कश्मीर: सेना की हिरासत से 75 दिन पहले लापता युवक की मौत पर गुस्सा, जांच जारी

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DMT : श्रीनगर  : (06 मार्च 2023) : –

कुन्न गांव में जगह जगह अब्दुल रशीद डार की तस्वीर वाले बैनर लगे हैं. अब्दुल के घर की दूसरी मंज़िल पर भी उनकी तस्वीर वाला एक बैनर चस्पा है.

हर बैनर पर अब्दुल रशीद डार की तस्वीर के साथ लिखे गए हैं कुछ शेर. इन बैनरों पर लिखा है, “शहीद अब्दुल रशीद डार”.

अब्दुल रशीद डार की माँ खैर बेगम कहती हैं, “शुक्र है बेटे की लाश मिल गई. लेकिन,अब हम इंसाफ़ की मांग कर रहे हैं. जो भी मेरे बेटे के गुनाहगार हैं, उनको सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए. उनके हाथों में हथकड़ी डाल दी जाए. हमारी आँखों के सामने उन्हें गिरफ्तार किया जाए और फाँसी पर लटकाया जाए .अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम मजबूर हैं फिर सड़कों पर निकलने के लिए. हमें एसपी और डीसी से पूरी उम्मीद है कि वह हमारी मदद करेंगे.”

अब्दुल की माँ खैर बेगम उत्तरी कश्मीर के ज़िला कुपवाड़ा के कुन्न गाँव में अपने घर के बाहर लगे शामियाने में कई सारी महिलाओं के बीच में बैठी थीं और अपने बेटे का मातम कर रही थीं.

खै़र बेगम के मुताबिक उनका बेटा अपने बुज़र्ग और बीमार माता-पिता को पाल रहा था.

बीते शुक्रवार को कुन्न गाँव में पुलिस और सीआरपीएफ के जवान भी तैनात किए गए थे. हर आने जाने वाले पर पैनी नज़र रखी जा रही थी.

जब हम शुक्रवार को अब्दुल रशीद डार के घर पहुँचने वाले थे तो बाहर सड़क पर पुलिस का नाका लगाया गया था और हमें भी जुमा नमाज़ अदा होने के बाद अब्दुल रशीद के घर आने के लिए कहा गया.

पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, “जुमा नमाज़ अदा होने के बाद आप अब्दुल रशीद के घर जा सकते हैं.”

शायद पुलिस को आशंका थी कि इलाके में जुमा नमाज़ के बाद प्रदर्शन हो सकते हैं.

अब्दुल रशीद के घर काफ़ी लोग आ रहे हैं और परिवार को दिलासा देने की कोशिश कर रहे हैं. परिवार वाले और दूसरे रिश्तेदार अब्दुल रशीद की मौत को लेकर काफ़ी ग़ुस्से में हैं और ग़म में डूबे हैं.

सेना के दावे पर भरोसा नहीं

एक मार्च 2023 को अब्दुल रशीद डार की लाश कुपवाड़ा के एक जंगल में मिली और पुलिस ने परिवार को लाश की शिनाख़्त के लिए सूचित किया था.

ख़ैर बेगम ने बताया कि इसके करीब ढाई महीने पहले बीते साल 15 दिसंबर की सर्द रात को सेना की एक टुकड़ी उनके घर आ गई थी और उनके बेटे को पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई थी.

उन्होंने बताया, “हम रात का खाना खा रहे थे, जब हमारे नज़दीकी गाँव त्रेहगाम कैंप से 41 राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) के जवान हमारे घर पहुँच गए. वो अब्दुल रशीद को तलाश रहे थे. वह भी हमारे साथ खाना खा रहा था. हम सब बाहर आ गए. सेना के टाउन कमांडर ने बताया था कि वह अब्दुल रशीद से किसी मामले में पूछताछ करना चाहते हैं. सेना ने हमें आश्वासन दिलाया था कि सुबह मेरे बेटे को वह वापस करेंगे. लेकिन,जब हम सुबह कैंप पर गए तो हमें सेना ने बताया कि वह उनकी हिरासत से भाग गया है.”

अब्दुल रशीद डार पेशे से एक ड्राइवर थे और उनकी शादी नहीं हुई थी.

जब ये मामला सामने आया था तो उस समय परिवार ने सेना के इस दावे पर भरोसा नहीं किया.

उन्होंने सवाल उठाए कि सेना की हिरासत से कैसे एक आम नागरिक भाग सकता है? परिवार आज भी इस बात पर क़ायम है कि अब्दुल रशीद कैसे सेना की हिरासत से भाग सकता था.

कैसे हुई शव की पहचान?

अब्दुल रशीद के सेना की हिरासत से ग़ायब होने के कुछ दिन बाद कुपवाड़ा के एसएसपी युगल मन्हास ने बीबीसी को बताया था, ” पुलिस कई लीडस् पर काम कर रही है, जिसके बारे में हम अभी बता नहीं सकते हैं और केस को बहुत जल्दी ही क्रैक करेंगे.”

उनका ये भी कहना था कि सेना ने उन्हें ‘मिलटेन्सी के किसी केस’ के मामले में उठाया था और पुलिस को बाद में सूचित किया गया था.

अब्दुल रशीद के सेना की हिरासत से ग़ायब होने के बाद परिवार वालों ने श्रीनगर की प्रेस एन्क्लेव और कुपवाड़ा टाउन में प्रदर्शन भी किए थे और अपने बेटे को वापस देने की मांग की थी.

