पुतिन ने कैसे मौक़े का फ़ायदा उठा फ़्रांस को किया बेदख़ल

Hindi International

DMT : रूस  : (26 मई 2023) : –

2021 में जब कर्नल असिमी गोइता तख़्तापलट के साथ माली की सत्ता में आए तो उनके समर्थकों ने रूस का झंडा लहराया. एक साल बाद कैप्टन इब्राहिम ट्राओरे ने भी बुर्किनो फ़ासो में वही किया. उनके समर्थक क्या लहरा रहे थे? ये वास्तव में रूस का झंडा था.

सफ़ेद, नीले और लाल रंगों से बने इस झंडे ने मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में अपनी मौजूदगी बना ली है, और चाड या आइवरी कोस्ट के विरोध प्रदर्शनों में इसे देखा गया है.

रूस ने उस अफ़्रीका पर अपनी नज़रें जमा ली हैं और अपने भाड़े के सैनिकों के लिए एक उपयुक्त ज़मीन ढूंढ ली है, जहां पुरानी औपनिवेशिक शक्ति फ़्रांस के क़दम डगमगा रहे हैं.

येवगेनी प्रिगोझिन के नेतृत्व वाले भाड़े के सैनिकों के समूह वैगनर की मौजूदगी ख़ास तौर पर यूक्रेन के साथ युद्ध में रूस सैनिकों के साथ मानी जाती है लेकिन अब इसने माली और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में ताक़त के साथ अपने क़दम रखे हैं, बुर्किनो फ़ासो में भी मौजूद हैं और अब ये मोज़ाम्बिक या मेडाग्सकर जैसे देशों में भी किसी तरह की गतिविधि में लगे हैं.

हालांकि इसकी पहुंच केवल फ़्रेंच भाषी अफ़्रीकी देशों तक ही सीमित नहीं है. वैगनर समूह की गतिविधियां हाल के वर्षों में उत्तर में लीबिया लेकर दक्षिण अफ़्रीका तक बढ़ी हैं. इस क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक इन्होंने यहां की राजनीतिक अस्थिरता का फ़ायदा उठाया है और कुछ मौक़े पर ख़ुद ही लोगों उकसाने तक का काम भी किया है.

उनकी गतिविधियां अक्सर मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ होती हैं, जिसकी संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थानों ने निंदा की है.

“नई विश्व व्यवस्था के लिए प्रयोगशाला”

कार्नेगी एंडोमेंट फ़ोर इंटरनेशनल पीस में वरिष्ठ शोधकर्ता पॉल स्ट्रॉन्स्की बीबीसी मुंडो को बताते हैं,

रूस ऑल इन वन पैकेज के साथ आयाः ये सुरक्षा सेवा, राजनीतिक परामर्श, मीडिया और ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ अभियान और हथियारों की बिक्री जैसी पेशकश करता है.

इसके बदले में वैगनर के लिए इन अफ़्रीकी देशों के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों और राजनीतिक अधिकार जैसा फ़ायदे के दरवाज़े खुल जाते हैं.

हालांकि इसकी महत्वकांक्षाएं यहीं ख़त्म नहीं होती हैं.

अमेरिकी इंटेलिजेंस का मानना है कि रूस अफ़्रीका में पश्चिम विरोधी देशों का एक संगठन बनाना चाहता है और इसके लिए इसने यहां के कुछ देशों में सुरक्षा की कमी का फ़ायदा उठाते हुए जानबूझकर अस्थिरता को बढ़ावा देने का काम किया है.

ये वॉशिंगटन पोस्ट ने बताया है, जिसने ऑनलाइन लीक से मिले कुछ गोपनीय दस्तावेज़ों से ये जानकारी हासिल की है.

बीबीसी मुंडो ने रूस के विदेश मंत्री से इस पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया.

हाल ही में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कई अफ़्रीकी देशों के दौरे के बाद कहा, “अमेरिका, ब्रिटेन और ब्रुसेल्स के रूस विरोधी बातों के बावजूद, हम दुनिया के इस बड़े हिस्से के इन पड़ोसियों के साथ पहले से अच्छे संबंधों को और मजूबत बना रहे हैं.”

