DMT : मधुबनी : (11 फ़रवरी 2023) : –
शक्तिशाली प्रधानमंत्री के योग गुरु होने के नाते धीरेंद्र ब्रह्मचारी का ज़बरदस्त राजनीतिक रसूख हुआ करता था और उनसे मिलने के लिए केंद्रीय मंत्रियों, नौकरशाहों और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की लाइन लगा करती थी.
वो नीली टोयोटा कार में चला करते थे जिसे वे खुद ड्राइव करते थे. यही नहीं उनके पास कई प्राइवेट जेट थे, जिसमें 4 सीटर सेसना, 19 सीटर डॉर्नियर और मॉल- 5 विमान शामिल थे. इन्हें ब्रह्मचारी खुद उड़ाया करते थे.
उनका राजनीतिक रसूख़ इतना था कि नाराज़ हो जाने पर वो किसी भी नौकरशाह का तबादला करवा सकते थे और मंत्रियों का विभाग तक बदलवा सकते थे.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा ‘मैटर्स ऑफ़ डिस्क्रेशन: एन ऑटोबॉयोग्राफ़ी’ में धीरेंद्र ब्रह्मचारी के दबदबे का विस्तार से ज़िक्र किया है.
उन्होंने लिखा, “जब मैं निर्माण और आवास राज्य मंत्री था, इंदिरा गांधी के योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी मुझ पर गोल डाकखाने के पास एक सरकारी ज़मीन को उनके आश्रम के नाम ट्रांसफ़र करने का दबाव डालने लगे. मेरा उनको क़ीमती सरकारी ज़मीन देने का कोई इरादा नहीं था, इसलिए मैंने फ़ाइल को आगे ही नहीं बढ़ने दिया. आख़िरकार जब उनके सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने एक शाम फ़ोन करके मुझे धमकाया कि अगर उनका काम नहीं हुआ तो वो मुझे डिमोट करवा देंगे.”
एक हफ़्ते बाद जब मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ, उमाशंकर दीक्षित को कैबिनेट मंत्री बनाकर इंदर कुमार गुजराल के ऊपर बैठा दिया गया.
गुजराल लिखते हैं, “अगले दिन जब मैंने इंदिरा गांधी को पूरी कहानी सुनाई कि किस तरह स्वामी ने मुझे धमकाया था. वो चुप रहीं और उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया. दिलचस्प बात ये रही की उमाशंकर दीक्षित ने भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी को वो ज़मीन देने से इनकार कर दिया. नतीजा ये रहा कि कुछ दिनों बाद उनका भी तबादला कर दिया गया और हमारी जगह कहना मानने वाले मंत्री ढ़ूंढ लिए गए.”
यही नहीं, 1963 में भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री केएल श्रीमाली से अपने योग केंद्र के अनुदान का नवीनीकरण करने का अनुरोध किया लेकिन श्रीमाली ने उल्टा उनसे पिछले साल दिए गए अनुदान की ऑडिट रिपोर्ट मांग ली. इंदिरा गांधी ने ये मामला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने उठाया.
नेहरू ने श्रीमाली से बात भी की लेकिन उन्होंने ब्रह्मचारी का अनुरोध माना नहीं गया. श्रीमाली ने अगस्त, 1963 में कामराज योजना के तहत त्यागपत्र दे दिया. लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें जानबूझ कर नेहरू मंत्रिमंडल से निकाला गया.
उसी तरह वित्त आयोग के अध्यक्ष रहे एनके सिंह ने जांचकर्ताओं को बताया था कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी डींगे हांकते थे कि उन्होंने उनके पिता टीके सिंह को इसलिए बर्ख़ास्त करवा दिया था क्योंकि उन्होंने एक ज़मीन दिलवाने के मामले में उनकी मदद नहीं की थी.
टीके सिंह उस ज़माने में देश के वित्त सचिव हुआ करते थे. उनके बेटे एनके सिंह भी ऊँचे ओहदों पर पहुंचे.
ब्रह्मचारी का जन्म 12 फ़रवरी, 1924 को बिहार के मधुबनी ज़िले में हुआ था. शुरू में उनका नाम धीरेंद्र चौधरी हुआ करता था. 13 वर्ष की आयु में वो घर छोड़ कर चले गए थे और उन्होंने लखनऊ के पास गोपालखेड़ा में महर्षि कार्तिकेय से योग की शिक्षा ली थी.
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने नेहरू और इंदिरा दोनों को योग सिखाया
धीरेंद्र साल 1958 में दिल्ली पहुंचे थे. यशपाल कपूर ने इंडिया टुडे पत्रिका को बताया था कि स्वामी की इंदिरा गांधी से पहली मुलाक़ात कश्मीर में शिकारगढ़ में हुई थी.
कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, “ब्रह्मचारी ने सबसे पहले नेहरू को योग सिखाना शुरू किया. कुछ ही दिनों में दूसरे कई राजनेता जैसे लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी उनके अनुयायी बन गए थे. 1959 में उन्होंने विश्वायतन योग आश्रम की स्थापना की थी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था.”
कैथरीन की क़िताब के मुताबिक़, इस आश्रम को शिक्षा मंत्रालय की ओर से एक बड़ा अनुदान मिलता था और स्वामी को आवास मंत्रालय की ओर से जंतर-मंतर रोड पर एक सरकारी बंगला भी आवंटित किया गया था.
इंदिरा गांधी की करीबी दोस्त डोरोथी नॉरमन अपनी क़िताब ‘इंदिरा गांधी: लेटर्स टू एन अमेरिकन फ़्रेंड’ में लिखती हैं, “इंदिरा ने मुझे 17 अप्रैल, 1958 को लिखा था कि उन्होंने अब योग को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है. मुझे एक बहुत सुंदर योगी योग सिखाता है.”
डोरोथी आगे लिखती हैं, “वास्तव में उसकी (धीरेन्द्र ब्रह्मचारी) शक्ल और उसका आकर्षक डीलडौल सबको अपनी तरफ़ आकर्षित करता है लेकिन उससे बात करना एक तरह की सज़ा है. वो बहुत बड़ा अंधविश्वासी है.”
ब्रह्मचारी ने कभी गर्म कपड़े नहीं पहने
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप बॉब ने इंडिया टुडे के 30 नवंबर, 1980 में छपे अपने लेख ‘स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी, द कॉन्ट्रोवर्शियल गुरु’ में स्वामी को छह फ़ुट एक इंच लंबे कद और छरहरी काठी वाला व्यक्ति बताया था, जो अपने जिस्म पर महज़ एक पतला कपड़ा लपेटे रहता है.
वो लिखते हैं कि उनके हाथ में हमेशा सफ़ेद चमड़े का एक बैग रहा करता था जो लेडीज़ बैग की तरह दिखता था.
बॉब ने लिखा था, “वो अनंत अंतर्विरोधों वाले शख़्स हैं. वो एक संत हैं जिनके कई चेहरे हैं. उनके पास कोई सरकारी पद नहीं है लेकिन उनके पास असीम शक्ति है. वो ऐसे स्वामी हैं, जो शान-शौकत से रहते हैं. वो ऐसे योग गुरु हैं जिनकी पहुंच सीधे प्रधानमंत्री तक है. उनसे लोग डरते हैं, लेकिन उनका सम्मान भी करते हैं.”
धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने कभी गर्म कपड़े नहीं पहने. चाहे श्रीनगर की सर्दी हो या मॉस्को की शून्य डिग्री से नीचे तापमान हो, धीरेंद्र हमेशा अपने जिस्म पर मलमल का कपड़ा लपेटते थे.
दिलीब बॉब लिखते हैं कि “उस समय 60 की उम्र होने के बावजूद वो 45 साल से एक दिन ज़्यादा नहीं दिखते थे.”
ब्रह्मचारी को भारत का ‘रासपुतिन’ कहा जाने लगा
इंदिरा गांधी के करीबी रहे नटवर सिंह बताते हैं, “स्वामी ने मुझे योग सिखाया था. वो अपना काम जानते थे. उन्होंने चार-पांच महीने में मेरा अस्थमा ठीक कर दिया था.”
सरकारी टेलीविज़न दूरदर्शन पर हर बुधवार को उनका एक योग कार्यक्रम आता था, जिसने देशभर में योग को लोकप्रिय बनाने में बहुत योगदान दिया था. 70 के दशक में ब्रह्मचारी संजय गांधी के बहुत नज़दीक हो गए थे और एक तरह से गांधी परिवार के सदस्य बन गए थे.
कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, “ब्रह्मचारी अकेले पुरुष थे जो योग सिखाने के बहाने इंदिरा गांधी के कमरे में अकेले जा सकते थे. धीरे-धीरे इंदिरा गांधी के साथ नज़दीकी के कारण उन्हें भारत का रासपुतिन कहा जाने लगा था.”
लेकिन इंदिरा गांधी के मित्र रहे पीडी टंडन ने कैथरीन फ़्रैंक के विवरण को महज़ एक अफ़वाह कहकर सिरे से नकार दिया था. उनका कहना था कि “खुद जवाहरलाल नेहरू ने ब्रह्मचारी से अपनी बेटी को योग सिखाने के लिए कहा था और कभी-कभी तो वो खुद भी ब्रह्मचारी से योग सीखते थे.”
इमर्जेंसी के दौरान ब्रह्मचारी और इंदिरा की क़रीबी बढ़ी
इमरजेंसी के दौरान जैसे-जैसे दूसरे लोगों के प्रति इंदिरा गांधी का अविश्वास बढ़ता गया, उन पर ब्रह्मचारी का भी असर बढ़ता गया.
पुपुल जयकर इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, “ब्रह्मचारी उन लोगों के बारे में बताकर इंदिरा गांधी का डर बढ़ाते रहे जो उन्हें और संजय को नुक़सान पहुंचाना चाहते थे. सबसे पहले वो उन्हें बताते कि किस तरह उनके दुश्मन उन्हें उनके ख़िलाफ़ अनुष्ठान कर अलौकिक शक्तियों से उन्हें नुक़सान पहुंचाने का षडयंत्र रच रहे हैं. फिर वो उन्हें विभिन्न अनुष्ठानों और मंत्रों से उसका तोड़ निकालने की तरकीब बतलाते.
पुपुल जयकर आगे लिखती हैं, “इंदिरा गांधी न सिर्फ़ इन मामलों में उनकी सलाह मानती थीं बल्कि कई राजनीतिक मुद्दों पर भी उनकी सलाह लिया लिया करती थीं, बिना ये सोचे कि इसमें उनका स्वार्थ छिपा हो सकता था.”
बिना कस्टम ड्यूटी दिए विमान आयात करवाया
शाह आयोग की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र था कि किस तरह ब्रह्मचारी ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपनी संपत्ति बढ़ा ली थी.
कैथरीन फ़्रैंक लिखती हैं, “जब तक इंदिरा गांधी पर पीएन हक्सर और कश्मीर तबके का असर था, ब्रह्मचारी की उतनी नहीं चलती थी लेकिन जैसे-जैसे संजय की ताकत बढ़ती गई, स्वामी का इंदिरा पर प्रभाव भी बढ़ता गया. साल 1976 में इमर्जेंसी के दौरान उन्होंने सरकार से अमेरिकी जहाज़ कंपनी से चार सीटों का एम-5 जहाज़ ख़रीदने की अनुमति मांगी जो उन्हें मिली भी.
कैथरीन की क़िताब के मुताबिक़, “इस जहाज़ पर कोई भी आयात शुल्क नहीं लगाया गया. यही नहीं उन्हें कश्मीर में निजी हवाई पट्टी बनाने की भी अनुमति भी दे दी गई. इससे कई सुरक्षा नियमों का उल्लंघन हुआ क्योंकि ये स्थान पाकिस्तान की सीमा के बहुत निकट था.”
सारे आरोप वापस लिए गए
1977 में चुनावों में इंदिरा गांधी की हार के बाद आयकर अधिकारियों ने कश्मीर में अपर्णा आश्रम का दौरा किया. उन्होंने पाया कि वो एक भव्य भवन था जिसका फ़र्श संगमरमर का था और उसे शाही ढंग से सजाया गया था. इस भवन में चार बाथरूम थे और दस टेलीफ़ोन लगे हुए थे.
बाद में शाह कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “आश्रम परिसर को ठाठ से जीवन जीने और हर तरह का आराम देने के लिए तैयार किया गया था. ऐसा प्रतीत होता था कि उसे अमीर और असरदार लोगों के हॉलीडे होम के तौर पर बनाया गया था.”
लेकिन जब 1980 में इंदिरा गांधी की चुनाव के बाद वापसी हुई तो धीरेंद्र ब्रह्मचारी के ख़िलाफ़ सारे आरोप वापस ले लिए गए.
कैथरीन फ़्रैंक लिखती हैं, “वो एक बार फिर प्रधानमंत्री आवास का हिस्सा बन गए और उन्हें अक्सर गांधी परिवार की खाने की मेज़ पर देखा जाने लगा. लेकिन उनको खाना खाने का सलीका नहीं आता था और वो बहुत अधिक खाना खाते थे. 60 की उम्र होने के बावजूद वो अभी भी बहुत आकर्षक और छरहरे दिखाई देते थे.”
भारत के जाने-माने बाबाओं पर क़िताब ‘गुरु’ लिखने वाली भवदीप कंग लिखती हैं, “संजय धीरेंद्र ब्रह्मचारी की इस बात के लिए तारीफ़ करते थे कि उस समय जब जनता सरकार इंदिरा और संजय के पीछे पड़ी हुई थी, वो उनके साथ मज़बूती से खड़े रहे. जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आईं तो इसका उन्हें इनाम मिला और उनके ख़िलाफ़ सारे मामले वापस ले लिए गए. ज़ब्त किया गया उनका विमान भी उन्हें वापस कर दिया गया.”
संजय की मौत के एक दिन बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने कहा था, “संजय बहुत अच्छे पायलट थे लेकिन मैंने उन्हें हवा में ज़्यादा कलाबाज़ी दिखाने के लिए मना किया था.”
बाद में संजय गांधी की अंत्येष्टि धीरेंद्र ब्रह्मचारी की देखरेख में हुई.
संजय गांधी से नज़दीकी
सफ़दरजंग रोड के इंदिरा गांधी के बंगले में धीरेंद्र ब्रह्मचारी की पहुंच बढ़ाने में संजय गांधी को बहुत योगदान था.
रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखते हैं, “उस ज़माने में इस तरह की धारणा बनी हुई थी कि लंबे बालों वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी पहले तो इंदिरा गांधी के योग अध्यापक के रूप में उनके घर में घुसे लेकिन फिर वो उनके चहेते बेटे का सहारा लेकर वहां लंबे समय तक टिके रहे.”
1979 में निखिल चक्रवर्ती ने अपनी पत्रिका ‘मेनस्ट्रीम’ में स्वामी को संजय गांधी के गुट का एक महत्वपूर्ण सदस्य बताया था. 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं तो एक ज़माने में उनके क़रीब रहे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डीपी मिश्र उन्हें सबसे पहले सांत्वना देने पहुंचे थे.
इंदर मल्होत्रा इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखते हैं, “डीपी मिश्र ने मुझे खुद बताया था कि इंदिरा से अकेले में बात करना बिल्कुल नामुमकिन था क्योंकि संजय और धीरेंद्र ब्रह्मचारी बार-बार कमरे में घुस आते थे.”
धीरेंद्र और संजय दोनों विमान उड़ाने के शौकीन थे. स्वामी ने संजय की मारुति फ़ैक्ट्री में तीन लाख रुपए का निवेश किया था. उनके मॉल- 5 विमान का इस्तेमाल संजय उड़ान अभ्यास के लिए करते थे और इसी विमान से वो अमेठी और रायबरेली चुनाव प्रचार के लिए जाया करते थे.
मेनका को घर से निकाले जाने के समय मौजूद थे ब्रह्मचारी
अपने बेटे की मौत के बाद इंदिरा गांधी धीरेंद्र ब्रह्मचारी पर और अधिक निर्भर हो गईं थीं. वो निजी मामलों में भी उनके सबसे क़रीबी और विश्वासपात्र बन गए.
अपनी आत्मकथा ‘ट्रुथ, लव एंड लिटिल मेलिस’ में खुशवंत सिंह लिखते हैं, “एक घरेलू झगड़े के बाद जब इंदिरा गाधी ने अपनी बहू मेनका गांधी को अपने घर से निकालने का फ़ैसला किया तो वो चाहती थीं कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी वहां एक गवाह के तौर पर मौजूद हों. मेनका और उनकी बहन से झगड़े के दौरान जब बात इंदिरा गांधी के हाथ से बाहर चली गई तो वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं और धीरेंद्र ब्रह्मचारी को उन्हें कमरे से बाहर ले जाना पड़ा”.
खुशवंत सिंह ने लिखा, “ब्रह्मचारी के पास एक विशाल बंगला था, जिसमें उन्होंने काली गायों का एक बड़ा झुंड पाला हुआ था. उनका मानना था कि उनका दूध औषधीय गुणों से भरपूर था.”
प्रधानमंत्री आवास से कुछ ही किलोमीटर दूर उनके विश्वायतन योगाश्रम में केंद्रीय मंत्री, राजनयिक, नौकरशाह और व्यापारी उनके दर्शन के लिए कतार लगाए रहते थे.
राजीव गांधी ने किया ब्रह्मचारी को इंदिरा गांधी से दूर
इंदिरा गांधी की ज़िंदगी के अंतिम चरण में धीरेंद्र ब्रह्मचारी का सारा रसूख जाता रहा. दरअसल, राजीव गांधी के उदय के साथ ही ब्रह्मचारी का पतन शुरू हो गया था.
कैथरीन फ़्रैंक लिखती हैं, “ब्रह्मचारी और राजीव एक दूसरे से उलट थे. ब्रह्मचारी तिकड़मी थे और पारदर्शी नहीं थे और उनका पाश्चात्य जीवन से दूर-दूर का वास्ता नहीं था. इंदिरा के घर में स्वामी की उपस्थिति को राजीव ने कभी पसंद नहीं किया. अब जब उन्हें वहां से हटाने का मौका मिला तो उन्होंने देर नहीं की.”
संजय की मृत्यु के बाद ही उनके कई साथी ब्रह्मचारी के विरोध में उठ खड़े हुए थे.
पुपुल जयकर लिखती हैं, “कमलनाथ ने तो सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अगर कोई प्रधानमंत्री के साथ अपने जुड़ाव का प्रचार कर रहा है तो ज़रूर उसका कोई स्वार्थ होगा.”
उनके घटते प्रभाव का दूसरा इशारा तब मिला जब दूरदर्शन पर उनका योग सिखाने वाला कार्यक्रम कारण बताए बिना अचानक बंद कर दिया गया.
प्रधानमंत्री निवास में ब्रह्मचारी की एंट्री हुई बैन
इंदिरा गांधी की जीवनी ‘इंदिरा अ पॉलिटिकल एंड पर्सनल बायोग्राफ़ी’ में इंदर मल्होत्रा लिखते हैं, “अगले दिन प्रधानमंत्री आवास में उनको घुसने नहीं दिया गया. हर तरफ़ ये ख़बर फैल गई कि राजीव ने ब्रह्मचारी को दरवाज़ा दिखाने का फ़ैसला ले लिया है. उनका मानना था कि ब्रह्मचारी की वजह से इंदिरा गांधी का नाम बदनाम नहीं होना चाहिए.”
स्वामी ने इंदिरा गांधी मौत के बाद उन तक पहुंचने की आख़िरी कोशिश की थी. जब इंदिरा गांधी का अंतिम स्स्कार किया जा रहा था तो वो उस चबूतरे पर पहुंच गए जहाँ उनका पार्थिव शरीर रखा हुआ था.
कहा जाता है कि राजीव के निर्देश पर ही धीरेंद्र ब्रह्मचारी को वहां से चुपचाप नीचे उतार दिया गया और दोबारा उस जगह पर नहीं फटकने दिया गया जहां इंदिरा गांधी का अंतिम संस्कार हो रहा था.
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पर विदेशी हथियारों को रखने और बेचने के सिलसिले में एक आपराधिक मुकदमा भी दायर हुआ.
इसके बाद दिल्ली में सफदरजंग हवाईअड्डे का मुफ़्त में इस्तेमाल करने वाले ब्रह्मचारी से उसका इस्तेमाल करने की फ़ीस मांगी जाने लगी.
उनकी परेशानियां बढ़ती चली गईं. उनके आश्रम के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी और वेतन बढ़ाने के लिए उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने शुरू कर दिए.
विमान दुर्घटना में मौत
संजय गांधी की ही तरह धीरेंद्र ब्रह्मचारी की भी मौत जून के महीने में विमान दुर्घटना में हुई. उस समय वो सौ एकड़ के एक भूभाग का हवाई सर्वेक्षण कर रहे थे जिसे कुछ समय पहले उन्होंने अपने आश्रम का विस्तार करने के लिए खरीदा था.
उनके पायलट ने उन्हें ख़राब मौसम के कारण उड़ान न भरने की सलाह दी. लेकिन ब्रह्मचारी ने उनकी सलाह नहीं मानी. मानतलाई में उतरने की कोशिश के दौरान उनका विमान झाड़ियों में गिर गया.
उनकी मृत्यु के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन पर तीन पैराग्राफ़ का एक लेख छापा था. धीरेंद्र ब्रह्मचारी ऐसे पहले शख्स नहीं थे जिन्होंने आध्यामिकता के बल पर सत्ता का लाभ उठाया लेकिन उनसे पहले कोई संन्यासी इतने लंबे समय तक और इतने विश्वास को साथ राजनीतिक पटल पर नहीं छाया रहा.