DMT : बंदरबन : (27 फ़रवरी 2023) : –
बांग्लादेश के बंदरबन से पलायन करने वाले पांच सौ से भी ज़्यादा लोगों ने भारत के मिज़ोरम में शरण ली है. उनका कहना है कि बांग्लादेश की सेना ने कूकी चिन नेशनल आर्मी के ख़िलाफ़ जो अभियान शुरू किया है उससे बचने के लिए वह भाग कर भारत आए हैं.
हालांकि बांग्लादेश पुलिस का कहना है कि वे लोग देश से भागे नहीं हैं बल्कि सुरक्षा के लिहाज़ से सीमा पार चले गए हैं.
मिज़ोरम के एक मंत्री ने बीबीसी को बताया है कि शरण मांगने वाले लोग बीते साल नवंबर से ही भारत आने लगे थे.
शरण मांगने वाले लोगों में ज़्यादातर बम जनजाति के लोग हैं. उनके साथ टंगटंगिया जनजाति के कुछ लोग भी हैं.
बम जनजाति के लोग ईसाई हैं. इन बांग्लादेशी नागरिकों में महिलाएं भी शामिल हैं. उन्होंने दक्षिण मिज़ोरम के लॉन्गतलाई ज़िले के पांच गावों में शरण ली है.
मिज़ोरम सरकार और स्थानीय ताक़तवर ईसाई संगठन यंग मिज़ो एसोसिएशन (वाईएमए) ने इन लोगों के रहने और खाने का इंतज़ाम किया है.
तुइचंग इलाके के यंग मिज़ो एसोसिएशन के उपाध्यक्ष लालथनपुइया बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, “हमारे इलाके में बांग्लादेश के कुल 132 परिवारों के 548 लोगों ने शरण ली है. हम उनको खाना दे रहे हैं. लेकिन उनको पका-पकाया भोजन नहीं दिया जा रहा है.”
“हम खाद्यान्न और दूसरे ज़रूरी सामान दे देते हैं. वह लोग ख़ुद खाना पका लेते हैं. उनको कपड़े और दवाएं भी दी जा रही हैं. कइयों के लिए छोटे-छोटे घर बना दिए गए हैं.”
लॉन्गतलाई ज़िले के तुइचंग इलाके में पर्व-3 गांव में ही ऐसे सबसे ज़्यादा लोग रह रहे हैं. वाईएमए और मिज़ोरम सरकार नियमित रूप से इन शरणार्थियों की गिनती करती है.
अंतिम गिनती के मुताबिक़, उस शिविर में 216 लोग रह रहे हैं. उनमें से कुछ लोगों ने बांस के घर बना लिए हैं तो कुछ बड़े हॉल में रह रहे हैं.
उनको घर बनाने का सामान भी स्थानीय मिज़ो लोगों ने ही मुहैया कराया है.
बांग्लादेश सेना का अभियान
उस शिविर में रहने वाले बइलियान थांग्बम बंदरबन के रूमा थाना इलाके के तहत थिंगदलते पाड़ा में रहते थे.
उन्होंने फ़ोन पर बताया, “बांग्लादेश की सेना हमारे गांव में हमले कर रही है. वहां नियमित रूप से फ़ायरिंग हो रही है और बम फोड़े जा रहे हैं. हमारे घर के सामने ही बम फटा था. सेना गांव से 14 लोगों को पकड़ कर ले गई थी. हमलोग डर के मारे जंगल के रास्ते भाग आए.”
थांग्बम के गांव में सेना ने बीते साल 15 नवंबर को अभियान चलाया था. उसके बाद वह लोग अगले दिन ही गांव छोड़ कर भाग आए थे.
वह बताते हैं, “हम बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं के साथ तीन दिनों तक जंगल के रास्ते पैदल चलते रहे. भोजन और पानी की कमी से एक पास्टर (ईसाई पादरी) की रास्ते में ही मौत हो गई.”
