जम्मू-कश्मीर में भीषण ठंड के बीच अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई से नाराज़गी

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DMT : श्रीनगर  : (21 फ़रवरी 2023) : –

जम्मू और कश्मीर में इस साल जनवरी महीने से सरकार ने सरकारी ज़मीन पर से अतिक्रमण हटाने की मुहिम पर काम शुरू किया था.

नौ जनवरी, 2023 को केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन की ओर से जारी एक आदेश में सभी ज़िला अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि सरकारी ज़मीन पर से सभी अतिक्रमण को पूरी तरह से हटा दिया जाए.

इसके बाद प्रशासन ने कई जगहों पर बुलडोज़र से अतिक्रमण हटाने का काम शुरू किया.

लेकिन भीषण ठंड के बीच सरकार की इस कार्रवाई से कश्मीरी लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

कई जगहों पर लोगों ने इसका विरोध भी किया.

जम्मू में अतिक्रमण हटाने के दौरान पत्थरबाज़ी की घटना सामने आई. इस मामले में पाँच लोगों की गिरफ़्तारी भी हुई.

सोमवार की सुबह कुछ मीडिया रिपोर्टों में स्रोतों के आधार पर ये दावा किया गया कि इस अभियान पर रोक लगा दी गई है.

लेकिन जम्मू कश्मीर में किसी अधिकारी ने इस ख़बर की अब तक पुष्टि नहीं की है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीएम) के प्रदेश सचिव मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी ने बताया कि जब सभी लोग इस अतिक्रमण हटाने के ख़िलाफ़ एकजुट हो गए, तब सरकार रोक लगाने पर मजबूर हो गई है.

वहीं पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान का कहना था कि सरकार ने सिर्फ़ इस कार्रवाई पर फ़िलहाल रोक लगाई है, लेकिन हम चाहते हैं कि इस पर पूरी तरह रोक लगाई जाए.

राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने भी बीबीसी से इस बात की पुष्टि की कि वे बीते कई दिनों से अतिक्रमण हटाने का काम नहीं कर रहे हैं.

लेकिन उनका ये कहना था कि जहाँ-जहाँ अतिक्रमण हटाया है, वहाँ पर इसकी जियो टैगिंग हो रही है.

लोगों में अभी भी डर मौजूद

लेकिन कई लोगों में अब भी अतिक्रमण अभियान को लेकर डर बना हुआ है.

अनंतनाग के डूरु इलाक़े के जुनैद अहमद और उनके परिवार के लोगों को कुछ दिन पहले उस समय झटका लगा था, जब उन्होंने भीषण ठंड के बीच बुलडोज़र और पुलिस की गाड़ियों को अपने घर के बाहर देखा.

उन्होंने बताया, “कुछ दिन पहले जब हम सुबह सवेरे घर में बैठे थे, तो अचानक हमने घर के बाहर बुलडोज़र और पुलिस की गाड़ियाँ देखीं. अधिकारियों का कहना था कि वो उनके घर के आसपास अतिक्रमण हटाने आए हैं. हमें कोई नोटिस नहीं नहीं दिया गया था. हमने उनसे कहा कि ये हमारी ज़मीन है, सरकार की नहीं. लेकिन, उन्होंने बात नहीं सुनी और बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया.”

“हमारे मकान के एक तरफ़ की पूरी दीवार गिरा दी, एक कमरा और एक बाथरूम गिरा दिया. हमने उनसे कहा कि कुछ दिन पहले ही रेवेन्यू विभाग ने यहाँ का सर्वे किया और उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई. हमने उनको काग़ज़ दिखाए. लेकिन उन्होंने कार्रवाई कर दी.”

लेकिन डूरु के तहसीलदार ताहिर ख़ालिद का कहना है- जहाँ से हमने अतिक्रमण हटाया, वो सरकरी ज़मीन पर था और वहाँ से आम लोगों के लिए रास्ता निकलना है. ये कोई ताज़ा मामला नहीं है. हम लंबे समय से उन्हें नोटिस दे रहे थे.

अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई का असर अमीर और ग़रीब दोनों पर पड़ा है.

श्रीनगर के पादशाही बाग़ में ख़ालिद अहमद का कबाड़ का कारखाना कहचरई ज़मीन पर है. 10 दिन पहले उनके कारखाने पर भी बुलडोज़र चला.