परिवार के एक सदस्य बशीर अहमद ने बताया कि अब्दुल रशीद की लाश हासिल करने के दो दिन पहले कुपवाड़ा के एसपी और डीसी ने उन्हें बुलाया और कहा, “आपका बेटा आपको ज़रूर वापस मिलेगा.”

उन्होंने बताया, “प्रशासन ने जब हमें बीते बुधवार को बुलाया और ज़िला अस्पताल पहुंचने के लिए कहा गया तो हम वहाँ पहुँच गए. हम परिवार के कई लोग थे. अब्दुल रशीद का मृत शरीर कपड़े में लिपटा था. जब उनका कपड़ा खोला गया तो हमारी पहचान में वह बिल्कुल नहीं आया. मृत शरीर ऐसा था कि हमें लगा साठ वर्ष का कोई व्यक्ति था. उसकी पहचान ही ऐसी बनाई गई थी. चेहरे पर चमड़ी नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह गई थी. सर पर बाल भी नहीं थे.”

“मृत शरीर के साथ पहचान ही नहीं हो रही थी. उसके शरीर में काफी ज़्यादा चोटें थीं. सेना ने कहा था कि वह भाग गया लेकिन जो भागेगा उसके शरीर की चोटें इतनी गहरी कैसे हो सकती हैं?”

उन्होंने बताया, “फिर पहचान के लिए अब्दुल रशीद की दो बहनें आईं और उन्होंने बदन पर और हाथ पर निशान देखे, जो हमेशा से जिस्म पर मौजूद थे. उसके जिस्म पर एक तिल था और हाथ पर बहुत पहले कुल्हाड़ी से एक निशान लगा था, वो दोनों ही निशान मौजूद थे. डॉक्टरों ने अब्दुल रशीद का जब मुंह खोला तो दांतों से भी हमने उनको पहचाना. इन सारी चीज़ों से उनकी पहचान हो गई.”

सेना ने क्या दी थी जानकारी

कुपवाड़ा पुलिस ने अपने ताज़ा बयान में बताया है कि 01 मार्च 2023 को पुलिस स्टेशन त्रेहगाम को सूचना मिली थी की एक मृत शरीर ज़ुर्रहमा पीके गली के इलाक़े में है.

पुलिस के मुताबिक़ “पुलिस ने मौके पर पहुँच कर मृत शरीर को बरामद किया, जिसकी पहचान बाद में कुन्न पोशपोरा निवासी अब्दुल रशीद डार के तौर पर हुई, जिसकी गुमशुदगी की रपोर्ट त्रेहगाम थाने में दर्ज की गई थी.”

गौरतलब है कि परिवार ने इल्ज़ाम लगाया था कि सेना की एक टुकड़ी ने 15 दिसंबर 2022 को उनको घर कुन्न से उठाया था.

हालाँकि,उसी समय सेना ने ये जानकारी दी थी कि उसे कुछ पूछताछ के लिए ले जाया गया था और बाद में ज़ुर्रहमा छत्र की एक विशेष जगह की पहचान के लिए ले जाया गया था, लेकिन वह अंधेरे और टोपोग्राफी का फ़ायदा उठाकर भाग गया.

सेना ने आगे बताया कि उन्होंने अब्दुल रशीद डार का पता लगाने के लिए तलाश शुरू कर दी है और स्थानीय पुलिस से आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया है.

इन परिस्थितियों में संबंधित थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी और गुमशुदा व्यक्ति की तलाश जारी थी.

जाँच के दौरान, डॉक्टरों की एक टीम के माध्यम से पोस्टमार्टेम भी किया गया और क़ानूनी और मेडिकल औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव परिवार को सौंपा गया.पुलिस के मुताबिक़, “निष्पक्ष जाँच शुरू कर दी गई है ताकि इस बात को सामने लाया जा सके कि मौत कैसे हुई है. मामले की हर तरह से जाँच हो रही है.”

ये पूछने पर की परिवार ने सेना पर गंभीर आरोप लगाए हैं तो उनका कहना था कि अभी हम इस बारे में कुछ नहीं बता सकते हैं.

अब्दुल रशीद के बड़े भाई शाबिर अहमद ने बातचीत में बताया कि ग़ायब होने से अच्छा है, भाई का शव मिल गया और कम से कम अब उनकी क़ब्र पर फातिहा तो पढ़ सकते हैं.

शाबिर का ये भी कहना है, “बीते ढाई महीने जिस तरह हमने गुज़ारे, वह बहुत सख़्त थे.”

अब्दुल रशीद के एक दूसरे भाई हिलाल अहमद ने नम आँखों के बीच बताया कि उनके भाई का सेना की हिरासत में सख़्त पूछताछ की गई थी, जिसकी वजह से उनके शरीर पर काफ़ी चोटें थीं और वह पहचान में नहीं आ रहे थे.

अब्दुल रशीद को स्थानीय क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया है.

जब अब्दुल रशीद का मृत शरीर गाँव में लाया गया तो सैंकड़ों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.

जिले के डीसी और एसपी का शुक्रिया करते हुए परिवार ने बताया कि दोनों ही अधिकारियों ने अब्दुल की तलाश में परिवार की बहुत मदद की.

अब्दुल के भाई कहना है, “जो भी मेरे भाई की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है, उसको तो ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए कि दोबारा ऐसी घटना पेश नहीं आनी चाहिए.”

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