भारत ने कहा है कि उसे देश में लिथियम के बड़े और बेहद महत्वपूर्ण भंडार होने का पता चला है. लिथियम एक तरह का खनिज है जिसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों, मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप में लगने वाली बैटरियों में किया जाता है.
गुरुवार को सरकार ने ऐलान किया कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को जम्मू-कश्मीर में लिथियम के 59 लाख टन के विशाल भंडार का पता चला है. ये भंडार रियासी ज़िले में मिले हैं.
लिथियम के लिए भारत अब तक ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना जैसे देशों पर निर्भर था.
लिथियम का इस्तेमाल बार-बार रीचार्ज की जा सकने वाली बैटरियों में होता है. इन बैटरियों का इस्तेमाल स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप से लेकर इलेक्ट्रिक कारों में किया जाता है. माना जाता है कि डीज़ल और पेट्रोल गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण कम करने की दिशा में ये बेहद महत्वपूर्ण है.
जम्मू-कश्मीर में कहां मिला लीथियम भंडार?
भारत के खनिज मंत्रालय के मुताबिक़, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने लिथियम का ये भंडार जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में सलाल हेमना ब्लॉक में ढूंढा है.
यह इलाक़ा चिनाब नदी पर बने 690 मेगावाट की क्षमता वाले सलाल पावर स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर है.
सलाल इलाक़े में जहां लिथियम के भंडार पाए गए हैं, उसके आसपास के इलाक़े में कोई भी रिहायशी बस्ती मौजूद नहीं है. इलाक़े के क़रीब पांच वार्ड इस भंडार के आसपास हैं.
जम्मू-कश्मीर के खनन विभाग के सचिव अमित शर्मा ने रियासी ज़िले में पाए गए लिथियम के इन भंडारों पर विस्तृत चर्चा की. उन्होंने बीबीसी के सहयोगी पत्रकार मोहित कंधारी को बताया, “भारत G-20 देशों की मेज़बानी कर रहा है, ऐसे समय में लिथियम के भंडार मिलना भारत के लिए सुखद संयोग है.”
अमित शर्मा मानते हैं कि ये उपलब्धि एक गेमचेंजर है जो आने वाले वक़्त में देश के विकास की दिशा बदल सकती है.
वो कहते हैं, “लिथियम के भंडार मिलने से इस क्षेत्र में ग्लोबल मानचित्र पर हमारी उपस्थिति दर्ज हो गई है. अब पूरे विश्व में यह संदेश चला गया है कि देश इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन रहा है और जल्दी ही उसकी गिनती भी लिथियम निर्यात करने वाले बोलिविया, अर्जेंटीना, चिली, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन जैसे देशों के साथ की जाने लगेगी.”
अमित शर्मा इसे ग्रीन इंडिया और ईको फ्रेंडली इंडिया बनाने के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं.
वो कहते हैं, “ये जम्मू-कश्मीर के लिए भी गेमचेंजर साबित होगा. उत्पादन उद्योग के लिए, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए, मोबाइल फ़ोन इंडस्ट्री के लिए भी ये गेमचेंजर हैं.”
मोहित कंधारी ने सलालकोट के सरपंच मोहिंदर सिंह से भी संपर्क किया और इस बारे में और जानकारी जुटाई. उन्होंने बताया कि लिथियम के भंडार मिलने से पूरे इलाक़े की काया पलट सकती है और स्थानीय निवासियों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा हो सकते हैं.
मोहिंदर सिंह के अनुसार जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के वैज्ञानिकों ने पिछले साल इस इलाक़े में सैंपलिंग का काम शुरू किया था.
हमने अमित शर्मा से पूछा कि अभी लिथियम के एक्सट्रैक्शन ओर उत्पादन में कितना समय लगेगा और जम्मू-कश्मीर सरकार ने इसके लिए क्या कार्य योजना तैयार की है.
