DMT : इस्लामाबाद : (16 अप्रैल 2023) : –
पाकिस्तान की संसद में शुक्रवार को सुरक्षा स्थिति पर ब्रीफ़िंग के दौरान आर्मी चीफ़ जनरल आसिफ़ मुनीर ने कहा कि हमें “नए और पुराने पाकिस्तान की बहस को छोड़कर हमारे पाकिस्तान की बात करनी चाहिए.”
ध्यान रहे कि संसद का ‘इन कैमरा’ सेशन राष्ट्रीय असेंबली के स्पीकर की ओर से बुलाया गया था जिसमें सुरक्षा अधिकारियों ने मंत्रियों समेत असेंबली के सदस्यों को ब्रीफ़िंग दी.
इस मौक़े पर सेना प्रमुख के हवाले से एक बयान सामने आया जिसके अनुसार उन्होंने कहा कि जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि लक्ष्य निर्धारित करें. “पाकिस्तानी सेना देश की तरक़्क़ी और कामयाबी के सफ़र में उनका पूरा साथ देगी.”
यहां यह बात स्पष्ट रहे कि सेना प्रमुख का यह बयान आईएसपीआर की ओर से सामने नहीं आया जिसका कारण बैठक का ‘इन कैमरा’ आयोजन बताया जाता है. आईएसपीआर पाकिस्तानी सेना की जनसंपर्क शाखा है.
लेकिन पाकिस्तान में पाई जाने वाली अस्थिर राजनीतिक परिस्थिति और सरकार व सुप्रीम कोर्ट के बीच पंजाब में चुनाव की तारीख़ और अदालती सुधारों को लेकर जारी कश्मकश के दौरान आर्मी चीफ़ के इस बयान को बहुत महत्व दिया जा रहा है और हर वर्ग व राजनीतिक दल अपने हिसाब से इसका अर्थ ढूंढते नज़र आ रहे हैं.
अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि सेना प्रमुख ने स्पष्ट शब्द इस्तेमाल नहीं किए लेकिन इस संदेश से कुछ लोगों को यही लगता है कि सरकार और अदालत के बीच होने वाली मोर्चाबंदी में सेना प्रमुख ने एक पोजीशन ली है.
हमने कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से बात करके यह समझने की कोशिश की है कि सेना प्रमुख के इस बयान में क्या कोई संदेश था और वर्तमान स्थितियों के मद्देनज़र इस बयान का क्या महत्व है. लेकिन इससे पहले एक नज़र डालते हैं तहरीक-ए-इंसाफ़ की प्रतिक्रिया पर.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान ख़ान कई बार यह कह चुके हैं कि सेना के नेतृत्व से उनका कोई संपर्क नहीं. ऐसे में जब ‘पीटीआई’ के अध्यक्ष इमरान ख़ान के ख़ास समझे जाने वाले हस्सान नियाज़ी ने आर्मी चीफ़ के भाषण के बाद सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘क्या हमारा पाकिस्तान में वह लोग भी शामिल हैं जो इमरान खान से प्यार करते हैं’ तो यह वाक्य तहरीक-ए-इंसाफ़ का सेना के नेतृत्व से सीधा सवाल लगा.
उन्होंने यह सवाल भी किया कि क्या “हमारे पाकिस्तान में हमारे पाकिस्तानियों की इज़्ज़त सुरक्षित है? क्या आलोचना की गुंजाईश होगी?”
लेकिन पीटीआई नेता और पूर्व मंत्री फ़व्वाद चौधरी ने सेना प्रमुख के बयान को सकारात्मक बताते हुए कहा, “आर्मी चीफ़ के संविधान और जनता के प्रतिनिधि के सम्मानित स्थान के बारे में विचार सही और स्वागत योग्य हैं, उन्होंने पहले भाषण में भी बड़े मामलों पर बातचीत और आम सहमति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था. ज़रूरत इस बात की है कि जनता को सर्वोपरि मानकर संविधान के तहत चुनाव का समर्थन किया जाए और जनता के फ़ैसलों का सम्मान किया जाए.”
दूसरी और शीरीं मज़ारी कहती हैं कि निस्संदेह यह हमारा पाकिस्तान है, इसलिए हम इसके लिए लड़ रहे हैं.
