बॉर्डर पर तनाव के बीच काबुल में मिले तालिबान और पाकिस्तान के अधिकारी, क्या हुई बात?

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DMT : इस्लामाबाद : (22 फ़रवरी 2023) : –

पाकिस्तान के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में देश के आर्थिक मामलों के उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर अख़ुंद से मुलाक़ात की.

ये मुलाक़ात ऐसे वक़्त हुई जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार के पाकिस्तान के साथ लगी अहम सीमा क्रॉसिंग में से एक को बंद करने की ख़बरें सामने आई थीं. तालिबान प्रशासन ने ये फ़ैसला एकतरफ़ा अंदाज़ में लिया था.

पाकिस्तान के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई देश के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ कर रहे थे. इस प्रतिनिधिमंडल में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के डाइरेक्टर जनरल नदीम अंजुम भी शामिल थे.

अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात के पहले कहा था कि बॉर्डर के मुद्दे को बातचीत से सुलझा लिया जाएगा. वहीं, पाकिस्तान ने उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के काबुल में होने की जानकारी तो दी थी लेकिन बॉर्डर क्रॉसिंग बंद होने को लेकर कुछ नहीं कहा था.

पाकिस्तान के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात को लेकर तालिबान सरकार में आर्थिक मामलों के उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर अखुंद के दफ़्तर की ओर से ट्विटर पर जानकारी दी गई.

ट्विटर पर दी गई जानकारी के मुताबिक बैठक के दौरान मुल्ला अखुंद ने कहा, “पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान पड़ोसी हैं और उनके संबंध अच्छे होने चाहिए. अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान के साथ कॉमर्शियल और आर्थिक संबंधों पर ज़ोर देता है क्योंकि यही दोनों देशों के हित में है. सियासी और सुरक्षा संबंधी मुद्दों से हमारे व्यापारिक या आर्थिक संबंध प्रभावित नहीं हो सकते.

अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान की जेलों में बंद अफ़ग़ान कैदियों को रिहा करने की बात भी की है.

एक ट्वीट में बॉर्डर मुद्दे का भी ज़िक्र किया गया.

अपने ट्वीट में उप प्रधानमंत्री के कार्यालय ने लिखा, “तोरख़ाम और स्पिन बोलदाक की क्रॉसिंग में यात्रियों को अच्छी सुविधाएं दी जानी चाहिए. बीमार लोगों का अधिक ख़्याल रखना चाहिए. पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान को इन विषयों पर भरोसा दिलाया और कहा कि संबंधित विभाग इस पर जल्द ही काम करेंगे.”

बॉर्डर पर क्या है स्थिति?

तालिबान प्रशासन की ओर से तोरख़ाम बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद किए जाने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया था लेकिन अफ़ग़ान तालिबान प्रशासन ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की ओर बॉर्डर पर तैनात अधिकारी उनके नागरिकों के साथ बुरी तरह पेश आ रहे थे. पाकिस्तान के अधिकारियों ने इस दावे को ख़ारिज किया है लेकिन उनकी तरफ से इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की गई.

पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच करीब 2600 किलोमीटर की सीमा आपस में जुड़ती है. ख़ैबर दर्रे के पास तोरखाम कारोबार और आवाजाही का मुख्य रास्ता है और यहां लगातार हलचल जारी रहती है.

अब यहां सैकड़ों ट्रक कतार से खड़े हैं. इनमें से अधिकतर पर फल और सब्जियों जैसी चीजें लदी हैं जो जल्दी खराब हो सकती हैं. बॉर्डर के दोनों तरफ यात्री भी फंसे हुए हैं. बड़े नुक़सान की आशंका में घिरे कारोबारी परेशान हैं और अपनी सरकारों से मांग कर रहे हैं कि वो मामले को दोस्ताना तरीके से जल्दी सुलझा लें.

ये माना जा रहा है कि दोनों देशों के अधिकारियों की मुलाक़ात के बाद स्थिति सुधर सकती है.

अफ़ग़ानिस्तान एक लैंडलॉक्ड देश है यानी उसके करीब कोई समुद्री सीमा नहीं है. ऐसे में यहां से होने वाली कारोबारी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान एक अहम देश है.

