DMT : गुजरात : (14 मार्च 2023) : –
जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) कोर्ट (अंजुमन) के सदस्यों ने सर्वसम्मति से डॉक्टर सैय्यदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन को यूनिवर्सिटी का नया चांसलर चुना है.
जामिया अंजुमन में 45 सदस्य होते हैं जिनमें से तीन सांसद भी हैं.
डॉक्टर सैफ़ुद्दीन मंगलवार को अपना कार्यभार संभालेंगे और अगले पाँच सालों तक इस पद पर रहेंगे. वो डॉक्टर नजमा हेपतुल्ला की जगह लेंगे.
डॉक्टर सैय्यदना सैफ़ुद्दीन बोहरा समुदाय के 53वें धर्मगुरु हैं. वो साल 2014 से ये पद संभाल रहे हैं.
यूनिवर्सिटी की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के अनुसार, डॉक्टर सैय्यदना मुफ़द्दल बोहरा के बारे में बताया गया है कि उन्होंने अपना जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया. इस दौरान उन्होंने शिक्षा, पर्यावरण, समाजिक-आर्थिक पहलुओं पर ख़ास काम किया.
सैय्यदना सैफ़ुद्दीन ने गुजरात में सूरत के अल-जामिया-तुल सैफ़ियां से तालीम हासिल की है. उन्होंने मिस्र की अल-अज़हर यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है.
उन्होंने मुंबई में अल-जामिया तुस सैफ़ियां के नए कैंपस का 10 फ़रवरी 2023 को उद्घाटन भी किया था.
हाल ही में पीएम मोदी ने बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए डॉक्टर सैय्यदना सैफ़ुद्दीन से मुलाक़ात भी की थी.
डॉक्टर सैय्यदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन दाऊदी बोहरा समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु हैं. इस समुदाय की विरासत फ़ातिमी इमामों से जुड़ी है जिन्हें पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद (570-632) का वंशज माना जाता है.
यह समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति ही अपना अक़ीदा (श्रद्धा) रखता है. दाऊदी बोहराओं के 21वें और अंतिम इमाम तैय्यब अबुल क़ासिम थे.
उनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई जो दाई-अल-मुतलक़ सैय्यदना कहलाते हैं.
दाई-अल-मुतलक़ का मतलब होता है – सुपर अथॉरिटी यानी सर्वोच्च सत्ता जिसके निज़ाम में कोई भी भीतरी या बाहरी शक्ति दख़ल नहीं दे सकती या जिसके आदेश-निर्देश को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती. सरकार या अदालत के समक्ष भी नहीं.
डॉक्टर सैफ़ुद्दीन अपने समुदाय के धर्मगुरु हैं. लेकिन उनका रुतबा कुछ कुछ शासकों जैसा ही है.
मुंबई में भव्य और विशाल ‘सैफ़ी महल’ में अपने विशाल कुनबे के साथ रहते हुए वे ख़ुद तो हर आधुनिक भौतिक सुविधाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन अपने सामुदायिक अनुयायियों पर शासन करने के उनके तौर तरीक़े मध्ययुगीन राजाओं-नवाबों की तरह हैं.
उनकी नियुक्ति भी योग्यता या लोकतांत्रिक ढंग से नहीं, बल्कि वंशवादी व्यवस्था के तहत होती है, जो कि इस्लामी उसूलों के अनुरूप नहीं हैं.
डॉक्टर सैफ़ुद्दीन जिस समुदाय के धार्मिक नेता हैं, उसे आम तौर पर पढ़ा-लिखा, मेहनती, कारोबारी और समृद्ध होने के साथ ही आधुनिक जीवनशैली वाला माना जाता है.
इसे एक धर्मभीरू समुदाय भी माना जाता है.
अदालतों में जारी विवाद
हालांकि, डॉक्टर सैफ़ुद्दीन से जुड़े विवाद अदालतों तक भी पहुंचे हैं. सैय्यदना के परिवार ने ही उनके सैय्यदना बनने को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी हुई है. मौजूदा सैय्यदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन के पिता डॉक्टर मोहम्मद बुरहानुद्दीन 52वें सैय्यदना थे.
परंपरा के मुताबिक़ उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी तय करना था, लेकिन 2012 में अचानक गंभीर रूप से बीमार होकर कोमा में चले जाने की वजह से वे अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति नहीं कर पाए थे, लेकिन उन्होंने अपने छोटे भाई खुजेमा क़ुतुबुद्दीन को माजूम यानी अपना नायब बहुत पहले ही नियुक्त कर दिया था.
खुजेमा क़ुतुबुद्दीन के छोटे बेटे अब्दुल अली के मुताबिक़ डॉक्टर मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने 1965 में सैय्यदना का पद संभालने के महज़ 28 दिन बाद ही अपने भाई खुजेमा क़ुतुबुद्दीन को अपना माजूम नियुक्त कर दिया था.
बताया जाता है कि अगर सैय्यदना का औपचारिक तौर पर अपने उत्तराधिकारी के नाम का एलान किए बग़ैर ही इंतक़ाल हो जाता है तो ऐसी स्थिति में उनके माजूम को ही अगला सैय्यदना मान लिया जाता है.
लेकिन फ़रवरी 2014 में 52वें सैय्यदना डॉक्टर बुरहानुद्दीन की मौत के बाद ऐसा नहीं हुआ. उनके बेटे मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन ने अपने चाचा के दावे को नज़रअंदाज़ कर अपने पिता का उत्तराधिकार संभालते हुए ख़ुद को 53वां सैय्यदना घोषित कर दिया.
दूसरी ओर खुजेमा क़ुतुबुद्दीन ने भी 52वें सैय्यदना का माजूम होने के नाते अपने को उनका स्वाभाविक उत्तराधिकारी बताते हुए 53वां सैय्यदना घोषित कर दिया तथा जून 2014 में अपने भतीजे के दावे को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दे दी.
अदालत के बार-बार नोटिस जारी करने के बावजूद मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन अदालत में हाज़िर नहीं हुए.
यह मुक़दमा जारी रहने के दौरान ही 30 मार्च 2016 को खुजेमा क़ुतुबुद्दीन का निधन हो गया चूंकि उन्होंने अपने निधन से पहले ही अपने बेटे ताहिर फ़ख़रुद्दीन को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, लिहाज़ा ताहिर फ़ख़रुद्दीन ने उनकी जगह संभाल ली और उन्होंने ख़ुद को 54वां सैय्यदना घोषित कर दिया.
अपने चाचा के निधन के तुरंत बाद मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन ने अपने वकील के माध्यम से अदालत से अनुरोध किया कि चूंकि अब खुजेमा क़ुतुबुद्दीन की मौत हो गई है, लिहाज़ा यह मुक़दमा ख़ारिज कर दिया जाए.
इस पर ताहिर फ़ख़रुद्दीन ने आपत्ति की. अदालत ने उनकी आपत्ति स्वीकार करते हुए मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन की अपील को ख़ारिज कर दिया और आदेश दिया कि मुक़दमा जारी रहेगा.
इस मामले में अंतिम सुनवाई पिछले साल (2022) नवंबर महीने में हुई थी.
52वें सैय्यदना के उत्तराधिकार के मुक़दमे के अलावा मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट में भी एक गंभीर मुक़दमे का सामना करना पड़ रहा है.
यह मुक़दमा दाऊदी बोहरा समुदाय में छोटी बच्चियों का ख़तना (फ़ीमेल जेनिटाइल म्यूटिलेशन) से संबंधित है.
दाऊदी बोहरा समुदाय में धर्म के नाम पर लंबे समय से चली आ रही इस रवायत को अमानवीय बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
सैय्यदना का सामाजिक-धार्मिक तंत्र
देश-विदेश में जहां-जहां भी बोहरा धर्मावलंबी बसे हैं, वहां सैय्यदना की ओर से अपने दूत नियुक्त किए जाते हैं, जिन्हें आमिल कहा जाता है. ये आमिल ही सैय्यदना के फ़रमान को अपने समुदाय के लोगों तक पहुंचाते हैं और उस पर अमल भी कराते हैं.
स्थानीय स्तर पर सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों पर भी इन आमिलों का ही नियंत्रण रहता है. एक निश्चित अवधि के बाद इन आमिलों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर तबादला भी होता रहता है.
बोहरा धर्मगुरु सैय्यदना की बनाई हुई व्यवस्था के मुताबिक़ बोहरा समुदाय में हर सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यावसायिक कार्य के लिए सैय्यदना की रज़ा (अनुमति) अनिवार्य होती है और यह अनुमति हासिल करने के लिए निर्धारित शुल्क चुकाना होता है.
शादी-ब्याह, बच्चे का नामकरण, विदेश यात्रा, हज, नए कारोबार की शुरुआत, मृतक परिजन का अंतिम संस्कार आदि सभी कुछ सैय्यदना की अनुमति से और निर्धारित शुल्क चुकाने के बाद ही संभव हो पाता है.
यही नहीं, सैय्यदना के दीदार करने और उनका हाथ अपने सिर पर रखवाने और उनके हाथ चूमने (बोसा लेने) का भी काफ़ी बड़ा शुल्क सैय्यदना के अनुयायियों को चुकाना होता है. इसके अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वार्षिक आमदनी का एक निश्चित हिस्सा दान के रूप में देना होता है.
आमिलों के माध्यम से इकट्ठा किया गया यह सारा पैसा सैय्यदना के ख़ज़ाने में जमा होता है.
दाई-अल-मुतलक़ यानी सैय्यदना दाऊदी बोहरों के सर्वोच्च आध्यात्मिक धर्मगुरु ही नहीं बल्कि समुदाय के तमाम सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और पारमार्थिक ट्रस्टों के मुख्य ट्रस्टी भी होते हैं. इन्हीं ट्रस्टों के ज़रिए समुदाय की तमाम मस्जिदों, मुसाफ़िरख़ानों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, दरगाहों और क़ब्रिस्तानों का प्रबंधन और नियंत्रण होता है.
इन ट्रस्टों की कुल संपत्ति पचास हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की बताई जाती है.
बोहरा समाज के सुधारवादी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन ट्रस्टों के आय-व्यय तथा समाज के लोगों से अलग-अलग तरीक़े से जुटाए गए धन का कोई लोकतांत्रिक लेखा-जोखा समाज के लोगों के सामने पेश नहीं किया जाता. जबकि सैय्यदना के समर्थकों का दावा है कि इस पैसे का इस्तेमाल शैक्षणिक संस्थानों और अस्पतालों के संचालन तथा अन्य पारमार्थिक कार्यों में ख़र्च किया जाता है.
सैय्यदना की बनाई हुई व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या उसके परिवार की बराअत (सामाजिक बहिष्कार) का फ़रमान सैय्यदना की ओर से जारी कर दिया जाता है. सैय्यदना के आदेश के मुताबिक़, समाज से बहिष्कृत व्यक्ति या परिवार से समाज का कोई भी व्यक्ति किसी भी स्तर पर संबंध नहीं रख सकता.
बहिष्कृत व्यक्ति अपने परिवार में या समाज में न तो किसी शादी में शरीक हो सकता है और न ही किसी मय्यत (शवयात्रा) में. बहिष्कृत परिवार में अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके शव को बोहरा समुदाय के क़ब्रिस्तान में दफ़नाने भी नहीं दिया जाता.