वह कहती हैं कि हम सबके अलग-अलग वर्ज़न हैं. उनके अनुसार, “पीडीएम यानी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट पुराना पाकिस्तान चाहती है जहां भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का राज था. इस्टैब्लिशमेंट पारंपरिक पाकिस्तान चाहती है जहां उन्होंने जनता व जनतंत्र को धोखे में रखते हुए शासन किया जबकि पीटीआई संविधान, क़ानून के राज और हक़ीक़ी (वास्तविक) आज़ादी वाला और सामाजिक कल्याण की व्यवस्था के तहत परवान चढ़ने वाला नया पाकिस्तान चाहती है.”
‘पीटीआई की जगह सरकार के फ़ैसलों के साथ खड़े नज़र आते हैं’
तहरीक-ए-इंसाफ़ का पक्ष अपनी जगह लेकिन बीबीसी से बात करते हुए पत्रकार व विश्लेषक सोहैल वड़ाइच का कहना था कि आर्मी चीफ़ का संदेश बहुत स्पष्ट है कि “वह सरकार और संसद के साथ खड़े हैं, और स्पष्ट है कि अगर सरकार व अदालत के विवाद और दूसरी परिस्थितियों को मद्देनज़र रखा जाए तो वह सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों या पीटीआई की तुलना में सरकार और संसद के फ़ैसलों के साथ ज़्यादा खड़े नज़र आते हैं.”
उनका यह भी कहना था कि सैद्धांतिक तौर पर तो सेना समय की सरकार के साथ ही होती है और सेना का सरकार के साथ न होना असामान्य बात होती है.
वह इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं कि अतीत में “मुस्लिम लीग नवाज़ की पिछली सरकार में सेना उनके साथ नहीं थी और उस समय सेना पीटीआई का समर्थन कर रही थी लेकिन इस समय सरकार और सेना वैसे ही इकट्ठे हैं जैसे पीटीआई की सरकार के समय में थे.”
सोहैल वड़ाइच कहते हैं कि फ़ौज कहती तो है कि वह न्यूट्रल है लेकिन ज़ाहिर है इस समय वह पीटीआई की तुलना में सरकार के अधिक क़रीब है और सरकार व संसद के साथ खड़ी है और (सरकार के) ये फ़ैसले इमरान ख़ान और सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ हैं.
याद रहे कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने बतौर आर्मी चीफ़ अपने आखिरी भाषण में दावा किया था कि पिछले साल फ़रवरी में सैन्य नेतृत्व ने बड़े विचार विमर्श के बाद सामूहिक तौर पर फ़ैसला किया है कि इस्टैब्लिशमेंट भविष्य के राजनीतिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं करेगी. उन्होंने यह भी कहा था, “मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि हम (फ़ौज) इस पर सख़्ती से टिके हैं और टिके रहेंगे.”
विश्लेषक ज़ैग़म ख़ान भी इस राय से सहमति जताते हैं.
वह कहते हैं कि आर्मी चीफ़ के बयान के दो हिस्से हैं, पहले (हमें नए और पुराने पाकिस्तान की बहस को छोड़कर हमारे पाकिस्तान की बात करनी चाहिए) में उन्होंने विवाद के हल की बात की है.
वह कहते हैं, “पुराने पाकिस्तान का मतलब है पुरानी राजनीतिक पार्टियां, और पीटीआई अपने आपको नया पाकिस्तान कहती है और यही पाकिस्तान में राजनीतिक विवाद की वजह बन गई है जिसने देश की संस्थाओं को भी एक दूसरे के सामने ला खड़ा किया है.”
ज़ैग़म ख़ान कहते हैं कि आर्मी चीफ़ ने इस हिस्से में कॉमन ग्राउंड (साझा आधार) और मिलकर भविष्य के लिए इकट्ठे होने की बात की है और इसमें उन्होंने किसी का समर्थन नहीं किया है.
लेकिन वह यह भी कहते हैं के दूसरे हिस्से (जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि लक्ष्य तय करें, पाकिस्तानी सेना देश के विकास और उसकी सफलता की यात्रा में उनका भरपूर साथ देगी) का मतलब यह लिया जा रहा है कि वह संसद के साथ हैं और न्यायपालिका के साथ नहीं.