छुटपुट व्यवधानों के बाद भी तोरखाम- जलालाबाद बॉर्डर साल भर व्यस्त रहता है. अफ़ग़ानिस्तान के तमाम संसाधन जब्त हैं. उस पर कड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध भी लगे हुए हैं. ऐसे में वो कारोबार के लिए इस रास्ते पर बहुत हद तक निर्भर है. इसके बंद होने से पहले से खस्ताहाल अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था को और अधिक चोट पहुंच रही है.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद से पाकिस्तान ने कई तरह के करों और वीजा प्रतिबंधों में ढील दी ताकि दोतरफ़ा कारोबार में इजाफा हो सके.

सीमा की क्रॉसिंग बंद होने के पहले बॉर्डर पर तैनात सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी हुई थी.

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कुछ घंटों तक भारी गोलीबारी की आवाज़ सुनी थी.

स्थानीय लोगों के मुताबिक उन्हें आशंका थी कि स्थिति और खराब होगी लेकिन मामला ठंडा पड़ गया. इस टकराव में पाकिस्तान का एक सैनिक घायल हुआ जबकि तालिबान के एक गार्ड की मौत हो गई. हालांकि, अब वहां संघर्ष विराम की स्थिति है लेकिन बॉर्डर अब भी बंद है.

क्यों बंद हुआ बॉर्डर?

अफ़ग़ानिस्तान प्रशासन का आरोप है कि पाकिस्तान की बॉर्डर फ़ोर्स के अधिकारी अफ़ग़ानिस्तान के यात्रियों के साथ ग़लत व्यवहार कर रहे हैं.

तालिबान प्रशासन के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने मीडिया को एक बयान जारी किया. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि यात्रियों के दस्तावेज फेंक दिए गए. पाकिस्तान में इलाज कराने जा रहे मरीजों के साथ भी सुरक्षा बल सख्ती से पेश आए. इन मरीजों में महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे.

उन्होंने ये भी कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारी इस मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत कर रहे हैं और बातचीत के जरिए ये मामला सुलझा लिया जाएगा.

अफ़ग़ानिस्तान के नांगहार प्रांत के सूचना विभाग के प्रमुख सिद्दीक़ुल्लाह क़ुरैशी ने कहा कि बीमार यात्रियों को ले जाने की सुविधा मुहैया कराने के वादे को पाकिस्तान ने पूरा नहीं किया. हालिया तनाव की यही वजह है.

दूसरी तरफ, पाकिस्तान ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है लेकिन उनके विदेश मंत्रालय और सेना के प्रवक्ता ने अब तक अफ़ग़ानिस्तान की ओर से आए बयान पर प्रतिक्रिया नहीं दी है.

हालांकि, नाम न जाहिर करने अनुरोध पर एक सरकारी अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि ये विवाद उस वक़्त शुरु हुआ जब बॉर्डर पर मौजूद अधिकारियों ने एक महिला के साथ मौजूद पुरुष अटेंडेंट (देखभाल करने वाले सहयोगी) को बिना वैध दस्तावेजों के पाकिस्तान में दाखिल होने से रोक गिया.

बुधवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्विटर पर ये जानकारी ज़रूर दी कि पाकिस्तान का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल अफ़ग़ानिस्तान में है जो वहां के अधिकारियों से बातचीत करेगा. लेकिन इस बयान में बॉर्डर मुद्दे का सीधे तौर पर ज़िक्र नहीं किया गया.

अफ़ग़ानिस्तान के लिए पाकिस्तान की बॉर्डर नीति अतीत में काफी नर्म रही है.

पाकिस्तान में अब भी हज़ारों की संख्या में अफ़ग़ान शरणार्थी हैं. इनमें से कुछ का पंजीकरण भी नहीं हुआ है.

लेकिन हालिया महीनों के दौरान सुरक्षा की स्थिति खराब हुई है और पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर हमले बढ़े हैं. इसके बाद से बॉर्डर पर तैनात अधिकारियों ने कड़ाई बढ़ा दी है. इसने अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान प्रशासन को नाराज़ कर दिया है. वो पाकिस्तान की ओर से इस तरह की सख्ती के आदी नहीं है.

पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के रिश्ते

अफ़ग़ान तालिबान ने साल 2021 में काबुल पर कब्जा किया. उसके बाद से पाकिस्तान और तालिबान प्रशासन के रिश्ते खराब हुए हैं.

टकराव की मुख्य वजह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी है. प्रतिबंधित संगठन टीटीपी को बीते दो दशक के दौरान पाकिस्तान के हज़ारों नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान लेने का दोषी बताया जाता है.

