लिया. वे बाइट लेने की कोशिश करने लगे.
पुलिस का कहना है कि अतीक़ और अशरफ़ बाइट देने के लिए रुकने लगे, तो पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए धक्का दिया. लेकिन उसके बाद तुरंत गोलियाँ चलने लगीं और अतीक़ और अशरफ़ ज़मीन पर गिर गए. उसके बाद तीनों हमलावर ने आत्मसमर्पण कर दिया.
अतीक़ के वकील ने पुलिस पर उठाए कई सवाल
अतीक़ अहमद के वकील विजय मिश्रा उनकी परछाई बन कर चलते थे. जब साबरमती से अतीक़ अहमद का काफ़िला चला था, तो वो पूरे रास्ते उस काफ़िले के साथ अपनी गाड़ी से पीछे चल रहे थे.
वो बताते हैं, “हाई कोर्ट ने भी अशरफ़ की सुरक्षा का संज्ञान लेते हुए आदेश दिया था कि उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान दिया जाए.”
सुप्रीम कोर्ट ने भी अतीक़ अहमद की सुरक्षा से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की थी, लेकिन उन्हें यह गुहार हाई कोर्ट से करने को कहा था.
विजय मिश्रा कहते हैं, “इससे पहले कि वो हाई कोर्ट जाकर वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से पेशी और सुनवाई की मांग करते, उससे पहले ही अतीक़ की हत्या हो गई.”
अशरफ़ की सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि उनकी पेशी के लिए आते-जाते हर वक़्त वीडियोग्राफी हो.
वज्र वाहन की जगह खुली पुलिस जीप में क्यों अस्पताल ले जाया गया?
15 अप्रैल की रात अतीक़ अहमद और अशरफ़ को एक ही हथकड़ी में बांधकर खुली पुलिस जीप में 17 पुलिस जवानों की सुरक्षा में थाने से कॉल्विन मेडिकल कॉलेज तक ले जाया गया.
जीप से उतरकर अतीक़ और अशरफ़ चंद क़दम ही चले थे कि पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछने शुरू किए.
अतीक़ का जवाब पूरा भी नहीं हो पाया था कि पत्रकार बनकर आए तीन हथियारबंद हमलावरों ने ताबड़तोड़ फ़ायरिंग की और दोनों भाइयों की हत्या कर दी.
हत्या की घटना के बारे में विजय मिश्रा कहते हैं, “जब कॉल्विन अस्पताल अतीक़ और अशरफ़ को लेकर पहुँचे, तो वहाँ कोई पुलिस का वीडियो कैमरा नहीं था. सिर्फ़ 6 से 7 पुलिसकर्मी ही थे.” विजय मिश्रा हत्या के चश्मदीद थे.
वो कहते हैं, “काफ़ी मीडियाकर्मी थे और जो पुलिसकर्मी चल रहे थे, वो काफ़ी पीछे चल रहे थे.”
सुरक्षा व्यवस्था
विजय मिश्रा कहते हैं कि कम पुलिस फ़ोर्स की बात उन्होंने धूमनगंज पुलिस थाने के एसएचओ राकेश कुमार मौर्य से भी कही थी.
विजय मिश्रा कहते हैं, “हमने धूमनगंज थाने के एसएचओ से कहा भी की हमें यहाँ कोई सुरक्षा व्यवस्था दिख नहीं रही है. दोनों तरफ बैरिकेडिंग लगाइए, केवल थाने के सिपाही हैं, जिनका इस मामले से मतलब नही हैं. मैंने कहा आप हैं,आपको सुरक्षा व्यवस्था का विशेष ध्यान देना चाहिए. तो उन्होंने कहा कि आप निश्चिंत रहिए हम सुरक्षा व्यवस्था का पूरा ध्यान दे रहे हैं. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उन्होंने मुझे आश्वस्त किया था.”
वो कहते हैं कि, “घटना के समय एसएचओ मौर्या जी मौजूद थे, और मैं खुद वहाँ मौजूद था. मैंने उनसे कहा कि इस समय पुलिस के कर्मी बहुत की कम मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि और पुलिस अभी आ रही है.”
