अरब वर्ल्ड का वो देश जो कभी था दुलारा, अब क्यों है बदहाल

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DMT : तुर्की  : (22 फ़रवरी 2023) : –

छह फ़रवरी को तुर्की और सीरिया में आए भूकंप में अब तक 44 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं. अकेले सीरिया में अब तक छह हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

वहां से मिल रही ख़बरों के अनुसार, सीरिया के भूकंप पीड़ित लोगों तक ना तो सीरियाई सरकार की और ना ही अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की मदद पहुंच पा रही है और अगर पहुंच भी रही है तो उसकी रफ़्तार बहुत धीमी है और अपर्याप्त भी.

संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता प्रमुख मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने तुर्की और सीरिया के भूकंप प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया था. उनका कहना था कि अंतरराष्ट्रीय जगत ने उत्तर-पश्चिम सीरिया में रह रहे लोगों को निराश किया है.

उनका कहना था कि वहां रह रहे लोगों को लगता है कि उन्हें पूरी तरह उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. वो अंतरराष्ट्रीय मदद की राह देख रहे हैं जो अभी तक नहीं पहुंच सकी है.

वो कहते हैं, “शुरुआत के एक हफ़्ते तक तो सीरिया के इलाक़ों में कितनी तबाही हुई है, इसी के बारे में कोई सही जानकारी नहीं मिल पाई थी.”

उनके अनुसार, क़रीब एक हफ़्ते के बाद पता चला कि अलेप्पो का क़रीब आधा इलाक़ा भूकंप में तबाह हो गया है.

लेकिन उन तक राहत नहीं पहुंच पाने या देर से पहुंच पाने का कारण बताते हुए नितिन श्रीवास्तव कहते हैं, ”भूंकप प्रभावित इलाक़े के एक हिस्से में बशर अल-असद की सरकार का नियंत्रण है तो दूसरे हिस्से में विद्रोही गुटों का क़ब्ज़ा है.

विद्रोही गुट कहते हैं कि मदद असद सरकार के पास आ रही है जबकि सरकार का कहना है कि तुर्की सीमा से अंतरराष्ट्रीय मदद आ रही है जो कि विद्रोही गुटों के पास जा रही है.”

नितिन के अनुसार, इलाक़े बंटे हुए होने के कारण दरअसल कितनी मदद आ रही है और कितनी प्रभावित लोगों तक पहुंच रही है, इस बारे में सही तरीक़े से कहना बहुत मुश्किल है.

पिछले शुक्रवार को यूएन ने कहा था कि 170 ट्रक राहत सामग्री लेकर पहुंचे हैं.

नई दिल्ली में रह रहे सीरिया के वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर वायल अव्वाद कहते हैं कि तुर्की में रह रहे क़रीब 10 हज़ार सीरियाई नागरिक इस भूकंप में मारे गए हैं और सीरिया के अंदर क़रीब छह हज़ार लोगों की मौत हुई है.

उनके अनुसार, क़रीब डेढ़ करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए हैं और क़रीब 55 लाख लोग बेघर हो गए हैं. अमेरिकी प्रतिबंध के कारण सीरिया में मदद पहुंचने में दिक़्क़त हो रही है.

इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स (आईसीडब्लूए) के सीनियर फ़ेलो डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान सीरिया के उन इलाक़ों में राहत सामग्री ठीक से नहीं पहुंच पाने का कारण बताते हुए कहते हैं, “सीरिया पिछले 10-12 सालों से जिस तरह से हिंसा की चपेट में है, वहां जाने में हर किसी को डर है.”

”उन इलाक़ों में विद्रोहियों का नियंत्रण है, इसलिए बशर अल-असद सरकार ने भी उन इलाक़ों को पूरी तरह छोड़ दिया है. वहां सरकार या संस्थान के नाम पर कुछ नहीं है.”

डॉक्टर रहमान के अनुसार, उन इलाक़ों में इतने सारे गुट हैं और उनमें आपसी मतभेद इस क़दर हैं कि कोई भी संस्थान वहां जाने में 10 बार सोचता है.

बशर अल-असद कह रहे हैं कि भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद करने के लिए अमेरिका को सीरिया से प्रतिबंध हटा लेना चाहिए.

लेकिन असद विरोधियों का कहना है कि प्रतिबंध हटाने से अंतरराष्ट्रीय मदद सीरियाई सरकार तक पहुंच जाएगी और वो उसका ग़लत इस्तेमाल करके उस पैसे को अपनी सेना पर ख़र्च कर सकते हैं.

मदद में राजनीति आड़े?

डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं कि सीरिया और तुर्की में भूकंप आने के बाद से ही असद और उनके विरोधी गुट दोनों ही राजनीति कर रहे हैं.

