DMT : इस्लामाबाद : (19 फ़रवरी 2023) : –
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ दर्ज विभिन्न मामलों में फ़ौजदारी क़ानून के तहत कार्रवाई शुरू हो गई है. ऐसे में इस बात को देखने की ज़रूरत है कि कौन से मुक़दमे इमरान ख़ान के राजनीतिक करियर को प्रभावित कर सकते हैं.
इसमें तोशाख़ाना (सरकारी उपहार) केस में चुनाव आयोग के फ़ैसले पर इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अदालती कार्रवाई होने के अलावा देश की राजधानी इस्लामाबाद के विभिन्न थानों में उनके विरुद्ध मुक़दमे भी दर्ज हैं. इनमें इस्लामाबाद पुलिस काफ़ी सक्रिय नज़र आ रही है.
इमरान ख़ान पर इस्लामाबाद के विभिन्न थानों में 22 मुक़दमे दर्ज हैं.
इनमें एडिशनल सेशन जज ज़ेबा चौधरी को धमकियां देने के अलावा पिछले साल 25 मई को इस्लामाबाद के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन, तोड़फोड़, सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने और सरकारी कार्यों में बाधा डालने से संबंधित धाराओं के तहत ये मुक़दमे दर्ज किए गए हैं.
इधर, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के चेयरमैन इमरान ख़ान ने बुधवार से ‘जेल भरो आंदोलन’ शुरू करने की घोषणा कर रखी है.
एडिशनल जज को ‘गंभीर नतीजे’ भुगतने की धमकी देने का केस
यह केस पिछले साल अगस्त में थाना मार्गला में दर्ज किया गया था. इस मामले में इस्लामाबाद पुलिस ने गंभीर नतीजे भुगतने की धमकियां देने के लिए धारा के अलावा आतंकवाद विरोधी धाराओं को भी जोड़ दिया था.
इमरान ख़ान ने एक सभा में शहबाज़ गिल को शारीरिक रिमांड पर इस्लामाबाद पुलिस के हवाले करने पर इस्लामाबाद की एडिशनल सेशन जज ज़ेबा चौधरी को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी थी.
इस्लामाबाद की आतंकवाद विरोधी अदालत के जज राजा जव्वाद अब्बास ने इमरान ख़ान की अंतरिम ज़मानत मंज़ूर कर ली थी.
लेकिन वह इस केस की तफ्तीश में शामिल नहीं हुए थे जिस पर पुलिस की ओर से उनकी ज़मानत रद्द करने का आवेदन दिया गया था. इसके बाद इमरान ख़ान उस केस की तफ़्तीश में शामिल हुए.
इस मुक़दमे में हालांकि आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराओं को हटा दिया गया था लेकिन गंभीर नतीजा भुगतने की धमकियां देने से संबंधित धाराएं अब भी मौजूद हैं.
पुलिस ने उस मुक़दमे का चालान संबंधित अदालत में पेश कर दिया है लेकिन अभी तक इमरान ख़ान पर उस मुक़दमे में आरोप गठित नहीं हुए हैं.
फ़ौजदारी क़ानून की धारा 506 के तहत दर्ज होने वाले मुक़दमे में जुर्म साबित होने पर उसकी सज़ा दो साल क़ैद और जुर्माना या दोनों सज़ाएं भी हो सकती हैं.
जज को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकियां देने के मामले पर ही उस समय के इस्लामाबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस अतहर मिनल्लाह ने इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी.
लेकिन इमरान ख़ान की ओर से संबंधित जज की अदालत में पेश होकर उनकी अनुपस्थिति में उनसे माफ़ी मांगने पर उनके ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना की कार्रवाई ख़त्म कर दी गई थी.
तोशाख़ाना मामला: चुनाव आयोग के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन पर मुक़दमा
तोशाख़ाना के मामले पर नेशनल असेंबली के स्पीकर रेफ़रेंस पर इलेक्शन कमीशन के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने पर इमरान ख़ान पर थाना संग जानी में मुक़दमा दर्ज है.
इसमें सरकारी कार्य में बाधा डालने और तोड़फोड़ के अलावा आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराएं भी लगाई गई हैं.
इस मुक़दमे में संबंधित अदालत ने मुल्ज़िम इमरान ख़ान की अंतरिम ज़मानत मंज़ूर कर रखी थी. लेकिन पेशी न होने की वजह से आतंकवाद विरोधी अदालत ने उनकी अंतरिम ज़मानत रद्द कर दी.
आतंकवाद विरोधी अदालत से इमरान ख़ान का अंतरिम ज़मानत के लिए दिया गया आवेदन ख़ारिज होने के बाद इस्लामाबाद पुलिस काफ़ी सक्रिय हो गई है.
राजधानी की पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार इस मुक़दमे में इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस की टीमें लाहौर रवाना कर दी गई हैं.