बीते सालों के दौरान उत्तर पश्चिमी जनजातीय इलाके में कई सैन्य अभियान चलाए गए और पाकिस्तान के अधिकारियों ने दावा किया कि इस इलाके को ‘आतकंवादी गतिविधियों’ से मुक्त कर दिया गया. टीटीपी के कई कमांडरों, लड़ाकों और समर्थकों को या तो मार दिया गया या फिर गिरफ़्तार कर लिया गया. टीटीपी नेतृत्व के बचे हुए लोग अफ़ग़ानिस्तान भागने पर मजबूर हो गए.

हालांकि, सुरक्षा मामलों के एक्सपर्ट की राय है कि जब से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया तब से टीटीपी को नई जान और प्रेरणा मिली है. पाकिस्तान का दावा है कि टीटीपी सीमा पार से हमले की साजिश रच रहा और उसे अंजाम दे रहा है. पाकिस्तान के हितों को चोट पहुंचाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान का तालिबान प्रशासन इन आरोपों को ख़ारिज करता रहा है. बीते साल उन्होंने पाकिस्तान के अधिकारियों और टीटीपी के बीच बातचीत कराई. इसके बाद अस्थाई संघर्ष विराम लागू हुआ. लेकिन जनसमर्थन की कमी की वजह से ये कामयाब नहीं हो सका. नवंबर 2022 में टीटीपी ने संघर्ष विराम से बाहर आने का एलान कर दिया और तब से वो सुरक्षा बलों पर हमले कर रहे हैं.

बीते महीने पेशावर की एक मस्जिद पर हुए हमले में सौ से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. मरने वालों में से अधिकतर पुलिसकर्मी थे. टीटीपी ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी.

सीमा पर संघर्ष

पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर संघर्ष की बात नई नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान की करज़ई और ग़नी की सरकारों के दौरान भी ऐसे संघर्ष होते रहे थे. तालिबान प्रशासन के काबिज होने के बाद भी ये सिलसिला जारी है. बढ़ते हमलों के बीच पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान प्रशासन पर दबाव बना रहा है कि वो टीटीपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें.

सुरक्षा मामलों से जुड़े एक्सपर्ट मानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की अंतरिम सरकार के लिए टीटीपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करना मुश्किल है. टीटीपी विचारधारा के स्तर पर उनके समान है और अमेरिका की अगुवाई वाली गठबंधन सेना के ख़िलाफ़ संघर्ष में उनका समर्थन करता रहा था. कई लड़ाकों के एक दूसरे से पारिवारिक रिश्ते भी हैं.

पाकिस्तान का समर्थन ज़रूरी

दूसरी तरफ़, तालिबान प्रशासन के बने रहने के लिए पाकिस्तान का समर्थन भी ज़रूरी है. दुनिया ने अब तक इसे वैध सरकार के तौर पर मान्यता नहीं दी है और वो मान्यता हासिल करने के लिए संघर्ष में जुटा है. ऐसे में अफ़ग़ान तालिबान दुविधा की स्थिति में हैं.

बीते सप्ताह म्यूनिख सिक्यूरिटी कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने अफ़ग़ान तालिबान के साथ बातचीत करने और उसे और अधिक समर्थन देने की वकालत की थी. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाने की कोशिश की थी कि अफ़ग़ानिस्तान में पनपता आतंकवाद का ख़तरा किस तरह दुनिया को प्रभावित कर सकता है. वो आईएस, अलक़ायदा और टीटीपी के ख़तरे की ओर इशारा कर रहे थे.

अफ़ग़ान प्रशासन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर पाकिस्तान के विदेश मंत्री की टिप्पणी का स्वागत किया. साथ ये भी कहा कि पाकिस्तान को दो पक्षीय मामलों को “अफ़ग़ानिस्तान सरकार के सामने उठाना चाहिए न कि इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में शिकायत करनी चाहिए.”

बयान में ये भी कहा गया कि तालिबान प्रशासन अपनी ज़मीन को दूसरे देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देगा.

बयान में कहा गया, “पाकिस्तान की हालिया असुरक्षा नई नहीं है लेकिन ये स्थिति बीते दो दशक से बनी हुई है. आईईए इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को दूसरे देशों खासकर अपने पड़ोसियों के ख़िलाफ़ किसी को इस्तेमाल नहीं करने देंगे. “

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