ज़ैग़म ख़ान कहते हैं, “आर्मी चीफ़ को यह बयान देने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? इसी से साफ़ होता है कि हमारे देश का स्ट्रक्चर कितना अस्थिर हो गया है.”
फ़ौज के न्यूट्रल होने के संबंध में वह कहते हैं, “शायद इस्टैब्लिशमेंट सरकार को अधिक पसंद न करती हो और वह पीडीएम का उतना साथ न दे जितना उसने इमरान ख़ान का दिया मगर इस्टैब्लिशमेंट और पीटीआई के संबंध बहुत ख़राब हो गए हैं और इस बात के स्पष्ट इशारे हैं कि सेना सरकार के साथ खड़ी है और इस समय देश की संस्थाओं की आपस में लड़ाई है जिसमें फ़ौज न्यूट्रल नहीं रह सकती.”
‘यह किसी के समर्थन या विरोध में नहीं है’
पत्रकार व टीकाकार नुसरत जावेद इस राय से सहमत नहीं है कि सेना प्रमुख ने किसी के समर्थन का संकेत दिया है.
उनका मानना है कि आर्मी चीफ़ ने केवल इतना कहा है कि फ़ौज अब दूसरों की लड़ाइयां नहीं लड़ेगी, उन्होंने एक बार फिर से अपना यह दावा दोहराया है कि राजनीतिक मामलों में सेना निरपेक्ष है और यह बयान किसी के समर्थन या विरोध में नहीं है.
बीबीसी से बात करते हुए उनका कहना था, “हमारे इतिहास के संदर्भ में देखा जाए तो सेना प्रमुख ने बहुत अच्छी और सकारात्मक बात की है जिसका वर्तमान राजनीतिक स्थिति में कौन फ़ायदा उठाएगा या उठा सकता है, वह एक अलग बहस है.”
नुसरत जावेद कहते हैं कि बहुत से लोगों का मानना है कि जैसे आर्मी चीफ़ वर्तमान सरकार के समर्थन में डट कर खड़े हो गए हैं, मैं ऐसा नहीं समझता.
उनका कहना है कि आर्मी चीफ़ ने तो जनप्रतिनिधियों की बात की है.
जब उनसे सवाल किया गया कि इस समय संसद में बैठे निर्वाचित प्रतिनिधियों में पीटीआई चेयरमैन इमरान ख़ान तो शामिल नहीं हैं तो नुसरत जावेद का कहना था कि आर्मी चीफ़ को शायद एहतियात के तौर पर यह बात भी कह देनी चाहिए थी… और जब बात इमरान ख़ान जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय नेता की हो.”
‘सेना प्रमुख की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता‘
बीबीसी से बात करते हुए पत्रकार हामिद मीर का कहना है कि किसी आर्मी चीफ़ ने संसद में खड़े होकर पहली बार बयान नहीं दिया लेकिन आर्मी चीफ़ की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
“अगर वह संसद में खड़े होकर यह कह रहे हैं कि जनता द्वारा निर्वाचित सदन जो भी फ़ैसला करेगा हम उस पर अमल करेंगे, इससे यही लगता है कि वह संसद के साथ खड़े हैं और अगर इस समय संसद और सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई है, तो आर्मी चीफ़ ने कह दिया है कि हम जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के सदन के साथ हैं और इसमें छोटी सी अपोजीशन भी शामिल है.”
ध्यान रहे कि पाकिस्तान एक संसदीय लोकतंत्र है और देश का संविधान सेना को राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देता लेकिन क़ानूनी सीमा के उलट फ़ौज का इतिहास मार्शल लॉ, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप और परोक्ष राजनीतिक जोड़-तोड़ के उदाहरणों से भरा हुआ है.
सेना के निरपेक्ष रहने के बारे में हामिद मीर का कहना है कि यह कहना कि फ़ौज न्यूट्रल है, एक ड्रामा होगा. “फ़ौज तो कभी न्यूट्रल नहीं होती, इमरान ख़ान के दौर में भी न्यूट्रल नहीं थी, अब भी न्यूट्रल नहीं है और आजकल फ़ौज पीडीएम के साथ है.”