ग्रीन कॉमेट: 50 हज़ार साल बाद पृथ्वी के क़रीब से गुज़रने वाला धूमकेतु कैसा दिखेगा

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DMT : लुधियाना : (02 फ़रवरी 2023) : –

धरती के पास इन दिनों आसमान में एक नया मेहमान आया हुआ है.

ग्रीन कॉमेट के नाम से मशहूर यह धूमकेतु दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि क़रीब 50 हज़ार साल बाद यह धरती के पास आया है.

यानी इस धूमकेतु के आने से पहले यहां पृथ्वी पर निएंडरथल (40 हज़ार पहले पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों की विलुप्त प्रजाति) रहते थे और जब तक इस धूमकेतु ने अपनी कक्षा में एक चक्कर पूरा किया तब तक आधुनिक मानव की पूरी प्रजाति विकसित हो चुकी है.

इसलिए इस धूमकेतु को कई लोग ख़ास मानते हैं. लेकिन धूमकेतु वास्तव में क्या हैं?

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक़, धूमकेतु सौर मंडल के अवशेषों से बनते हैं.

सरल शब्दों में धूमकेतु को अंतरिक्ष में मौजूद चट्टान और बर्फ के मिश्रण से बने कुछ गोले कह सकते हैं.

धूमकेतु अक्सर सूर्य के चारों ओर अण्डाकार कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं और जब वे अपनी कक्षा में सूर्य के पास आते हैं तो उनकी पूंछ दिखाई देती है. पूंछ का निर्माण धूमकेतु में सूर्य की गर्मी के चलते बर्फ़ पिघलने से होता है.

2020 में उत्तरी गोलार्द्ध में कई जगहों पर देखे गए नियो वाइज कॉमेट की पूंछ को लोगों ने खुली आंखों से देखा था.

कैसे-कैसे धूमकेतु

कुछ धूमकेतुओं की कक्षाएं अपेक्षाकृत छोटी होती हैं, जबकि अन्य इतने लंबे होते हैं कि उन्हें सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में हज़ारों साल लग जाते हैं. ऐसे धूमकेतुओं को ‘दीर्घकालिक धूमकेतु’ कहते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार, अधिकांश ‘दीर्घकालिक धूमकेतु’ हमारे सूर्य के चारों ओर लगभग 306 अरब किलोमीटर दूर एक बर्फीले बादल से आते हैं.

सूर्य के चारों ओर यह बादल बर्फीले टुकड़ों से बना एक आवरण है और इसे उर्ट क्लाउड कहा जाता है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि धूमकेतु C/2022 E3 (ZTF) का जन्म भी इसी उर्ट क्लाउड में हुआ था. इसके हरे रंग के कारण लोग इसे ग्रीन कॉमेट या हरा धूमकेतु कहते हैं.

कब हुई थी धूमकेतु की खोज?

इस धूमकेतु की खोज मार्च 2022 में की गई थी. दरअसल यह जब तक यह बृहस्पति के निकट नहीं आया तब तक वैज्ञानिकों को इसका पता नहीं चल पाया था.

इसके हरे रंग की वजह आख़िर क्या है?

इस धूमकेतु में डाय एटॉमिक कार्बन (दो कार्बन परमाणुओं का एक युग्म) प्रचुर मात्रा में है. वैज्ञानिकों के मुताबिक़, इसी कार्बन तत्व के चलते यह धूमकेतु सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों में से हरे रंग के प्रकाश को परावर्तित कर देता है और यह हरे रंग का दिखाई देता है.

जनवरी 2023 में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफ़िज़िक्स ने सूर्य के क़रीब दिखने पर धूमकेतु की एक तस्वीर जारी की थी.

हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप ने ये तस्वीरें लद्दाख के हनले गांव से खींची थी और तस्वीर से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि यह धूमकेतु हरे रंग का है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक़, दो फ़रवरी को धूमकेतु पृथ्वी के सबसे क़रीब होगा, जबकि यह 10 से 12 फ़रवरी के बीच मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा. तब इसे उत्तरी गोलार्द्ध से देखा जा सकता है.

मुंबई के नेहरू तारामंडल के निदेशक अरविंद परांजपे ने बताया, “यह धूमकेतु पृथ्वी से करीब 4.2 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर आएगा जो सूर्य से बुध की दूरी के बराबर है.”

अरविंद परांजपे कहते हैं, “वर्तमान में यह रात 10 बजे के आसपास उत्तरी क्षितिज के पास उदय हो रहा है. यह सुबह 11 बजे तक दिखाई देगा. इस धूमकेतु को आप दूरबीन से देख सकते हैं.”

लेकिन वर्तमान में बहुत कम लोग इस धूमकेतु को खुली आंखों से देख पाए हैं. परांजपे इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, “यह उतना चमकीला नहीं रहा जितना समझा जा रहा था. धूमकेतु विज्ञानी अक्सर कहते हैं कि धूमकेतु बिल्लियों की तरह होते हैं, आप कभी नहीं जानते कि वे कैसा व्यवहार करेंगे.”

महानगरों में प्रदूषण के कारण भी धूमकेतु को देखना संभव नहीं है. लेकिन अगर आप किसी अंधेरी जगह पर हैं तो इस धूमकेतु को देखने की कोशिश ज़रूर कर सकते हैं.

धूमकेतु क्यों महत्वपूर्ण हैं?

धूमकेतु हमारे सौर मंडल के शुरुआती तत्व हैं.

धूमकेतुओं के अध्ययन से सौर मंडल के निर्माण की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. इससे ब्रह्मांड के कई रहस्य खुल सकते हैं.

धूमकेतु की पूंछ के अवशेष कभी-कभी पीछे रह जाते हैं. जब पृथ्वी इन अवशेषों के पास से गुज़रती है तो इन अवशेषों से उल्का वृष्टि दिखाई देती है.

धूमकेतु की कक्षा के अध्ययन से यह भी जानकारी मिलती है कि धूमकेतु किसी ग्रह से टकराएगा या पृथ्वी से टकरा सकता है. इन वजहों से भी धूमकेतुओं का अध्ययन आवश्यक है.

6.5 मिलियन वर्ष पहले, मेक्सिको के चिक्सुलब क्षेत्र में एक विशाल ज्वालामुखी ढह गया जिससे एक बड़ा गड्ढा बन गया जो आज भी मौजूद है. एक सिद्धांत के अनुसार, इस विस्फोट के चलते ही डायनासोर प्रजाति का अंत हुआ. कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी पर जो विशाल चट्टान गिरी थी, वह कोई क्षुद्रग्रह या धूमकेतु था.

कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक़ धूमकेतुओं के कारण ही पृथ्वी तक जल पहुंचा और बाद में उससे जीवन का जन्म हुआ.

कुछ प्रसिद्ध धूमकेतु

हेली धूमकेतु – प्रत्येक 76 वर्ष बाद आने वाला यह धूमकेतु मानव इतिहास की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है. यह खुली आंखों से दिखाई देता है. अलग-अलग संस्कृतियों ने इसे अलग-अलग समय पर रिकॉर्ड किया है.

धूमकेतु शूमेकर-लेवी – जुलाई 1994 में यह धूमकेतु बृहस्पति से टकराकर नष्ट हो गया था.

हेल-बॉप धूमकेतु – 1997 में यह धूमकेतु काफ़ी चर्चा में रहा था.

धूमकेतु टेंपल-टटल – हर 33 साल में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने वाले इस धूमकेतु के मलबे के कारण हर नवंबर में पृथ्वी पर उल्का वृष्टि होती है.

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