DMT : यूक्रेन : (18 फ़रवरी 2023) : –
यूक्रेन के पश्चिम में रूसी युद्धबंदियों के लिए बनाई गई इस जेल में अभी हम भीतर आए ही थे कि रूसी मिसाइलें जैसे यूक्रेन का मज़ाक उड़ाती हुईं आसमान से गुज़रती दिखाई दीं.
रूसी सैनिक, भाड़े के सैनिक और मिलिट्री ट्रेनिंग लिए रिज़र्व सैनिक सैकड़ों की संख्या में इस कामचलाऊ इमारत में रखे गए हैं. यूक्रेन में इस तरह की ऐसी क़रीब 50 जगहें बनाई गई हैं जहां रूसी सैनिकों और भाड़े के सैनिकों को क़ैद कर रखा गया है.
हमें एक तहखाने में ले जाया गया ताकि हम रूसी हमले से बचने के लिए यहां रह रहे दर्जनों सैनिकों से मिल सकें, दूर से यूक्रेनी वायु सेना की कार्रवाई की तेज़ और स्पष्ट गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थीं.
इस युद्ध में युद्धबंदियों की अदला-बदली एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया बन गई है और कीएव के लिए यह अहम है कि ये बदस्तूर चलता रहे.
यूक्रेन ने इसी महीने बताया कि युद्धबंदियों की अदला-बदली के तहत अब तक उसे 1,762 महिला, पुरुष सैनिकों को छुड़ाने में कामयाबी हासिल हुई है.
ये बहुत ही संवेदनशील ऑपरेशन होता है, जिसके लिए समझौता करने में ही अक्सर महीनों लग जाते हैं.
जेनेवा कन्वेंशन के तहत जनता के सामने युद्धबंदियों की न तो परेड करवाई जाती है और न ही उनकी पहचान उजागर की जाती है.
इस जेल में हमें उन लोगों से संपर्क करने की अनुमति दी गई जिनसे हम मिलना चाहते थे और उसके लिए उनकी सहमति हमने मांगी थी.
लेकिन हम जहां भी गए, गार्ड लगातार हमारे साथ थे, तो जिनसे हम मिलने गए थे उनका हमारे साथ खुल कर बोलना संभव नहीं था.
कई लोगों ने तो पहचान छुपाने के लिए अपने चेहरे तक छुपा लिए थे.
इस जेल में गार्ड हमें ये दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि यहां युद्धबंदियों के साथ अच्छा व्यवहार होता है.
एक लड़ाके ने कहा कि वो भाड़े के सैनिकों के एक समूह के साथ काम करते थे. उन्हें इस जेल में तीन दिन पहले ही लाया गया था, पूर्वी शहर सोलेदार में उन्हें क़ैद में लिया गया था. बीते महीने रूसी सैनिकों ने यहां पर क़ब्ज़ा जमा लिया है.
कुछ लोग हमें टकटकी लगा कर देख रहे थे. इन्हीं में से एक ने हमें बताया कि उन्हें बीते वर्ष 29 दिसंबर को लुहांस्क से पकड़ा गया था.
वे बोले, “उम्मीद है कि जल्द ही मेरी अदला-बदली हो जाएगी. और उम्मीद ये भी है कि मुझे दोबारा सेना में नहीं आना पड़े.”
मैंने जब पूछा कि, “अगर आपके पास कोई विकल्प न हो तो?”
तो वे एक पल के लिए खामोश रहे और फिर बोले, “मेरे पास कुछ आइडिया है. मैं अपने मन से सरेंडर करके वापस आ जाऊंगा.”
इस शेल्टर से वापस निकलने तक हम यह समझ चुके थे कि यहां रखे गए आधे युद्धबंदी घायल हैं.
कुछ के हाथ पर और कुछ के पैर पर पट्टियां लगी थीं, तो और कुछ लंगड़ा कर चल रहे थे.
एक युवा यह बताते हुए भावुक हो गए कि कैसे एक ग्रेनेड के फटने से उन्होंने अपना पैर खो दिया.