उन्होंने बताया, “अभी तो ये शुरुआती चरण पर ही है. भारत सरकार ने हमें G3 स्टडी की रिपोर्ट सौंपी है. G2 एडवांस स्टडीज़ और फिर G1 स्टडी होना बाक़ी है. उसके बाद ही हम ई-ऑक्शन के बारे में बात कर सकेंगे.”
अमित शर्मा ने बताया, “इसके लिए हम जल्दी ही एक समय-सारणी तैयार करेंगे और जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की देखरेख में G2 और G1 स्टडीज़ करवाएंगे”.
अमित शर्मा के अनुसार उत्पादन शुरू होने पर कुशल, अकुशल और अर्धकुशल श्रमिकों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा.
उन्होंने यह भी कहा जिन राज्यों में खनिज पदार्थ मिलते हैं उनकी अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर बन जाती है. अमित शर्मा ने बताया स्थानीय निवासियों को किसी प्रकार का कष्ट न हो इसके लिए विशेष ध्यान रखा जायेगा.
अमित शर्मा ने कहा कि, “जम्मू कश्मीर की सरकार खनिज क्षेत्रों से जुड़ी भारत सरकार की स्कीम लागू करवाने में देरी नहीं करेगी.हम सबसे पहली प्राथमिकता स्थानीय निवासियों को देंगे, उनके लिए काम के अवसर पैदा होंगे.”
कर्नाटक में भी है लिथियम का भंडार
इससे पहले साल 2021 में इसी तरह का एक लिथियम भंडार कर्नाटक में मिला था. हालांकि मात्रा के लिहाज़ से ये काफी छोटा है.
सरकार ने कहा था कि वो लिथियम जैसे दुर्लभ खनिज की आपूर्ति बढ़ाने के तरीकों पर विचार कर रही है, ताकि नई टेक्नोलॉजी के क्षेत्र के विकास में तेज़ी आए. सरकार इसके लिए भारत से लेकर विदेशों तक में इसके स्रोतों की तलाश में थी.
मिंट अख़बार से बातचीत में खनिज मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्वाज ने कहा था, “सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए खोज अभियान तेज़ किया है.”
हाल के दिनों में, ख़ासकर कोरोना महामारी के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लिथियम की मांग बढ़ रही है. दूसरी तरफ तमाम देश जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिए ग्रीन एनर्जी को अपनाने की तरफ बढ़ रहे हैं और इसमें भी लिथियम की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है.
लिथियम खनन में चीन का दबदबा
इसी साल चीन ने बोलिविया के विस्तृत खनिज भंडारों का दोहन करने के लिए उसके साथ एक अरब डॉलर का समझौता किया है. एक अनुमान के मुताबिक़ इन खादानों में 2.1 करोड़ टन लीथियम का भंडार है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार माना जा रहा है.
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की रफ्तार कम करने का टार्गेट पूरा करने के लिए साल 2050 तक लिथियम जैसे खनिजों का खनन 500 फ़ीसदी तक बढ़ाना होगा.
हालांकि जानकारों का मानना है कि लिथियम के खनन की प्रक्रिया पर्यावरण के कतई अनुकूल नहीं है.
लिथियम धरती के अंदर नमकीन जलाशयों और सख्त चट्टानों से निकाला जाता है. ये ऑस्ट्रेलिया, चिली और अर्जेंटिना जैसे देशों में बड़ी मात्रा में पाया जाता है.
लिथियम के खनन के बाद इसे खनिज तेल का इस्तेमाल कर पकाया जाता है. इसकी वजह से वो जगह पूरी तरह जलकर सूख जाती है और वहां काले धब्बे बन जाते हैं. इसके अलावा इसे खदान से निकालने की प्रक्रिया में पानी का काफी इस्तेमाल होता है और वातावरण में इससे कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित होता है.
अर्जेन्टीना में लिथियम के खनन में भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होने के कारण स्थानीय निवासी लिथियम के खनन प्रक्रिया का विरोध करते हैं.
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस तरह की खनन गतिविधियों से प्राकृतिक संसाधन खत्म होंगे और आगे चलकर पानी के संकट से जूझना पड़ेगा.