आतंकवाद विरोधी अदालत से इमरान ख़ान की अंतरिम ज़मानत रद्द होने के बाद लाहौर के ज़मान पार्क, जहां पर इमरान ख़ान आजकल रह रहे हैं, में काफ़ी हलचल मची हुई है.
पार्टी नेतृत्व की ओर से इमरान ख़ान की सुरक्षा और इस्लामाबाद पुलिस की ओर से उनकी संभावित गिरफ़्तारी से बचाने के लिए पीटीआई सदस्यों को हर समय एक ख़ास संख्या में इमरान ख़ान के आवास के बाहर मौजूद रहने के निर्देश जारी किए गए हैं.
लाहौर हाई कोर्ट में भी इमरान ख़ान के वकीलों ने अग्रिम ज़मानत लेने के लिए आवेदन दिया था लेकिन मुल्ज़िम ख़ुद अदालत में पेश न हुए जिस पर अदालत ने सुरक्षात्मक ज़मानत की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी.
लाहौर हाईकोर्ट में अग्रिम ज़मानत के लिए जो काग़ज़ात अदालत में जमा करवाए गए थे उन पर इमरान ख़ान की ओर से किए गए हस्ताक्षर में अंतर के कारण पूर्व प्रधानमंत्री को 20 फ़रवरी को अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया है.
‘दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराओं का इस्तेमाल‘
थाना संग जानी में इमरान के ख़िलाफ़ दर्ज होने वाले आतंकवाद विरोधी मुक़दमे के अलावा दूसरे सभी मुक़दमों में उनकी ज़मानत मंज़ूर हो चुकी है.
वह विभिन्न मुक़दमों में ज़मानतों के लिए अदालतों में पेश होते रहे हैं और विभिन्न मुक़दमों में संबंधित अदालतों ने अंतरिम ज़मानतों की पुष्टि भी कर दी है. लेकिन अभी तक उनके ख़िलाफ़ किसी मुक़दमे में आरोप गठित नहीं किए गए हैं.
इस्लामाबाद की आतंकवाद विरोधी अदालत के जज राजा जव्वाद अब्बास की ओर से मुल्ज़िम इमरान की अंतरिम ज़मानत का आवेदन रद्द होने के बाद इमरान ख़ान की ओर से एक लिखित आवेदन डिस्ट्रिक्ट प्रॉसिक्यूटर ऑफ़िस को मिला है.
इसमें कहा गया है कि मुक़दमे की घटनाओं को सामने रखते हुए इस मुक़दमे में आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराएं लगाना हास्यास्पद है, इसलिए इस मुक़दमे से इन धाराओं को हटाया जाए.
अपने वकीलों के माध्यम से दिए गए उस आवेदन में इमरान की ओर से कहा गया है कि उनके विरुद्ध मुक़दमे में आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराएं लगाना सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्यीय बेंच के फ़ैसले की अवमानना है.
इमरान ख़ान ने उस आवेदन में तर्क दिया है कि उनके विरुद्ध दर्ज मुक़दमे में आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराएं लगाने से सरकार की ओर से आतंकवाद के मामले में गंभीरता की कमी का पता चलता है.
आतंकवाद विरोधी अदालत ने अभी तक इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ आतंकवाद की धाराओं को ख़त्म नहीं किया है और वह अभी तक इस मुक़दमे की तफ़्तीश में शामिल भी नहीं हुए हैं.
क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस मुक़दमे में जुर्म साबित हो गया और आतंकवाद विरोधी धाराएं ख़त्म न की गईं तो इमरान ख़ान को सात से दस साल तक क़ैद की सज़ा हो सकती है.
इलेक्शन कमीशन का तोशाख़ाना रेफ़रेंस
तोशाख़ाना से घड़ियां और दूसरे सामान लेकर जाने और उन्हें अपनी संपत्तियों में न दिखाने पर चुनाव आयोग ने इमरान ख़ान को अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ उनके ख़िलाफ़ फ़ौजदारी क़ानून के तहत कार्रवाई करने से संबंधित रेफ़रेंस ज़िला अदालत को भेज रखा है.
इस्लामाबाद की अदालत ने इमरान को आरोप गठित करने के लिए तलब कर रखा है लेकिन वह अभी तक अदालत में पेश नहीं हुए हैं.
टेरियन व्हाइट को अपने नामांकन पत्र में न दिखाने का केस
इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ यह मामला हालांकि फ़ौजदारी क़ानून के तहत नहीं है. लेकिन यह उनके चुनाव लड़ने की योग्यता से संबंधित है और आवेदन देने वाले साजिद महमूद के अनुसार इमरान ख़ान ने अपनी कथित बेटी टेरियन व्हाइट को अपने नामांकन पत्र में ज़ाहिर नहीं किया था.