सिगरेट और मिठाइयों पर ख़र्च करते हैं पैसे
फिर हम जैसे ही एक ड्रिलिंग मशीन की लयबद्ध आवाज़ की दिशा में आगे बढ़े हमें एक छोटी प्रोडक्शन लाइन देखने को मिली जहां युद्धबंदी एक साथ आउटडोर फ़र्नीचर सेट बना रहे थे.
वे यहां अपना सिर नीचे कर काम कर रहे थे.
हमें बताया गया कि एक स्थानीय कंपनी ने इस जेल के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है, तो इसका मतलब था कि यहां रखे गए क़ैदी कुछ पैसा भी बना सकते हैं, इनमें से अधिकांश युद्धबंदी इन पैसों को सिगरेट और मिठाइयों पर ख़र्च करते हैं.
अधिकतर युद्धबंदियों से इस तरह के काम ही करवाए जाते हैं. जाहिर तौर पर रूसी सेना के अधिकारियों के पास अन्य विकल्प भी हैं.
लंच के समय क़ैदियों को ऊपर की मंज़िल पर बने एक कैंटीन में ले जाया जाता है. यहां की खिड़की से बाहर ठंडी हवा में यूक्रेन का झंडा लहराता दिखता है.
युद्धबंदी तेज़ी से और खामोशी से खाते हैं.
जब खाना ख़त्म हो जाता है तो वो एक-एक कर कतार में उठते हैं और एक परफेक्ट कोरियोग्राफ़ी की तरह यूक्रेनी भाषा में चिल्लाते हैंः “थैंक्यू फॉर लंच!”
यहां क़ैदियों को यूक्रेनी भाषा में टीवी देखने को मिलता है, जिसमें यूक्रेन के इतिहास और दक्षिण के शहर मारियुपोल के बारे में डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है, जिसे रूस ने महीनों की बमबारी में लगभग पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है.
अंत में यूक्रेन के वो कुछ सैनिकों से अपनी बात कहते हैं जिन्होंने मारियुपोल में रूसी सैनिकों का मुक़ाबला किया था.
हमने एक क़ैदी से पूछा कि उसने जो देखा, क्या उसे समझ भी सका?
उसने कहा, “हां बहुत हद तक. मुझे ये शिक्षाप्रद लगी.”
इसके बाद हमें उम्मीद थी कि वो यूक्रेन के बारे में कोई अप्रिय बात नहीं बोलेगा.
बहुत संभव है कि कमरे में मौजूद कुछ रूसी सैनिक इस प्रोग्राम की बातें नहीं समझ सके हों या वो इसे समझना ही नहीं चाहते हों, फिर भी उन्हें यही देखना पड़ेगा.
हमारे साथ मौजूद गार्ड्स के मुताबिक इस जेल से हर दो हफ़्ते में एक फ़ोन कॉल करने की इजाज़त है. उनके परिवार वालों के लिए अक़्सर ये पहला मौक़ा होता है जब उन्हें पता चलता है कि उनके बेटे को पकड़ लिया गया है.
एक युवा क़ैदी की मां की बात फ़ोन पर सुनी जा सकती है, “तुम कहां हो? मैं तुम्हारे बारे में आधे शहर को पूछ चुकी हूं!”
“रुको मां. मैं यहां क़ैद में हूं. मैं कुछ और नहीं बोल सकूंगा.”
तब मां रोने से पहले पूछती हैं, “उन ख़ूनी यूक्रेनियों के क़ब्ज़े में?”
बेटा मां से कहता है, “बस, मां. मत रो.”
फिर वो कहता है, “सबसे अहम बात ये है कि मैं ज़िंदा हूं और स्वस्थ हूं.”
कुछ क़ैदियों की कॉल पर कोई जवाब नहीं मिला, उन्हें फ़ोन करने के एक मौक़े की उम्मीद है- और साथ ही भविष्य में क़ैदियों की अदला-बदली में अपने नाम की भी.