सवाल उठ रहा है कि भारी पुलिस सुरक्षा में रहने वाले अतीक़ अहमद को खुली पुलिस जीप में क्यों अस्पताल लाया गया और मीडिया को उनके इतना क़रीब कैसे पहुँचने दिया गया.
राज्य की ज़िम्मेदारी
अतीक़ अहमद ने कई बार अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी. उन्होंने बार-बर अपनी जान को ख़तरा बताया था.
बावजूद इसके अतीक़ के अस्पताल जाने की ख़बर मीडिया को लगी और पत्रकारों को उनके क़रीब पहुँचने दिया गया, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक विक्रम सिंह कहते हैं, “पुलिस हिरासत का मतलब ही यही है कि सही सलामत बिना नुक़सान के न्यायायिक हिरासत में उन्हें वापस पहुँचाया जाए. कस्टडी रूल्स के तहत किसी भी तरह अमानत में ख़यानत नहीं होनी चाहिए, जो हुई. पुलिस सुरक्षा नहीं दे पाई.”
पूर्व आईपीएस अधिकारी विभूति नारायण राय कहते हैं, “इलाहाबाद में अतीक़ और उनके भाई की हत्या में सुरक्षा की बड़ी लापरवाही दिखाई देती है. वो पुलिस की हिरासत में थे, ये हिरासत अदालत ने दी थी. ये राज्य की ज़िम्मेदारी है कि उनकी सुरक्षा का ध्यान रखा जाता और उन्हें जीवित रखा जाता.”
विक्रम सिंह कहते हैं, “एक्सेस कंट्रोल नहीं था जो होना चाहिए था, तलाशी के बिना किसी को भी उनके क़रीब नहीं पहुँचने दिया जाना था, लेकिन ना सिर्फ़ लोगों को उनके क़रीब पहुँचने दिया गया बल्कि अनाधिकारिक रूप से एक तरह से प्रेसवार्ता कराई गई. हमलावर पत्रकार बनकर पहुँचे और चंद सेकंड में गोलियाँ दाग दीं. तैनात पुलिसकर्मी तमाशबीन बने रहे.”
चश्मदीद का क्या है कहना?
शरीफ़ अहमद बताते हैं कि वो अस्पताल के दरवाज़े से सटे एक सुलभ शौचालय में पिछले ढाई-तीन साल से रह रहे हैं.
वो बताते हैं कि शुक्रवार को जब अतीक़ अहमद और अशरफ को मेडिकल के लिए अस्पताल लाया गया तो “मैंने सोचा ये है बंदोबस्त!”
अहमद बताते हैं कि हत्या की रात (शनिवार) के एक दिन पहले (शुक्रवार को) जब अतीक़ और अशरफ़ को मेडिकल के लिए लाया गया था, तब भी गाड़ी बाहर रुकी थी.
वो कहते हैं कि शुक्रवार को आराम से गए हैं और आराम से 20 मिनट बाद बाहर निकाल कर ले गए.
अहमद कहते हैं कि शनिवार के दिन आए तो एकदम से लापरवाही देखी. उनके मुताबिक़, उन्होंने अंदाज़न सिर्फ़ 10 पुलिसकर्मियों को देखा.
वो कहते हैं, “10 थे, 20 नहीं.”
कॉल्विन अस्पताल में जब किसी अपराधी को मेडिकल के लिए लाया जाता है, तो क्या गाड़ी को गेट के बाहर ही रोक दिया जाता है?
शरीफ़ अहमद कहते हैं, “नहीं साहब, मुज़रिम भी आता है, प्रशासन भी आता है, पूरी गाड़ी अंदर लेकर आते हैं.”
वो दरवाज़े के बाहर इशारा करते हुए सवाल करते हैं, “वहाँ क्यों रोका? ऐसा तो मैंने देखा नहीं.”
अहमद कहते हैं कि गाड़ी इसलिए अंदर आती है, क्योंकि अंदर मोड़ने की जगह पर्याप्त है.
वो कहते हैं, “यह सब साधन बनाए हैं और आप भी सरकार वाले हो, तो फिर क्यों आपनी गाड़ी अंदर नहीं लाए? अगर वो डॉन है, माफ़िया है, तो इतने बड़े बदमाश के लिए तुम गाड़ी अंदर क्यों नहीं लाए?”
