DMT : रूस : (30 जून 2023) : –
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बाद भारत और रूस के रिश्तों को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही हैं.
अटकलों का दौर थमा भी नहीं था कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को मॉस्को में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी को बेहतरीन दोस्त बताया और ‘मेक इन इंडिया’ की जमकर तारीफ़ की.
राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, ”नरेंद्र मोदी रूस के गहरे दोस्त हैं. पीएम मोदी ने कुछ साल पहले मेक इन इंडिया योजना को लागू किया था. इस योजना का भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा. अगर हम भी मेक इन इंडिया का अनुकरण करें तो इसमें कोई हानि नहीं है. भले ही यह हमारी योजना नहीं है लेकिन हमारे दोस्त की है. ”
पुतिन के इस वीडियो क्लिप को रूस सरकार के नियंत्रण वाले न्यूज़ टेलीविज़न आरटी ने ट्वीट किया है.
रूस के राष्ट्रपति की ओर से पीएम मोदी की तारीफ़ को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि भारत रूस के लिए मायने रखता है.
यूक्रेन पर हमले के बाद जब पश्चिम ने रूस पर सख़्त प्रतिबंध लगाया तो भारत ने रूस से तेल की ख़रीदारी बढ़ा दी और इससे रूस को आर्थिक तौर पर बहुत मदद मिली.
पुतिन भारत के बड़े बाज़ार में रूसी कंपनियों के लिए मौक़ा चाहते हैं. पश्चिम के देशों के कड़े प्रतिबंधों के कारण रूस दूसरे विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहा है. भारत और रूस के बीच व्यापार अब तक सरकार के स्तर पर रहा है, जिसे रूस अब निजी कंपनियों के स्तर पर भी लाने की कोशिश कर रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ की शुरुआत 2014 में की थी. इसका मक़सद भारत में उत्पादन को बढ़ावा देना था. भारत नरेंद्र मोदी के शासनकाल में दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है.
बुधवार को राजधानी दिल्ली के एक कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि दुनिया कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है, इसके बावजूद भारत और रूस के संबंध स्थिर हैं.
एस जयशंकर ने कहा था, ”तमाम चुनौतियों के बावजूद रूस के साथ हमारा संबंध अडिग है. रूस से संबंधों की अहमियत को लेकर हमारा वर्षों का मूल्यांकन है. रूस से भारत की दोस्ती को केवल रक्षा निर्भरता के आईने में देखना एक ग़लती है. हमारे संबंध इससे कहीं आगे के हैं. रूस के साथ संबंधों को लेकर हमारा अपना जियोपॉलिटिकल तर्क है. दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग भी बढ़ रहा है.”
शीत युद्ध के ज़माने से ही भारत और रूस की साझेदारी को समय की कसौटियों पर खरा माना जाता है.
दोनों देशों के बीच रक्षा, तेल, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग रहा है. लेकिन रूस की चीन से बढ़ती क़रीबी के कारण भारत से उसके संबंधों को शक के घेरे में देखा जा रहा है.
कहा जा रहा है कि यूक्रेन से जारी जंग के कारण रूस चीन का जूनियर पार्टनर बन गया है. 1950 के दशक से ही शीत युद्ध के दौरान भारत ने सोवियत यूनियन से मज़बूत संबंध बनाना शुरू कर दिया था. पाकिस्तान से भारत का युद्ध हुआ तब और रूस से रिश्तों में गर्मजोशी आई.
सोवियत यूनियन ने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध ख़त्म कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ भारत की जंग हुई तो सोवियत यूनियन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के समर्थन में वीटो पावर का इस्तेमाल किया था.
दूसरी तरफ़ अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तान को मदद पहुँचाने के लिए एक टास्क फोर्स को ऑर्डर दिया था.
भारत और सोवियत यूनियन के बीच 1971 में पीस, फ़्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी हुई थी. जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो जनवरी 1993 में यह संधि इंडो-रशियन फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी में बदल गई थी.
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों का युद्ध हुआ था. यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान में उपजे मानवीय संकट के कारण हुआ था. इस युद्ध के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना. इससे पहले भारत पूरी दुनिया को पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान के आधिपत्य को लेकर समझाने की कोशिश कर रहा था.
पूर्वी पाकिस्तान से भारी संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे थे. पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच बिना कोई राजनीतिक समाधान के उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी. तब सोवियत यूनियन एकमात्र देश था, जिसने भारत की सुनी.
