DMT : तमिलनाडु : (05 अप्रैल 2023) : –
जब वो पैदा हुई थीं तो हर कोई कहता था कि ज्यादा दिन नहीं बचेंगी. मौत को मात देते हुए बड़ी हुईं तो स्कूल ने उन्हें दाखिला देने से इनकार कर दिया.
बड़ी मुश्किल से एक सरकारी स्कूल में एडमिशन मिला तो वो वहां, न तो तेज़ी से लिख पाती थीं और न ही खेल में अपने क्लास के दोस्तों के साथ शामिल हो पाती थीं.
ऐसी तमाम बाधाओं को पार कर वो अब कॉमर्स में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं और प्रोफेशनल सिंगर बनने के लिए ट्रेनिंग भी ले रही हैं.
मुश्किलों को मात देती रहीं 23 साल की भार्गवी मदुरै (तमिलनाडु) की ‘कलोडियन बेबी’ हैं.
कलोडियन बेबी
ये एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें किसी व्यक्ति की त्वचा लगातार छिल-छिल कर गिरती रहती है. एक लाख शिशुओं में से किसी एक को ये बीमारी हो सकती है.
मेडिकल लिटरेचर के मुताबिक इस तरह के लक्षणों के साथ पैदा शिशु कुछ हफ्तों के ज्यादा जिंदा नहीं रहते. जो जिंदा बच जाते हैं वो ‘इक्थियोसिस’ के शिकार हो जाते हैं.
ये ऐसी स्थिति होती है जब व्यक्ति की त्वचा बिल्कुल सूख जाती है. यानी त्वचा बिल्कुल पपड़ी जैसी दिखने लगती है.
इस बीमारी ने भार्गवी की हड्डियों पर भी बुरी तरह असर डाला. उनके लिए लिखना या तेज़ चलना भी मुश्किल था. अगर वो थोड़ी देर के लिए भी धूप में रहतीं तो उनकी त्वचा से खून निकलने लगता.
भार्गवी बताती हैं कि परिवार वालों ने उनका हर तरह से इलाज कराने की कोशिश की. उन्हें होम्योपैथी, आयुर्वेद और सिद्ध उपचार पद्धति की दवाएं दी गईं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
वो कहती हैं, “सभी डॉक्टरों ने कहा कि इसका कोई इलाज नहीं है. ये एक जेनेटिक स्थिति है. डॉक्टरों का कहना था कि वो मेरे चेहरे को प्लास्टिक सर्जरी से ठीक कर सकते हैं. लेकिन मेरे परिवार के पास इतना पैसा नहीं था.”
भार्गवी का शरीर लोगों के मजाक का विषय बन गया. उनके लिए ये ‘सामाजिक कलंक’ जैसा था. इसने उन्हें हीन भावना में डुबो दिया. लोग उनसे बात नहीं करते थे. यहां तक कि उन्होंने उनके घर आना बंद कर दिया था.
लेकिन भार्गवी और उनके परिवार के पास इस ‘अपमान’ से बचने का कोई रास्ता नहीं था. उन्हें इसके साथ ही जीना था. इस परेशानी से जूझती भार्गवी पढ़ाई की ओर मुड़ीं. अध्ययन में रम जाने के बाद उन्हें राहत महसूस होने लगी.
भार्गवी के माता-पिता उनके दाखिले के लिए कई स्कूलों में गए. लेकिन हर जगह से उन्हें न सुनने को मिली. कुछ स्कूलों ने तो ये तक कहा कि उन्होंने भार्गवी को दाखिला दिया तो ये बीमारी दूसरे बच्चों में भी फैल सकती है.
लेकिन भार्गवी के माता-पिता ने हार नहीं मानी. स्कूल दर स्कूल भटकने के बाद आखिरकार भार्गवी को मदुरै के एक सरकारी स्कूल की पहली क्लास में दाखिला मिला.
भार्गवी बताती हैं कि अपनी इस हालत की वजह से वो तेजी से लिख या चल नहीं पाती. लेकिन शिक्षकों ने इसका पूरा ध्यान रखा और उन पर दबाव नहीं डाला.
भार्गवी कहती हैं, “शिक्षकों के ध्यान रखने की वजह से मुझे पढ़ाई में आनंद आने लगा. गर्मियों में मुझे बहुत पसीना आता था. लेकिन आम लोगों की तरह मैं पसीना पोछ नहीं सकती थी. उस समय कुछ शिक्षक तो मुझे पंखा झलते थे.”
भार्गवी ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा स्क्राइब ( स्टूडेंट की ओर से परीक्षा में लिखने वाला सहयोगी) की मदद से दी. इसके बाद उन्होंने मदुरै के एक कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया. अब वो इसी कॉलेज से कॉर्मस में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं.
संगीत से बेइंतहा प्यार
पढ़ाई की तरह भार्गवी संगीत में भी रमी रहती हैं. बचपन से ही वो गायिका बनना चाहती थीं. स्कूल में उन्होंने संगीत प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और पुरस्कार भी जीता. वो प्रोफेशनल सिंगर बनना चाहती हैं.
भार्गवी कहती हैं, “मैं प्रोफेशनल सिंगर बनना चाहती थी. इसलिए मैंने प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेने की ठानी. मैंने अपने माता-पिता से अपनी दिल की बात कही. इसके बाद उन्होंने मुझे म्यूजिक क्लास में दाखिला दिला दिया. अब मैं पिछले तीन साल से संगीत की बारीकियां सीख रही हूं.”
भार्गवी रेडियो जॉकी भी बनना चाहती हैं. उनका कहना है कि वो यूट्यूब वीडियो देख कर रेडियो जॉकी की तरह बोलना सीखती हैं.
उन्होंने बताया, “मैंने कुछ रेडियो स्टेशनों से भी संपर्क किया है. लेकिन अभी तक किसी का जवाब नहीं आया है.”
भार्गवी की मां कहती हैं, “मैं तो ज्यादा नहीं पढ़ सकी लेकिन चाहती हूं कि मेरी बेटी पढ़े.”
भार्गवी की मां और दादी उन्हें हर संभव तरीके से मदद करती हैं.
भार्गवी स्कूल जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल नहीं कर सकती लिहाजा उनकी मां ने टू-व्हीलर चलाना सीखा ताकि उन्हें स्कूल ले जा सकें और फिर छुट्टी होने पर घर ला सकें.
अब वो अपनी बेटी को कॉलेज छोड़ती हैं फिर घर ले आती हैं.
मां की ख्वाहिश
भार्गवी की मां कहती हैं, “मैंने सिर्फ दसवीं तक पढ़ाई की है. मैं आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन जब मेरी बच्ची पैदा हुई तो सबने कहा कि इस तरह की बच्ची को बड़ा करना आसान नहीं होगा.”
भार्गवी की मां भुवनेश्वरी कहती हैं, “मैं अपने पति के साथ मिलकर उसके लिए हर वो चीज करती हूं जो उसकी जिंदगी आसान बना सके. हम चाहते हैं कि वो और पढ़े.”
भुवनेश्वरी कहती हैं, “पहले लोग कहते थे कि हम इस तरह के बच्चों को बड़ा करने की कोशिश कर अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं. लेकिन अब हम देख रहे हैं हमारी बच्ची ने कितनी ऊंचाई हासिल कर ली है.”
दूसरी ओर भार्गवी का लक्ष्य साफ है. वो किसी भी हाल में प्रोफेशनल सिंगर बनना चाहती हैं.