DMT : पाकिस्तान : (13 फ़रवरी 2023) : –
तुर्की में छह फ़रवरी को भयावह भूकंप आया था और सात फ़रवरी को पाकिस्तान की सूचना-प्रसारण मंत्री मरियम औरंगज़ेब ने प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के तुर्की जाने की घोषणा की थी.
मरियम औरंगज़ेब ने अपने ट्वीट में कहा था कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ आठ फ़रवरी को तुर्की दौरे पर रवाना होंगे और वह भूकंप में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना जताएंगे.
लेकिन शहबाज़ शरीफ़ को जिस दिन जाना था, उसी दिन पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि प्रधानमंत्री का तुर्की दौरा स्थगित कर दिया गया है.
जब मरियम औरंगज़ेब ने शहबाज़ शरीफ़ के तुर्की दौरे की घोषणा की थी तभी लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे थे कि जब तुर्की राहत-बचाव में लगा है, ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ का दौरा किसी भी लिहाज से मुनासिब नहीं है.
जब दौरे को रद्द किया गया तब भी इसका कारण राहत-बचाव कार्य ही बताया गया. ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ सरकार पर वहाँ के पूर्व डिप्लोमैट ही सवाल उठाने लगे हैं. कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात कही गई कि तुर्की ने ही पाकिस्तान से शहबाज़ शरीफ़ का दौरा रद्द करने के लिए कहा था. सोशल मीडिया पर इसे पाकिस्तान के अपमान से भी जोड़ा गया.
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित का कहना है कि जिस तरह से तुर्की का दौरा प्लान किया गया और जिस तरह से रद्द करना पड़ा वह पाकिस्तान के लिए शर्मनाक है.
बासित ने कहा, ”यह तुर्की दौरे का सही मौक़ा नहीं था. लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा पहली बार नहीं किया है. तुर्की में पाकिस्तान के राजदूत रहे करामतुल्लाह गोरी ने एक बार बताया था कि 1999 में तुर्की में इसी तरह का भूकंप आया था. तब प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ थे. तब नवाज़ शरीफ़ ने भी तुर्की जाकर संवेदना व्यक्त करने का फ़ैसला किया था. सरताज़ अज़ीज़ तब विदेश मंत्री थे और वह नवाज़ शरीफ़ को तुर्की जाने से मना कर रहे थे. उनका कहना था कि यह सही वक़्त नहीं है.”
अब्दुल बासित कहते हैं, ”नवाज़ शरीफ़ तब सरताज़ अज़ीज़ की बात सुन नहीं रहे थे. तब सरताज़ अज़ीज़ ने तुर्की में पाकिस्तान के तत्कालीन राजदूत करामतुल्लाह गोरी से कहा था कि वह नवाज़ शरीफ़ को समझाएं. तब करामतुल्लाह गोरी ने नवाज़ शरीफ़ को बताया था कि यह आने का सही वक़्त नहीं है. तब नवाज़ शरीफ़ को बात माननी पड़ी थी.”
बासित कहते हैं, ”इस बार भी ऐसा ही हुआ. अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तुर्की के सामने आने का प्रस्ताव रखेंगे तो वह सीधा तो मना नहीं करेगा, लेकिन इन बातों को हमें पहले सोचना चाहिए. तुर्की हमारा दोस्त मुल्क है और हम उसे भी असहज करने में लग जाते हैं. पाकिस्तान में भयावह बाढ़ आई और बाहर से कोई राष्ट्राध्यक्ष नहीं आया. अब तो कोई पाकिस्तान की बाढ़ के बारे में बात भी नहीं करेगा क्योंकि पूरा ध्यान तुर्की और सीरिया के भूकंप पर चला गया है.”
इस वाक़ये से जुड़ा करामतुल्लाह गोरी का एक वीडियो क्लिप वायरल हो रहा है.
नवाज़ शरीफ़ ने भी ऐसा ही किया था
वीडियो में करामतुल्लाह गोरी कह रहे हैं, ”मैंने नवाज़ शरीफ़ साहब को फ़ोन किया कि यहाँ क़यामत आई हुई है, आप अभी यहाँ आकर क्या करेंगे? मैंने उनसे कहा कि अभी मत आइए क्योंकि यहाँ हालात पहले ही ठीक नहीं हैं. भूकंप के 10 दिन बाद जब नवाज़ शरीफ़ आए तो उन्होंने तबाही वाले इलाक़ों का दौरा किया. शाम में उन्होंने कहा कि चलिए कबाब खाते हैं.”
”इस्तांबुल में मियां साहब एक पसंदीदा जगह पर कबाब खाने जाते थे. वो यूरोप आते-जाते वहाँ कबाब खाने के लिए रुक जाते थे. मियां साहब ने उस कबाब वाले को अपने ख़र्च पर पाकिस्तान भी बुलाया था. जब उन्होंने कबाब खाने के लिए कहा तो मैंने मना कर दिया कि आप जाएंगे तो फिर पूरा प्रोटोकॉल फ़ॉलो करना होगा. आप यहां संवेदना जताने आए हैं न कि कबाब खाने. यह तुर्कों को अच्छा नहीं लगेगा.”
अब्दुल बासित ने कहा कि इसी तरह से यूएई के राष्ट्रपति के पाकिस्तान आने की घोषणा कर दी गई थी जबकि कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूएई से लौटे थे. पिछले महीने 30 जनवरी को यूएई ने ख़राब मौसम का हवाला देकर यह दौरा रद्द कर दिया था.
अब्दुल बासित का कहना है, ”यूएई के राष्ट्रपति के दौरे की योजना भी बहुत ख़राब तरीक़े से बनाई गई थी. जब शहबाज़ शरीफ़ यूएई जाकर मिल ही चुके थे तो उनके पाकिस्तान आने पर और क्या अलग से बात कर लेते?
यूएई के राष्ट्रपति ने भी सोचा होगा कि वह पाकिस्तान जाकर क्या कर लेंगे. घरेलू राजनीति को साधने के लिए आप दावत देते चल रहे हैं. मैं तो इन लोगों को देखकर परेशान हो जाता हूँ कि ये किस तरह से विदेश नीति चला रहे हैं. पाकिस्तान का विदेश मंत्री अमेरिका जाता है तो वहाँ के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन मिलते तक नहीं हैं.”
पाकिस्तान भी तुर्की में राहत सामग्री भेज रहा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर तुर्की में राहत सामग्री के कई खेप भेजने की तस्वीरें पोस्ट की हैं. शहबाज़ शरीफ़ ने बताया है कि कोई गुमनाम पाकिस्तानी ने अमेरिका स्थित दूतावास में तुर्की के भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए तीन करोड़ डॉलर की मदद दी है.
ऑपरेशन दोस्त
तुर्की में भूकंप के बाद भारत की ओर से राहत-बचाव के कई खेप भेजे गए हैं. भारत ने तुर्की में राहत बचाव कार्य को ‘ऑपरेशन दोस्त’ नाम दिया है. भारत स्थित तुर्की के दूतावास ने इस मदद के लिए काफ़ी सराहना की है. तुर्की में भारत की मदद को लेकर पाकिस्तान में भी ख़ूब चर्चा हो रही है.
पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पढ़ाने वाले डॉक्टर क़मर चीमा ने अपने वीडियो ब्लॉग में कहा है, ”भारत व्यापक पैमाने पर तुर्की में मदद भेज रहा है. भारत की कई टीमें वहाँ काम कर रही हैं. भारतीय सेना तुर्की में मोबाइल हॉस्पिटल भी चला रही है.
पहली बात तो यह है कि मानवीय मदद कोई कहीं भी भेज सकता है. लेकिन मुझे यह भारतीय प्रधानमंत्री की बहुत ही स्मार्ट रणनीति लग रही है. दूसरी बात यह भी है कि इस तरह की आपदा मौक़ा दे जाती है. तुर्की अब तक कश्मीर के मामले में भारत को असहज करता रहा है.”
चीमा कहते हैं, ”भारत मुस्लिम वर्ल्ड को आकर्षित करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रहा है. भारत मुस्लिम दुनिया के क़रीब आ रहा है. पाकिस्तान ने जो गैप बनाया था कि मुस्लिम वर्ल्ड पाकिस्तान के साथ ही रहेंगे, वह अब ख़त्म हो चुका है.
हालात ये हो गए हैं कि पाकिस्तान मुस्लिम वर्ल्ड को जो कश्मीर नाम का चूरन बेचता था, वो बंद हो गया. मुस्लिम वर्ल्ड को अब कश्मीर में कोई दिलचस्पी नहीं है. मुस्लिम वर्ल्ड भी अब भारत की क्षमता से फ़ायदा उठाना चाहता है.”
कहा जा रहा है कि तुर्की में भारत की मदद डिप्लोमैटिक रूप से गेमचेंजर साबित हो सकती है. कश्मीर पर तुर्की के बयान से भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध तनाव भरे रहे हैं.
मानवीय मदद
भारत के पास अभी जी-20 की अध्यक्षता है. कहा जा रहा है कि भारत तुर्की से असहज रिश्ते के बावजूद मदद कर यह बताने की कोशिश कर रहा है कि प्राकृतिक आपदा में मानवीय मदद अहम है न कि द्विपक्षीय रिश्ते के आईने में हर चीज़ को देखा जाना. भारत पहले भी दुनिया भर के देशों में आपदा के दौरान मदद पहुँचाता रहा है.
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने मध्य-पूर्व और यूरोप के कई देशों का दौरा किया, लेकिन कभी तुर्की नहीं गए. 2019 में मोदी तुर्की जाने वाले थे, लेकिन कश्मीर पर तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन के बयान के कारण यह दौरा टल गया था.
2019 में अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने की आलोचना की थी.
वहीं अर्दोआन का आख़िरी भारत दौरा साल 2017 में 30 अप्रैल को हुआ था. इस दौरे में भी कश्मीर पर उनकी एक टिप्पणी को लेकर विवाद हुआ था.
अर्दोआन ने भारत दौरे से पहले कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान में मध्यस्थता की वकालत की थी. भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा मानता है और अर्दोआन की यह पेशकश भारत के आधिकारिक रुख़ से अलग थी. 2017 से पहले अर्दोआन 2008 में भारत तुर्की के प्रधानमंत्री के तौर पर आए थे.