भारत की कामयाबी में क्या रूस ने लगाया अड़ंगा? क्या हैं विकल्प

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DMT : रूस  : (06 मार्च 2023) : –

दुनिया भर की 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के विदेश मंत्री गुरुवार को नई दिल्ली में जुटे थे.

भारत की डिप्लोमैसी के लिए यह परीक्षा की तरह थी कि इस बैठक का अंत सबकी सहमति से एक साझे बयान के साथ हो. लेकिन यूक्रेन संकट के कारण ऐसा नहीं हो पाया.

इस साल भारत की अध्यक्षता में जी-20 देशों के मंत्रियों की यह दूसरी बैठक थी.

दोनों बैठकों में भारत रूस और चीन को साझे बयान पर सहमत नहीं करा पाया. इस बार भी रूस और चीन साझे बयान के दो पैरे से सहमत नहीं थे.

इन दोनों पैरे में यूक्रेन पर रूस के हमले की बात थी. भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि बयान में यूक्रेन संकट पर वही बात कही गई थी जो पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 समिट में कही गई थी.

बागची ने कहा कि बाली डिक्लेरेशन का ही दोहराव था लेकिन रूस और चीन तैयार नहीं हुए.

भारतीय विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने बैठक से अलग अमेरिकी, चीनी और रूसी विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी ताकि एक साझे बयान पर सहमति बन सके.

लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण बैठक बुरी तरह से विभाजित दिखी. चीन और रूस के विदेश मंत्रियों को भारत साझे बयान के लिए सहमत कराने में नाकाम रहा.

जयशंकर ने इस बात को स्वीकार भी किया कि यूक्रेन संघर्ष के कारण जी-20 में एकता कायम करने के लिए जूझना पड़ रहा है.

साल 2023 के लिए जी-20 की अध्यक्षता मिलने को भारत वैश्विक नेता और उभरती हुई शक्ति बनने के मौक़े के तौर पर ले रहा है.

भारत की कोशिश थी कि वह यूक्रेन संकट में पश्चिम और रूस के बीच सेतु का काम करे और साथ ही ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ के तौर पर उभरे. ग्लोबल साउथ में मुख्य रूप से दुनिया के ग़रीब और विकासशील देश आते हैं.

गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक का आग़ाज़ किया था.

पीएम मोदी ने इस बैठक को संबोधित करते हुए कहा था, ”पिछले कुछ सालों का अनुभव है कि वित्तीय संकट, जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद और युद्ध को लेकर वैश्विक व्यवस्था नाकाम रही है.”

“हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि इस नाकामी का खामियाजा विकासशील देश भुगत रहे हैं. यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक मतभेद बढ़े हैं लेकिन ये अच्छा होगा कि जी-20 में आए विदेश मंत्री आपसी मतभेदों को भुला दें.”

कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ख़ुद को दुनिया के मंच पर ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनाने की कोशिश कर रहा है.

लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण जब दुनिया बुरी तरह से बँटी है, ऐसे में भारत क्या ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन सकता है? कई लोग इसे भारत के लिए मौक़े के तौर पर भी देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि भारत पश्चिम और रूस के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी अदा कर सकता है.

ग्लोबल पॉलिसी थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो पैसिफिक के विश्लेषक डेरेक ग्रोसमैन ने लिखा है, ”मैं वाक़ई यह मानता हूँ कि भारत के पास अच्छा मौक़ा है कि वह रूस और पश्चिम के बीच वार्ता कराए. भारत ऐतिहासिक रूप से किसी अन्तरराष्ट्रीय गुट में नहीं रहा है. भारत की गुटनिरपेक्षता वाली विश्वसनीयता है. इस वजह से भारत एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है.”

साझे बयान पर भले सहमति नहीं बनी लेकिन नई दिल्ली में रूस और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात हुई.

पिछले साल 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर रूस ने हमला किया था और तब से दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की यह पहली मुलाक़ात थी. अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन से रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ख़ारोवा ने इस मुलाक़ात की पुष्टि की थी. कहा जा रहा है कि दोनों विदेश मंत्रियों के बीच मुलाक़ात 10 मिनट तक चली थी लेकिन कोई बात नहीं बन पाई थी.

