DMT : मेलबर्न : (08 फ़रवरी 2023) : –
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में इस साल की शुरुआत से भारतीय समुदाय के बीच तनाव का माहौल है.
पहले तीन हिंदू मंदिरों पर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं. फिर तथाकथित ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ के दौरान मारपीट की दो घटनाएं और हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं की ओर से जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर को बिगाड़ने की नाकाम कोशिश.
मेलबर्न में अब ये मांग उठ रही है कि उन कारोबारियों का बायकॉट किया जाए, जो खालिस्तान का समर्थन करते हैं. मेलबर्न में भारतीयों की बड़ी आबादी रहती है और यहां रहने वालों में सबसे ज़्यादा सिख और पंजाबी शामिल हैं.
एक के बाद एक हुई घटनाओं के कारण ऑस्ट्रेलिया के हिंदू समुदाय में नाराज़गी की भावना है. कुछ सिखों ने भी खालिस्तान आंदोलन से दूरी बना ली है. इनमें से कुछ लोगों ने अपनी पहचान छिपाए रखने की शर्त पर बीबीसी से बात की.
ऑस्ट्रेलिया स्थित भारतीय दूतावास ने जनवरी महीने में ऑस्ट्रेलिया में तीन मंदिरों में हुए हमले की निंदा की है. दूतावास की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में इन हमलों को चिंताजनक बताते हुए कहा गया है कि जिस तरह से मंदिरों में तोड़-फोड़ करने के बाद भारत विरोधी नारे लिखे गए, वह भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने की कोशिश लग रही है.
सिख समुदाय ने क्या कहा?
मेलबर्न में आईटी सेक्टर में नौकरी कर रही एक सिख महिला ने कहा, “हमें अपनी जान की फ़िक्ऱ है, इसलिए हम अपना नाम बताकर बात नहीं कर सकते हैं. खालिस्तानी समर्थकों की तो बस एक सनक है लेकिन हमारी तो अपनी ज़िंदगी है, परिवार की ज़िम्मेदारी है.”
वो ग़ुस्से में कहती हैं, “ये लोग हमें अकेला छोड़कर खालिस्तान के लिए अभियान चलाने भारत क्यों नहीं चले जाते? भारत के पड़ोस में रहकर खालिस्तान का काम कैसे चलेगा? क्या इन लोगों को पाकिस्तान की हालत नहीं दिखती?”
भारतीय समुदाय के साथ अच्छे संबंध रखने वाले मेलबर्न सिख समुदाय के एक अहम सदस्य ने भी हमसे बात की.
वो कहते हैं, “खालिस्तान पर जनमत संग्रह बकवास बात है. न सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया बल्कि भारत समेत दुनिया भर के सिखों को खालिस्तान से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. हम ऐसे किसी घातक विचार पर वक़्त बर्बाद करने से बहुत दूर अपने कारोबार, नौकरी और परिवार पर अपना वक़्त, पैसा और एनर्जी ख़र्च करना पसंद करेंगे.”
हालांकि वो ये भी कहते हैं कि 1984 दंगों में सिख समुदाय के लोगों ने जो कुछ झेला, उसे वो ख़ूब समझते हैं. वो बोले, “मुझ जैसे लोग उस तरह के बुरे दिन दोबारा झेल नहीं पाएंगे.”
उन्होंने कहा, “हम एक बेहतर ज़िंदगी और भविष्य के लिए ऑस्ट्रेलिया आए हैं. ऑस्ट्रेलिया में जिस तरह से खालिस्तान लॉबी बढ़ रही है वो मुल्क के लिए बड़ी आपदा है. धार्मिक कट्टरपंथ किसी भी मुल्क के लिए बुरी ख़बर है.”
विवाद की टाइमलाइन
- 12 जनवरी 2023: मिल पार्क स्थित स्वामीनारायण मंदिर
- 16 जनवरी 2023: कैरम डाउन्स स्थित शिव विष्णु मंदिर
- 23 जनवरी 2023: अल्बर्ट पार्क स्थित इस्कॉन मंदिर
इन मंदिरों की दीवारों पर खालिस्तान समर्थन से जुड़ी ग्रैफिटी बनाई गई. इसकी चर्चा ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों के बीच शुरू हुई. ये ख़बरें भारतीय मीडिया ने भी कवर की.
इस मामले की विक्टोरिया पुलिस जांच कर रही है और अभी किसी तरह की जानकारी साझा नहीं की गई है.
हालांकि इन घटनाओं को लेकर खालिस्तान पर जनमत संग्रह करवाने वाले संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) पर उंगलियां उठाई जा रही हैं. भारत में प्रतिबंधित इस संगठन ने 29 जनवरी को जनमत संग्रह करवाया था.
‘सिख फॉर जस्टिस’
एसएफजे ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है.
एसएफजे के अध्यक्ष अवतार सिंह पन्नू ने कहा, “हमारी किसी धर्म से लड़ाई नहीं है. हमारी लड़ाई उस सिस्टम से है, जिसने सिखों को गुलाम बनाया. असल में इन सारी घटनाओं के पीछे मोदी सरकार के भक्त हैं और आरोप हम पर लगाया जा रहा है.”
अमेरिका के नागरिक पन्नू बीते दो महीनों से ऑस्ट्रेलिया में जनमत संग्रह करवाने के लिए अभियान में जुटे हैं. वो अगले दो महीनों तक ऑस्ट्रेलिया में रुकने का इरादा रखते हैं.
पन्नू का मक़सद है ब्रिसबेन और सिडनी में ऐसे ही कार्यक्रम आयोजित करवाना. पन्नू ये कार्यक्रम तब रखवाने का इरादा रखते हैं, जब पीएम मोदी क्वॉड सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया आएंगे.
पन्नू ने दावा किया, “हर सिख ख़ुद-ब-ख़ुद एक खालिस्तानी होता है. अगर आप सिख परिवार में पैदा हुए हैं, आप खालिस्तान समर्थक हैं. मोदी सरकार भी यही सोच रखती है.”
हालांकि कई ऑस्ट्रेलियाई सिख इस बात से सहमत नहीं दिखते हैं.
विक्टोरियन सिख गुरुद्वारा काउंसिल यानी वीएसजीसी ने बीबीसी को बताया कि वो पन्नू के विचारों से इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं.
वीएसजीसी के प्रवक्ता जसबीर सिंह ने कहा, “एसएफजे जो सोचती है, मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन हमारे हिसाब से हर सिख असल में गुरु दा सिख होता है… गुरु नानक, गुरु गोबिंद सिंह और गुरु ग्रंथ साहिब का शिष्य. हालाँकि हमारा मानना है कि एसएफजे के पास ये लोकतांत्रिक अधिकार है कि वो अपनी मांग शांतिपूर्ण तरीके से सामने रखें.”
वो कहते हैं, “इस मामले पर सिखों की अपनी सोच है और जनमत संग्रह में शामिल हुए लोगों की अपनी सोच है, लेकिन कुछ लोग सिखों का नाम जोड़कर हमारी छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “खालिस्तान का हाल भी कश्मीर जैसा होगा, जिसे पाकिस्तान के रहम पर रहना पड़ेगा.”
वो बोले, “अवतार सिंह पन्नू ऑस्ट्रेलिया के सिखों को बहका रहे हैं. कितने ही लोग कम उम्र में ऑस्ट्रेलिया पढ़ाई करने आए थे और इनसे प्रभावित हो गए. मैंने सुना है कि एसएफजे ऐसे लोगों को कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में स्थायी नागरिकता दिलाने का लालच दे रहा है.”
पाकिस्तान से समर्थन?
मेलबर्न में रहने वाले सिख और खालिस्तान समर्थक कुलदीप सिंह बस्सी पाकिस्तान से समर्थन लेने के विचार को ख़ारिज करते हैं.
बस्सी कहते हैं, “पाकिस्तान इन दिनों ख़ुद संघर्ष कर रहा है वो खालिस्तान का समर्थन कैसे करेंगे? मेरा मानना है कि पूरी दुनिया के लगभग 98 फ़ीसदी सिख भारत से अलग होना चाहते हैं और खालिस्तान बनाना चाहते हैं क्योंकि वो भारत में असुरक्षित महसूस करते हैं.”
बस्सी के मुताबिक़, उनका परिवार ऑस्ट्रेलिया में बीते 122 साल से रह रहा है.
बस्सी ने कहा कि वो किसी संगठन से जुड़े नहीं हैं. हालांकि वो ये दावा करते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के कई खेल संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों से उनके ताल्लुकात हैं.
बस्सी बोले, “मैं 2015-16 में ऑस्ट्रेलियन रेसलिंग फेडरेशन का अध्यक्ष था. कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया का 2011-16 तक अध्यक्ष रहा. फिर दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीम का मैनेजर रहा. लंदन ओलंपिक्स के दौरान मैं ऑस्ट्रेलिया की रेसलिंग टीम का हेड कोच था.”
अगर कभी खालिस्तान हक़ीक़त बना तो क्या बस्सी परिवार संग वहां जाकर बसेंगे?
बस्सी ने कहा, “नहीं, लेकिन हम लगातार वहां जाते रहेंगे. देखिए, हम जैसे लोगों के परिवार, नौकरी, धंधे सब भारत से बाहर हैं तो हमारे लिए संभव नहीं है कि हम सब छोड़कर वहां चले जाएं.”
