DMT : अमेरिका : (08 फ़रवरी 2023) : –
बीते कुछ सालों से अमेरिका और चीन के कूटनीतिक रिश्तों में आया तनाव अपने चरम पर है, लेकिन इस बीच बीते साल दोनों मुल्कों के बीच व्यापार भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में अमेरिका और चीन के बीच क़रीब 690 अरब डॉलर का व्यापार हुआ.
बीते कुछ दिनों में चीन के एक ग़ुब्बारे को लेकर दोनों मुल्कों के बीच एक बार फिर तनाव गहरा गया. अमेरिका ने इसे जासूसी ग़ुब्बारा कहा जबकि चीन ने इसे मौसम की जानकारी जुटाने वाला मानवरहित ग़ुब्बारा कहा.
लेकिन दोनों देशों के बीच दक्षिण चीन सागर में चीन के कृत्रिम द्वीप बनाने और वहां अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने समेत ताइवान जैसे मुद्दों को लेकर पहले से ही तनाव है.
ये दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और साल 2018 से ही व्यापार युद्ध में उलझी हुई हैं. बाइडन से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से हो रहे आयात पर कई गुना कर लगाना शुरू किया था.
रिपोर्ट के अनुसार इसी दौरान चीन को होने वाला अमेरिका का निर्यात भी बढ़कर 153.8 अरब डॉलर हो गया है.

- दिसंबर 2022 में अमेरिका का कुल निर्यात 250.2 अरब डॉलर था. ये नवंबर में हुए निर्यात से 2.2 अरब डॉलर कम था.
- दिसंबर 2022 में अमेरिका का कुल आयात 317.6 अरब डॉलर था. ये नवंबर की तुलना में 4.2 अरब डॉलर अधिक था.
- चीन को हो रहे निर्यात में 2.4 अरब डॉलर का इज़ाफ़ा, कुल निर्यात 153.8 अरब डॉलर का हुआ.
- चीन से हो रहे आयात में 31.8 अरब डॉलर का इज़ाफ़ा, कुल आयात 536.8 अरब डॉलर का हुआ.
स्रोत- अमेरिकी इंटरनेशनल ट्रेडइन गुड्स एंड सर्विसेस की रिपोर्ट
दोनों मुल्कों के बीच व्यापार में हुई बढ़ोतरी का एक कारण अमेरिका में बढ़ रही महंगाई को बताया गया है. हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि ताज़ा आंकड़े दिखाते हैं कि तनाव के बावजूद दोनों मुल्क एक-दूसरे पर कितना निर्भर हैं.
एशियन ट्रेड सेन्टर की संस्थापक डेबोरा एल्म्स ने बीबीसी से कहा, “ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि दोनों के लिए एक-दूसरे से अलग होना कितना मुश्किल है.”
वो कहती हैं, “भले ही सरकारें, कंपनियां और उपभोक्ता चीन से आ रहे उत्पादों से दूरी बनाना चाहते हों, अर्थशास्त्र एक अलग हुए देश में कंपनी और उपभोक्ता की इच्छानुसार क़ीमतों में सामान मुहैया कराना मुश्किल बना देता है.”
दशकों से चीन के साथ बढ़ रहे आयात-निर्यात के बीच ट्रंप प्रशासन ने 300 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के चीनी सामान पर आयात कर लगाया. चीन ने भी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए क़रीब 100 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामान पर आयात कर लगा दिया.
ट्रंप के बाद बाइडन राष्ट्रपति बने और इस पद पर रहते हुए उन्हें दो साल हो गए हैं लेकिन चीनी सामान पर ट्रंप प्रशासन के लगाए आयात कर में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है.
माना जा रहा था कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन के चीन के दौरे के बाद दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघल सकती है. लेकिन अमेरिका के आसमान में दिखे चीनी ग़ुब्बारे बाद ब्लिंकन ने ऐन वक्त अपना दौरा रद्द कर दिया और रिश्तों में तनाव कम करने की जो उम्मीद बची थी वो भी जाती रही.