बंदरबन के रूमाना पाड़ा के वाशिंदा मंगलियांग थांग्को ने भी उसी शिविर में शरण ली है. वह भी अपने परिवार के साथ तीन दिनों तक पैदल चलने के बाद मिज़ोरम पहुंचे थे.
वह बताते हैं, “रास्ता नहीं पहचानने की वजह से हम ग़लती से म्यांमार में प्रवेश कर गए थे. वहां दो दिन रहने के बाद भारत आए. पहले हमें एक बड़े हाल में कई लोगों के साथ रहना पड़ा.”
“उसके बाद वाईएमए और राज्य सरकार ने घर बनाने के लिए ज़रूरी वस्तुएं मुहैया कराईं. उसी से कुछ लोगों ने घर बनाया है. हम नहीं जानते कि कब अपने घर लौट सकेंगे. गांव से भागते समय कुछ भी साथ नहीं ला सके थे.”
कूकी चिन नेशनल आर्मी पर कार्रवाई
मंगलियांग थांग्को का गांव बांग्लादेश के जिस रूमा थाने के तहत है वहां के ओसी मोहम्मद आलमगीर ने बीबीसी बांग्ला की संजना चौधरी को बताया, “यह पलायन का मुद्दा नहीं है. वह लोग सुरक्षा जनित वजहों से गए हैं. वह लोग पहले भी मिज़ोरम आवाजाही करते रहे हैं.”
“वहां उनके कई रिश्तेदार हैं. हमें सूचना मिली है कि मौजूदा अभियान के कारण क़रीब चार-पांच सौ लोग वहां चले गए हैं.”
आलमगीर के मुताबिक़, यह अभियान केएनएफ़ के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा है. उस संगठन के सदस्य इसी समुदाय के लोग हैं. उनको अच्छी तरह पता है कि किस-किस परिवार के कौन लोग उस संगठन के सदस्य हैं.
वहां केएनएफ़ के सदस्य सशस्त्र प्रशिक्षण ले रहे हैं. इसलिए अभियान तेज़ होने पर गोलीबारी से आतंकित होकर कुछ आम लोग शायद सीमा पार चले गए हैं. लेकिन उनको किसी ने ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया है.
कूकी चिन नेशनल फ़्रंट का राजनीतिक संगठन होने के बावजूद कूकी चिन नेशनल आर्मी नामक उसकी एक सशस्त्र शाखा भी है.
बांग्लादेश सेना और रैपिड ऐक्शन बटालियन (रैब) उसी के ख़िलाफ़ लगातार अभियान चला रही है.
सीमा पार रिश्ते–नाते
मिज़ोरम के ग्रामीण विकास मंत्री लालरूआतकिमा ने कुछ दिन पहले ही लॉन्गतलाई के पर्व-3 गांव का दौरा किया था जहां बने शिविर में ज़्यादातर बांग्लादेशी नागरिकों ने शरण ली है.
वह बताते हैं, “बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी मिज़ो लोगों के वृहत्तर परिवार के ही सदस्य हैं. हमारे पूर्वजों में से कुछ लोग बंदरबन और म्यांमार में रहते थे तो कुछ यहां मिज़ोरम में. अभी भी हमारे कई रिश्तेदार बंदरबन और म्यांमार में रहते हैं. इसलिए यह लोग हमारे परिवार के ही सदस्य हैं. उसी लिहाज़ से हम इन लोगों की देखरेख की ज़िम्मेदारी उठा रहे हैं.”
मिज़ोरम विधानसभा में शुक्रवार को पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि ये शरणार्थी मिज़ो लोगों के भाई-बहन हैं. इसलिए उनके रहने और खाने की व्यवस्था करना मिज़ोरम सरकार की ज़िम्मेदारी है.
मिज़ोरम सरकार ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान उन शरणार्थियों को सीमा पार करने से नहीं रोकें.