ईरान, सऊदी अरब में बढ़ती नज़दीकियां, संबंधों में नई ताज़गी के संकेत

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DMT : ईरान : (27 मार्च 2023) : –

सऊदी अरब और ईरान के शीर्ष राजनयिकों के बीच अगले कुछ दिनों में एक अहम मुलाक़ात हो सकती है. इस दौरान दोनों देशों के बीच एक अहम समझौता होने की संभावनाएं हैं.

ये जानकारी सऊदी अरब की आधिकारिक प्रेस एजेंसी एसपीए की ओर से आई है.

एसपीए ने सोमवार को बताया है कि सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फ़रहान और उनके ईरानी समकक्ष हुसैन अल-अब्दुल्लाहीन के बीच हफ़्ते भर में दूसरी बार फोन पर बातचीत हुई है.

इस फोन कॉल में दोनों नेताओं ने रमज़ान ख़त्म होने से पहले आमने-सामने की मुलाक़ात करने का फ़ैसला किया है.

बता दें कि साल 2015 में सऊदी अरब में एक शिया धर्म-गुरू को फांसी दिए जाने के बाद ईरानी प्रदर्शनकर्मियों ने तेहरान स्थित सऊदी दूतावास में घुसकर विरोध प्रदर्शन किया था.

इसके बाद सऊदी अरब ने ईरान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे. और पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच काफ़ी तनाव देखा गया है.

लेकिन चीन की राजधानी बीजिंग में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियों के बीच चार दिन तक चली बातचीत के बाद दोनों ने कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने की अप्रत्याशित घोषणा की है.

चीन में हुए समझौते पर हुई बातचीत

एसपीए ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इस फोन कॉल के दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच त्रिपक्षीय समझौते को ध्यान में रखते हुए साझा मुद्दों पर चर्चा हुई.

इस रिपोर्ट में ये नहीं बताया गया है कि दोनों नेताओं के बीच मुलाक़ात कब और कहां हो सकती है.

लेकिन इतना तय है कि ये मुलाक़ात 3 अप्रैल से पहले होगी क्योंकि रमज़ान का महीना तीन अप्रैल को पूरा हो रहा है.

इससे पहले बीती 19 मार्च को सऊदी अरब के शाह सलमान ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को सऊदी अरब आने का न्योता दे चुके हैं.

ईरानी राष्ट्रपति के डिप्टी चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ मोहम्मद जमशीदी ने ट्वीट करके लिखा था कि ‘राष्ट्रपति रईसी को लिखे एक पत्र में सऊदी अरब के शाह ने दोनों देशों के बीच हुए समझौते का स्वागत किया है और उन्हें रियाद आने का न्योता दिया है.”

इसके साथ ही बताया गया है कि रईसी ने इस न्योते का स्वागत किया है.

सऊदी अरब और ईरान के बीच हुए अपनी राजधानी बीजिंग में सुलह कराकर चीन अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को शांति समर्थक देश के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.

पश्चिमी देशों में इसे अफ़्रीका के बाद मध्य पूर्व में चीन के बढ़ते दखल के रूप में देखा जा रहा है. इसे अमेरिका और चीन के बीच जारी प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में भी देखे जाने की ज़रूरत है.

वॉशिंगटन में स्थित शोध संस्थान स्टिमसन सेंटर में चाइना प्रोग्राम के निदेशक युन सुन ने न्यू यॉर्क टाइम्स के साथ बातचीत में कहा है, “ये अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के भविष्य के लिए नैरेटिव की लड़ाई है. चीन ये कह रहा है कि दुनिया में अफ़रा-तफ़री की वजह अमेरिकी नेतृत्व की असफलता है.”

विश्लेषक मानते हैं कि ‘चीन ईरान को रणनीतिक रूप से अहम मानता है क्योंकि वह चीन की तरह ही पश्चिमी दुनिया का आलोचक है, प्राकृतिक संसाधनों से लैस है और ईरानी सेना युद्ध और संघर्ष से जूझने का अनुभव रखती है. यही नहीं, ईरान भी चीन की तरह के प्राचीन परंपरा है.’

चीन की इस क्षेत्र की स्थिरता में भी एक तरह की दिलचस्पी है क्योंकि चीन इस क्षेत्र से अपने कच्चे तेल की चालीस फीसद मात्रा हासिल करता है.