एंटोनी ब्लिंकन फरवरी पांच से छह तक बीजिंग के दौरे पर जाने वाले थे. उम्मीद की जा रही थी कि उनके दौरे के दौरान सुरक्षा, ताइवान और कोविड-19 जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
बाइडन का चीन पर निशाना
अमेरिका विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन का चीनी दौरा रद्द होने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने संसद में दिए स्टेट ऑफ़ यूनियन स्पीच में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ-साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर निशाना साधा.
उन्होंने चीन के ‘जासूसी गुब्बारे’ का साफ़ तौर पर ज़िक्र नहीं किया लेकिन कहा कि उनका प्रशासन हमेशा अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा.
बाइडन ने कहा, “मैंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ये स्पष्ट कर दिया था कि हम प्रतिस्पर्धा चाहते हैं, संघर्ष नहीं. मैं इस बात के लिए माफ़ी नहीं मांगूंगा कि हम अमेरिका को ताक़तवर बनाने के लिए निवेश कर रहे हैं. हम अमेरिका में नई चीज़ों और उद्योगों में निवेश कर रहे हैं जो हमारा भविष्य तय करेंगी. लेकिन चीन की सरकार हावी होने पर ज़ोर दे रही है.”
बाइडन ने कहा, “बीते दो सालों में लोकतंत्र कमज़ोर नहीं, मज़बूत हुआ है. निरंकुशता कमज़ोर हुई है न कि ताक़तवर. आप मुझे एक ऐसे नेता का नाम बताइए, जो आज के समय में शी जिनपिंग की जगह लेना चाहेगा. कोई नेता ऐसा नहीं करना चाहेगा.”
हालांकि उन्होंने ये भी कहा, “मैं अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए और दुनिया का भलाई के लिए चीन के साथ बात करने के लिए तैयार हूं. लेकिन समझने में कोई ग़लती न करें: हमने बीते सप्ताह ही स्पष्ट कर दिया था कि अगर चीन हमारी संप्रभुता के लिए ख़तरा बनेगा तो हम अपने देश की रक्षा करेंगे और हमने पहले भी ऐसा किया है.”
कथित जासूसी ग़ुब्बारा
बीते सप्ताह चीन का एक ग़ुब्बारा अमेरिका का वायु क्षेत्र में नज़र आया था जिसे लेकर अमेरिका ने ‘स्पाई बलून’ बताया और कड़ी प्रतिक्रिया दी.
इस पर चीन ने सफाई दी कि ये ग़ुब्बारा मौसम की जानकारी इकट्ठा करने के लिए छोड़ा गया था और ग़लती से अमेरिका के वायु क्षेत्र में दाख़िल हो गया. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसके लिए खेद जताया था.
इसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चीन का अपना दौरा भी रद्द कर दिया था. इसके बीद राष्ट्रपति बाइडन के आदेश पर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को फ़ाइटर जेट की मदद से इस ग़ुब्बारे को गिरा दिया था.
चीन ने ग़ुब्बारे को गिराने की अमेरिका की कार्रवाई का कड़ा विरोध किया था और कहा कि अमेरिका ने ताक़त का इस्तेमाल किया. चीन ने कहा कि अमेरिका मामला बढ़ाकर स्थिति को और जटिल न बनाए.
अमेरिका ने कहा कि ग़ुब्बारा गिराने के बाद अमेरिका ने चीन से दोनों मुल्कों के रक्षा मंत्रियों के बीच बातचीत की पेशकश की थी, जिसे चीन ने ठुकरा दिया.
ताइवान मुद्दा
बीते साल अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की जिसे लेकर दोनों के बीच एक बार फिर तनाव गहरा गया था.
पिछले 25 सालों में ये अमेरिका के किसी उच्चस्तरीय राजनेता की ये पहली ताइवान यात्रा थी.
