DMT : दिल्ली : (08 फ़रवरी 2023) : –
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी महिला अभियुक्त का वर्जिनिटी टेस्ट कराना असंवैधानिक है और ये संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है.
एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा का कहना था कि वर्जिनिटी टेस्ट ‘सेक्सिस्ट’ है और हिरासत में महिला अभियुक्त का ऐसा टेस्ट कराना उनकी प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन करता है.
अदालत ने ये भी कहा कि ये टेस्ट न आधुनिक है और न ही वैज्ञानिक है, बल्कि ये पुराने और अतार्किक हैं.
कोर्ट का ये भी कहना था कि महिलाओं पर ऐसे टेस्ट को आधुनिक विज्ञान और मेडिकल क़ानून ने भी अपनी स्वीकृति नहीं दी है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने रेप के मामलों की जाँच के लिए इस्तेमाल होने वाले ”टू-फ़िंगर टेस्ट” के बारे में फ़ैसला सुनाया था.
कोर्ट ने जाँच के इस तरीक़े को मेडिकल की पढ़ाई से हटाने का आदेश दिया था और इसे ”पितृसत्तात्मक और अवैज्ञानिक” बताया था.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि टू-फ़िंगर टेस्ट को मेडिकल कॉलेज की अध्ययन सामग्री से हटाया जाए. साथ ही अदालत ने ये भी कहा था कि रेप पीड़िता की जाँच के लिए अपनाया जाने वाला ये तरीक़ा अवैज्ञानिक है, जो पीड़िता को फिर से प्रताड़ित करता है.
ये मामला क्या है?
दिल्ली हाई कोर्ट ने सिस्टर अभया हत्या मामले में सिस्टर सेफ़ी की याचिका पर सुनवाई करते हुए वर्जिनिटी टेस्ट को असंवैधानिक बताया है.
ये वर्ष 1992 का मामला है.
इस मामले में सिस्टर सेफ़ी के वकील रोमी चाको बताते हैं कि इस मामले को क्राइम ब्रांच ने पहले आत्महत्या का मामला बताया.
लेकिन फिर केरल हाई कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और जाँच एजेंसी को इस मामले की जाँच के निर्देश दिए.
इसके बाद इस मामले को सीबीआई को सौंपा गया.
दिल्ली हाई कोर्ट में वकील रोमी चाको बताते हैं, ”सीबीआई ने अपनी जाँच में पहले आत्महत्या और फिर हत्या बताया. लेकिन चीफ़ जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत के साथ-साथ उच्च अदालतों ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया. इसके बाद सीबीआई ने अपनी जाँच में सिस्टर अभया की मौत को हत्या बताया और इस मामले तीन लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया, जिनमें दो फ़ादर और सिस्टर सेफ़ी का नाम लिया गया.”
इसके बाद उनकी गिरफ़्तारी हुई. बाद में उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया और फिर चार्ज़शीट दाखिल की गई.
वकील रोमी चाको बताते हैं, ”जब सिस्टर सेफ़ी को कस्टडी में लिया गया, तब उनका वर्जिनिटी टेस्ट लिया गया और जिस चीज़ को साबित करने के लिए ये करवाया गया वो शॉकिंग था.”
वे आगे कहते हैं, ”इस जाँच टीम ने कहा कि 1992 में जब एक दिन सुबह सिस्टर अभया जगीं, तो उन्होंने दोनों फादर और सिस्टर सेफ़ी को आपत्तिजनक स्थिति में देखा इसलिए सिस्टर अभया की हत्या हुई और 17 साल बाद सिस्टर सेफ़ी का वर्जिनिटी टेस्ट किया गया ताकि ये साबित किया जा सके कि इस मामले को छिपाने के मक़सद से हत्या हुई. तो समझिए किस तरह से पावर का इस्तेमाल किया गया है.”
