DMT : पूर्णिया : (26 फ़रवरी 2023) : –
बिहार की सियासत के लिए शनिवार का दिन बड़ा रहा. एक तरफ केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बिहार आकर महागठबंधन की सरकार पर निशाना साधा. वहीं महागठबंधन ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मात देने के लिए पूर्णिया में रैली कर तैयारी शुरू कर दी. इस रैली में लालू प्रसाद यादव भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए शामिल हुए.
बिहार की सियासी ज़मीन शनिवार की सुबह से ही महागठबंधन की रैली और अमित शाह के दौरे को लेकर गर्म हो रही थी.
एक तरफ जहां बीजेपी ने महागठबंधन की रैली की वजह से पूर्णिया विश्वविद्यालय की पार्ट-2 परीक्षाएं रद्द करने को मुद्दा बनाया. वहीं जेडीयू ने अमित शाह को यह कहकर चुनौती दी कि अमित शाह को स्वामी सहजानंद सरस्वती याद आ रहे हैं तो उनको भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा करें.
स्वामी सहजानंद सरस्वती स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने अपना ज़्यादातर समय बिहार में किसानों की लड़ाई लड़ते हुए गुज़ारा.
जदयू के नेता रहे उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी बना ली है. अटकलें हैं कि कुशवाहा एक बार फिर बीजेपी के साथ जा सकते हैं.
हालांकि, वो अभी बीजेपी से जुड़े नहीं हैं लेकिन बीजेपी नेता अमित शाह बिहार दौरे में शनिवार को वैसे ही आरोप लगाते दिखे, जैसे कुशवाहा लगातार लगाते रहे हैं.
बीजेपी नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शनिवार को पश्चिमी चंपारण पहुंचे. बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आरजेडी के साथ ‘एक गुप्त समझौता’ करने का आरोप लगाया.
अमित शाह ने कहा, “बिहार की जनता को यह मालूम नहीं है कि नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने वाले हैं.”
अमित शाह का ख़ास ज़ोर तेजस्वी यादव को लालू प्रसाद यादव का बेटा बताने पर था. शाह ने नीतीश कुमार पर बिहार में कथित जंगलराज लौटाने का आरोप भी लगाया.
महागठबंधन में कितनी एकता
पूर्णिया के रंगभूमि मैदान की बात करें तो वहां महागठबंधन के सभी सात दलों के बड़े नेता शामिल हुए.
आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने भी इसमें अपना शक्ति प्रदर्शन किया. इसमें साफ तौर पर साल 2024 लोकसभा चुनावों की तैयारी दिख रही थी.
नीतीश कुमार ने कहा कि वो देशभर में विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस की पहल का इंतज़ार कर रहे हैं.
नीतीश कहा, “अगर देशभर में सभी विपक्षी पार्टियां एक हो जाएं तो बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में 100 सीटें भी नहीं मिलेंगी.”
लेकिन नीतीश की इस इच्छा पर कांग्रेस ने पहले ही अपनी चिंता जाहिर कर अपने इरादा साफ कर दिया.
बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने पूर्णिया रैली में साफ शब्दों में कहा, “अगर महागठबंधन ठीक से काम करे और सीटों का सही बंटवारा हो तो बिहार में मोदी और अमित शाह के लिए कोई जगह नहीं है.”
यानी इशारों इशारों में कांग्रेस ने 2024 के चुनाव के लिहाज से बड़ी पार्टी होने के नाते सीटों की दावेदारी की बात भी कर दी है.
इस रैली में शामिल हुए सभी नेताओं ने एक अपील ज़रूर की कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव को देखकर एक होकर रहना है ताकि बीजेपी को दूर रखा जा सके.
नीतीश कुमार ने इस रैली में बीजेपी पर सीधा आरोप लगाया कि उसके आज के नेता अपने ही नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी तक का नाम नहीं लेते हैं.
नीतीश ने आरोप लगाया कि बीजेपी के आज के नेताओं को राजनीति की जानकारी नहीं है और वो अनाप-शनाप बोलते रहते हैं.
नीतीश ने यह भी दावा किया कि उनकी ख़्वाहिश प्रधानमंत्री बनने की नहीं है.
एक तरफ जहां अमित शाह ने पश्चिमी चंपारण में दावा किया कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बिहार को एक लाख 30 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा दिए हैं. वहीं नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार को कुछ भी अलग से नहीं मिला, केंद्र की जो योजनाएं दूसरे राज्यों में चलती हैं, वही काम बिहार में भी हो रहा है.
क्या बोले लालू प्रसाद यादव
पूर्णिया की रैली में ज्यादातर भीड़ आरजेडी कार्यकर्ताओं-समर्थकों की दिखी. महागठबंधन की रैली में सबसे सरप्राइजिंग फैक्टर आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की मौजूदगी थी.
सिंगापुर से इलाज कराकर लौटे लालू यादव दिल्ली से इस रैली में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए.
लालू प्रसाद यादव सीमांचल इलाके में मुस्लिम वोटरों की ताक़त को जानते हैं, इसलिए उन्होंने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए कहा कि मुसलमानों की क्या ग़लती है कि उन्हें टुकड़े-टुकड़े करने पर तुले हुए हैं.
कोसी के इलाक़े के अलावा मुस्लिम वोटर बिहार में दर्जन भर सीटों पर बड़ा असर रखते हैं.
लालू प्रसाद यादव ने मुफ्त में मिलने वाले राशन पर भी केंद्र सरकार को घेरा.
लालू ने कहा, “मुफ़्त का राशन साल 2010 के सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद दे रहें हैं, क्योंकि अनाज़ ऐसे ही सड़ जाता था. इसलिए उन्हें लोगों को दिया जाना चाहिए. ऐसा लगता है कि ये हल चला कर राशन ला रहे हैं.”
पूर्णिया की रैली को लेकर ये समझने की भी कोशिश की गई कि ये महागठबंधन कितना एकजुट दिखता है. खासकर लंबे समय से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा पर लोगों की नज़र थी.
तेजस्वी यादव ने खुद मंच पर आकर इसका जवाब दिया. तेजस्वी ने कहा कि लोगों को बकवास पर ध्यान नहीं देना चाहिए.
तेजस्वी ने कहा, “भाजपा में कोई लीडर नहीं है, सब डीलर बन चुके हैं. हम सब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़े हैं. बिहार के लोग बिकाऊ नहीं, टिकाऊ हैं.”
छाया रहा अदानी और ईडी का मुद्दा
2025 में तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनाए जाने के मुद्दे पर ललन सिंह का हाल का बयान काफी चर्चा में रहा था.
इसलिए रैली में इस बात का इंतज़ार भी किया जा रहा था. तेजस्वी पर ललन सिंह क्या कहते हैं. ललन सिंह ने मंच पर आकर तेजस्वी यादव को ‘युवा हृदय सम्राट’ बताकर अपनी तरफ से सफाई दे दी, लेकिन वो अदानी और ईडी के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को ज़्यादा घेरते दिखे.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद मुम्बई के शेयर बाज़ार में उद्योगपति गौतम अदानी को लेकर मची उठा पटक का मुद्दा बिहार के पूर्णिया में भी छाया रहा.
कई नेताओं ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने अदानी के मुद्दे को खास तौर पर उठाया.
ललन सिंह ने आरोप लगाया कि देश में 81 हज़ार करोड रुपए का कॉरपोरेट फ्रॉड हो चुका है, लेकिन यह खबर कहीं नहीं दिखाई जाती. एलआईसी के 18 हज़ार करोड रुपए डूब गए, लेकिन कहीं इसकी चर्चा नहीं होती. देश के मीडिया में वही खबर चलती है, जिसकी स्क्रिप्ट वहां से (केंद्र सरकार) यहां लिखकर आती है.
ललन सिंह ने कहा, “भारतीय जनता पार्टी वाशिंग मशीन है, जो भी इसमें शामिल हो गया, वह साफ हो जाता है. इसीलिए किसी भी बीजेपी नेता के यहां छापा नहीं पड़ता, जबकि ईडी-सीबीआई-इनकम टैक्स सब विपक्षी नेताओं के पीछे पड़े रहते हैं.”
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने दावा किया कि 10 साल तक मनमोहन सिंह की सरकार में ईडी के केवल 326 छापे पड़े, जबकि बीते 8 साल में नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान ईडी के 3,200 छापे पड़े हैं.
उन्होंने कहा कि इनमें सबसे ज्यादा छापे कांग्रेस, टीएमसी, लालू और तेजस्वी यादव के ऊपर पड़े. उन्होंने कहा कि ये सारे छापे परोक्ष रूप से नेताओं को डराने के लिए होते हैं.
पूर्णिया से शुरुआत क्यों?
महागठबंधन के नेताओं को उम्मीद है कि बिहार में विपक्षी एकता बनी रहे, तो यहां बीजेपी को अगले लोकसभा चुनाव में करारी मात दे सकते हैं.
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को यहां से 39 सीटों पर जीत मिली थी. केवल सीमांचल की किशनगंज सीट से कांग्रेस जीत पाई थी. हालांकि उन चुनावों में जदयू बीजेपी के साथ थी.
सीमांचल में पूर्णिया, किशनगंज, सुपौल, अररिया तक मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा प्रभाव है. पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार के बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद बीजेपी नेता अमित शाह पूर्णिया के इसी रंगभूमि मैदान में पहुँचे थे.
अमित शाह ने उस वक़्त नीतीश कुमार और आरजेडी पर कई आरोप लगाए थे. बिहार में महागठबंधन नेताओं ने आरोप लगाया था कि सीमांचल सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील इलाका है, इसलिए यहां से ‘अमित शाह हिंदू राजनीति करने पहुँचे थे.’
दूसरी तरफ महागठबंधन को उम्मीद है कि अगर वो सीमांचल में मुस्लिम वोटरों को एकजुट रख पाएं तो अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें इलाक़े से अच्छी सीटें मिल सकती हैं.
हालांकि नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटरों पर भी निशाना साधा है.
नीतीश कुमार ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का नाम लिए बिना कहा कि मुस्लिम वोटर भी ‘आजकल बहुत इधर उधर करते हैं.’
नीतीश ने कहा, “आजकल एक नई पार्टी आयी है. वो किसके लिए काम करता है, हम जानते हैं. क्या हुआ विधानसभा में पांच सीटें मिली थी, चार इधर आ गए न.”
गुजरात मॉडल बनाम बिहार मॉडल
पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में वामपंथी पार्टियां भी मजबूत होकर उभरी थीं. आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में ये पार्टियां फ़िलहाल महागठबंधन के साथ दिख रही हैं. महागठबंधन की रैली में सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने गुजरात मॉडल और बिहार मॉडल की तुलना की.
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “यह फरवरी का महीना है और 2002 के फरवरी की याद आती है, जब गुजरात में जनसंहार हुआ था.”
दीपंकर भट्टाचार्य ने आरोप लगाया, “गुजरात मॉडल की बुनियाद में नफरत है और लूट है.” भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार में भी नरसंहार हुए हैं, लेकिन यह कभी उसे मॉडल नहीं बनाया गया.
उन्होंने अमित शाह को निशाने पर लिया और कहा किया उन्हें स्वामी सहजानंद सरस्वती याद आने लगे हैं, जबकि बीजेपी ग़रीबों-किसानों की जमीन छीनकर उद्योगपतियों को देना चाहती है.
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि छोटे-छोटे सवालों के लिए यहां कोई जगह नहीं है, छोटी लड़ाई की कोई गुंजाइश नहीं है. 2024 की लड़ाई बड़ी है, यह संविधान और लोकतंत्र बचेगा कि नहीं उसकी लड़ाई है.