नवजोत सिंह सिद्धू: आज हो सकते हैं रिहा, जानिए क्रिकेट से लेकर राजनीति तक का सफर

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DMT : पटियाला  : (01 अप्रैल 2023) : –

  • नवजोत सिंह सिद्धू ने 1981-82 में फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया था.
  • वहीं भारतीय टेस्ट टीम के लिए वो वेस्ट इंडीज के ख़िलाफ़ 1983-84 में अहमदाबाद टेस्ट में पहली बार खेले.
  • 19 साल के क्रिकेट करियर में उन्होंने 51 टेस्ट और 136 एक दिवसीय क्रिकेट मैच खेले.
  • साल 1999 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया.
  • सिद्धू 2004 में बीजेपी में शामिल हुए.
  • 2004 में अमृतसर से बीजेपी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता.
  • 2014 तक सिद्धू चुनाव जीतते रहे.
  • 2016 में पंजाब से राज्यसभा के लिए नामित हुए.
  • 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए. इसी साल अमृतसर ईस्ट से विधानसभा चुनाव जीते.
  • 2018 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया. ये बड़ा विवाद बना.
  • 2021 आते-आते पंजाब के तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर से उनका मतभेद रहने लगा.
  • कैप्टन और सिद्धू के झगड़े में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया गया.
  • इस झगड़े में 2022 का पंजाब चुनाव कांग्रेस हार गई.
  • 19 मई 2022 को सिद्धू के ख़िलाफ़ रोडरेज के लिए एक साल की सजा सुनाई गई.

रोडरेज के एक मामले में जेल में बंद कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू शनिवार (1 अप्रैल 2023) को रिहा हो सकते हैं.

सिद्धू के ट्विटर हैंडल से ये जानकारी दी गई है.

सिद्धू को पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के रोड रेज केस में एक साल की सजा सुनाई थी. इसके बाद सिद्धू ने सरेंडर कर दिया था. वो पिछले दस महीने से जेल में बंद हैं.

सिद्धू की रिहाई को लेकर उनके वकील एपीएस वर्मा का कहना है कि पंजाब जेल नियमों के मुताबिक अच्छा व्यवहार करने वाले कैदी को सजा में छूट दी जा सकती है.

सिद्धू पर 27 दिसंबर,1988 को पटियाला में पार्किंग को लेकर हुए विवाद के बाद 65 वर्षीय गुरनाम सिंह पर हमला करने का आरोप है. गुरनाम सिंह की हमले में लगी चोटों से मौत हो गई थी.

निचली अदालत ने नवजोत सिद्धू को बरी कर दिया था, पीड़ित के परिवार वालों ने फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने नवजोत सिद्धू को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई थी.

सिद्धू ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2018 को हाईकोर्ट के इस फ़ैसले को पलट दिया था. लेकिन पीड़ित के परिजनों ने मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी.

इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई 2022 को सिद्धू को एक साल की सज़ा सुनाई थी. साथ ही एक हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया गया था.

क्रिकेटर सिद्धू

जिस समय सिद्धू के ख़िलाफ़ यह केस दर्ज हुआ उस समय सिद्धू का क्रिकेट करियर चमका हुआ था.

साल 1999 में सिद्धू ने बतौर क्रिकेटर क्रिकेट को अलविदा कह दिया था.

1983 से 1999 तक भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने क्रिकेट करियर में 51 टेस्ट मैच और 136 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं. वह साल 1987 में वर्ल्ड कप टीम का भी हिस्सा थे.

ईएसपीएन क्रिकइन्फो के मुताबिक, 1996-97 में सिद्धू ने वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ टेस्ट मैच में शानदार दोहरा शतक जड़ा था.

सिद्धू ने अपने करियर का आखिरी टेस्ट मैच 2-6 जनवरी 1999 को न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ खेला था, जिसमें उन्होंने सिर्फ़ एक रन बनाया था.

उन्होंने साल 1999 में ही बतौर क्रिकेटर क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. हालाँकि, वह एक कमेंटेटर के रूप में खेल से जुड़े रहे और काफ़ी सफल कमेंटटर साबित हुए. बाद में वो कई टीवी शो में भी दिखते रहे.

सिद्धू काफी मुखर राजनेता हैं और अपनी आक्रामक राजनीतिक अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं. राजनीति में भी उन्होंने आक्रामक बल्लेबाज वाला तेवर अपना रखा है.

पंजाब में वर्षों तक बीजेपी की राजनीति करने वाले सिद्धू बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे लेकिन वहां भी दिग्गज कांग्रेस नेता और सीएम रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनकी नहीं बनी. सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई को पंजाब में कांग्रेस की हार की अहम वजह माना गया.

क्रिकेट हो या राजनीति दोनों के ‘कप्तानों’ से नवजोत सिंह सिद्धू का विवाद पुराना है. 2004 में क्रिकेट के बाद राजनीति की राह चुनने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने पहले बीजेपी का दामन था और सांसद बने. वो कांग्रेस के भी विधायक रह चुके हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू बेहद मुखर हैं और खुल कर अपना विरोध जताने के लिए जाते हैं. चाहे वो भारतीय टीम में शामिल न करने का मामला हो या फिर टीम के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन के विरोध का.

पंजाब मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी के सवाल पर उन्होंने पूर्व कांग्रेस नेता और राज्य के सीएम कैप्टन अमरिंदर से खुल कर टक्कर ली.

बीजेपी सांसद रहते हुए सिद्धू ने अकाली दल-बीजेपी गठबंधन सरकार के दौरान बादल परिवार का भी खुल कर विरोध किया था.

1988 की घटना का खमियाजा 2006 में भुगतना पड़ा

1988 में, नवजोत सिंह सिद्धू पर पटियाला निवासी गुरनाम सिंह को गाड़ी चलाते समय और कार पार्क करते समय कथित रूप से पीटने का आरोप लगा था. गुरनाम सिंह की अस्पताल में मौत हो गई.

2006 में, नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मामले में दोषी पाया और तीन साल की जेल की सजा सुनाई. 2004 में, नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर से भाजपा के लोकसभा सांसद बने. सिद्धू को इस मामले की वजह से सांसद पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में सिद्धू की ओर से यह केस लड़ा और सिद्धू को जमानत मिल गई.

अमृतसर से उपचुनाव जीतने के बाद सिद्धू दोबारा सांसद बने. सिद्धू और जेटली के रिश्ते और भी गहरे हो गए.

2014 में जब बीजेपी ने अमृतसर से सिद्धू की जगह अरुण जेटली को टिकट दिया तो सिद्धू ने ऐलान कर दिया कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे.

सिद्धू के राजनीतिक करियर पर 1988 के इस केस का साया हमेशा से ही छाया रहा है.

गठबंधन के दौरान अकाली दल का विरोध और इस्तीफ़ा

नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू दोनों ही अलग-अलग समय पर बादल सरकार के ख़िलाफ़ रहे हैं.

2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार थी और पंजाब में अकाली बीजेपी गठबंधन की सरकार थी.

सिद्धू ने अकाली दल को भ्रष्टाचार, केबल माफ़िया, खनन माफ़िया, ईशनिंदा समेत कई मुद्दों पर घेरा.

सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू इस सरकार में मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) थीं. अप्रैल 2016 में सिद्धू को राज्यसभा सांसद बनाया गया लेकिन उन्होंने तीन महीने बाद इस्तीफ़ा दे दिया.

‘पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत’ का समर्थन करने का दावा करने वाले सिद्धू ने बीजेपी से इस्तीफ़ा दे दिया और एक बयान में कहा कि राज्यसभा सदस्य बनाए जाने के बाद उन्हें पंजाब से दूर रहने को कहा गया. सिद्धू ने कहा, ‘मेरे लिए पंजाब से बड़ा कोई धर्म नहीं है.

नवजोत कौर सिद्धू ने सीपीएस के पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया था और सिद्धू दंपति के आम आदमी पार्टी में शामिल होने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में तेज़ हो गई. कई लोग उन्हें आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर देखने लगे.

लेकिन 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ हफ़्ते पहले कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के दखल के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया.

इससे पहले उन्होंने ‘आवाज़-ए-पंजाब’ फोरम की भी घोषणा की थी जिसमें बैंस बंधु और परगट सिंह शामिल थे.

कैप्टन से टकराव और कैबिनेट से इस्तीफ़ा

2017 में, कांग्रेस ने बहुमत के साथ पंजाब में सरकार बनाई और सिद्धू कैबिनेट मंत्री बने

कुछ महीने बाद सिद्धू ने अमृतसर के मेयर के चुनाव पर नाराज़गी जताई थी.

खबरों के मुताबिक मेयर के चुनाव के लिए सिद्धू को अमृतसर नगर निगम की आम सभा की बैठक में नहीं बुलाया गया था. यह विभाग सिद्धू के मंत्रालय के अधीन था.

केबल नेटवर्क पर मनोरंजन कर और रेत खनन के लिए कॉरपोरेशन बनाने के सिद्धू के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया.