खालिद बताते हैं, “न हमें कोई नोटिस दिया गया और न कुछ. सीधा बुलडोज़र आ गया और हम पर चलाया. हम इस जगह पर बीते 21 वर्षों से अपना काम कर रहे हैं. हमारे साथ 200 लोग काम करते हैं. हम कोई अमीर लोग नहीं हैं. हम ग़रीब मज़दूर लोग हैं. सरकार कहती है कि ग़रीबों को बसाएँगे. लेकिन वो तो ग़रीबों को मिटा रही है. हम इस ठंड में रात को भी यहाँ सो रहे हैं.”

ग़रीब लोगों के मकान गिराने के मामले की शिकायतों के सामने आने के बाद जम्मू -कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 19 जनवरी को मीडिया से कहा था, “सरकारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने वालों की जहाँ तक बात है, उस मामले में मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ग़रीबों को घबराने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन जिन्होंने अपने पदों पर बैठकर पदों का दुरुपयोग किया है, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी.”

लेकिन मनोज सिन्हा के आश्वासन के बाद भी ग़रीबों की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं.

श्रीनगर के छतबल इलाक़े में शोएब वानी के चार मंज़िला कॉम्प्लेक्स को सरकार ने सील किया. कॉम्प्लेक्स पर सरकार ने बोर्ड लगाया है, जिस पर ‘सरकारी प्रॉपर्टी’ लिखा है.

शोएब वानी का दावा है कि प्रशासन ने जिस तरह से उनके कॉम्प्लेक्स पर क़ब्ज़ा किया है, वो ग़ैरक़ानूनी है.

उनका कहना था, “सरकार को अतिक्रमण हटाने पर पॉलिसी लानी चाहिए और ये देखना चाहिए कि ज़मीन किसने हड़पी है. हम अतिक्रमण हटाने के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हम सरकार के इस काम में पूरी तरह साथ देंगे. लेकिन जिस तरह से ये सब किया जा रहा है और लोगों के अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, उस पर रोक लगनी चाहिए.”

क्या कहते हैं कश्मीर के नागरिक

अदालत के काग़ज़ात दिखाते हुए शोयब कहते हैं, “जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने वर्ष 2018 में कहा था कि ये जायदाद मेरी थी और अभी तक अदालत में ये मामला चल रहा है. उनका कहना था कि मामला अदालत में है, तो सरकार ने किस तरह मेरे कॉम्प्लेक्स को सील किया.”

वहीं कश्मीर के डिविज़नल कमिश्नर विजय कुमार बिधुरी ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया कि उपराजयपाल मनोज सिन्हा ने जो आदेश दिए हैं, उनका पालन किया जा रहा है.

अनंतनाग के रहने वाले रियाज़ अहमद ने बताया कि ये बात स्पष्ट नहीं है कि कहाँ पर अतिक्रमण हटाना है और कहाँ पर नहीं हटाना है.

राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर बताया कि सरकार किसी को उनकी ज़मीन से बेदख़ल नहीं कर रही है.

इस अधिकारी ने दावा किया है कि लोगों ने सरकारी ज़मीन पर सेब के बाग़ बनाए हैं, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और दुकानें बनाई हैं और वही ज़मीन वापस ली जा रही है.

उनका ये भी कहना था कि कोशिश यही रहती है कि अगर किसी ग़रीब ने ज़मीन का मामूली टुकड़ा क़ब्ज़े में लिया है, तो उस पर कार्रवाई न हो.

अतिक्रमण हटाने के इस अभियान के तहत अभी तक कुछ नेताओं, अफ़सरशाहों और कारोबारियों पर भी कार्रवाई हुई है.

ज़िला बड़गाम के हमहामा इलाक़े में नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर की एक इमारत गिरा दी गई, जबकि कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री, एक पुलिस अधिकारी, पूर्व डिप्टी कलेक्टर और बीजेपी के एक नेता की भी जायदाद भी सरकार ने अपने क़ब्ज़े में ले ली है.

इस कार्रवाई पर अली मोहम्मद सागर के बेटे सलमान सागर बताते हैं कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था. उनका दावा है कि ये सब अचानक किया गया.

बीते सप्ताह श्रीनगर नगर निगम ने एक आदेश जारी कर कहा था कि श्रीनगर में दूध गंगा नदी पर जितने भी निर्माण हैं, लोग ख़ुद से एक हफ़्ते के भीतर हटा लें, अन्यथा सरकार वहाँ से अतिक्रमण हटाएगी.

इस आदेश के बाद उस इलाक़े के कई लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन किए और सरकार से अपना आदेश वापस लेने की मांग की.