रूस का यूक्रेन पर हमले का यह दूसरा साल चल रहा है. इस दौरान भारत का रुख़ संतुलनवादी रहा. लेकिन भारत पर भी दबाव बढ़ रहा है कि वह यूक्रेन संकट में कोई ठोस रुख़ अपनाए. पिछले साल उज़्बेकिस्तान में पीएम मोदी ने जब रूसी राष्ट्रपति से कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है तो इस टिप्पणी को पश्चिम के नेताओं ने हाथोंहाथ लिया था.

क्या भारत की डिप्लोमौटिक नाकामी है?

भारत में इस साल जी-20 की दो बैठकों में साझे बयान पर सहमति नहीं बनना क्या मोदी सरकार की डिप्लोमैटिक नाकामी है?

इस सवाल के जवाब में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने लिखा है, ”मैं नहीं मानता हूँ कि साझा बयान जारी नहीं होना भारत की कोई डिप्लोमौटिक नाकामी है. वास्तव में जी-20 समिट राजनीतिक विषयों पर चर्चा के लिए नहीं था. भारत अपने फ़ायदे के लिए दोनों पक्षों से जुड़ा रहेगा.”

कई देशों में भारत के डिप्लोमैट रहे सुरेंद्र कुमार मानते हैं कि जब जी-20 के तीन शक्तिशाली देश अमेरिका, रूस और चीन सेम चैप्टर पर नहीं हैं.

सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ” यूएस और यूरोप को भारत इस बात के लिए नहीं मना सकता है कि वह यूक्रेन पर रूस की बात मान ले और रूस को भी नहीं मना सकता है कि वह युद्ध ख़त्म कर दे.”

एक और दो मार्च को जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में 40 देशों के प्रतिनिधि आए थे. भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि यह जी-20 के विदेश मंत्रियों की अब तक की सबसे बड़ी बैठक थी.

पिछले साल बाली में जी-20 की बैठक के बाद साझा बयान जारी हुआ था. जी-20 की बाली बैठक के साझे बयान में भी यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर भाषा सख़्त थी लेकिन तब रूस और चीन ने आपत्ति नहीं जताई थी.

भारत ने भी सहमति बनाने में मदद की थी. अब वही रूस और चीन बाली वाले बयान को ही भारत में नकार रहे हैं.

सुरेंद्र कुमार का मानना है कि बाली से दिल्ली आते-आते चीज़ें बदल गई हैं. सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ”अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 20 फ़रवरी को अचानक यूक्रेन पहुँच गए थे. इससे रूस बहुत नाराज़ है. बाली के वक़्त में बाइडन यूक्रेन नहीं गए थे. चीज़ें लगातार बदल रही हैं और भारत हर चीज़ को नियंत्रित नहीं कर सकता है.”

क्या भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन सकता है?

जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों ने ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की बात की.

भारत जी-20 बैठक को यूक्रेन संकट में खपने नहीं देना चाहता है. भारत की कोशिश है कि बढ़ती महंगाई, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर भी बात हो.

इसी साल भारत ने 12 और 13 जनवरी को ‘वॉइस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ का आयोजन किया था. भारत ने इसमें 120 देशों को आमंत्रित किया था.

यह समिट वर्चुअल था. इसमें बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे समेत दुनिया और बड़े नेता शामिल हुए थे.

इस समिट की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. चीनी मीडिया में तब रिपोर्ट छपी थी कि इस बैठक में चीन को आमंत्रित नहीं किया गया था. चीन के अलावा पड़ोसी पाकिस्तान और जी-20 के एक और सदस्य ब्राज़ील को भी नहीं बुलाया गया था.

चीनी अख़बारों में यह भी लिखा गया कि चीन को भारत ने नहीं बुलाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारत विकासशील दुनिया का नेता बनना चाहता है.

सात जनवरी को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास आने के बाद कहा था, ”आज की तारीख़ में विकासशील देश तेल, खाद्य सामग्री और उर्वरक की बढ़ती क़ीमतों से परेशान हैं. विकासशील देशों पर बढ़ते क़र्ज़ और ख़राब होती अर्थव्यवस्था से भी चिंताएं बढ़ रही हैं. ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनें.”

भारत के पास जी-20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के ही देश इंडोनेशिया से आई है. भारत भी ग्लोबल साउथ का ही देश है. 2024 और 2025 में जी-20 की अध्यक्षता क्रमशः ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका के पास जाएगी.

