दाऊदी बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल होंगे मोदी, वजह क्या है?

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DMT : मुंबई  : (10 फ़रवरी 2023) : –

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीती 19 जनवरी को मुंबई नगर निगम के कार्यक्रम और नई मेट्रो लाइन के उद्घाटन के लिए मुंबई में थे. एक महीने के भीतर शुक्रवार 10 फरवरी को वे एक बार फिर में मुंबई में होंगे.

वे छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से शिर्डी और सोलापुर जाने वाली दो ‘वंदे भारत’ एक्सप्रेस ट्रेनों को हरी झंडी दिखाएंगे. लेकिन इससे ज़्यादा चर्चा उनके दूसरे कार्यक्रम की हो रही है. वे मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में शामिल होंगे.

नरेंद्र मोदी अंधेरी पूर्व में बोहरा मुस्लिम समुदाय की ‘अरबी अकादमी’ का उद्घाटन करेंगे. मोदी के साथ मंच पर धार्मिक नेता और दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रमुख सैयदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन भी साथ होंगे.

ऐसा नहीं है कि मोदी पहली बार बोहरा समुदाय के किसी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं, इससे पहले 2018 में, प्रधानमंत्री के तौर पर वे इंदौर में बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

मुंबई से देश पर निशाना?

मध्य प्रदेश चुनाव में अब एक साल का ही समय बचा है. ऐसे में चर्चा यह भी हो रही है कि मुंबई के कार्यक्रम के ज़रिए मोदी मुंबई समेत देश के दूसरे हिस्सों के बोहरा समुदाय को बीजेपी से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

बीजेपी और नरेंद्र मोदी की पहचान हिंदुत्व की राजनीति से जुड़ी हुई हुई. इस राजनीति में समय-समय पर मुसलमानों की आलोचना भी देखने को मिली है. लेकिन पिछले कुछ सालों में बीजेपी की ओर से मुसलमानों के कुछ समुदायों के साथ निकटता बढ़ाने की कोशिश भी हुई है. मुसलमानों में आर्थिक तौर से पिछड़े पसमांदा समुदाय तक भी पहुंचने की कोशिश की जा रही है.

वहीं, दूसरी ओर, मुसलमानों में आर्थिक तौर पर सबसे प्रभावी समुदाय दाऊदी बोहरा को भी बीजेपी अपनी राजनीति के अनुकूल मानती है.

मोटे तौर पर माना जाता है कि देश की कुल मुस्लिम आबादी में 10 प्रतिशत आबादी दाऊदी बोहरा समुदाय की है और यह मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में बसे हैं.

बीजेपी की ओर से हमेशा दावा किया गया है कि गुजरात में बोहरा मुस्लिम बीजेपी के साथ हैं. आने वाले बृहनमुंबई नगर निगम चुनाव (बीएमसी) में दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रभाव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी का इस समुदाय के कार्यक्रम में शामिल होना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. बीएमसी के कई वार्डों में मुस्लिम वोट निर्णायक हो सकते हैं.

उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इस साल अपनी रणनीति में इन्हीं मुस्लिम वोटों को अहमियत दी है और इसके नतीजे भी दिखने लगे हैं. ऐसे में इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी महाराष्ट्र की सियासी राजनीति के लिहाज से भी अहम है.

मुसलमान मुंबई में दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है और कहा जाता है कि इनका सीधा प्रभाव पचास से अधिक वार्डों पर है. नगर निगम चुनाव में इनका महत्व इसलिए है क्योंकि वार्डों के मतदाताओं की संख्या विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की तुलना में कम होती है, ऐसे में छोटा-सा वोट मार्जिन भी जीत-हार में निर्णायक साबित हो सकता है.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई में मुसलमानों की आबादी 20.65 प्रतिशत है. मुस्लिम समुदाय का वोट नगर निगम चुनाव में पहले कांग्रेस को मिलता रहा था जो बाद में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और औवेसी की पार्टी में भी चला गया है.

दूसरी ओर शिवसेना एक ऐसी पार्टी है जिसकी छवि हमेशा कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी की रही है, लेकिन 2017 में हुए चुनाव में बीएमसी में चुने गए कुल 31 मुस्लिम नगरसेवकों में से शिवसेना के दो नगरसेवक भी शामिल थे. अधिकांश मुस्लिम पार्षद कांग्रेस के थे.

लेकिन इस साल के चुनावी समीकरण बदल गए हैं. शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के रुख़ को व्यापक बनाने और कांग्रेस-एसीपी के साथ ‘महाविकास अघाड़ी’ बनाने के बाद मुंबई के मुसलमान मतदाताओं का साथ मांगा है.

उद्धव ठाकरे ने दशहरा मेले में गुजरात की बिलकिस बानो मामले का भी जिक्र किया. अब कहा जा रहा है कि प्रकाश अंबेडकर से गठबंधन के बाद शिवसेना को मुस्लिम और दलित वोटों का फ़ायदा मिल सकता है.

इस पृष्ठभूमि की दूसरी ओर, बीजेपी भी मुंबई नगर निगम जीतने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है और पार्टी भी मुस्लिम मतों को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.