उनके अनुसार, असद यह तस्वीर पेश कर रहे हैं कि अमेरिका और पूरी पश्चिमी ताक़तें तुर्की में तो मदद करने में आगे-आगे हैं, लेकिन सीरिया में पीड़ितों की मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जगत उस तरह से आगे नहीं आ रहा है.

डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, “इस तरह की बात ईरान के बारे में भी कही जाती है कि उस पर प्रतिबंध हटाकर उसको अंतरराष्ट्रीय मदद भेजी जाएगी तो उसका ग़लत इस्तेमाल हो सकता है. इसलिए असद पर इस तरह का आरोप लगाना बेबुनियाद है.”

”यह वक़्त इन चीज़ों का नहीं है. अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की इस वक़्त यही ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वहां लोगों की मदद की जाए. मदद के ग़लत इस्तेमाल को रोकने के हज़ार तरीक़े हैं.”

डॉक्टर वायल अव्वाद भी कहते हैं कि बशर अल-असद को बदनाम करने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों का यह प्रोपेगैंडा है. उनके मुताबिक़ अरब स्प्रिंग के दौरान ज़्यादातर अरब देश के शासक देश छोड़ कर भाग गए थे, लेकिन बशर अल-असद सीरिया में डटे रहे, यह इस बात को साबित करता है कि असद अपने देश में काफ़ी लोकप्रिय हैं.

सीरिया को अरब लीग में वापस लाने की कोशिश

साल 2011 में अरब स्प्रिंग की लहर सीरिया भी पहुंची और वहां भी बशर अल-असद की सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. लेकिन असद पर आरोप है कि उन्होंने अपने विरोधियों को बर्बरता के साथ कुचल दिया और इसी के कारण तुर्की और अरब देशों ने उनसे संबंध तोड़ दिए. अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने भी सीरिया पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए.

हालांकि सीरिया की सरकार का कहना है कि सरकार के विरोध में सीरिया की जनता नहीं बल्कि चरमपंथी संगठन शामिल हैं.

लेकिन अब धीरे-धीरे तुर्की और कई अरब देश सीरिया को लेकर अपनी सोच बदल रहे हैं.

डॉक्टर वायल अव्वाद सीधे तौर पर आरोप लगाते हैं कि ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन को अमेरिका, पश्चिमी देश और कुछ अरब देशों का समर्थन हासिल है और सीरिया इस प्रायोजित चरमपंथ का पीड़ित है.

उनके अनुसार, अरब देश सीरिया से अपने संबंध सुधारना चाहते हैं, लेकिन अमेरिका उन्हें रोक रहा है.

लेकिन अमेरिका क्यों रोकना चाहता है इस सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर अव्वाद कहते हैं, “अमेरिका चाहता है कि सीरिया गोलान हाइट्स से अपनी दावेदारी छोड़ दे, लेबनान में हिज़बुल्लाह को समर्थन ना करे, ईरान को अपने देश से पूरी तरह बाहर कर दे. अमेरिका चाहता है कि सीरिया उनकी मांगों के आगे आत्मसमर्पण कर दे.”

सीरिया को लेकर नज़रिए में बदलाव

डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान भी कहते हैं कि पिछले चार-पांच साल से सीरिया को लेकर अरब देशों के नज़रिए में बदलाव देखा जा रहा है.

उनके मुताबिक़, 2011 के बाद से तुर्की और अरब देशों का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मक़सद था कि बशर अल-असद को किसी तरह सत्ता से हटाया जाए.

लेकिन रूस के हस्तक्षेप के बाद तुर्की और अरब देशों की राय में बदलाव आना शुरू हुआ.

डॉक्टर रहमान के अनुसार, साल 2018 आते-आते रूस और ईरान पूरी तरह से सीरिया की राजनीति में हावी हो जाते हैं और अरब देशों का वहां किसी भी तरह का कोई प्रभाव नहीं बचता है.

धीरे-धीरे अरब देशों को लगने लगा कि असद को सत्ता से नहीं हटाया जा सकता है तो बेहतर है कि अब उनसे संबंध सुधारा जाए. डॉक्टर रहमान के अनुसार, अरब देशों को लगने लगा है कि सीरिया को पूरी तरह ईरान के हाथों छोड़ने से बेहतर है कि असद को इंगेज किया जाए.

डॉक्टर रहमान कहते हैं कि अरब देशों की इस पहल में रूस सबसे अहम भूमिका निभा रहा है.

रूस की भूमिका

डॉक्टर रहमान इस पूरे मामले में रूस की भूमिका का विशेष तौर पर ज़िक्र करते हैं.