ऑस्ट्रेलिया में हिंदू-सिखों के रिश्ते
इन घटनाओं के सामने आने के बाद एक सवाल ये भी है कि ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हिंदू और सिख समुदाय के लोगों के रिश्तों पर क्या इसका असर होगा? इस गंभीर मुद्दे पर लोगों की राय बँटी हुई है.
बाप्स स्वामीनारायण मंदिर के मीडिया प्रभारी पार्थ पंड्या ने कहा कि मंदिर इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है.
पार्थ ने कहा, “हमारे गुरु ने मसले पर शांति बनाने की अपील करने की सलाह दी है और कहा है कि इस मामले को पुलिस पर छोड़ दें. उन्होंने हमें साधना पर ध्यान लगाने के लिए कहा है. 2002 में गांधीनगर में जब अक्षरधाम मंदिर पर हमला हुआ और हमारे साधु मारे गए, हम तब भी कुछ नहीं बोले थे. हमारे लिए हमारे गुरु की सलाह ही सब कुछ है.”
जसबीर सिंह इन घटनाओं के बाद हिंदुओं और सिखों के बीच तनाव बढ़ने की बात से इनकार करते हैं.
वो कहते हैं, “हमने मेलबर्न से लेकर शेप्पर्टन तक के गुरुद्वारों से बात की. हमें बताया गया कि पहले की ही तरह हिंदू अब भी गुरुद्वारे आ-जा रहे हैं. हम दोनों समुदायों से अपील करते हैं कि आपस में दुश्मनी बढ़ने ना दें.”
हालाँकि, वो ये मानते हैं कि हाल की घटनाओं के कारण मेलबर्न में सिखों और हिंदुओं के रिश्तों को नुकसान पहुंचा है.
उनका कहना है, “हमारे हिंदू दोस्त ये मानते हैं कि सभी सिख खालिस्तानी होते हैं और वो भारत का बँटवारा चाहते हैं.”
वहीं पन्नू कहते हैं कि खालिस्तान की मांग का हिंदुओं और उनके मंदिरों से कोई नाता नहीं है.
बस्सी बताते हैं कि उनके कई हिंदू दोस्त हैं और जल्द अपने ऐसे ही एक दोस्त के रेस्तरां जाने की सोच रहे हैं.
उन्होंने कहा, “मैंने श्री दुर्गा मंदिर के लिए दान दिया था और मंदिर के अध्यक्ष से मेरे अच्छे रिश्ते हैं. हम हिंदुओं के दुश्मन नहीं हैं.”
भारत का रुख
ऑस्ट्रेलिया में भारत की राजदूत मनप्रीत वोहरा ने 29 जनवरी को दिए एक इंटरव्यू में हाल की घटनाओं की निंदा की और अफसोस जताया.
एसबीएस हिंदी से उन्होंने कहा, “ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि ऐसी घटनाओं के होने के संकेत पहले से मिल रहे थे. इस बारे में हम ऑस्ट्रेलियाई सरकार से कई महीनों से बात भी कर रहे थे.”
पांच फरवरी को ऑस्ट्रेलिया के असिस्टेंट विदेश मंत्री टिम वॉट्स ने मेलबर्न के श्री दुर्गा मंदिर का दौरा किया और कमेटी के लोगों से मुलाक़ात कर उनकी समस्याओं पर बात की.
टिम ने ट्वीट किया था, “मैंने मेलबर्न वेस्ट के सबसे बड़े मंदिर श्री दुर्गा मंदिर का दौरा किया और कमेटी के सदस्यों से बात करके उनकी समस्याएं सुनी.”
मेलबर्न में दशकों से रह रहे आर कुमार हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं और हर रोज़ मंदिर जाते हैं.
कुमार कहते हैं, “मेलबर्न में हिंदू-सिख धर्म के रिश्ते जस के तस हैं. हम अब भी पहले की ही तरह दोस्त हैं और हमारा गुरुद्वारा जाना जारी है, लेकिन अब हम सचेत रहते हैं कि कौन सिख है और कौन खालिस्तानी. जो भी भारत के ख़िलाफ़ है वो खालिस्तानी है और हमारा दोस्त नहीं है.”
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय
ऑस्ट्रेलिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाले समुदायों में भारतीय समुदाय एक है.
ऑस्ट्रेलिया सरकार के मुताबिक़, 2021 की जनगणना के दौरान ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या क़रीब सात लाख 84 हज़ार है, जो कुल आबादी का तीन फ़ीसद है.
बीते दो तीन दशकों से ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता हासिल करने वाले लोगों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 10 फ़ीसदी से ज़्यादा है.
मूडी एनॉलिटिक्स की 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दोनों देशों के बीच आपसी कारोबार 250 अरब डॉलर सालाना से ज़्यादा का है.