चीन के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग 100 मील दूर मौजूद ताइवान को चीन अपने से अलग हुआ एक प्रांत मानता है और वो मानता है कि ये इलाक़ा आज नहीं तो कल चीन के नियंत्रण में आ जाएगा.
ऐसे में चीन की आक्रामक प्रतिक्रिया आने की उम्मीद की जा रही थी, और हुआ भी ऐसा ही. पेलोसी की ताइवान यात्रा को चीन ने “बहुत ख़तरनाक” बताया. चीन के उप-विदेश मंत्री शी फ़ेंग ने इसे विद्वेषपूर्ण बताते हुए गंभीर परिणाम की चेतावनी दी और कहा कि चीन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा रहेगा.
कोविड-19 मामला
कोरोना वायरस जब दुनियाभर में फैलने लगा तो इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन और अमेरिका आमने-सामने आ गए. जो बाइडन ने इंटेलिजेंस एजेंसियों से कहा कि वो ये पता लगाएं कि कोरोना वायरस कहां से फैलना शुरू हुआ.
कोविड-19 का सबसे पहला केस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में दर्ज किया गया था और इसका नाता वुहान की एक सीफ़ूड मार्केट से पाया गया था.
ऐसे में मामला इस बात पर आकर अटका कि अमेरिका के जांच अधिकारी इसकी जांच के लिए चीन पहुंचे. बाद में उन्होंने आरोप लगाया कि चीनी अधिकारी उन्हें सही तरीके से जांच करने नहीं दे रहे.
इस दौरान अमेरिकी मीडिया में इस तरह की ख़बरें आईं कि कुछ सबूत हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि यह वायरस चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ है. चीन ने न सिर्फ़ ऐसी ख़बरों को झूठा बताया था बल्कि आरोप लगाया था कि हो सकता है कोरोना वायरस अमेरिका की किसी लैब से निकला हो.
दक्षिण चीन सागर का मुद्दा
दक्षिण चीन सागर में चीन ने कई कृत्रिम द्वीप बनाए हैं जिनमें से कई में उसने सैन्य अड्डे भी विकसित किए हैं.
इस इलाक़े को चीन अपना कहता है और यहां पर कृत्रिम द्वीप बनाना उसकी एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा है. जानकार मानते हैं कि इसके ज़रिए को दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा सकता है और चूंकि ये दुनिया के सबसे व्यस्ततम समुद्री मार्गों में से एक है ऐसा कर वो दुनिया के व्यापार पुर भी असर डाल सकता है.
इसे लेकर अमेरिका और पश्चिमी देश, यहां तक कि नैटो ने भी इस इलाक़े में चीन की परियोजना को लेकर कई बार चिंता जताई है.
हांग कांग का मुद्दा
साल 2019 में हांग कांग में बड़े पैमाने पर गणतंत्र के समर्थन में विरोध प्रदर्शन हुए. कुछ रैलियों में हिंसा भी हुई थी.
हांग कांग कभी ब्रिटेन का उपनिवेश हुआ करता था. साल 1997 में ब्रिटेन ने ‘एक देश-दो प्रणाली’ समझौते के तहत इसे चीन को सुपुर्द किया. ये समझौता हांग कांग को वो आज़ादी और लोकतांत्रिक अधिकार देता है, जो चीन की मुख्यभूमि के लोगों को हासिल नहीं हैं.
साल भर पहले हांग कांग पर शिकंजा कसने की कोशिश में चीन यहां के निर्वाचन संबंधी नियमों में बदलाव किए. इन बदलावों को ‘पैट्रियोटिक प्लान’ यानी ‘देशभक्ति योजना’ कहा गया.
चीन का कहना है कि उसका उद्देश्य हांग कांग की राजनीति में ‘देशभक्तों’ को आगे बढ़ाना और ‘ग़ैर राष्ट्रवादियों’ को दूर रखना है.