वो इसके चार-पाँच अहम कारण बताते हैं:-

  • रूस और सीरिया का बहुत पुराना संबंध है. सोवियत संघ के विघटन के बाद खाड़ी देशों में रूस का अगर कोई भरोसेमंद साथी रहा है तो वो सीरिया रहा है.
  • अरब स्प्रिंग के बाद विरोधियों को दबाने के लिए सीरिया ने रूस से मदद मांगी, यह कहते हुए कि चरमपंथियों के ख़िलाफ़ असद सरकार की लड़ाई में रूस को उनका साथ देना चाहिए.
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस का कोई ख़ास प्रभाव खाड़ी देशों में नहीं बचा था और इसी बहाने रूस को भी लगा कि वो खाड़ी देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है.
  • पिछले 50 सालों से खाड़ी देशों की राजनीति में अमेरिका का वर्चस्व रहा है, लेकिन अरब स्प्रिंग के बाद पूरी अरब दुनिया की राजनीति में व्यापक बदलाव आया. अमेरिका खाड़ी देशों से धीरे-धीरे पीछे हटता जा रहा है.
  • रूस को सीरिया में हस्तक्षेप करने के लिए ईरान जैसा साथी मिला जो हर तरह से उसकी राजनीति को सूट कर रहा था.

डॉक्टर रहमान के अनुसार, सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के बाद, रूस लीबिया में भी दाख़िल हुआ और यूक्रेन में रूस का सैन्य ऑपरेशन भी उसी की एक कड़ी है.

रूस की अहमियत का ज़िक्र करते हुए डॉक्टर अव्वाद कहते हैं कि अगर ईरान और रूस नहीं होते तो 2015-16 में सीरिया में चरमपंथियों का राज हो जाता जो कि उनके अनुसार अमेरिकी एजेंडा था.

रूस और सीरिया की दोस्ती का ज़िक्र करते हुए डॉक्टर अव्वाद कहते हैं कि पूरे भूमध्यसागर में सीरिया अकेला ऐसा देश है जहां रूस का पिछले 20 सालों से सैनिक अड्डा है.

अरब दुनिया में सीरिया की अहमियत

सीरिया आज भले ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब सीरिया की अरब दुनिया में तूती बोलती थी. डॉक्टर रहमान के अनुसार, बशर अल-असद के पिता हाफ़िज़ अल-असद को ‘अरब दुनिया का बिस्मार्क’ कहा जाता था.

उनके अनुसार, हाफ़िज़ अल-असद ने रूस के साथ मिलकर पश्चिमी दुनिया का मुक़ाबला किया और इसराइल पर हमेशा सख़्त रवैया अपनाया.

डॉक्टर अव्वाद भी कहते हैं कि सीरिया में शिक्षा और स्वास्थ सेवाएं बिल्कुल मुफ़्त थीं. वो कहते हैं कि सीरिया में ना केवल शिक्षा मुफ़्त थी बल्कि शिक्षा अनिवार्य थी.

डॉक्टर रहमान कहते हैं कि एक दौर ऐसा भी था जब पूरे अरब वर्ल्ड में सीरिया में सबसे ज़्यादा पीएचडी होती थी. उनकी अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता भी बहुत अच्छी थी.

डॉक्टर रहमान कहते हैं कि मिस्र के नासिर के बाद पूरे अरब जगत में अगर कोई सबसे प्रभावी नेता रहा है तो वो हाफ़िज़ अल-असद थे.

डॉक्टर अव्वाद कहते हैं कि सीरिया एक धर्मनिरपेक्ष देश रहा है और अफ़ग़ानिस्तान में रूस के हस्तक्षेप के बाद पूरी दुनिया से मुजाहिदीन आकर लड़ रहे थे, लेकिन उस दौर में भी सीरिया का एक व्यक्ति भी अफ़ग़ानिस्तान नहीं आया था.

उनके अनुसार, सीरिया उन गिने-चुने देशों में था जिस पर वर्ल्ड बैंक या आईएमएफ़ का कोई क़र्ज़ नहीं था.

सीरिया की अहमियत का ज़िक्र करते हुए डॉक्टर अव्वाद कहते हैं कि सीरिया ने अरब दुनिया को स्थायित्व देने में अहम भूमिका निभाई है. उनके अनुसार, गुट-निरपेक्ष आंदोलन से लेकर लेबनान में गृह युद्ध को रोकने तक सबमें सीरिया का अहम रोल रहा है.

डॉक्टर अव्वाद कहते हैं कि खाड़ी देशों में अमेरिका का दो ही एजेंडा है तेल और इसराइल का वर्चस्व. उनके अनुसार, अमेरिका इसीलिए सीरिया का विरोध करता है क्योंकि सीरिया फ़लस्तीनी लोगों के साथ खड़ा है.

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