ये दोनों देश भी ग्लोबल साउथ के ही हैं. जब दुनिया की शक्तिशाली देशों के बीच टकराव चरम पर है, वैसे में जी-20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के देशों के पास है. इस टकराव के कारण डर है कि जी-20 में बाक़ी के मुद्दे पीछे ना छूट जाएं. जी-20 की अध्यक्षता भले इस साल भारत के पास है लेकिन बाक़ी के अहम संस्थानों में भारत के पास कोई निर्णायक शक्ति नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आईएमएफ़ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वर्ल्ड बैंक में भारत का कोई मज़बूत हस्तक्षेप नहीं है. पिछले साल इंडोनेशिया यूक्रेन और रूस युद्ध की छाया से जी-20 की बैठक को बचाने में कामयाब रहा था.

रूस का अड़ंगा?

अब यही चुनौती भारत के सामने है कि वह जी-20 में कैसे सहमति बनाए. जी-20 में भारत की कामयाबी रूस और चीन पर भी बहुत हद तक निर्भर करेगा. चीन के साथ भारत के रिश्ते ठीक नहीं हैं और यूक्रेन पर हमले के बाद से कहा जा रहा है कि रूस और चीन की क़रीबी बढ़ी है? ऐसे में भारत इससे कैसे निपटेगा?

तीन मार्च को नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग में रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ से यही पूछा गया कि चीन और रूस की दोस्ती से भारत और रूसी की दोस्ती कैसे प्रभावित हो रही है?

इस सवाल के जवाब में लावरोफ़ ने कहा था, ”हम किसी के ख़िलाफ़ कभी दोस्त नहीं बनाते हैं. रूस का चीन से शानदार संबंध है और भारत से भी बेहतरीन संबंध है. भारत और रूस के नेताओं ने जिन दस्तावेज़ो पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें साफ़ कहा गया है कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध है. भारत के साथ जो संबंध है, वह किसी और के साथ नहीं है. भारत के साथ संबंध हर क्षेत्र में है. रूस चाहता है कि भारत और चीन दोस्त रहें. हम इसके लिए कोशिश भी कर रहे हैं. हमारे पूर्ववर्ती येवगेनी प्रिमाकोव ने आरआईसी- रशा-इंडिया-चाइना बनाया था. फिर हमने ब्रिक्स बनाया. अब ब्रिक्स का विस्तार हो रहा है. भारत अब एसएसीओ का भी सदस्य है.”

रूस अगर भारत और चीन को साथ लाना चाहता है तो जी-20 की बैठक में साझे बयान पर सहमति बनाने में मदद क्यों नहीं की? क्या रूस भारत में जी-20 की कामयाबी में अड़ंगा लगा रहा है?

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में मध्य एशिया और रूसी अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह कहते हैं, ”बाली से दिल्ली आते-आते कई चीज़ें बदल गई हैं. अमेरिका ने चीन के ‘जासूसी गुब्बारे’ मारकर गिराए जो चीन को पंसद नहीं आया और अमेरिका में चीनी ‘जासूसी गुब्बारे’ का होना बाइडन प्रशासन को पसंद नहीं आया. “

“इसके अलावा चीन यूक्रेन और रूस के बीच शांति प्रस्ताव लेकर आया है. चीन नहीं चाहता है कि रूस और यूक्रेन में शांति की शुरुआत में भारत की कोई भूमिका हो. दूसरी ओर पश्चिम क़तई नहीं चाहता है कि चीन की कोई मध्यस्थता हो.”

अमिताभ सिंह कहते हैं, ”रूस अपने ख़िलाफ़ किसी प्रस्ताव पर सहमति नहीं दे सकता है. जहाँ तक बाली की बात है तो बाली से लावरोफ़ नाराज़ होकर चले गए थे. उनके जाने के बाद प्रस्ताव पास हुआ था.”

“भारत को उम्मीद थी कि रूस साझे बयान पर सहमति बनाने में मदद करेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. रूस ने पूरी तरह से असहयोग दिखाया. यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की क़रीबी चीन से बढ़ी है इसलिए भारत के लिए और मुश्किल स्थिति हो गई है. भारत रूस से उम्मीद तो करता है लेकिन रूस के साथ चीन आएगा तभी वह भारत को मदद करेगा. मुझे लगता है कि भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता की चुनौती और बढ़ गई है.”

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