DMT : बिहार : (13 फ़रवरी 2023) : –
पिछले साल बिहार की एक महिला को बताया गया कि उसकी बेटी के बलात्कारी की मौत हो गई है. इसके बाद बलात्कार का केस बंद कर दिया गया.
उस महिला ने इस दावे पर सवाल उठाया और हक़ीक़त पर से पर्दा उठाया. इस महिला की कोशिशों के चलते, मामले की तफ़्तीश दोबारा शुरू हुई और आख़िर में वो महिला अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने में कामयाब हुई.
ये बात शायद पिछले साल फ़रवरी महीने की है. एक सुहानी सुबह को दो लोग, भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के किनारे बने श्मशान घाट पर पहुंचे.
वो लोग वहां पर एक हिंदू के अंतिम संस्कार के लिए पहुंचे थे. वो दोनों शव जलाने के लिए लकड़ी तो इकट्ठी कर रहे थे.
मगर हैरानी की बात ये थी कि वो दोनों कोई लाश लेकर गंगा के घाट नहीं पहुंचे थे. जब वो गंगा के किनारे पहुंचे, तो हालात में अजीब-ओ-ग़रीब तब्दीली आ गई.
उन आदमियों ने ज़मीन पर एक चिता सजाई. उसके बाद उनमें से एक ख़ुद उस चिता पर लेट गया और ख़ुद को कफ़न के सफ़ेद कपड़े से ढक लिया और अपनी आंखें बंद नहीं कीं.
उसके साथ आए शख़्स ने चिता के ऊपर कुछ और लकड़ियां इस तरह से रख दीं कि जिससे लकड़ियों के ढेर में से उस आदमी का सिर दिखाई देता रहा.
इसके बाद चिता पर रखे शव की दो तस्वीरें ली गईं. अब ये साफ़ नहीं है कि चिता पर रखी लाश की ये तस्वीरें किसने खींची और क्या उस वक़्त वहां कोई और भी मौजूद था.
चिता पर लेटा वो ‘मुर्दा’ आदमी 39 साल का सरकारी अध्यापक नीरज मोदी था. उस वक़्त गंगा के घाट पर मौजूद दूसरा आदमी, 60 बरस का दुबला पतला किसान राजाराम मोदी था, जो नीरज मोदी का पिता था.
गंगा के घाट से राजाराम मोदी सीधे क़रीब 100 किलोमीटर दूर एक अदालत पहुंचा. उसके साथ एक वकील भी था. अदालत में राजाराम ने एक हलफ़नामा पेश किया और कहा कि 27 फ़रवरी को उसके बेटे नीरज मोदी की उनके गांव के पुश्तैनी घर में मौत हो गई थी.
राजाराम ने अपने हलफ़नामे के साथ, सबूत के तौर पर बेटे की चिता की दो तस्वीरें और शव जलाने के लिए ख़रीदी गई लकड़ी की रसीद भी अदालत में पेश की.
छह दिन पहले ही पुलिस ने नीरज मोदी के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामले की चार्जशीट दाख़िल की थी. नीरज मोदी पर आरोप था कि उसने अक्टूबर 2018 में 12 साल की एक लड़की से बलात्कार किया था, जो उसकी छात्रा थी.
नीरज ने लड़की से उस वक़्त बलात्कार किया था, जब वो गन्ने के खेत में अकेली काम कर रही थी. बलात्कार के बाद नीरज मोदी ने उस लड़की को ये कहकर ख़ामोश करा दिया था कि उसने उसकी तस्वीरें खींच ली हैं और अगर लड़की ने इस घटना की जानकारी किसी को दी तो वो उसकी तस्वीरें ऑनलाइन डाल देगा.
पिछले साल नीरज मोदी की ‘मौत’ के बाद चीज़ें बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ीं. नीरज के बाप के अदालत को उसकी मौत की ख़बर देने के दो महीने के भीतर, स्थानीय अधिकारियों ने उसकी मौत का प्रमाणपत्र जारी कर दिया.
अदालत ने भी मुक़दमे की कार्यवाही बंद कर दी क्योंकि इस केस का ‘इकलौता अभियुक्त’ मर चुका था.
‘मुझे यकीन था कि वो जिंदा है’
सिर्फ़ एक इंसान को ये शक था कि अभियुक्त अध्यापक ने अपनी मौत का नाटक रचा है और सज़ा से बचने के लिए वो कहीं जाकर छुप गया है. वो शख़्स पीड़ित लड़की की मां थी.
नीरज मोदी के ही गांव में रहने वाली एक दुबली पतली महिला, जो झोपड़ी में गुज़र बसर करती हैं.
जब मैं हाल ही में लड़की की मां से मिला, तो उन्होंने मुझे बताया, ‘जैसे ही मुझे ख़बर लगी कि नीरज मोदी की मौत हो गई, मुझे पता चल गया था कि ये सब एक झूठ है. मुझे यक़ीन था कि वो ज़िंदा था.’
भारत में हर दस में से सात मौतें देश के लगभग 7 लाख गांवों में होती हैं और शहरों की तुलना में गांवों में ज़्यादातर लोगों की मौत घरों में ही होती है.
54 साल पुराने एक क़ानून के तहत, देश में हर नागरिक के जन्म और मौत को सरकारी दस्तावेज़ में दर्ज कराना होता है. हालांकि, इसमें मौत की वजह बताना ज़रूरी नहीं होता.
कैसे बनवाया झूठ मृत्यु प्रमाण पत्र
जब बिहार में किसी इंसान की मौत होती है, तो परिवार के एक सदस्य को उसका विशेष बायोमेट्रिक पहचान नंबर दर्ज कराना होता है. मौत की तस्दीक़ के लिए गांव के ही पांच लोगों के दस्तख़त या अंगूठे के निशान भी गवाहों के तौर पर लेने होते हैं.
इसके बाद इस हलफ़नामे को स्थानीय ग्राम पंचायत या परिषद को देना होता है. फिर पंचायत के सदस्य और स्थानीय रजिस्ट्रार इन दस्तावेज़ों की पड़ताल करते हैं और अगर सब कुछ सही होता है, तो वो एक हफ़्ते के भीतर मौत का प्रमाण पत्र या डेथ सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं.
पीड़ित के वकील जय करण गुप्ता ने बताया, ‘हमारे गांव घने बसे हैं. लोग एक दूसरे से जुड़े रहते हैं. हर कोई गांव में एक दूसरे को जानने वाला होता है. ऐसे में किसी की मौत की ख़बर न हो, ऐसा मुमकिन नहीं होता.’
राजाराम मोदी ने अपने बेटे की मौत की तस्दीक़ के तौर पर गांव के पांच लोगों के दस्तख़त और उनकी बायोमेट्रिक पहचान के नंबर जमा किए थे और बेटे की मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. लेकिन, दस्तावेज़ में मौत की वजह नहीं लिखी हुई थी.
श्मशान घाट पर जिस दुकान से चिता के लिए लकड़ी ख़रीदी गई थी, उसमें ये लिखा था की मौत की वजह ‘बीमारी’ थी.
- तेरहवीं-बरसी नहीं होने पर गहराया शक
- पिछले साल मई महीने में लड़की की मां को एक वकील से पता चला कि नीरज मोदी के ख़िलाफ़ चल रहा मुक़दमा बंद कर दिया गया है, क्योंकि वो मर गया है.
- मां ने मुझसे पूछा, ‘ये कैसे मुमकिन है कि वो मर गया और उसकी मौत की ख़बर तक किसी को नहीं हुई? मरने के बाद उसकी कोई दसवीं, एकादशाह या फिर तेरहवीं-बरसी क्यों नहीं हुई? उसके मरने की कोई चर्चा भी क्यों नहीं हुई?’
- मई महीने के मध्य में मां ने एक वरिष्ठ स्थानीय अधिकारी को अर्ज़ी दी और कहा कि ग्राम पंचायत ने नीरज मोदी की मौत का जो सर्टिफिकेट जारी किया है, वो फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर बना है और उसकी जांच होनी चाहिए.
- इसके बाद जांच तेज़ी से आगे बढ़ी.
फिर से शुरू हुई जांच
उस अधिकारी ने मामले की जांच का आदेश दिया और गांव की परिषद को इसकी ख़बर दे दी. उसके सदस्यों ने भी राजाराम मोदी से उनके बेटे की मौत के और सबूत मांगे.
राजाराम मोदी को बेटे की मौत के बाद की और तस्वीरें, अंतिम संस्कार के सबूत, जलती हुई चिता की तस्वीरें और पांच नए गवाहों के बयान देने को कहा गया.
फिर गांव की परिषद के सदस्य क़रीब ढाई सौ घरों की आबादी वाले उस गांव के निवासियों से मिले. पता चला कि किसी ने भी नीरज मोदी की मौत की ख़बर नहीं सुनी थी.
आम तौर पर किसी हिंदू परिवार के सदस्य की मौत पर उसके कुटुंब के लोग सिर मुंडवाते हैं लेकिन मोदी परिवार के किसी भी सदस्य ने अपना सिर नहीं मुंडवाया था.
मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी रोहित कुमार पासवान ने बताया, ‘यहां तक कि नीरज मोदी के रिश्तेदारों तक को उसकी मौत की जानकारी नहीं थी और न ही उन्हें ये पता था कि वो कहां है. वो बस यही कहते रहे कि अगर उसकी मौत हुई होती, तो उसके अंतिम संस्कार तो घर पर हुए होते.’
गांव की परिषद के सदस्यों ने राजाराम मोदी से फिर से पूछताछ की. इस बार वे अपने बेटे की मौत के कोई नए सबूत दे पाने मे नाकाम रहे. ग्राम पंचायत के सचिव धर्मेंद्र कुमार ने बताया, ‘जब हमने उससे और सवाल पूछे, तो वो किसी भी सवाल का तसल्लीबख़्श जवाब नहीं दे पाया.’
जांच इस नतीजे पर पहुंची कि नीरज मोदी ने अपनी मौत का नाटक रचा है और मौत का प्रमाणपत्र पाने के लिए बाप-बेटे ने मिलकर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार किए थे.
पुलिस ने जांच में पाया कि स्कूल के अध्यापक नीरज मोदी ने अपने पांच छात्रों के मां-बाप के बायोमेट्रिक पहचान पत्र लेकर उनकी मदद से अपनी मौत का प्रमाणपत्र पाने का हलफ़नामा तैयार किया था.
उन्होंने अपने छात्रों के अभिभावकों को ये बताया था कि उसे उनके बायोमेट्रिक नंबर की ज़रूरत इसलिए है ताकि वो इन छात्रों के लिए वज़ीफ़े का इंतज़ाम कर सके.
बलात्कार का मुक़दमे को फिर से खुला
23 मई को अधिकारियों ने नीरज मोदी की मौत का प्रमाणपत्र रद्द कर दिया. पुलिस ने फ़र्ज़ीवाड़ा करने के आरोप में नीरज मोदी के पिता राजाराम मोदी को गिरफ़्तार कर लिया.
रोहित कुमार पासवान कहते हैं, ‘मैंने अपने पूरे करियर में इस तरह के किसी मामले की जांच नहीं की थी. पूरी साज़िश एकदम हक़ीक़त लग रही थी. मगर ये सच तो नहीं था.’
जुलाई महीने में अदालत ने बलात्कार के मुक़दमे को फिर से खोलने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि ‘उसे धोखा दिया गया है और बरगलाया गया है’, जिससे अभियुक्त ‘सज़ा से बच सके’.
बलात्कार पीड़ित बच्ची की मां अभियुक्त अध्यापक की तलाश के लिए अपनी जद्दोज़हद लगातार जारी रखे हुए थीं. उन्होंने अदालत में अभियुक्त की गिरफ़्तारी के लिए गुहार लगाई.
अपने आप को मरा हुआ घोषित करने के नौ महीने बाद, यानी अक्टूबर महीने में नीरज मोदी ने ख़ुद ही अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
14 साल क़ैद की सजा
मुक़दमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने बलात्कार के आरोप से इनकार करते हुए अपना बचाव किया था लेकिन अब वो बेड़ियों में जकड़ा हुआ सिर झुकाए अदालत से बाहर निकला.
पिछले महीने अदालत ने नीरज मोदी को लड़की के बलात्कार का दोषी ठहराया और उसे 14 साल क़ैद की सज़ा सुनाई. अदालत ने पीड़ित को तीन लाख रुपए मुआवज़ा देने का भी एलान किया.
नीरज मोदी के पिता राजाराम मोदी भी जेल में है. उन पर धोखाधड़ी और बेईमानी करने के इल्ज़ाम हैं, जिनके लिए उन्हें अधिकतम सात साल क़ैद की सज़ा हो सकती है. अब दोनों बाप बेटों पर मौत का फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र बनवाने का भी इल्ज़ाम है.
पीड़ित लड़की की मां ने कहा, ‘मैं तीन साल से भी ज़्यादा वक़्त तक अदालत के चक्कर लगाती रही, ताकि मेरी बेटी के बलात्कारी को सज़ा मिल सके और फिर एक दिन उसके वकील ने मुझे बताया कि वो तो मर गया है.’
‘कोई इंसान कैसे अचानक इस तरह ग़ायब हो सकता है. वकील ने मुझसे कहा कि अब उसकी मौत को नक़ली बताने के लिए नया मुक़दमा लड़ना होगा और इसमें काफ़ी पैसा लगेगा. दूसरे लोगों ने मुझे ये कहकर डराया कि अभियुक्त जेल से बाहर आकर मुझसे बदला लेने की कोशिश करेगा.’
‘लेकिन मैं डरी नहीं. मैंने कहा कि मैं पैसों का इंतज़ाम करूंगी. मैं किसी से डरती नहीं. मैंने जज और अधिकारियों से भी कहा कि आप सच का पता लगाएं.’
हम गड्ढों वाली सड़कों और खुली नालियों वाले रास्तों, कमज़ोर झोपड़ियों, सरसों के पीले फूलों और ईंट भट्टों से निकलते धुएं वाले रास्तों पर घंटों का सफ़र करके पीड़ित लड़की के छोटे से गांव पहुंचे. जो देश के सबसे ग़रीब राज्यों में से एक बिहार के एक दूर-दराज इलाक़े में है.
मुश्किल में गुजर रहा है जीवन
गांव के कच्चे पक्के मकानों में सैटेलाइट के डिश लगे हुए थे. इन मकानों के बीच से बल खाती गली से होकर हम उस लड़की के घर पहुंचे. लड़की की मां अपने दो बच्चों और बेटी के साथ ईंटों के एक ऐसे मकान में रहती हैं, जिसमें कोई खिड़की नहीं है.
घर की छत टिन और टाइल की बनी हुई है. उनकी सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है और वो अपनी ससुराल में रहती हैं. उस अंधेरे कमरे में बमुश्किल ही दो-चार चीज़ें रखी हुई दिखाई दीं. लकड़ी और रस्सी से बनी एक चारपाई थी.
अनाज रखने के लिए स्टील का एक ड्रम था. ज़मीन पर एक मिट्टी का चूल्हा बना हुआ था और तार पर कुछ गंदे फटे कपड़े फैले हुए थे. उस ग़रीब परिवार के पास रहने के लिए अपनी कोई ज़मीन नहीं है.
गांव में पीने का पानी पाइप से आता है. बिजली के कनेक्शन भी हैं. मगर, रोज़गार का कोई जुगाड़ नहीं है. इसलिए लड़की के पिता काम की तलाश में दक्षिणी भारत के एक राज्य में रहते थे, जो उनके घर से क़रीब 1700 किलोमीटर दूर था. वहां पर वे एक लोडर का काम करते थे और परिवार को पैसे भेजा करते थे.
2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार के चलाए हुए व्यापक स्वच्छता अभियान के तहत बड़ी तादाद में शौचालय बनवाए गए.
इसके चलते, भारत के 100 प्रतिशत गांवों ने ख़ुद को खुले में शौच की परेशानी से मुक्त कर लिया है. फिर भी उस गांव के बहुत से घरों में शौचालय नहीं थे. इसमें पीड़ित लड़की का घर भी शामिल था.
यही वजह है कि वो लड़की शौच के लिए उस दिन पास के गन्ने के खेत में गई थी. तभी नीरज मोदी उसका पीछा करते हुए खेत में पहुंच गया था.
जिला जज ने क्या कहा?
ज़िले के जज लव कुश कुमार ने अपने फ़ैसले में लिखा था कि नीरज मोदी ने खेत में लड़की का मुंह दबाकर बलात्कार किया था.