अटलांटिक महासागर से सोमालिया के प्रायद्वीप तक फ़ैले इस अर्ध-रेगिस्तानी इलाके के जानकार और रबात के अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर बीट्रीज़ मेसा कहते हैं, “शीत युद्ध के बाद से अफ़्रीकी क्षेत्र साहेल एक नई विश्व व्यवस्था के लिए एक प्रयोगशाला बना गया है.”

ये अफ़्रीका के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक है, जिसे कई जिहादी, अलगाववादी और हथियारबंद अपराधी समूहों ने तबाह कर रखा है और ये तख्तापलट, भ्रष्टाचार और कुशासन के चक्र में फंसा है.

औपनिवेशिक विरासत

1960 के दशक में मिली आज़ादी के बाद जिन सीमाओं और संस्थाओं को इन्होंने अपनाया उन पर शासन करना मुश्किल रहा है जिसने कई अलगाववादी समूह को जन्म देने और असंतोष बढ़ाने का काम किया है.

इन देशों की आज़ादी के बाद फ़्रांस ने इनके साथ अपने संबंधों और प्रभाव को बनाए रखना चाहा, जिसे फ़्रैंकोफ़ोनी कहते हैं, जो फ़्रेंच बोलने वाले उपनिवेशों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. उसने पारंपरिक रूप से ख़ुद को आर्थिक सहयोग और मानव संसाधन एजेंसियों के मुद्दों तक सीमित कर लिया और अपनी एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक उपस्थिति बनाए रखी.

हालांकि ये सब 2012 के अंत आते आते बदल गया.

उस साल इस्लामी समूह ने उत्तर माली को अपने नियंत्रण में ले लिया और बमाको सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय सेना की मदद मांगी ताकि वो इस क्षेत्र को दोबारा पा सके. फ़्रांस ने संकट की घड़ी में उनका साथ देते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के समर्थन से यहां ऑपरेशन सर्वल लॉन्च किया, जिसे साहेल में मिले व्यापक समर्थन से एक साल बाद 5,100 फ़्रांसीसी सैनिकों वाले ऑपरेशन बरखाने में तब्दील कर दिया गया.

हालांकि ये ऑपरेशन नाकाम रहा.

द आर्म्ड ग्रुप ऑफ़ साहेलः कॉन्फ़्लिक्ट ऐंड क्रिमिनल इकोनॉमी इन नॉर्थ माली’ के लेखक मेसा कहते हैं, “जिहादी समूहों के साथ लड़ाई के लिए फ़्रांस सशस्त्र समूह तुआरेग और अरब अलगाववादियों के एक समूह से जुड़ा.”

नतीजतन, माली के उत्तर में सचमुच का प्रदेश बन गया और अब हम देश के मध्य में भी एक प्रदेश बनने की ओर बढ़ रहे हैं. ये बमाको के समानांतर प्रदेश हैं, जिनकी वजह से माली, फ़्रांस की सहमति और समर्थन से, एक बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण गंवा चुका है. इतना ही नहीं, अब ये सशस्त्र समूह पहले से बड़े हो गए हैं और बंट भी गए हैं. अब इनकी संख्या 20 से अधिक हो चुकी है.

सेना की इस विफलता ने, लड़ाई की निर्ममता ने यहां शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाओं का बंटाधार कर दिया है जिसकी वजह से यहां लोगों के बीच बहुत असंतोष पैदा हुआ और 2020, 2021 में यहां तख़्तापलट भी हुआ.

स्ट्रॉन्सकी बताते हैं, “उन्होंने अगस्त 2022 में फ़्रांस की सेना को यहां से वापस लौटने पर मजबूर कर दिया.”

इसके बाद फ़्रांस ने अपनी सेना नाइजर भेजी, जहां उन्हें वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ोउम का समर्थन प्राप्त था लेकिन नाइजीरियाई आबादी का साथ नहीं था, जिसे डर था कि वहां भी माली जैसे हालात न पैदा हो जाएं.

और फिर हुई रूस की एंट्री…

इसी असंतोष के माहौल में रूस की एंट्री हुई जिसने अपने भाड़े के सैनिकों को यहां बहती गंगा में हाथ धोने के लिए उतारा.

मेसा कहते हैं, “रूस ने अफ़्रीका में सुरक्षा के नाम पर पुराने खिलाड़ी को हटाने का तरीका खोज लिया है.”

बमाको ने अपने सहयोगी को बदल लिया है और उम्मीद है कि रूस उसे वो स्थिरता दिलाएगा जो फ़्रांस नहीं दिला सका.