अप्रैल 2018 के दौरान गुरनाम सिंह से जुड़ा 1988 का रोडरेज मामला फिर कोर्ट पहुंचा और पंजाब सरकार ने सिद्धू के ख़िलाफ़ हलफ़नामा दाखिल किया.

2019 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कैबिनेट में फेरबदल किया और सिद्धू के विभाग को बिजली में बदल दिया, तो मतभेद बढ़ गए और उन्होंने बिना विभाग लिए कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.

पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गले लगाना

क्रिकेट के बाद से सिद्धू के दोस्त इमरान ख़ान (पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री) ने 2018 में पाकिस्तान में चुनाव जीता और सिद्धू को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू से पाकिस्तान जाने पर पुनर्विचार करने को कहा.

सिद्धू ने वाघा-अटारी सीमा के माध्यम से पाकिस्तान का भी दौरा किया और करतारपुर कॉरिडोर खोलने की मांग की.

नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलने की तस्वीरें की भी काफ़ी आलोचना हुई.

इस गले मिलने के बाद सिद्धू और विवादों में घिर गए और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इसकी खुलकर निंदा की.

सिद्धू ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ‘दोस्ती बस’ में लाहौर भी गए थे और नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ़ को आमंत्रित किया था.

जब सिद्धू ने कहा‘राहुल गांधी मेरे कैप्टन हैं’

तेलंगाना में कांग्रेस के लिए प्रचार करते हुए सिद्धू ने कहा था, ”मेरे कैप्टन राहुल गांधी हैं. उन्होंने मुझे हर जगह भेजा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह सेना के कैप्टन रहे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह के कैप्टन भी राहुल गांधी हैं.”

सिद्धू के इस बयान के बाद पंजाब के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में काफ़ी विरोध हुआ और कैबिनेट मंत्री राजिंदर बाजवा ने उनसे इस्तीफ़ा देने को कहा.

2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सिद्धू को ज़्यादा नहीं देखा गया था. प्रियंका गांधी वाड्रा की अपील के बाद, सिद्धू ने बठिंडा में अमरिंदर सिंह राजा के लिए प्रचार किया था.

इस चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू ईशनिंदा के मामले में सरकार से सवाल करने और बिना नाम लिए ’75:25 शेयर’ पर बयान देने के कारण फिर से विवादों में आ गए. पंजाब कांग्रेस के कई नेताओं ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की.

पंजाब में कांग्रेस ने आठ सीटें जीतीं, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कैबिनेट से सिद्धू सहित कई मंत्रियों को हटा दिया.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच मतभेद बढ़ते गए और उन्होंने जून 2019 में कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया.

यह इस्तीफ़ा भी कांग्रेस अध्यक्ष के नाम से लिखा गया था और बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह को भेजा गया था.

जीतेगा पंजाब’ यूट्यूब चैनल बनाया

कैबिनेट से इस्तीफ़ा देने के बाद सिद्धू को अपने विधानसभा क्षेत्र से ज़्यादा दूर नहीं देखा गया.

फरवरी 2020 में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी से मिलने के बाद उन्होंने मार्च में अपना यूट्यूब चैनल ‘जीतेगा पंजाब’ शुरू किया.

इस चैनल के माध्यम से वह लोगों के साथ पंजाब के ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार साझा करते हैं और वर्तमान में चैनल के एक लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं.

सिद्धू कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली में कैप्टन अमरिंदर सिंह के धरने में शामिल हुए.

उन्हें राहुल गांधी के पंजाब दौरे के दौरान ट्रैक्टर रैली में भी देखा गया था.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सिद्धू को अपने घर लंच पर बुलाया, जिसके बाद दूरियां कम होती नजर आईं.

नवजोत सिंह सिद्धू ने फिर ईशनिंदा समेत कई मुद्दों पर सरकार को घेरा. इस पर विचार करने के लिए आलाकमान ने एक पैनल भी बनाया.

सिद्धू कुछ लोगों को पसंद तो कुछ को नापंसद

पाकिस्तान जाने के बाद भले ही नवजोत सिंह सिद्धू आलोचना के केंद्र बने, लेकिन पंजाब का एक तबका उन्हें करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने की अहम कड़ी मानता है.

2018 में, उनके बेटे करण सिद्धू को पंजाब सरकार द्वारा सहायक महाधिवक्ता बनाया गया था. नवजोत कौर सिद्धू को वेयरहाउस कॉर्पोरेशन चेयरपर्सन भी नियुक्त किया गया है. राजनीतिक विरोध के बाद उन्होंने ये पद नहीं लिए.

पंजाब की राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू एक ऐसा चेहरा हैं जिसे कोई पसंद या नापसंद भले ही करे लेकिन नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.

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