1971 के अगस्त महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘इंडिया-सोवियत ट्रीटी ऑफ़ पीस, फ़्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन’ पर हस्ताक्षर किया. इस समझौते के तहत सोवियत यूनियन ने भारत को आश्वस्त किया कि युद्ध की स्थिति में वो राजनयिक और हथियार दोनों से समर्थन देगा.
मॉस्को भारत के लिए एक विश्वसनीय साझेदार रहा है. दूसरी तरफ़ अमेरिका भारत की तुलना में पाकिस्तान को तवज्जो देता रहा है.
फ़रवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से बचता रहा.
भारत ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की कभी आलोचना नहीं की. अमेरिका और यूरोप के देशों से बढ़ते दबाव के बीच नरेंद्र मोदी ने पिछले साल सितंबर महीने में पुतिन को कैमरे के सामने कहा था कि अब युद्ध का दौर नहीं है. पीएम मोदी ने कहा था कि डेमोक्रेसी, डिप्लोमैसी और डायलॉग के ज़रिए दुनिया को एकजुट रखा जा सकता है.
तब पीएम मोदी की राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन समिट में उज़्बेकिस्तान के समरकंद शहर में हुई थी.
1962 में चीन के साथ ख़ूनी जंग के बाद से ही भारत ने सोवियत यूनियन से रक्षा साझेदारी बढ़ा दी थी.
1990 के दशक की शुरुआत से भारत की सेना में सोवियत यूनियन में बने हथियारों की हिस्सेदारी 70 फ़ीसदी थी, 80 फ़ीसदी हिस्सेदारी एयर फ़ोर्स सिस्टम में थी और 85 फ़ीसदी नेवी में. भारत ने 2004 में रूस से पहला एयरक्राफ़्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य ख़रीदा था.
रूसी राजदूत ने क्या कहा?
जब पीएम मोदी अमेरिका दौरे पर थे, उसी दौरान भारत में रूस के राजदूत डेनिस एलिपोव ने अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा था कि रूस भारत को मांग के हिसाब से तेल देता रहेगा. उन्होंने कहा था कि दोनों देश ऊर्जा आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं और व्यापार में असंतुलन को भी सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.
एलिपोव ने कहा था कि दोनों देश पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण नए भुगतान सिस्टम को लेकर भी काम कर रहे हैं. राजदूत एलिपोव ने कहा था कि वैकल्पिक भुगतान सिस्टम बनाने को लेकर काम चल रहा है.
एलिपोव से पूछा गया था कि चीन से रूस के गहराते संबंधों का असर क्या भारत और रूस के संबंधों पर उलटा पड़ेगा?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, ”चीन की रूस में बढ़ती मौजूदगी पर चिंता जताने के बदले अच्छा यह होता कि भारतीय टिप्पणीकार रूसी बाज़ार में भारत के विस्तार को प्रोत्साहित करते.”
भारत में रूसी तेल जिस मात्रा में आ रहा है, क्या हमेशा यह जारी रहेगा?
इसके जवाब में एलिपोव ने कहा था, ”भारत में जब तक मांग रहेगी, आपूर्ति भी जारी रहेगी. तेल आपूर्ति की वजह से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्तीय वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 44.4 अरब डॉलर तक पहुँच गया. भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा एक तिहाई है. रूस भारत की ऊर्जा सुरक्षा में सबसे बड़ा हिस्सेदार बन गया है. हम भारत में लंबी अवधि की ऊर्जा आपूर्ति के लिए काम कर रहे हैं.”
चीन से गहाराते संबंधों पर एलिपोव ने कहा था कि रूस किसी भी देश पर निर्भर नहीं होना चाहता है. रूसी राजदूत ने कहा था, ”चीन या किसी अन्य देश के साथ आर्थिक संबंधों में विस्तार किसी का पॉलिटिकल टूल बनना नहीं है. रूस का भारत और चीन दोनों के साथ बेहतरीन संबंध हैं और ये संबंध पारस्परिक हितों पर आधारित हैं. हमारा कोई छुपा हुआ एजेंडा नहीं है.”
एलिपोव ने कहा था, ”रूस चाहता है कि भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य हो. ऐसा यूरेशिया में स्थिरता के लिए ज़रूरी है. यूक्रेन संकट में भी भारत का रुख़ बताता है कि वह एक ज़िम्मेदार वैश्विक ताक़त की तरह पेश आया.”