यही नहीं, खाड़ी क्षेत्र चीन के बेल्ट और रोड इनीशिएटिव में अहम पड़ाव बनकर उभरा है. इसके साथ ही मध्य पूर्व के देश चीन को उसके उपभोक्ता उत्पादों और तकनीक के लिए भी बड़ा बाज़ार दे सकते हैं.

बता दें कि चीन का टेलीकॉम कंपनी ख़्वाबे जो कि इस समय पश्चिमी देशों में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है, मध्य पूर्व के देशों जैसे सऊदी अरब, क़तर, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात में 5जी नेटवर्क उपलब्ध करा रही है.

इस डील की घोषणा होने के ठीक बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मॉस्को जाते देखा गया है.

ईरान को क्या मिलेगा?

चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच सुलह कराने के बाद यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध रुकवाने के लिए अपना 12 सूत्री कार्यक्रम पेश किया है.

लेकिन सवाल ये उठता है कि इस समझौते से ईरान को क्या मिलेगा. क्योंकि हाल के सालों में सऊदी अरब को लेकर ईरान के रुख में कटुता का भाव देखा गया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि हाल ही में व्यापक विरोध प्रदर्शनों का शिकार होने वाला ईरान इस समझौते के लिए तैयार क्यों हुआ.

इस सवाल का जवाब वॉल स्ट्रीट जनरल ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में दिया है जिसके मुताबिक़ ईरानी सरकार के रुख में नरमी आने की वजह आर्थिक चुनौतियां हैं.

ईरान की इब्राहिम रईसी सरकार के लिए बढ़ती मंहगाई एक बड़ा राजनीतिक संकट बनता जा रहा है. महंगाई दर पिछले साल ही 56 फीसद का आंकड़ा पार कर चुकी है.

वॉशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के ईरान प्रोग्राम के निदेशक एलेक्स वटांका ने वॉल स्ट्रीट जनरल को बताया है, “इस समय ईरान जिस वजह से सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों में सुधार लाने के लिए तैयार हुआ है, उसकी एक बड़ी वजह आर्थिक हालात हैं.”

साल 2021 में सत्ता संभालने के बाद ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने 2023 तक महंगाई दर को 15 फीसद तक लाने का वादा किया था और 2024 तक उसे दस फीसद से भी नीचे लाने की बात कही थी.

लेकिन उनके दो सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी ईरान में महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है. यही नहीं, अलग-अलग क्षेत्रों से आर्थिक राहत मिलने की ईरानी उम्मीदें भी धूमिल होती दिख रही हैं.

ईरान में महंगाई दर 50 फीसद के पार है और मांस के दामों में नब्बे फीसद तक उछाल दर्ज किया गया है.

ईरान और अमेरिका के बीच साल 2015 में हुए परमाणु समझौते के दोबारा सक्रिय होने और अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत मिलने की रही सही उम्मीदें ख़त्म हो गयी हैं.

यूरोपीय देशों ने मानवीय सहायता के लिए ईरान को पैसे देने के लिए एक अलग व्यवस्था खड़ी करने से किनारा कर लिया है.

अमेरिका के साथ कैदियों की अदला – बदली को लेकर बातचीत भी आगे नहीं बढ़ रही है. ऐसे में ईरान विदेशी खातों में जमा अरबों डॉलर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है.

यही नहीं, अमेरिका ने पड़ोसी देश इराक़ में नकदी के आवागमन पर प्रतिबंध लगाकर ईरान को एक और चोट पहुंचाई है.

ईरानी अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले लंदन स्थित थिंक टैंक ने वॉल स्ट्रीट जनरल के साथ बात करते हुए कहा है कि इस डील में चीनी दखल से ईरान को आर्थिक राहत मिलने का आश्वासन ज़रूर मिला है.

इस थिंक टैंक के सीईओ एसफंदयार बटमैनगिलिद्ज कहते हैं, “मध्य पूर्व के इन दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच सुलह कराने में चीन की भूमिका ने ये संकेत दिया है कि वह सऊदी अरब और ईरान दोनों से तेल ख़रीदना चाहता है जो ईरान को आर्थिक राहत मिलने का आश्वासन देता है.”

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