कॉलोनी के रहने वाले एक शख़्स ने बताया कि जब से ये आदेश निकला है, तबसे वे सो भी नहीं पाते हैं.

मासूमा नाम की एक महिला ने कहा कि मकान गिरा कर सरकार हम ग़रीबों को बेघर क्यों करना चाहती है?

लोगों के प्रदर्शन के बाद श्रीनगर के मेयर जुनैद मोटू ने बयान जारी कर बताया कि किसी भी ग़रीब का मकान गिराया नहीं जाएगा.

कुलगाम के बोगंड इलाक़े में कई घरवालों को भी सरकार की तरफ़ से इसी तरह का नोटिस मिला है.

इलाक़े के लोगों में काफ़ी बेचैनी और डर है. सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश भी हैं.

जम्मू-कश्मीर सरकार ने नौ जनवरी, 2023 को अतिक्रमण हटाने के आदेश में बताया है कि जिस ज़मीन से अतिक्रमण हटाने हैं, उनमें स्टेट लैंड, रौशनी लैंड और कहचराई लैंड शामिल है.

स्टेट लैंड यानी सरकारी ज़मीन, रौशनी लैंड यानी एक ख़ास एक्ट के तहत मिली ज़मीन और कहचराई लैंड यानी सरकार की ओर से दी गई वो ज़मीन, जो जानवरों के चरने के लिए दी गई थी.

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार को 20 जनवरी 2023 को बताया कि रौशनी लैंड एक्ट के तहत मिली ज़मीन पर से किसी भी तरह का अतिक्रमण न हटाया जाए.

वर्ष 2001 में जम्मू-कश्मीर में एक एक्ट पास किया गया, जिसमें बताया गया कि जिसने भी सरकारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा किया है, उसको रौशनी एक्ट के तहत ज़मीन के मालिकाना अधिकार दिए जाएँगे.

लेकिन साल 2018 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रौशनी एक्ट को रद्द कर दिया था.

उस समय की सरकार ने बताया कि रौशनी एक्ट से वो मक़सद पूरा नहीं हुआ, जिसके लिए इसे बनाया गया था और इसका ग़लत इस्तेमाल किया गया.

अक्तूबर 2020 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने रौशनी एक्ट को असंवैधानिक और क़ानून के ख़िलाफ़ बताया और पूरी प्रक्रिया को ज़मीन घोटाला कहा.

अदालत ने रौशनी एक्ट के तहत मालिकाना अधिकार पाने वालों की सीबीआई जाँच के भी आदेश दिए.

  • लेकिन, दिसंबर 2020 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर मांग की कि रौशनी एक्ट पर नया आदेश जारी किया जाए. अदालत की तरफ़ से अभी तक ऐसा आदेश जारी नहीं किया गया है.
  • जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के वकील रियाज़ खवार बताते हैं कि उनका एक क्लाइंट हैं, जिन्हें रौशनी एक्ट के तहत चार कनाल या 21,780 स्क्वायर फ़ीट ज़मीन मिली है.
  • खवार का कहना है कि उनको एक वर्ष पहले सरकार की तरफ़ से नोटिस मिला था.
  • जम्मू-कश्मीर में जब अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को तेज़ किया गया, तो सरकार के ख़िलाफ़ विपक्षी दल सड़कों पर उतर गए और आरोप लगाया गया कि सरकार ग़रीबों को निशाना बना रही है.
  • पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने ख़ुद दिल्ली में और पार्टी कार्यकर्ताओं ने कश्मीर में प्रदर्शन किया.
  • महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि अतिक्रमण हटाने को सरकार एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है.
  • जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने बीते दिनों श्रीनगर में कहा कि ‘सरकार की तरफ़ से बुलडोज़र आख़िरी क़दम होना चाहिए.’
  • जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद लोन ने भी सरकार पर आरोप लगाया कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की बेइज़्ज़ती करना चाहती है.
  • जम्मू-कश्मीर बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता सुनील शेट्टी ने बीबीसी को बताया कि प्रशासन को स्पष्ट आदेश मिले हैं कि वो उन ग़रीबों पर कार्रवाई न करें, जिनके पास थोड़ी ज़मीन है.
  • उन्होंने बताया, “हमने बार-बार कहा है कि ग़रीब लोगों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. लेकिन आदेशों के बावजूद अधिकारी लगातार ऐसा कर रहे हैं, जो अच्छी बात नहीं है.”

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