बहरहाल इस मामले में एक फ़ादर को रिहा कर दिया गया, लेकिन बाक़ी दो के ख़िलाफ़ कार्रवाई चलती रही.
वकील बताते हैं, ”इस टेस्ट के बाद पता चला कि सिस्टर वर्जिन थीं और उसके बाद सिस्टर सेफ़ी पर आरोप लगाया गया कि उनके वजाइना में स्क्रैच है, जिसका मतलब ये हुआ कि उन्होंने हाइमनोप्लास्टी करवाई है ताकि वो इस मामले में बच सके. इसके बाद सिस्टर ने मुझे अप्रोच किया.”
डॉक्टरों के मुताबिक़ खु़द को वर्जिन साबित करने के लिए लड़कियाँ हाइमनोप्लास्टी करवाती है. लड़कियों के वजाइना में एक झिल्ली होती है, जिसे हाइमन कहा जाता है. सेक्स के बाद या कई बार जो लड़कियाँ स्पोर्ट्स में होती है, उनकी ये झिल्ली डैमेज हो जाती है.
डॉक्टर इस झिल्ली को सर्जरी के ज़रिए फिर रिस्टोर कर देते हैं, जिसे हाइमनोप्लास्टी कहा जाता है.
वकील ने इस मामले में साल 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका डाली और कहा कि तीनों अभियुक्त दिल्ली में ही है, इसलिए ये केस दिल्ली में लड़ा जा सकता है.
इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि हत्या के मामले की सच्चाई जानने के लिए अभियुक्त सिस्टर सेफ़ी का वर्जिनिटी टेस्ट किया गया.
ऐसे टेस्ट यौन हिंसा की पीड़िता हो या ऐसी महिला जो हिरासत में हो, उनके लिए ये दर्दनाक होता है. साथ ही ऐसा टेस्ट किसी के भी मानसिक और शरीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है.
इस मामले में सीबीआई के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की अपील पर कोर्ट का कहना था कि साल 2008 में जब ये जाँच सिस्टर सेफ़ी पर की गई, उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कोई दिशानिर्देश नहीं दिए थे और इस तरह की जाँच को असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का हनन भी नहीं कहा था.
मौलिक और निजता के अधिकार का हनन
सुप्रीम कोर्ट की वकील कामिनी जयसवाल कहती हैं कि इस मामले में हत्या का मकसद तलाशने के लिए और ये साबित करने के लिए कि दोनों अभियुक्तों के बीच संबंध थे , सिस्टर सेफ़ी पर वर्जीनिटी टेस्ट किया गया. इसका कोई मतलब नहीं बनता है. जाँचकर्ता को इसे साबित करने के लिए और सबूत तलाशने चाहिए थे.
वे कहती हैं, ”एक व्यक्ति चाहे अभियुक्त हो या दोषी क़रार दिया गया हो उसके मौलिक अधिकार तो तब भी बने रहेंगे और उसके निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता हैं.”
साथ ही वे कहती हैं कि ये विडंबना ही है कि जब भी कोई मामला आता है, एक महिला के चरित्र पर सवाल उठाने शुरू हो जाते हैं.
वहीं झारखंड के पूर्व डीजीपी राजीव कुमार कहते हैं कि उनके सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया, जहाँ महिला अभियुक्त का वर्जिनिटी टेस्ट कराया गया हो.
वो कहते हैं,”जब पुलिस किसी की गिरफ़्तारी करती है तो उसके 24 घंटें के भीतर उसे स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है. वहीं इससे पहले अभियुक्त की मेडिकल जाँच होती है ताकि ये पता चल सके कि पुलिस की तरफ़ से कोई ज़्यादती नहीं हुई है.”
इस मामले में केरल हाई कोर्ट ने अभियुक्त को दोषी ठहराया, लेकिन फ़िलहाल वो अंतरिम ज़मानत पर हैं लेकिन अभी उनकी अपील पर सुनवाई होनी बाक़ी है.