उन्होंने लिखा कि अभियुक्त ने लड़की से बलात्कार का वीडियो भी बना लिया था और उसे ख़ामोश रहने के लिए ये कहते हुए धमकाया था कि अगर उसने इस घटना के बारे में किसी को भी बताया तो वो ये वीडियो ऑनलाइन वायरल कर देगा.
बलात्कार के दस दिन बाद डरी हुई लड़की ने अपनी मां को इस घटना के बारे में बताया. मां अपनी बेटी की शिकायत लेकर पुलिस के पास पहुंचीं. अगले कुछ दिनों तक उनकी बेटी ने घटना के सबूत पुलिस को दिए. उसने पुलिस को बताया, ‘नीरज मोदी मुझे अक्सर स्कूल में मारता-पीटता था.’
नीरज मोदी की गिरफ़्तारी के बाद लड़की ने दोबारा स्कूल जाना शुरू किया. लेकिन, जब वो ज़मानत पर बाहर आ गया, तो उसकी पढ़ाई फिर बंद हो गई. उस घटना को चार साल बीत चुके हैं और लड़की तब से अब तक स्कूल नहीं जा सकी है. उसकी स्कूल की किताबें एक कबाड़ी को बेची जा चुकी हैं.
एक पीले से मुरझाए हुए चेहरे वाली वो लड़की अब अपना ज़्यादातर वक़्त उस अंधेरे कमरे में बिताती है.
मां ने बताया, ‘छात्रा के तौर पर उसकी ज़िंदगी अब तमाम हो चुकी है. मुझे अब उसको बाहर भेजने में बहुत डर लगता है. मैं बस ऊपरवाले से यही दुआ मांगती हूं कि हम किसी तरह उसकी शादी कर पाएं.’
अभी भी बहुत से सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं. गांव की पंचायत ने काग़ज़ों की ठीक से जांच पड़ताल के बिना कैसे उसकी मौत का सर्टिफिकेट जारी कर दिया? मां ने कहा , ‘जब मैंने बाद में उन्हें भेजा, तो उन्होंने माना कि उनसे ग़लती हुई है.’
मिलियन डेथ स्टडी क्या कहती है?
टोरंटो यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर प्रभात झा ने वक़्त से पहले मौत के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक स्टडी की है. वो कहते हैं कि नीरज मोदी का मामला ‘बहुत ही असामान्य और दुर्लभ था.
प्रभात झा अपने महत्वाकांक्षी मिलियन डेथ स्टडी का हवाला देते हुए कहा कि, ‘हमारी स्टडी के दौरान ऐसा एक भी मामला हमारी जानकारी में नहीं आया.’
प्रभात झा कहते हैं, ‘ऐसी हेरा-फेरी बहुत दुर्लभ है. ऐसे में हमें मौत का प्रमाण पत्र जारी करने से पहले और सख़्त जांच और प्रतिबंधों की व्यवस्था करनी होगी, वरना ऐसे मामले रजिस्ट्रेशन को और भी मुश्किल बना देंगे.’
इसकी वजह, चूंकि भारत में पुरुषों की तुलना में ज़्यादा औरतें और अमीरों की तुलना में ज़्यादा मौत और मेडिकल रजिस्ट्रेशन के दायरे में आने से वंचित रह जाते हैं.
ऐसे में संपत्तियों का बंटवारा और अगली पीढ़ी को सौंपने के काम जैसी कोशिशें और भी मुश्किल हो जाती हैं. इसी वजह से ‘लोग ग़रीबी के जाल में फंसे’ रह जाते हैं.
उधर गांव में हालात देखकर ऐसा लगता है कि पीड़ित लड़की की मां ने ज़िंदगी के हर पहलू को देख लिया है. एक तरफ़ तो बेटी को इंसाफ़ दिलाने की ख़ुशी है, तो दूसरी तरफ़ उन्हें चिंता भी सताए जा रही है.
वो कहती हैं, ‘मैंने गांव के लोगों और अधिकारियों से सच का पता लगाने की गुहार लगाई. मुझे ख़ुशी है कि जिस शख़्स ने मेरी बेटी की इज़्ज़त लूटी, उसके दामन पर दाग़ लगाया वो आज जेल में है. लेकिन मेरी बच्ची की ज़िंदगी तो ख़त्म हो गई. अब उसका क्या होगा?’