त्रिपुरा चुनावः कम्युनिस्ट और कांग्रेस साथ-साथ, क्या दवाब में आएगी बीजेपी

Hindi Tripura

DMT : त्रिपुरा  : (09 फ़रवरी 2023) : –

बांग्लादेश की सीमा से सटे पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव होना है. इसमें एक ओर जहां सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य में चिर प्रतिद्वंद्वी रहे वाम मोर्चा और कांग्रेस गठजोड़ के साथ मैदान में उतरे हैं.

त्रिपुरा के पूर्व महाराज के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन के नेतृत्व वाली आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा भी तीसरे पक्ष के तौर पर चुनाव मैदान में है.

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में मेला मैदान स्थित सीपीएम के दप्तर से पोस्ट ऑफ़िस चौराहे पर स्थित कांग्रेस के दफ्तर के बीच की दूरी एक किलोमीटर से भी कम है. लेकिन यह दोनों ताकतें हमेशा एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी रही हैं.

हालांकि वर्ष 1977 में छह महीने के लिए विपरीत ध्रुवों पर स्थित यह दोनों पार्टियां ज़रूर एक साथ आई थीं और एक समझौते के ज़रिए सरकार का संचालन भी किया था.

लेकिन बाकी समय इन दोनों की स्थिति एक-दूसरे के ठीक विपरीत रही है.

इस बार इन दोनों पार्टियों से 180 डिग्री विपरीत सिद्धांत वाली भाजपा ने चुनाव से पहले इनको एकजुट कर दिया है.

अब चुनाव प्रचार के दौरान वाम मोर्चा के लाल और कांग्रेस का तिरंगा झंडा एक साथ नज़र आ रहा है.

सीटों पर समझौते के तहत वाम मोर्चा 43 और कांग्रेस 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उन्होंने एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दिया है.

दो प्रतिद्वंद्वी ताकतें एकजुट कैसे हुईं?

सीपीएम नेता और पूर्व मंत्री पवित्र कर ने कहा, “भाजपा बीते पांच वर्षों से कुशासन चला रही है. लोग चाहते थे कि हम इसके ख़िलाफ़ एकजुट हों. मुख्य विपक्ष पार्टी होने के कारण भाजपा के सत्ता में आने के बाद सबसे ज़्यादा हमले वाम मोर्चा के लोगों पर ही हुए हैं. बाद में कांग्रेसियों के सक्रिय होने पर भाजपा के लोगों ने उन पर भी हमले किए हैं.”

उनका कहना था कि भाजपा सरकार किसी विपक्षी पार्टी को कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करने देती. फिलहाल लोकतंत्र को बचाना सबसे ज़रूरी है.

इसके अलावा कांग्रेस तो लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. स्वाभाविक तौर पर भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए उसके साथ सीटों पर समझौता हुआ है.

सीटों के बंटवारे पर दोनों दलों की बातचीत कई बार टूटने के कगार पर पहुंच गई थी. लेकिन नामांकन वापस लेने की तारीख़ से ठीक पहले इस पर अंतिम समझौता हो गया.

भाजपा के प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य कहते हैं, “यह समझौता एकदम ऊपरी स्तर से हुआ है. लेकिन सामान्य कार्यकर्ता और समर्थक नेताओं के साथ नहीं हैं.

नेताओं ने आम लोगों की राय के खिलाफ जाकर यह समझौता किया है. कांग्रेस के पूर्व कार्यकर्ता अब भाजपा के साथ हैं. सीपीएम के कार्यकाल में कांग्रेस के जिन सामान्य कार्यकर्ताओं पर अत्याचार हुए हैं, उनके घरों को जलाया गया है, वे वाम मोर्चा उम्मीदवारों को वोट कैसे देंगे?”

उनका कहना था कि कांग्रेस का एक गुट वाम विरोधी ज़रूर था लेकिन एक अन्य गुट भीतर ही भीतर सीपीएम के समर्थन में ही काम करता था. इसी वजह से सीपीएम लगातार ढाई दशक तक सत्ता में रह सकी थी. उसी गुट ने अब सार्वजनिक रूप से वाम मोर्चा के साथ गठजोड़ किया है.

लेकिन चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि दोनों प्रमुख विपक्षी दलों के एकजुट होने के कारण भाजपा कुछ दबाव में है.

इसी वजह से वह चुनाव प्रचार के लिए अमित शाह से लेकर तमाम बड़े नेताओं को राज्य में बुला रही है.

अपना वोट बैंक अटूट रखने के लिए पार्टी ने कांग्रेस से भाजपा में आकर चुनाव जीतने वाले तमाम नेताओं को टिकट दिए हैं ताकि उनके समर्थकों के वोट उनकी झोली में आ सकें.

टिपरा मोथा क्यों है अहम?

त्रिपुरा के पूर्व राजपरिवार के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन की नई पार्टी टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.

वाम-कांग्रेस गठजोड़ और भाजपा दोनों ने इस पार्टी को अपने पाले में खींचने का प्रयास किया था.

आदिवासियों की पार्टी होने के बावजूद टिपरा मोथा ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित 22 सीटों के अलावा 22 गैर-आदिवासी सीटों पर भी उम्मीदवार खड़े किए हैं. इन 22 सीटों पर भी आदिवासी वोटरों की खासी तादाद है.

तो क्या ऐसे में भाजपा विरोधी वोट वाम-कांग्रेस गठजोड़ और टिपरा मोथा के बीच बंट सकते हैं?

अगरतला के वरिष्ठ पत्रकार सैयद सज्जाद अली कहते हैं, “इस बार लोगों के मन की बात समझना मुश्किल है. हमें पहले यह संकेत मिल जाता था कि वोटरों का कौन सा हिस्सा किस पार्टी को वोट देगा. लेकिन इतने लंबे अरसे से चुनाव की कवरेज करने के बावजूद इस बार जैसी परिस्थिति मैंने पहले कभी नहीं देखी है. शायद लोगों को चुप्पी साधे रहना ही श्रेयस्कर लग रहा है. लोग सीधे ईवीएम में ही अपना फैसला सुनाएंगे.”

उनका कहना था कि टिपरा मोथा ने जिन गैर-आदिवासी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं उनमें से कुछ सीटों पर वह वाम-कांग्रेस गठजोड़ के लिए समस्या पैदा कर सकती है.

इसके अलावा एक पहलू और है. हालांकि राजनीतिक दल या विश्लेषक इसे ज़्यादा अहमियत देने को तैयार नहीं है.

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस भी त्रिपुरा चुनाव में मैदान में है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी मंगलवार को अगरतला में जनसभाएं कर चुके हैं.

पश्चिम बंगाल के कई मंत्री नियमित रूप से त्रिपुरा का दौरा कर रहे हैं. लेकिन उनका मानना है कि पहले के चुनावों की तरह तृणमूल कांग्रेस इस बार भी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकेगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *