नाटू-नाटू: ऑस्कर जीतने वाले पहले भारतीय गाने की पूरी कहानी

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (13 मार्च 2023) : –

तेलुगू फ़िल्म ‘आरआरआर’ के मशहूर गाने ‘नाटू-नाटू’ को 95वें अकादमी अवार्ड्स में ‘ओरिजिल सॉन्ग’ की श्रेणी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला है.

एकेडमी ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में यह जानकारी दी गई है. इससे पहले ‘नाटू-नाटू’ ने बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग का गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड जीता था.

ये वो फ़िल्मी गाना है जिस पर आजकल बच्चे और बड़े एक साथ झूम रहे हैं. ये गाना सिनेमाप्रेमियों के दिलोदिमाग़ पर छा गया है.

‘नाटू-नाटू’ (हिंदी में नाचो-नाचो) गाने को एनटीआर-रामचरण के डांस और एस.एस. राजामौली के ट्रीटमेंट की वजह से एक नई उड़ान मिली है.

इस गाने को पर्दे पर उतारने से पहले फ़िल्म के डायरेक्टर एस.एस. राजामौली, म्यूज़िक डायरेक्टर किरावानी और गीतकार चंद्रबोस के दिमाग़ में क्या चल रहा था?

ओरिजिनल सॉन्ग कैटेगरी का मतलब क्या

‘नाटू-नाटू’ गाना कहां से आया, ये जानने से पहले ये जान लें कि ‘ओरिजिनल सॉन्ग’ कैटेगरी का मतलब क्या है?

किसी फ़िल्म के लिए दुनिया की किसी भी भाषा में इस्तेमाल किया जा रहा गाना अगर पहले से मौजूद किसी गाने की नकल नहीं है तो वो ‘ओरिजिनल’ है.

इसका मतलब ये भी है कि उस गाने में पहले के किसी गाने, ट्यून, कंटेंट या अर्थ का असर न रहे.

कहां से आया ये गाना?

‘नाटू-नाटू’ जैसा कि शब्दों से ज़ाहिर है एक ‘जन गीत’ है.

एस.एस. राजामौली के दिमाग़ में ये बात थी कि ‘एनटीआर जूनियर और राम चरण दोनों तेलुगू फ़िल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन डांसर हैं. अपने-अपने तरीके से अब तक दोनों कई बार अपनी काबिलियत साबित कर चुके हैं. अगर दोनों को एक साथ डांस करते हुए दिखाया जाए तो शायद अच्छा रहेगा. उन्हें साथ-साथ परफ़ॉर्म करते देखना दर्शकों के आनंद और एहसास को एक नए लेवल पर ले जा सकता है.’

राजामौली ने अपना ये आइडिया फ़िल्म के संगीतकार किरावानी से साझा किया.

किरावानी ने इस बारे में बीबीसी से बातचीत करते हुए बताया,” राजामौली ने मुझसे कहा, बड़े भाई, मैं कोई ऐसा गाना चाहता हूं जिसमें दोनों डांसर एक-दूसरे से होड़ करते हुए डांस करें”

फिर गाना लिखने के लिए किरावानी ने मौजूदा दौर के तेलुगू फ़िल्म गीतकारों में से अपने पसंदीदा गीतकार चंद्रबोस को चुना.

किरावानी ने बोस से कहा, ”गाना ऐसा होना चाहिए कि दोनों लीड एक्टर्स इस पर अपने डांस से एक जोश और उत्साह पैदा कर दें. आप जैसा चाहें लिख सकते हैं. लेकिन सिर्फ़ ये ध्यान में रखियेगा कि फ़िल्म 1920 में होने वाली घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है. इसलिए ये देख लीजिएगा कि शब्द उसी दौर के हों.”

गाना कैसे तैयार हुआ?

बीबीसी हिंदी

राजामौली, किरावानी और चंद्रबोस ने इस गाने पर 17 जनवरी 2020 से काम करना शुरू किया था. काम हैदराबाद में एल्यूमीनियम फ़ैक्ट्री में ‘आरआरआर’ के दफ़्तर से शुरू हुआ था.

चंद्रबोस जैसे ही अपनी कार में बैठे उनके दिमाग़ में राजामौली और किरावानी के निर्देश घूमने लगे. कार एल्यूमीनियम फ़ैक्ट्री से जुबिली हिल्स की ओर दौड़ी चली जा रही थी. उनके हाथ स्टीयरिंग पर थे, लेकिन दिमाग़ गाने पर लगा था. तभी उनके दिमाग़ में गाने की हुक लाइन ‘नाटू-नाटू’ कौंधी.

इस तरह की कोई धुन अभी तक नहीं बनी थी. उन्होंने इसे ‘6-8 ताकिता, ताकिता तीसरा गति’ में बुनना शुरू किया. आखिर इस गति का क्या मतलब था?

चंद्र बोस बीबीसी से कहते हैं, ”चूंकि किरावानी का ये पसंदीदा ढांचा था इसलिए उन्होंने इसका सहारा लेना सही समझा.”

25 साल से भी पहले किरावानी ने चंद्रबोस को सलाह दी थी, ”कोई भी गाना जिससे लोगों में जोश भरना हो उसे इस गति में बुनो.”

नाटू-नाटू ऐसा गाना है, जिसमें शीर्ष अभिनेता अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन करते हैं. इसलिए चंद्रबोस ने इसे इस गति में बनाया. दो दिनों में उन्होंने गाने के तीन मुखड़े बनाए और फिर किरावानी से मिले.

उन्होंने अपना पसंदीदा छंद आखिर में सुनाया. इसके पहले दो और छंद सुनाए गए.

चंद्रबोस के इन पसंदीदा मुखड़ों को किरावानी ने भी पसंद किया और इस तरह ये गाना फ़ाइनल हो गया.

गाना कुछ यूं बना:-

पोलमगट्टू धुम्मूलोना पोटलागिट्टा धूकिनट्टू

पोलेरम्मा जातारालो पोथाराजू ओगिनट्टू

किरुसेप्पुलू एसिकोनि कारासामू सेसिनट्टू

मारिसेट्टू निदालोना कुरागुम्पू कोडिनट्टू

नब्बे फ़ीसदी गाना दो दिन में पूरा हो गया.

हालांकि यहां-वहां बदलाव और एडिटिंग के बाद इस गाने को फ़ाइनल करने में 19 महीने लग गए.

चंद्रबोस और किरावानी इस दौरान इस पूरे गाने को लेकर सलाह-मशविरा करते रहे.

सामाजिक और आर्थिक हालातों की तस्वीर

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फ़िल्म में भीम (जूनियर एनटीआर) का चरित्र तेलंगाना का है वहीं राम ( राम चरण) का चरित्र आंध्र प्रदेश का है. लिहाज़ा गाने में दोनों इलाकों में 1920 के दशक की भाषाओं के शब्दों का सहारा लिया गया है.

मसलन ‘मिरापा टोक्कु’ (पिसी लाल मिर्च) ‘दुमुकुल्लदतम’ (ऊपर-नीचे कूदना). ये शब्द तेलंगाना में काफ़ी आम हैं.

उस दौरान तेलंगाना में मुख्य भोजन ज्वार हुआ करता था. इसे पिसी लाल मिर्च के साथ खाया जाता था.

चंद्रबोस की नज़र में गाना वो है जहां शब्द विलीन हो जाएं और फिर उस पर विजुअल्स का क़ब्ज़ा हो जाए. ये गाना इस पैमाने पर बिल्कुल फ़िट बैठता है.

तेलुगू में कई लोककथाएं हैं. इनके चरित्रों का भी गाने में सहारा लिया गया है.

इस गाने को कालभैरव और राहुल सिपलीगुंज ने गाया है.

यूक्रेन में फ़िल्मांकन

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‘नाटू-नाटू’ गाने ने एनटीआर और राम चरण दोनों की नृत्य क्षमताओं की परीक्षा ले ही. कोरियाग्राफ़र प्रेम रक्षित ने इस गाने के लिए लगभग 95 स्टेप कंपोज़ किए.

सिग्नेचर स्टेप के लिए उन्होंने इसके 30 वर्जन तैयार किए. ख़ास कर उस दृश्य में जिसमें एनटीआर और रामचरण हाथ पकड़ कर डांस कर रहे हैं.

इस फ़िल्म की यूनिट ने एक इंटरव्यू में बताया था कि इस ख़ास स्टेप के लिए 18 टेक लेने पड़े थे. हालांकि यूनिट का कहना था कि ए़डिटिंग के दौरान दूसरे टेक को फ़ाइनल किया गया था.

गाना यूक्रेन के राष्ट्रपति भवन के बैकग्राउंड में फ़िल्माया गया था.

यहां पर फ़िल्म की शूटिंग के दौरान राजामौली और किरावानी ने गाने के आखिरी छंद में बदलाव का फ़ैसला किया.

चंद्रबोस उस वक्त फ़िल्म ‘पुष्पा’ के सेट पर व्यस्त थे.

लिहाज़ा उनसे कॉन्फ्रेंस कॉल पर बात हुई. राजामौली और किरावानी ने उनसे आख़िरी छंद में बदलाव करने को कहा.

आख़िर गाने को पूरा होने में 19 महीने का समय लग गया. आख़िरी छंद 15 मिनट में बदल दिया गया.

फिर बदला हुआ गाना रिकॉर्ड और शूट हुआ.

नाटू-नाटू गाना न सिर्फ़ एनटीआर और रामचरण की नृत्य प्रतिभा को दिखाता है बल्कि वो भीम और राम की दोस्ती के कई पहलुओं को भी सामने लाता है. यह भीम के लिए राम के बलिदान की कहानी कहता है. यह बताता है कि कैसे तेलुगू लोगों ने अंग्रेज़ों का आदेश मानने से इनकार कर दिया. कैसे भीम ने उस महिला का दिल जीता, जिससे वो प्रेम करता था.

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