इस्लामाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच इस आवेदन के सुनवाई योग्य होने या न होने के बारे में सुनवाई कर रही है और अदालत ने इमरान ख़ान के वकील से एक मार्च को इस आवेदन के सुनवाई योग्य होने से संबंधित जवाब तलब कर रखा है.
इमरान ख़ान के राजनीतिक जीवन के लिए सबसे ज़्यादा ख़तरनाक यही मामला है जिसमें वह आजीवन अयोग्य भी घोषित हो सकते हैं.
इमरान ख़ान के खिलाफ अधिकतर मुक़दमे शहर में धारा 144 का उल्लंघन करने, सरकारी और निजी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने और सरकारी कार्य में बाधा डालने के हैं और यह ज़मानत योग्य अपराधों की सूची में आते हैं.
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार सरकारी कार्य में बाधा डालने का जुर्म साबित होने की स्थिति में मुजरिम को दो साल क़ैद और जुर्माना और या फिर दोनों सज़ाएं हो सकती हैं.
पुलिस के अलावा एफ़आईए भी सक्रिय
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ इस्लामाबाद में दर्ज मुक़दमों के अलावा चुनाव आयोग की ओर से पीटीआई के ख़िलाफ़ प्रतिबंधित फ़ंडिंग के बारे में जो फ़ैसला दिया गया था, उस पर एफ़आईए यानी फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने जांच शुरू कर दी है
इस समय यह मामला एफ़आईए की स्पेशल कोर्ट में है.
इमरान ख़ान पर पिछले साल नवंबर में हुए हमले के बाद संबंधित अदालत के जज ने मुल्ज़िम की ओर से पेशी से छूट के आवेदन कई बार स्वीकार किए हैं. लेकिन 15 फ़रवरी को हुई पिछली सुनवाई में अदालत ने इमरान ख़ान की हाज़िरी से छूट की दरख़्वास्त रद्द कर दी थी.
कोर्ट ने इमरान को हर हाल में अदालत में पेश होने का हुक्म दिया था.
पीटीआई की लीगल टीम ने इस अदालती फ़ैसले को इस्लामाबाद हाई कोर्ट में चैलेंज किया है और अदालत ने स्पेशल कोर्ट को फ़रवरी तक इस बारे में कार्रवाई करने से रोक दिया है.
‘सरकार गिरफ़्तार करना चाहे तो उसकी राह में कोई रुकावट नहीं बन सकता‘
फ़ौजदारी क़ानून की धाराओं के तहत दर्ज होने वाले मुक़दमों की पैरवी करने वाले वकील शाह ख़ावर का कहना है कि इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अधिकतर मुक़दमें राजनीतिक प्रकृति के हैं.
उन्होंने कहा कि आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराओं के तहत दर्ज होने वाले मुक़दमों में इमरान ख़ान के लिए चिंता की बात यह नहीं कि अदालतें मुल्ज़िम इमरान ख़ान को उस समय तक राहत नहीं देंगी जब तक वह ख़ुद चलकर अदालत में पेश नहीं होंगे.
उन्होंने कहा कि लाहौर हाई कोर्ट भी उन्हें सुरक्षात्मक ज़मानत दे सकती है. लेकिन इसके लिए मुल्ज़िम को ख़ुद अदालत में पेश होना होगा.
उन्होंने कहा कि अगर सरकार किसी को गिरफ़्तार करना चाहे तो कोई भी उसकी राह में रुकावट नहीं बन सकता. उन्होंने कहा कि बेनज़ीर भुट्टो, आसिफ़ अली ज़रदारी और नवाज़ शरीफ़ को भी तो गिरफ़्तार किया गया था.
शाह ख़ावर, जो कि खुद भी लाहौर हाई कोर्ट के जज रहे हैं, का कहना है कि अगर क़ानून की नज़र में सभी मुल्ज़िम बराबर हैं तो फिर इमरान ख़ान को भी इसी कैटेगरी में रखा जाए.
उन्होंने कहा कि वह बहुत से ऐसे मामलों के चश्मदीद गवाह है जिनमें अदालत ने मुल्ज़िम के कुछ देर से अदालत में पेश होने पर उनकी अंतरिम ज़मानत रद्द कर दी थी और पुलिस को आदेश दिया था कि उनको गिरफ़्तार कर ले.
शाह ख़ावर का कहना था कि उन्होंने अपने अदालती करियर में दो मुल्ज़िमों के लिए अदालतों को इंतज़ार करते हुए देखा है. इनमें एक मरहूम परवेज़ मुशर्रफ़ थे और दूसरे इमरान ख़ान हैं.
शाह ख़ावर उस लीगल टीम में शामिल थे जिसने चुनाव आयोग में प्रतिबंधित फ़ंडिंग केस में पीटीआई की ओर से मुक़दमा लड़ा था.