भले ही बीजेपी पूरे देश में आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति करती रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम समुदाय के विभिन्न वर्गों तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश भी लगातार कर रही है.

ऐसे में सवाल यही है कि क्या बीएमसी चुनाव को ध्यान में रखकर ही प्रधानमंत्री मोदी ‘अरबी अकादमी’ का उद्घाटन करने पहुंचेंगे?

राजनीतिक मामलों की जानकार और वरिष्ठ पत्रकार मृणालिनी नानिवडेकर कहती हैं, “बड़े नेता जो करते हैं, उसके पीछे हमेशा राजनीति होती है.”

बीते कई सालों से मृणालिनी ने बीजेपी की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखा है. वो बताती हैं, “दाऊदी बोहरा समुदाय के मुसलमानों के बीच लगभग दस प्रतिशत वोट हैं. देशभर के मुसलमान, जो 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रति कुछ नरम रुख़ रखते थे, अब उनका कहीं और ध्रुवीकरण हो रहा है. मुंबई नगर निगम के चुनाव में बीजपी को रोकने के लिए मुस्लिम मतदाता हिंदू समर्थक शिवसेना की ओर रुख़ कर सकते हैं. इसलिए, मोदी के इस कार्यक्रम में पहुंचने से यह संदेश जाएगा कि बीजेपी मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं हैं.”

दाऊदी बोहरा समुदाय से मोदी और बीजेपी के रिश्ते

भले ही इस आयोजन में मोदी की उपस्थिति को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है कि लेकिन बीजेपी का दावा है कि मुस्लिम समुदाय के इस वर्ग के साथ उनके संबंध बहुत पुराने हैं. गुजरात में, खासकर दक्षिण गुजरात में, बोहरा समुदाय बड़ी संख्या में है इसलिए बीजेपी कह रही है कि मोदी के इस कार्यक्रम में कोई राजनीति नहीं है.

महाराष्ट्र प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष माधव भंडारी कहते हैं, “नरेंद्र मोदी का दाऊदी बोहरा समुदाय से पुराना रिश्ता है. 2012 में, सूरत में बोहरा समुदाय की एक बड़ी विश्वस्तरीय बैठक हुई थी. तब मुझे वहां जाने का अवसर मिला. मैं वहां सैय्यदना सैफ़ुद्दीन से मिला. उन्होंने हमें विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया और मंच से हमें बताया कि हमारे साथ उनके पुराने संबंध हैं. और हम उनका हर तरह से सहयोग करना चाहते हैं.”

उस वक्त राज्य में चुनावी आचार संहिता होने के कारण मोदी उस कार्यक्रम में नहीं गए थे. लेकिन इनका रिश्ता पुराना है.

भंडारी के मुताबिक़, बोहरा समुदाय के इस कार्यक्रम का नगर निगम चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने बताया, “मुंबई में दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम लगभग आठ महीने पहले निर्धारित किया गया था. तब चुनाव की कोई बात नहीं थी इसलिए अब चुनाव से इसे जोड़ कर देखना सिर्फ़ एक संयोग है. अगर इससे कोई राजनीतिक लाभ है तो वह हमें मिलेगा. हमें इससे इनकार क्यों होगा, लेकिन कार्यक्रम का उद्देश्य यह नहीं था.”

हालांकि मृणालिनी नानिवडेकर का कहना है कि बीजेपी और अन्य पार्टियों ने भी आने वाले चुनावों को देखते हुए ही समुदायों को जोड़ने के कार्यक्रम शुरू किए हैं.

वो कहती हैं, “इस हफ़्ते मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी भिंडी बाज़ार में बोहरा मुसलमानों के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. उनमें कांग्रेस के अमीन पटेल भी शामिल हुए थे. यह दर्शाता है कि यह चुनावी रणनीति है.”

मृणालिनी नानिवडेकर के मुताबिक़ दाऊदी बोहरा समुदाय हमेशा किसी एक पार्टी के क़रीब रही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता.

नानिवडेकर कहती हैं, “दाऊदी बोहरा एक समृद्ध समुदाय है. इस समुदाय की स्थिति अशिक्षित मुसलमानों से अलग है. जब इस समुदाय ने 2005 में मुंबई में ‘सैफ़ी’ अस्पताल शुरू किया, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे.”

“यही नहीं, लगभग सात दशक पहले जब सूरत में उनका कोई बड़ा कार्यक्रम था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी वहां गए थे. तो ऐसा नहीं है कि ये मुस्लिम वर्ग बीजेपी का हितैषी है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का उनके कार्यक्रम में शामिल होना महत्वपूर्ण है.”

लेकिन एक बात तय है कि मुंबई पर इस बोहरा समुदाय का प्रभाव है और यह आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में देखा गया है. इसलिए इस समाज के इतिहास और मुंबई से इसके संबंधों को समझना ज़रूरी होगा.

बोहरा समुदाय का मुंबई से जुड़ाव

बोहरा गुजराती शब्द ‘बहौराउ’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है व्यापार. यह समुदाय मुस्ताली मत का हिस्सा है जो धर्म प्रचारकों के ज़रिए ग्यारहवीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से भारत पहुंचा.