वैगनर समूह के सैनिक माली में एक साल से भी अधिक समय से काम कर रहे हैं. हालांकि देश के प्रशासन ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.

हालांकि, माली के विदेश मंत्री अब्दुल्ला दीप ने ये साफ़ किया कि, “रूस यहां माली के अनुरोध पर आया है और हमारी रणनीतिक ज़रूरतों पर प्रभावशाली तरीके से प्रतिक्रिया दे रहा है.”

यही सब बुर्किनो फ़ासो में भी दोहराया गया. वहां फ़्रांस की स्पेशल फ़ोर्स के 400 सैनिक बुर्किनो फ़ासो की सेना को इस्लामी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ने में मदद कर रहे थे.

लेकिन कई वर्षों की लड़ाई के बाद भी बुर्किनो फ़ासो की सरकार बमुश्किल 60 फ़ीसद ही अपने क्षेत्र पर नियंत्रण पा सकी है और लोगों के बीच फ़्रांस की सेना को लेकर बहुत अधिक असंतोष है जिसकी वजह से वहां की प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में फ़्रांस से अपने सैनिक वापस बुलाने को कहा है.

दूसरी तरफ़ बुर्किनो फ़ासो ने वहां वैगनर समूह की किसी भी प्रकार की उपस्थिति से इनकार किया है और कहा है कि रूस का सहयोग केवल ख़रीदे गए हथियारों को संभालने और सैनिकों को प्रशिक्षित करने तक सीमित है.

हालांकि अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का मानना है कि वैगनर समूह अपने भाड़े के सैनिकों को तैनात करने के लिए बुर्किनो फ़ासो की सरकार से बात कर रहा है.

वहीं घाना जैसे पड़ोसी का मानना है कि वैगनर समूह बुर्किनो फ़ासो की धरती पर पहले से मौजूद है.

वैगनर समूह पर चिंता ज़ाहिर

विभिन्न अफ़्रीकी, यूरोपीय और अमेरिकी सोर्स के मुताबिक़ वैगनर समूह के सैनिक चाड में भी मौजूद हो सकते हैं. चाड के मध्य अफ़्रीकी देश लीबिया और सूडान के साथ कहीं खुली सीमा है और यह देश साहेल के मध्य में एक अहम रणनीतिक उपस्थिति रखता है, यहां इसके भाड़े के सैनिक मौजूद हैं.

पॉल स्टॉन्सकी के मुताबिक़ वैगनर ने स्थानीय विद्रोही समूहों को आपरेशन के लिए मदद दी है जो इदरिस डेबी इत्नो की अंतरिम सरकार को अस्थिर करने या उसे उखाड़ फेंकने की कोशिश में लगे हैं.

कार्नेगी सेंटर के शोधकर्ता के मुताबिक़ इनकी मौजूदगी मध्य अफ़्रीकी देश में भी है, जहां से 2017 में फ़्रांस ने अपनी सेना बुला ली थी.

शोधकर्ता ये भी बताते हैं कि वैगनर समूह तख़्तापलट केबाद अपनी सेवाएं भी देते हैं. फ़्रांस के उलट वे ख़ुद को ऐसे पेश करते हैं जो वहां स्थिरता लाएगा लेकिन केवल राजधानी के बाहर एक भी विद्रोही होने का मतलब ये नहीं है कि देश के अन्य हिस्से में कोई समस्या ही नहीं है.

वैगनर सैनिकों की उपस्थिति के मायने मेसा जैसे विश्लेषकों के मुताबिक़, “पूरी मनमानी के साथ काम करना जो अक्सर गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों के साथ होती है.”

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने देश के विभिन्न हिस्सों में माली सेना और वैगनर के भाड़े के सैनिकों के किए गंभीर युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की है जिसमें डरावनी हत्याएं, सामूहिक क़ब्र, यातनाएं, बलात्कार, यौन हिंसा, लूटपाट इत्यादि जैसे अपराध शामिल हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने अपने एक बयान में कहा, “हम विशेष रूप से इस विश्वसनीय रिपोर्ट से चिंतित हैं कि मार्च 2022 के अंत में वैगनर समूह के सदस्य माने जाने वाले सैन्य कर्मियों के साथ माली सशस्त्र बल ने मोउरा में हिरासत में लिए गए कई सौ लोगों को मार डाला.”

मध्य अफ़्रीकी देश, लीबिया और सूडान जैसे अन्य देशों से भी दुर्व्यवहार की सूचनाएं मिली है जहां उनकी मौजूदगी है.

लीबिया में, वैगनर के भाड़े के सैनिकों की उपस्थित पहली बार 2019 में देखी गई, जहां त्रिपोली में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार के ख़िलाफ़ अपने हमले में विद्रोही जनरल ख़लीफ़ा हफ़्तार का समर्थन किया. 2021 में बीबीसी की एक जाँच ने देश में इस समूह के किए दुर्व्यवहारों को उजागर किया था.

सूडान में तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशर ने 2017 में रूस के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. उनमें से लाल सागर के पोर्ट सूडान में एक नौसैनिक अड्डे का निर्माण भी शामिल था. साथ ही सुरा एम इन्वेस्ट के साथ सोने के खनन पर भी सहमति बनी थी, जो अमेरिका के मुताबिक़ वैगनर ग्रुप की ही एक फ्रंट कंपनी है.

सीएनएन की जांच के अनुसार, यह सोना सूडानी कस्टम में रजिस्टर किए बग़ैर ही मध्य अफ़्रीकी देशों में ले जाए जाते हैं.

हालांकि सूडान इन भाड़े के सैनिकों की वहां उपस्थिति को नहीं मानता लेकिन स्थानीय मीडिया जैसे ‘द सूडान ट्रिब्यून’ के अनुसार, वैगनर के पास देश में लगभग 500 सैनिक हैं, जो मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम में, मध्य अफ़्रीकी देश की सीमा के पास तैनात हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट को मिली अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग की लीक रिपोर्ट के मुताबिक़ वैगनर समूह इरिट्रियाई सरकार के साथ भी समझौता करने की कोशिश में है ताकि वो वहां प्रशिक्षण और हथियार दे सकें और ज़िम्बाब्वे की सरकार से भी ये सूचना संचालन में सहयोग देने को लेकर बात कर रहा है.

येवगेनी प्रिगोझिन की अफ़्रीका में गतिविधियों में से ग़लत सूचनाएं अभियान भी शामिल है जो किसी तथाकथित ट्रोल फ़ार्म के साथ किए गए हैं, जैसे कि कोई इंटरनेट रिसर्च एजेंसी और ये इस महाद्वीप के सोशल नेटवर्क में, ख़ास कर फ़्रेंच बोलने वाले देशों में मौजूद है.

वैगनर की यहां कमाई कैसे होती है?

स्ट्रॉन्स्की कहते हैं, “इन्होंने फ़्रेंच विरोधी आवाज़ों को बुलंद करने में मदद की है और रूस का ये डिसइन्फॉर्मेसन अभियान इसलिए काम कर रहा है क्योंकि ये मौजूदा शिकायतों पर आधारित है.”

स्ट्रॉन्सकी कहते हैं कि “वैगनर समूह को उनकी सेवाओं के बदले एक मोटी रक़म मिलती है, जिससे उनका ख़ुद का खर्च चलता है. तो आप कह सकते हैं कि वैगनर समूह एक स्वयं वित्तपोषित मॉडल पर काम करते हैं.”

वहीं अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग के मुताबिक़ वैगनर समूह मध्य अफ़्रीकी देशों लीबिया और सूडान से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हैं

वहीं शोधकर्ता मेसा कहते हैं, “माली जो कपास, मैग्निशियम और सोना में धनी है, वहां वैगनर समूह अपने सैनिकों को बदले सोने की खान का दोहन करने के लिए अनुबंध कर रहे हैं.”

लेकिन रूस की अफ़्रीकी देशों में रुचि और बढ़ सकती है.

जैसा कि स्ट्रॉन्सकी बताते हैं, “वो एक बड़ी शक्ति के रूप में अपनी गिनती चाहते हैं. वो मध्य अफ़्रीकी देशों में अपने सैनिकों की मौजूदगी चाहते हैं, वो सूडान में होना चाहते हैं ताकि ये पता कर सकें कि सोमालिया प्रायद्वीप और फ़ारस की खाड़ी में क्या चल रहा है. और यूरोप और नेटो पर नज़र रखने के लिए वो उत्तरी अफ़्रीका में अपनी उपस्थिति चाहते हैं.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *