कनाडा में भविष्य को लेकर क्यों अनिश्चित हैं ये भारतीय?

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DMT : कनाडा  : (18 मार्च 2023) : –

कनाडा में कई भारतीय छात्र इस डर के साथ रह रहे हैं कि उन्हें कॉलेज ऐडमिशन के कथित जाली दस्तावेज़ों के आधार पर देश में दाखिल होने के आरोप में बाहर निकाल दिया जा सकता है.

शर्म की वजह से बहुत से छात्र खुल कर बाहर नहीं आ रहे हैं लेकिन इस मामले से जुड़े एक वकील के मुताबिक ऐसे छात्रों की संख्या 150 से 200 तक तक हो सकती है.

जिन छात्रों से बीबीसी ने बात की उनका कहना है कि वो बेकसूर हैं और उन्हें जालंधर की एक इमिग्रेशन कंसल्टेशन एजेंसी ने कथित तौर पर धोखा दिया और उन्होंने ही ये दस्तावेज़ मुहैया करवाए थे, हालांकि क्या दूसरी एजेंसियां भी इस मामले में शामिल हैं, ये साफ़ नहीं.

इससे पहले अमेरिका में एक जाली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के मामले में 100 से ज़्यादा भारतीय छात्रों की गिरफ़्तारी की खबर ने तूल पकड़ा था.

कनाडा से फ़ोन पर बातचीत में डिंपल के ने बीबीसी से कहा, “मेरे दिमाग में अंधेरा है. न मैं आगे बढ़ सकती हूं, न पीछे जा सकती हूं.”

वो दिसंबर 2017 में स्टूडेंट वीज़ा पर कनाडा आई थीं. उनकी शादी हो चुकी है और उनके पति भारत में हैं. वो मध्यम वर्गीय परिवार से आती हैं. उनके तीन भाई-बहन हैं. पंजाब के जालंधर में उनके पिता दर्जी हैं और मां गृहणी.

विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री ले चुकीं डिंपल बड़े लंबे समय से नौकरी की तलाश में थीं.

वो कहती हैं, “दो बार बैंक का इम्तिहान दिया. वो नहीं क्लीयर हुआ. उन सबसे तंग आकर मैंने यहां (कनाडा) का अप्लाई किया था, कि उधर तो कुछ होगा. इतनी पढ़ाई की है उसका तो फायदा होना चाहिए.”

कई परिवारों के लिए, ख़ासकर पंजाब में, किसी पश्चिमी देश में रहने को बहुत इज़्ज़त के साथ देखा जाता है, लेकिन पिछले सालों में वीज़ा फ़्रॉड के कई मामले रिपोर्ट हुए हैं.

डिंपल को एक रिश्तेदार ने जालंधर की एजुकेशन ऐंड माइग्रेशन सर्विसेज़ और इससे जुड़े ब्रजेश मिश्रा के बारे में बताया.

वो कहती है, “उस वक़्त वो बहुत इनोसेंट था, उसने मेरे सारे डॉक्युमेंट देखे थे.”

आखिरकार उन्हें नवंबर 2017 में कनाडा का वीज़ा मिल गया.

कनाडा से फ़ोन कॉल पर वो कहती हैं, “उन्होंने मुझे बताया कि एक कॉलेज ने मेरे दस्तावेज़ों को स्वीकार लिया है और कॉलेज ऐडमिशन लेटर आ गया है.”

डिंपल ने कनाडा में कंप्यूटर नेटवर्किंग के कोर्स के लिए अप्लाई किया था जिसके लिए उन्होंने उस वक़्त 12 लाख रुपये नकद दिए. इसमें उनकी कॉलेज फ़ीस और वो खर्च शामिल था जिससे ये अंदाज़ा मिलता कि उनके पास इतने पैसे मौजूद हैं जिससे वो कनाडा में अपना खर्च उठा सकते हैं.

लेकिन कनाडा में आने के दो दिन के बाद ही डिंपल को बताया गया कि उनके कॉलेज में हड़ताल है और वो एक दूसरे कॉलेज में अप्लाई करें. उनकी पुराने कॉलेज की फ़ीस को वापस लौटा दिया गया.

डिंपल ने कनाडा में अपनी पढ़ाई 2019 में पूरी की. उन्हें वर्क परमिट भी मिला. लेकिन उन्हें तब झटका लगा जब मई 2022 में पर्मानेंट रेज़िडेंसी की उनकी अर्ज़ी पर जवाब आया कि उनके पहले चुने हुए कॉलेज का ऐक्सेप्टेंस लेटर जाली है.

इसी चिट्ठी के आधार पर उन्हें भारत में कनाडा का स्टुडेंट वीज़ा और कनाडा में प्रवेश मिला था.

इस बारे में अभी भी कई सवाल हैं कि ऐसा आखिर कैसे हुआ.

बाहर जाने का आदेश

डिंपल से कहा गया कि वो आप्रवासन अधिकारियों से मिलें, और फिर इस साल जनवरी में एक हियरिंग के बाद उन्हें “एक्सक्लूज़न ऑर्डर” थमा दिया गया.

एक्सक्लूज़न आदेश के अंतर्गत आपको एक साल के लिए कनाडा से हटा दिया जाता है लेकिन अगर आपने अपने बारे में ग़लत जानकारी दी है तो आपको पांच साल के लिए कनाडा से बाहर कर दिया जाता है.

आप्रवासन अधिकारियों से हुई मुलाकात पर डिंपल बताती हैं, “मैं इंटरव्यू के दौरान इतनी डरी हुई थी कि मैंने शायद ही कुछ कहा. मुझे लगा कि मुझे तुरंत भारत भेज दिया जाएगा.”

कनाडा के फ़ेडरेल कोर्ट में उन्होंने इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका डाली है. उनके वकील जसवंत सिंह मंगत ऐसी ही स्थिति में फंसे कई छात्रों के वकील भी हैं.

वो बताते हैं कि ज़्यादातर मामलों में भारी-भरकम फ़ीस पर जाली ऐडमिशन लेटर्स जारी किए गए. दस्तावेज़ों के आधार पर वीज़ा ऐप्लिकेशन जमा हुए और वीज़ा जारी हुए.

क्या हुआ?

छात्र कनाडा आए लेकिन आने के बाद या फिर ठीक पहले भारतीय आप्रवासन एजेंसी ने छात्रों से कहा कि वो किसी कारण अपना दाखिला किसी और कॉलेज में करवा लें.

बहुत सारे छात्रों ने नए कॉलेजों में अपने कोर्स पूरे किए, वर्क परमिट के लिए अप्लाई किया लेकिन जब उन्होंने पर्मानेंट रेज़िडेंसी के लिए आवेदन दिया तो तब उन्हें बताया गया कि उनके पूर्व कॉलेज के ऐडमिशन लेटर जाली हैं.

डिंपल पूछती हैं, “जब आप्रवासन अधिकारियों को हवाई अड्डों पर, वीज़ा जारी करते हुए ये नहीं पता चला कि दस्तावेज़ जाली हैं तो हमसे कैसे उम्मीद की जा रही है कि हमें ये पता चल जाए.”

हमने इस बारे में एजुकेशन ऐंड माइग्रेशन सर्विसेज़ और ब्रजेश मिश्रा से बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.

जालंधर के डिप्टी कमिश्नर जसप्रीत सिंह ने बीबीसी के सहयोगी प्रदीप शर्मा को बताया कि उनसे इस बारे में किसी ने शिकायत नहीं की है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर उन्होंने एजेंसी के लाइसेंस को सस्पेंड कर दिया है.

कनाडा बॉर्डर सर्विसेंज़ एजेंसी (सीबीएसए) ने ईमेल पर एक जवाब में कहा कि वो किसी ख़ास व्यक्ति के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन साल 2022 में उनके अधिकारियों ने एक ऐसी स्कीम को उजागर किया जहां निजी कॉलेज कार्यक्रमों में विदेशी छात्रों को $25,000 (क़रीब 21 लाख रुपये) के खर्च पर वर्क पर्मिट की तरफ़ ले जाया जा रहा था, और उसका एकमात्र मक़सद उन्हें पर्मानेंट रेज़िडेंस मुहैया करवाना था.

उम्मीदें चूर-चूर

इस पूरे वाकये से कई उम्मीदें चूर-चूर हो गई हैं. ये छात्र एक व्हाट्सऐप ग्रुप पर संपर्क में रहते हैं.

चमनदीप सिंह पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार के रहने वाले हैं और वो एक बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद में कनाडा आए.

वे कहते हैं, “जब मैंने स्टूडेंट वीज़ा पाने की कोशिश शुरू की तब सिस्टम का पता नहीं था, इसलिए तो एजेंट हायर किया था. पता नहीं था कि ऐसे फ़ेक डॉक्युमेंट्स भी लगा सकते हैं.”

उन्होंने कनाडा के इंजीनियरिंग कोर्स के लिए अप्लाई किया और उसके लिए 14-15 लाख रुपये दिए. इसके लिए उन्हें कर्ज़ तक लेना पड़ा.

इस पूरे वाकये पर वे कहते हैं, “यहां का लाइफस्टाइल बेहतर है लेकिन यहां भारत से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है. इतना जो दूर से दिखता है कि बहुत कमाई है, वो नहीं रही अभी. आपको एजेंट सही चूज़ करना होगा.”

वो याद करते हैं, “जब जालंधर जाते थे तब हर जगह एजेंट ही एजेंट नज़र आते थे लेकिन उस एजेंसी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास कोई सुबूत नहीं है कि उन्होंने हमारी फ़ाइल तैयार की है.”

चमनदीप कहते हैं, “सपना था कि अच्छी लाइफ़स्टाइल हो जाएगी. हम भी जाकर यही करेंगे. सपने और रिएलटी में बहुत फ़र्क़ है. जो यहां से वापस जाएंगे, वो बहुत मेहनत करेंगे… अगर हम भारत में बिना शर्म किए करेंगे, तो हमारा भी कुछ न कुछ बन जाएगा.”

27 वर्षीय इंदरजीत सिंह के मुताबिक वो वापस भारत नहीं जाएंगे क्योंकि उनकी कोई ग़लती नहीं.

ट्रक चलाकर अपना खर्च निकालने वाले इंदरजीत कहते हैं, “हमें नहीं मालूम कि इसका क्या हल है, हमें अंदाजा नहीं है. हमारी कोई ग़लती नहीं है. वापस कैसे आ जाएंगे.”

जानकारों के मुताबिक भारतीय अधिकारियों को छात्रों को धोखा दे रही एजेंसियों पर कार्रवाई करनी चाहिए और छात्रों को भी कोई भी क़दम उठाने से पहले ख़ुद को शिक्षित करना चाहिए. वो विश्वसनीय एजेंट्स और कॉलेजों के बारे में जानें और समझें.

वकील जसवंत सिंह मंगत कहते हैं, “ये आपका पैसा है, आपकी ज़िंदगी है, आपका भविष्य है.”

हमने इस बारे में कनाडा में भारतीय हाई कमीशन और भारत में कनाडा के हाई कमीशन को ईमेल किया लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला. जवाब मिलने पर हम उसे यहां अपडेट करेंगे.

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