मध्य प्रदेश में गर्म सलाखों से दागने की कुप्रथा ने तीन माह की दो बच्चियों की जान ली

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DMT : भोपाल  : (05 फ़रवरी 2023) : –

मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले में क़रीब तीन माह की दो बीमार बच्चियों की मौत इसलिए हो गई क्योंकि उसके परिवार ने उसका इलाज कराने के लिए ‘गर्म सलाखों से दाग कर ठीक करवाने की प्रथा’ का इस्तेमाल किया.

शुक्रवार को एक बच्ची के शव को दफना दिया गया था लेकिन शनिवार को प्रशासन ने उसे क़ब्र से निकाल कर उसका पोस्टमॉर्टम कराया.

शहडोल से मिली जानकारी के मुताबिक़, गांव में इलाज उपलब्ध नहीं होने की वजह से परिवार वालों ने झाड़-फूंक करने वाली एक महिला का सहारा लिया.

उस क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के मुताबिक, झाड़-फूंक करने वाली उस महिला ने बच्ची के शरीर को 51 बार गर्म सलाखों से दागा था. (कितनी बार दागा गया है ये शरीर पर पड़ने वाले निशान से पता चलता है.)

जब ये मामला तूल पकड़ने लगा तो प्रशासन ने बच्ची को क़ब्र से निकाल कर पोस्टमॉर्टम करवाया.

सिंहपुर थाना क्षेत्र के गांव कठौतिया में इस तीन माह की बच्ची रुचिका कोल को दागने की घटना 25 जनवरी को हुई थी.

बच्ची की हालत नाज़ुक होने के बाद उसे शहडोल के ज़िला सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया जो गांव कठौतिया से क़रीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन बच्ची को नहीं बचाया जा सका. उसकी मौत हो गई.

सीएमएचओ का क्या है कहना?

ज़िले के मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ अधिकारी (सीएमएचओ) आरएस पांडेय के मुताबिक बच्ची को निमोनिया था और गांव के पदस्थ स्वास्थ्यकर्मी उसके परिवार को उसे (बच्ची को) ज़िला अस्पताल ले जाने की सलाह दे रहे थे.

उन्होंने बताया कि सलाखों से दागने के बाद बच्ची के निमोनिया का इन्फेक्शन और बढ़ गया, जो उसकी मौत की वजह बन गया.

बच्ची की मां रोशनी कोल का कहना है कि सांस लेने में आ रही दिक़्क़त की वजह से उसे स्थानीय महिला को दिखाया.

मां ने ये भी बताया, “परिवार के अन्य सदस्यों के ज़ोर देने की वजह से उसने दागने की सहमति दे दी थी.”

वहीं शहडोल ज़िला कलेक्टर वंदना वैद्य ने बीबीसी हिंदी को बताया कि बच्ची की मौत के मामले में (बच्ची को) दागने वाली महिला पर मामला दर्ज कर लिया गया है.

उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, “शहडोल में यह कुरीति बहुत लंबे समय से चल रही है और शासन-प्रशासन लगातार अभियान चलाकर इसे ख़त्म करने की कोशिश कर रहा है. इस मामले में महिला एवं बाल विकास आयोग ने बच्ची को दागने वाली महिला के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करवा दिया है ताकि दूसरे लोगों को भी सबक़ मिले.”

दागने का एक और मामला आया

अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि शनिवार को एक अन्य मामला सामने आ गया. इस मामले में तीन महीने की बच्ची को 24 बार गर्म सलाखों से दागा गया था, इलाज के दौरान शनिवार रात उसकी भी मौत हो गई.

यह मामला कठौतिया गांव (जहां पर पहली घटना हुई वहां) से 3 किलोमीटर दूर सलामतपुर गांव का है.

इस घटना में भी बच्ची शुभी कोल को सांस लेने में दिक्क़त हो रही थी.

उसके पिता सूरज कोल और मां सोनू कोल उसे एक महिला के पास ले गए इस मामले में भी बच्ची को 24 बार गर्म सलाखों से परिवार की सहमति से दागा गया लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

दागने की प्रथा

ज़िले में आदिवासियों के बीच यह प्रथा बरसों से प्रचलित है. इसे ‘दगना’ कहा जाता है.

इसमें बीमार होने की स्थिति में बच्चों को गर्म सलाखों से दागा जाता है.

यह प्रथा छोटे बच्चों के लिए बहुत पीड़ादायी है और कई बार वो दर्द सहन नहीं कर पाते जिससे उनकी मौत हो जाती है.

इस क्षेत्र में लंबे से समय से चली आ रही इस कुप्रथा के कारण ही यहां के लोग अस्पताल का रुख कम ही करते हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि ज़्यादातर ग़रीब आदिवासी परिवारों के बच्चे कुपोषण से ग्रसित होते हैं. जन्म लेने के बाद जब इन्हें बीमारी होती है तो यहां के लोग इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों के पास ही जाते हैं. जहां कई बार सलाखों से दागने के उपाय के साथ इलाज किया जाता है.

प्रशासन कैसे कर रहा जागरुक

कलेक्टर वंदना का कहना है कि ज़िले में निकलनी वाली विकास यात्रा में इस मुद्दे को प्रमुखता से लिया जाएगा ताकि लोगों के बीच जागरूकता पैदा की जा सके.

उनका कहना है कि लाडली लक्ष्मी योजना के तहत जिन बच्चियों को लाभ मिला है वो सामने आकर इस प्रथा के ख़िलाफ़ लोगों को समझाएंगी.

हालांकि वंदना वैद्य ये भी बताती हैं कि आज भी जब इस इलाके से महिलाएं अस्पताल जाती हैं तो उन्हें यह शपथ दिलाई जाती है कि किसी भी परिस्थिति में वो बच्चों को दागने के लिए नहीं ले जाएंगी.

उनका ये भी कहना है कि पहले ये प्रथा बहुत ज़्यादा आम थी लेकिन अब यह काफी कम हो चुकी है.

वहीं सीएमएचओ आरएस पांडेय ने बताया कि पहले से ही आंगनबाड़ी और एएनएम (ऑग्ज़िलरी नर्स ऐंड मिड वाइफ़) को आदेश दिया गया है कि वो लोगों को समझाएं कि किसी भी तरह से बच्चों को दागना नहीं है.

उन्होंने बताया, “अब लोगों को सख्ती से समझाया जाएगा ताकि वह इससे बचें.”

ग़ैर सरकारी संगठन सरोकार की फाउंडर मेंबर कुमुद सिंह इस प्रथा को क्रूर बताते हुए कहती हैं कि इस पर सरकार को सख़्त से सख़्त क़दम उठाना चाहिए.

उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, “यह बहुत ज़रूरी है कि प्रशासन के सारे अंग एक साथ आकर इसके ख़िलाफ़ मुहिम चलाएं ताकि इसे पूरी तरह से रोका जा सके. इस पर लगातार काम किया जाना चाहिए. देखने में आता है कि जब ऐसे मामले आते हैं तो हम बढ़चढ़ कर बात करने लगते हैं और फिर शांत बैठ जाते हैं. लेकिन यह मुहिम है जिसे हमेशा जारी रखना चाहिए.”

यहां डॉक्टरों के 95 फ़ीसदी पद खाली हैं.

सूबे के अधिकांश अस्पताल में महिला, बाल रोग समेत विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं लिहाज़ा राज्य की राजधानी से सटे ज़्यादातर ज़िलों से मरीज़ों को भोपाल रेफ़र कर दिया जाता है.

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