शरीफ़ अहमद कहते हैं कि उन्हें मीडिया को दूर रखने के कोई इंतज़ाम नहीं नज़र आए. वो कहते हैं, “कोई नज़र नहीं आए. सब मीडिया वाले माइक मुँह में घुसेड़ रहे थे.”
वो कहते हैं, “एक बार कसारी मसारी मामले में कितनी फ़ोर्स लेकर गए थे. पीएसी लेकर गए थे. जेल से लाए तो कितनी फोर्स लेकर आए.”
अहमद पूछते हैं, “इसमें फोर्स लेकर क्यों नहीं आए?”
तो क्या पुलिस शरीफ अहमद से बात कर रही है? उन्होंने इतने क़रीब से यह घटना देखी, तो क्या उनका स्टेटमेंट लिया गया?
वो कहते हैं, “कुछ नहीं लिया.”
जब गोलियाँ चलीं तो पुलिस वालों की कैसी प्रतिक्रिया रही? पुलिस ने हमलावरों को कैसे दबोचा?
शरीफ़ अहमद कहते हैं, “अरे, सब भाग गई थी. दो पुलिसकर्मी होम गार्ड की तरह खड़े रहे. हथियार फेंकने के बाद उन्होंने नारा लगाया. सामान फेंकने के बाद पुलिस वालों ने पकड़ा. मालूम नहीं यह कैसे वर्दी पहने हैं.”
“आपने मारा क्यों नहीं गुंडे लोगों को? बदमाश को पकड़ना चाहिए तो टांग में मारो. एक भी गोली नहीं थी, उनके पास. बंदूक थी कि मालूम नहीं. मैंने निकालते हुए देखा ही नहीं.”
मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल क्यों ले जाया गया?
अतीक़ और अशरफ़ को मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल ले जाए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं.
विभूति नारायण राय कहते हैं, “मेडिकल कराया जाना अदालत का रूटीन आदेश होता है, ख़ासकर तब जब कोई अभियुक्त ये आशंका ज़ाहिर करे कि हिरासत में उसके साथ मारपीट हो सकती है. अतीक़ के मेडिकल का आदेश अदालत ने ही दिया था. लेकिन ये मेडिकल थाने में ही डॉक्टर को बुलाकर कराया जा सकता था. उन्हें अस्पताल ले जाना अनिवार्य नहीं था. सामान्य जाँच थाने में ही हो सकती थी, हो सकता है कोई और जटिलता रही हो और इसलिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया. बहुत कम सुरक्षा में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, ये बड़ी लापरवाही हुई.”
इस बारे में विजय मिश्रा कहते हैं, “यह तो रूटीन चेकअप था और यह तो पुलिस थाने में भी हो सकता था. यह तभी किया जाता है, जब अभियुक्त मांग करे कि हमारी थोड़ी तबीयत ख़राब है. उन्होंने ऐसी कोई मांग भी नहीं की थी. सिर्फ रूटीन चेकिंग के नाम पर उन्हें वहाँ ले जाया गया.”
सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी इतने लापरवाह क्यों, बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी?
अतीक़ और अशरफ़ पर जब गोलियाँ चलीं, तब उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी हमलावरों पर जवाबी कार्रवाई करने के बजाए अपनी जान बचाने के लिए भागते नज़र आए.
हमलावरों ने एक दर्जन से अधिक गोलियाँ चलाई, लेकिन पुलिस की तरफ़ से कोई गोली नहीं चली.
सुरक्षा में तैनात पुलसकर्मियों ने बुलेट प्रूफ़ जैकेट भी नहीं पहनी थी. इससे पहले जब भी अतीक़ को साबरमती जेल से लाया गया था, उनकी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी बुलेटप्रूफ़ जैकेट पहनते थे.
अब सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी सवालों के घेरे में है.
विक्रम सिंह कहते हैं, “पुलिस ख़ुशफहमी में थी और लापरवाह थी. पुलिस को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा हो सकता है. जितना संवेदनशील ये मामला था, दो दायरे पुलिस को बनाने थे. पहला पंद्रह मीटर का जिसमें किसी की एंट्री नहीं होनी चाहिए था. दूसरा बाहरी दायरा होना चाहिए था जहाँ लोगों पर निगरानी रखी जाती. किसी संदिग्ध के दिखते ही पुलिस को गोली चलानी चाहिए थी, जो पुलिस ने नहीं चलाई. यहाँ तो दिख ये रहा है कि पुलिस ने कुछ नहीं किया. हमलावरों ने पाँच सेकंड में खेल ख़त्म कर दिया.”
हमलावरों ने पुलिस पर गोली क्यों नहीं चलाई?
तीनों हमलावरों ने सिर्फ अतीक़ और उनके भाई अशरफ़ को निशाना बनाया.
उन्होंने उनकी सुरक्षा में तैनात किसी पुलिसकर्मी पर कोई गोली नहीं चलाई.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या उन्हें पहले से ये पता था कि पुलिस उन पर जवाबी कार्रवाई नहीं करेगी.
वो घटनाक्रम को लेकर इतने निश्चिंत कैसे थे?
हमलावरों ने हत्या करने के तुरंत बाद हथियार फेंक दिए थे और धार्मिक नारे लगाते हुए सरेंडर कर दिया था.
हमलावरों को अतीक़ के अस्पताल जाने के बारे में जानकारी कैसे मिली?
अतीक़ और अशरफ़ के गाड़ी से उतरते ही पत्रकार बनकर आए हमलावर उनके क़रीब पहुँचे और हत्या कर दी.
उनके पास अतीक़ के वहाँ पहुँचने की जानकारी पहले से थी.
सवाल उठ रहा है कि उन्हें इतनी सटीक जानकारी कैसे मिली जबकि अस्पताल प्रबंधन को कुछ मिनट पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी.
विक्रम सिंह कहते हैं, “एक अनाधिकारिक प्रेसवार्ता कराई गई जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. हमलावर पत्रकार बनकर पहुँचे और पुलिस की लापरवाही का फ़ायदा उठाया.”
तीनों हमलावर एक साथ कैसे आए?
अभी तक जो जानकारियाँ सामने आई हैं, उनके मुताबिक़ तीनों हमलावर यूपी के अलग-अलग ज़िलों से हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि ये तीनों एक साथ कैसे आए और क्या इनके पीछे कोई है?
विभूति नारायण राय कहते हैं, “जो तीन लोग पकड़े गए हैं, वो बहुत छोटे खिलाड़ी हैं, उनके पीछे कोई बड़ा खिलाड़ी ज़रूर होगा. अतीक़ के पास कई अहम जानकारियाँ होंगी. हो सकता है अतीक़ का मुँह बंद करवाने के लिए भी ऐसा किया गया है. पकड़े गए तीनों अभियुक्तों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाना अब बेहद ज़रूरी है. पुलिस को इन तीनों से सभी जानकारियाँ जुटानी चाहिए, तब ही उन लोगों तक पहुँचा जा सकता है, जो अतीक़ जैसे लोगों के लिए फ़ाइनेंस इकट्ठा करते थे.”
हमलावरों को हथियार कहाँ से मिले?
हमलावरों के पास से ऐसे उन्नत हथियार मिले हैं, जो आसानी से उपलब्ध नहीं. पुलिस के मुताबिक चार पिस्टल जब्त किए गए हैं.
तीनों हमलावर साधारण पृष्ठभूमि के हैं. उनका आपराधिक इतिहास है लेकिन अभी तक की जानकारी के मुताबिक़ वो पहले किसी बड़े गैंग से जुड़े नहीं रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि उनके पास इतने ख़तरनाक हथियार कैसे आए. पुलिस पर इन हथियारों की जड़ तक पहुँचने का भी दबाव है.
तीनों हमलावरों ने प्रशिक्षित अंदाज़ में गोलियाँ चलाईं. जिस सटीकता से उन्होंने हमला किया, उससे ये सवाल उठता है कि क्या उन्हें इन हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था.
विभूति नारायण राय कहते हैं, “पुलिस के सामने कई बड़े सवाल हैं. गहन और ईमानदार जाँच से ही इनका जवाब मिल सकेगा. इस घटना के बाद पुलिस की साख सवालों में है, ऐसे में निष्पक्ष और गहन जाँच करना ना सिर्फ पुलिस की ज़िम्मेदारी है, बल्कि एक चुनौती भी.”