DMT : करनाल : (10 अप्रैल 2023) : – हर वर्ग की खबरों को प्रमुखता से उठाने के लिए सक्रिय हमारा दैनिक पर्यावरण और परिंदों से संबंधित मुद्दों को भी शिद्दत से प्रकाशित करता रहता है। बात भले कैथल के सात मंजिला पक्षी विहार की हो या फिर सफीदों में पंछियों के अनूठे रैन बसेरे की, पर्यावरण संबंधी ऐसे सभी मुद्दों को हम प्रमुखता से उठाते रहते हैं। आशा है कि अब किसानों की मित्र और शुभ शगुन की गैरैया से संबंधित सुकून देने वाली आज की इस खबर से भी हम सबको प्रेरणा मिल सकेगी।
नन्ही चिड़िया पूछ रही है कहां घोंसला मेरा, काट दिए हैं जंगल सारे कहां लगाऊं डेरा! बढ़ते शहरीकरण के बीच कम होती गौरैया की यह पुकार करनाल में सुनी गयी है। यहां श्यामनगर में चिड़ियों के एक हजार से अधिक आशियाने हैं। कभी महज 3 चिड़ियां थी, जबकि अब करीब 3 हजार हो चुकी हैं। इतनी बड़ी संख्या में चिड़ियाें का बसेरा बने इस मोहल्ले को लोगों ने ‘गौरैया एन्क्लेव’ नाम दे दिया है।
यह सब हुआ है पशु-पक्षी प्रेमी संस्था सत्या फाउंडेशन के सदस्यों के प्रयासों की बदौलत। इससे जुड़े नवीन वर्मा व संदीप नैन ने बताया कि गौरैया संरक्षण पर पिछले 6 साल से काम कर रही संस्था की पहल रंग लाई है। संस्था अब तक 1200 से अधिक लकड़ी के घोंसले बनवा कर अनेक जगह लगवा चुकी है। उन्होंने बताया कि श्यामनगर में 5 वर्ष पहले कुछ ‘आशियाने’ बनाकर गौरैया को आमंत्रित करने का प्रयास किया गया था। पुराने डिब्बों से 5 घोंसले बनाकर लगाए गये। थोड़े ही दिनों में सभी घोंसलों में चीं-चीं की आवाज सुनाई देने लगी। इसके बाद लकड़ी के करीब 950 घोंसले घरों के आगे लगाए गये और यहां चिड़ियों की संख्या बढ़ती गयी।
दाना-पानी का भी इंतजाम
संदीप नैन ने बताया कि घोंसलों के अलावा बर्ड-फीडर भी लगाए गये। उनमें एक-एक महीने का मिक्स दाना रखा जाता है। उन्होंने कहा कि अब तो लोग घोंसले मांगते हैं, ताकि उनके आंगन में भी चिड़ियों की आवाज गूंजे, लेकिन संसाधनों की कमी होती है। मांग पूरी नहीं कर पाते, इसे देखते हुए बहुत से लोग अपने आप ही अलग-अलग तरीकों से घोंसले बना लेते हैं।
कीटनाशकों, कंक्रीट-जंगल के कारण हो रही गायब : संदीप ने बताया कि कीटनाशक दवाइयों के बढ़ते छिड़काव से गौरैया का जीवन खत्म हो रहा है। शहरों का बेतरतीब विकास, घटते वृक्ष व हरियाली और बढ़ते कंक्रीट-जंगल के बीच गौरैया गायब हो रही है।