1539 के बाद जब भारत में इस समुदाय का विस्तार हो गया तो ये लोग अपना मुख्यालय यमन से भारत के सिद्धपुर (गुजरात) में ले आए. 1588 में 30वें सैय्यदना की मृत्यु के बाद उनके वंशज दाऊद बिन क़ुतुब शाह और सुलेमान शाह के बीच सैय्यदना की पदवी और गद्दी पर दावेदारी को लेकर मतभेद हो गया, जिससे दो मत क़ायम हो गए और दोनों के अनुयायियों में भी विभाजन हो गया.

दाऊद बिन क़ुतुब शाह को मानने वाले दाऊदी बोहरा और सुलेमान को मानने वाले सुलेमानी बोहरा कहलाने लगे. सुलेमानी बोहरा संख्या में दाऊदी बोहरों के मुक़ाबले बेहद कम थे और उनके प्रमुख धर्मगुरू ने कुछ समय बाद अपना मुख्यालय यमन में बनाया और दाऊदी बोहरों के धर्मगुरू का मुख्यालय मुंबई में स्थापित किया.

बताया जाता है कि दाऊदी बोहरों के 46वें धर्मगुरू के समय इस समुदाय में भी विभाजन हुआ तथा दो अन्य शाखाएं क़ायम हो गईं. इस समय भारत में बोहरा समुदाय की कुल आबादी लगभग 20 लाख है, जिसमें 12 लाख से ज्यादा दाऊदी बोहरा हैं, तथा शेष आठ लाख में अन्य शाखाओं के बोहरा शामिल हैं.

दो मतों में विभाजित होने के बावजूद दाऊदी और सुलेमानी बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में कोई ख़ास बुनियादी फ़र्क़ नहीं है. दोनों समुदाय सूफियों और मज़ारों पर ख़ास आस्था रखते हैं.

सुलेमानी जिन्हें सुन्नी बोहरा भी कहा जाता हैं, हनफी इस्लामिक क़ानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय हैं और दाईम-उल-इस्लाम के नियमों का मानता है.

यह समुदाय अपनी प्राचीन परंपराओं से जुड़ा समुदाय है, जिनमें सिर्फ़ अपने ही समुदाय में शादी करना भी शामिल है. कई हिंदू प्रथाओं को भी इनके सामाजिक व्यवहार में देखा जा सकता है.

भारत में दाऊदी बोहरा मुख्य रूप से गुजरात में सूरत, अहमदाबाद, वडोदरा, जामनगर, राजकोट, नवसारी, दाहोद, गोधरा, महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे, नागपुर औरंगाबाद, राजस्थान में उदयपुर, भीलवाड़ा, मध्य प्रदेश में इंदौर, बुरहानपुर, उज्जैन, शाजापुर के अलावा कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरू और हैदराबाद में भी बसे हैं.

विरासत और परंपरा

दाऊदी बोहरा समुदाय की विरासत फ़ातिमी इमामों से जुड़ी हुई है. उन्हें पैगंबर हज़रत मोहम्मद (570-632) का वंशज माना जाता है.

यह समुदाय मुख्य रूप से इमामों को मानता है. दाऊदी बोहराओं के आख़िरी और 21वें इमाम तैय्यब अबुल क़ासिम थे. उनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हुई. उन्हें दाई-अल-मुतलक़ सैय्यदना कहा जाता है.

दाई-अल-मुतलक़ का अर्थ है सर्वोच्च सत्ता. एक सर्वोच्च सत्ता जिसके कामकाज में कोई आंतरिक या बाहरी शक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकती. उनके आदेश को कोई चुनौती नहीं दे सकता.

दाऊदी बोहरा समुदाय वैसे तो आधुनिक है लेकिन धार्मिक तौर पर पुरातनपंथी ही है. ये अपने धर्मगुरु के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं. वे उनके हर आदेश का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं.

असगर अली इंजीनियर और मुंबई में सुधारवादी आंदोलन

असगर अली इंजीनियर ने दाऊदी बोहरा समाज में सुधार के लिए प्रयास किया. दाऊदी बोहरा समुदाय में सुधारवादी आंदोलन की शुरुआत 1960 के दशक में नौमान अली कॉन्ट्रैक्टर ने की थी.

उनके समय में इस आंदोलन को अधिक गति नहीं मिली. लेकिन 1980 में उनकी मृत्यु के बाद डॉ. असगर अली इंजीनियर ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया. फिर आंदोलन का विस्तार हुआ. सुधार आंदोलन के लिए उन्होंने मुंबई में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया और किताबें लिखीं.

इंजीनियर ने उन सभी देशों का दौरा किया जहां दाऊदी बोहरा रहते थे. इतना ही नहीं, उन्होंने इस आंदोलन के साथ भारत के प्रमुख बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पूर्व न्यायाधीशों, लेखकों और कलाकारों को भी जोड़ा.

2013 में मुंबई में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु के बाद ही मुंबई में सुधारवादी आंदोलन थम गया.

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