DMT : New Delhi : (04 फ़रवरी 2023) : –
चकरा देने वाली ऊंचाइयों से सीधे रसातल पर. भारत के सबसे बड़े कारोबारी समूहों में से एक अदानी समूह ने बस एक हफ़्ते में इन दोनों पहलुओं के दीदार कर लिए.
पिछले हफ़्ते की शुरुआत में अदानी समूह की कंपनियों का कुल मूल्य 220 अरब डॉलर था, लेकिन अमरीकी रीसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से ये लगभग आधा हो गया है.
अदानी समूह ने रिपोर्ट में लगाए सभी आरोपों का खंडन किया है और उन्हें बेबुनियाद बताया है. फिर भी, वो निवेशकों की चिंता दूर कर पाने में नाकाम रहा है.
आज जब अदानी समूह की कंपनियों का बाज़ार भाव हर दिन और गिरता जा रहा है, तो बंदरगाह से लेकर बिजली बनाने वाला ये समूह इस वक़्त के अपने सबसे बड़े इम्तिहान से गुज़र रहा है.
मौजूदा चुनौतियां इस समूह की तरक़्क़ी की रफ़्तार को बहुत कम कर सकती हैं. या फिर ये भी ये हो सकता है कि कंपनी को अपनी कुछ बेहतरीन संपत्तियों से भी हाथ धोना पड़ सकता है.
शेयरों की क़ीमत गिरना चिंता की बात क्यों है?
किसी कंपनी के शेयरों में लगातार गिरावट का मतलब होता है उस कंपनी में निवेशकों का भरोसा कम हो रहा है. लेकिन, शेयरों की क़ीमत में गिरावट कब किसी कंपनी के कारोबार को प्रभावित करने लगती है?
ऐसा तब होता है, जब कंपनी की नक़द आमदनी कम हो जाती है, जो क़र्ज़ चुकाने के लिए ज़रूरी होती है. और, जब उसे अपने विस्तार के लिए पूंजी मिलना मुश्किल होने लगता है.
24 जनवरी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से रोज़मर्रा की ख़रीद-फ़रोख़्त के दौरान, अदानी समूह की कंपनियों के शेयर लगातार गिर रहे हैं. अदानी समूह की सबसे बड़ी कंपनी अदानी एंटरप्राइज़ेज़ के शेयर बुधवार के कारोबार के दौरान लगभग 28 फ़ीसद गिर गए थे और गुरुवार को इनमें 26 फ़ीसद की और गिरावट देखी गई. इसके बाद कंपनी को 2.5 अरब डॉलर जुटाने के लिए लाए गए 20 हज़ार करोड़ के फ़ॉलो ऑन पब्लिक ऑफ़र (FPO) या अपने शेयरों की दूसरी बिक्री को भी रद्द करना पड़ा. शेयरों की बिक्री का ये प्रस्ताव अदानी समूह अपने विस्तार के लिए और नक़दी जुटाने और अपना कुछ क़र्ज़ चुकाने के लिए लाया था.
फ़ॉलो ऑन पब्लिक ऑफ़र (FPO) से जुटाई जाने वाली पूंजी का लगभग आधा हिस्सा, अदानी एंटरप्राइज़ेज़ और उसकी सहयोगी कंपनियों की परियोजनाओं में लगाया जाना था. इनमें ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम स्थापित करना, मौजूदा हवाई अड्डों का विस्तार करना और सड़क और हाइवे बनाने वाली अपनी सहयोगी कंपनी के तहत ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस बनाना शामिल था.
जानकार कहते हैं कि निवेशकों का यक़ीन डगमगा जाने के कारण, आने वाले समय में अदानी समूह के लिए बाज़ार से पूंजी जुटा पाना मुश्किल हो जाएगा.
क्लाइमेट एनर्जी फ़ाइनेंस के निदेशक टिम बकले ने बीबीसी से कहा कि, “उन्हें अपनी बहुत सी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से क़दम पीछे खींचने होंगे और उनकी समयसीमा भी बढ़ानी होगी, क्योंकि इस वक़्त उनके लिए पूंजी जुटा पाना लगभग असंभव होगा.”
अदानी समूह के लिए इस समय पैसे जुटाने का एक ही तरीक़ा बचा है और वो है और ज़्यादा क़र्ज़ लेना. लेकिन, इस मामले में भी उनके हाथ बंधे हुए हैं. अदानी को क़र्ज़ देने वाले घबराए हुए हैं. अदानी समूह पर पहले ही बहुत ज़्यादा क़र्ज़ है.
अदानी मामला: अब तक क्या-क्या हुआ?
3 फ़रवरी 2023 –एक टेलीविज़न चैनल को दिए इंटरव्यू में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर अच्छी स्थिति में है और वित्तीय बाज़ार नियमों के साथ काम कर रहे हैं.
2 फ़रवरी 2023 –निवेशकों के बीच घबराहट के माहौल के बीच आरबीआई ने कंपनी को लोन देने वाली कंपनियों से इस सिलसिले में पूरी जानकारी मांगी.
2 फ़रवरी 2023 – कंपनी के मालिक गौतम अडानी ने 4 मिनट 5 सेकंड का एक वीडियो जारी कर एफ़पीओ वापिस लेने की वजह बताई.
1 फ़रवरी 2023 – अदानी कंपनी ने अपना एफ़पीओ वापस लिया.
31 जनवरी 2023 – इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात करने के लिए गौतम अदानी हाइफ़ा बंदरगाह पहुंचे थे. हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद पहली बार वो यहां सार्वजनिक तौर पर देखे गए.
31 जनवरी 2023 – एफ़पीओ की बिक्री इस दिन बंद होनी थी. इसी दिन ख़बर आई कि नॉन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर के तौर पर सज्जन जिंदल और सुनील मित्तल समेत कुछ और जानेमाने अरबपतियों ने कंपनी के 3.13 करोड़ शेयर खरीदने के लिए बोली लगाई.
30 जनवरी 2023 – इस दिन तक एफ़पीओ को केलव 3 फ़ीसदी सब्स्क्रिप्शन मिला. इसी दिन अबू धाबी की कंपनी इंटरनेशनल होल्डिंग कंपनी ने कहा कि वो अपनी सब्सिडियरी ग्रीन ट्रांसमिशन इन्वेस्टमेंट होल्डिंग आरएससी लिमिटेड के ज़रिए अदानी के एफ़पीओ में 40 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी.
27 जनवरी 2023 – अदानी ने 2.5 अरब डॉलर का एफ़पीओ बाज़ार में उतारा.
26 जनवरी 2023 – हिंडनबर्ग ने कहा कि वो अपनी रिपोर्ट पर क़ायम है और क़ानूनी कार्रवाई का स्वागत करेगी.
26 जनवरी 2023 – अदानी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया. कंपनी ने कहा कि वो क़ानूनी कार्रवाई के बारे में विचार कर रही है.
24 जनवरी 2023 – हिंडनबर्ग ने अदानी से जुड़ी अपनी रिपोर्ट ‘अदानी ग्रुपः हाउ द वर्ल्ड्स थर्ड रिचेस्ट मैन इज़ पुलिंग द लार्जेस्ट कॉन इन कॉर्पोरेट हिस्ट्री’ जारी की.
अदानी समूह की कंपनियां क़र्ज़ क्यों लेती हैं?
कंपनियों और ख़ास तौर से बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए नई परियोजनाएं बनाने या फिर और पैसे जुटाने के लिए क़र्ज़ लेना आम बात है. क़र्ज़ लेना अदानी समूह की प्रमुख रणनीति रही है, और इससे उन्हें अपने कारोबार को तेज़ी से फैलाने में काफ़ी मदद मिली है.
लेकिन, कारोबार के तेज़ी से विस्तार के चक्कर में अदानी समूह पर लगभग दो लाख करोड़ रुपए (25 अरब डॉलर) का क़र्ज़ हो गया है. पिछले तीन वर्षों के दौरान अदानी समूह का क़र्ज़ बढ़कर लगभग दो गुना हो गया है क्योंकि, अदानी ने अपनी कारोबारी महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाते हुए ग्रीन हाइड्रोजन और 5G जैसे नए कारोबार में क़दम रखा है.
परेशानी की बात ये है कि कंपनी के मुनाफ़े और राजस्व की तुलना में क़र्ज़ बढ़ने की रफ़्तार कहीं ज़्यादा तेज़ रही है. इससे कंपनी के दिवालिया होने का ख़तरा बढ़ गया है.
अदानी समूह को लेकर ये एक ऐसी चिंता है, जिसे हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के साथ साथ कई दूसरे विश्लेषकों ने भी ज़ाहिर किया है.
अदानी समूह की कंपनियों ने अब तक अपने लिए ज़्यादातर पूंजी क़र्ज़ के ज़रिए जुटाई है. इसके लिए उन्होंने या तो अपने बुनियादी ढांचे की संपत्तियां या फिर अपने शेयर गिरवी या ज़मानत के तौर पर रखे हैं.
अब जब अदानी समूह की कंपनियों के शेयरों के दाम आधे से ज़्यादा गिर गए हैं, तो उनके ज़मानत पर रखे गए शेयरों की क़ीमतें भी घट गई हैं. समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक़, क्रेडिट सुइस और सिटीग्रुप जैसे दो बड़े बैंकों की पूंजी शाखाओं ने अगर अदानी समूह के बॉन्ड को ज़मानत मानने से इनकार किया, तो इसके पीछे बड़ी वजह यही है.
बहुत से भारतीय बैंकों ने अदानी समूह की कंपनियों को करोड़ों डॉलर का क़र्ज़ दे रखा है, और यहां तक कि सरकारी बीमा कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने भी अदानी समूह में निवेश कर रखा है. लेकिन, वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी जेफरीस के मुताबिक़, अदानी समूह का लगभग दो तिहाई क़र्ज़ विदेशी स्रोतों जैसे कि बॉन्ड या विदेशी बैंकों से लिया गया है.
बाज़ार पर नज़र रखने वाले कहते हैं कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह अदानी समूह पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा है, उसके बाद उन्हें क़र्ज़ देने वाले भी सावधानी बरतेंगे.
इसका मतलब ये होगा कि अदानी को अब ऊंची दरों पर क़र्ज़ लेना पड़ेगा. नाम न बताने की शर्त पर एक कॉरपोरेट बैंकर ने कहा कि, ‘इस वक़्त कंपनी की विश्वसनीयता पर भारी दबाव है. इससे कंपनी के लिए नए क़र्ज़ लेना बहुत मुश्किल हो जाएगा, ख़ास तौर से विदेशी बाज़ार में.’
अदानी के लिए, हाल ही में मिले नए हवाई अड्डों के ठेकों, मुंबई धारावी की मलिन बस्तियों के पुनर्विकास और समूह के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट, यानी 50 अरब डॉलर का महत्वाकांक्षी ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम बनाने के लिए क़र्ज़ जुटाना दुश्वार होने की आशंका है.
अब आगे क्या होगा?
अदानी समूह की छानबीन अब बढ़ गई है. निवेशक और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां अब अदानी समूह की पैसे जुटाने या अपने क़र्ज़ लौटाने की क्षमता की बारीक़ी से पड़ताल कर रही हैं.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA के मुताबिक़, ऐसे हालात में अदानी समूह के लिए भारी पूंजी निवेश वाली परियोजनाएं पूरी करने के लिए क़र्ज लेने की योजना अब बड़ी चुनौती बन चुकी है.
अदानी समूह के संस्थापक और चेयरमैन गौतम अदानी ने एक बयान में कहा था कि एफ़पीओ वापस लेने से उनके समूह के मौजूदा कारोबार और भविष्य की योजनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
अदानी ने कहा था कि, “हमारी बैलेंस शीट अच्छी स्थिति में है और संपत्तियां मज़बूत हैं. हमारा EBITDA और नक़द आमदनी भी काफ़ी अच्छी है, और उधारी की देनदारियां चुकाने का हमारा रिकॉर्ड भी बेदाग़ रहा है.”
अदानी के अधिक पूंजी निवेश वाले ज़्यादातर कारोबार जैसे कि ग्रीन एनर्जी, हवाई अड्डे और सड़कें उनकी प्रमुख कंपनी, अदानी एंटरप्राइज़ेज़ के खाते में आते हैं. अपनी पूंजी की ज़रूरतों के लिए ये कंपनियां अदानी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड (एईएल) के भरोसे हैं. वैसे तो अदानी एंटरप्राइज़ेज़ की नक़द आमदनी अच्छी स्थिति में है. लेकिन ये रक़म अगर अपनी सहयोगी कंपनियों के क़र्ज़ का ब्याज चुकाने में भी लगा दी जाती है, तो एईएल पर दबाव बढ़ जाएगा.
अदानी समूह के लिए अच्छी बात ये है कि उसकी कुछ कंपनियों के पास संपत्तियों का अच्छा ज़ख़ीरा है. अदानी समूह ने ऊर्जा और परिवहन के क्षेत्र में काफ़ी संपत्तियां बना ली हैं, जो आम तौर पर देश की आर्थिक प्राथमिकताओं से मेल खाने वाली हैं.
बुनियादी ढांचे के विशेषज्ञ और इन्फ्राविज़न फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंधक संरक्षक विनायक चटर्जी ने कहा कि, “मैंने अदानी समूह की कई परियोजनाओं जैसे कि बंदरगाहों, हवाई अड्डों और सीमेंट कारखानों से लेकर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों से बिजली बनाने के कारोबार को देखा है. ये सब बेहद मज़बूत और स्थिर कारोबार हैं, और समूह को इन धंधों से काफ़ी मात्रा में नक़द आमदनी हो रही है. वो शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव से पूरी तरह महफ़ूज़ हैं.”
हालांकि, अदानी समूह की सारी कंपनियां इतनी सुरक्षित नहीं हैं.
जिस कॉरपोरेटर बैंकर से हमने पहले बात की थी, उन्होंने कहा कि, “अदानी पोर्ट्स और पावर सबसे मज़बूत स्थिति में हैं और उनके पास काफ़ी पूंजी है. इसका मतलब है कि उनके पास काफ़ी संपत्तियां भी हैं और उन्हें सरकार से लंबे दौर के लिए ठेके भी मिले हुए हैं. इन कंपनियों ने जो उधार लिया है, उसका ज़्यादातर हिस्सा इन संपत्तियों से होने वाली आमदनी और मुनाफ़े के भरोसे चुकाया जाना है. लेकिन, ये बात नए कारोबार पर नहीं लागू होती.”
उन्होंने इसका मतलब, अदानी समूह की कई कंपनियों द्वारा विदेशों में जारी किए गए बॉन्ड की क़ीमतों का हवाला देते हुए समझाया.
अदानी पोर्ट्स ऐंड एसईज़ेड लिमिटेड बड़े पैमाने पर बंदरगाह चलाती है. इसलिए इस कंपनी के जारी किए गए बॉन्ड की क़ीमतों में तो मामूली गिरावट आई है. लेकिन, समूह की रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी, अदानी ग्रीन के बॉन्ड की क़ीमत तीन दिनों में एक चौथाई तक घट गई है.
अदानी ग्रीन और अदानी गैस जैसी कंपनियों के खाते में पहले ही क़र्ज़ का भारी बोझ है, और वो अभी भी पूंजी जुटा रही हैं. इस वजह से उन पर बाज़ार के उतार चढ़ाव का गहरा असर होने का ख़तरा बढ़ गया है, और उनकी उधार ले पाने की क्षमता भी कम हो गई है.
इसीलिए अदानी समूह के लिए फिलहाल तो इकलौता रास्ता यही बचा है कि वो अपनी नई परियोजनाओं को फिलहाल टाल दे, और अपनी कुछ संपत्तियां बेचकर ज़रूरत भर की पूंजी जुटाए.
ICRA का कहना है कि अदानी समूह ने विस्तार की जो योजनाएं बना रखी हैं, उनमें से कुछ ऐसी हैं जिन्हें पूंजी जुटाने लायक़ अच्छा माहौल बनने तक आसानी टाला जा सकता है.
एक कॉरपोरेट सलाहकार कंपनी से संबंधित व्यक्ति ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि, “अदानी समूह ने ऐसी संपत्तियां बना ली हैं, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए बेशक़ीमती हैं और आने वाले समय में बहुत से निवेशक, ऐसे कारोबार में निवेश का जोखिम लेने को तैयार होंगे.”
आज जब कॉरपोरेट प्रशासन की चिंताएं अदानी समूह को सता रही हैं, तो आगे चलकर उसकी जांच का जोखिम भी पैदा हो सकता है. हालांकि, भारत में शेयर बाज़ार की नियामक संस्था सेबी (SEBI) ने अदानी के शेयरों में गिरावट पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है.
टिम बकले के मुताबिक़, “अब जबकि अदानी समूह पर दबाव बढ़ गया है, तो उसके लिए आसानी से सरकारी ठेके हासिल करके अपनी आमदनी बढ़ाना भी ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा. इसके साथ साथ, अदानी के लिए तुरंत नया क़र्ज़ लेने लायक़ भरोसा जगा पाना भी मुश्किल होगा.”
बकले का कहना है कि “चूंकि अदानी समूह को काफ़ी उधार चुकाना है, तो उसे अपनी अहम संपत्तियों को बेचने का फ़ैसला भी करना पड़ सकता है.”