रूस-यूक्रेन युद्ध को 12 महीने पूरे, पुतिन के ‘विशेष सैन्य अभियान’ पर क्या कह रहे हैं रूसी नागरिक

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DMT : रूस : (24 फ़रवरी 2023) : – 24 फ़रवरी 2022 को व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान की घोषणा की. इस युद्ध को आज एक साल पूरा हो रहा है.प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े, इसके विरोध में 7 वोट पड़े. रूस, बेलारूस, उत्तर कोरिया, सीरिया, माली, एरिट्रिया और निकारागुआ ने प्रस्वात के विरोध में वोट किया.

रूसी हमले से पहले के हफ़्तों में मैं सेंट्रल मॉस्को डिस्ट्रिक्ट ज़मोस्कवोरेचिये में घंटों घूमा करता था. सात साल से मैं यहीं रह रहा था और बीबीसी ऑफ़िस में काम करता था.

ये शहर का सबसे शांत इलाक़ा है. मेरे लिए ये जगह रूस के जटिल वर्तमान और अतीत को अपने में समेटे हुए है.

सदियों से मॉस्को में रहने वाले यहां घर बनाने और बिज़नेस करने का काम करते रहे हैं और शांति से अपनी ज़िंदगी में मशगूल रहे हैं. उन्होंने अपने शासकों को देश का बड़ा मंच संभालने और अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए अकेला छोड़ दिया है. इस बड़े मंच पर अब एक आम रूसी नागरिक के करने के लिए कुछ नहीं था.

इस इलाक़े के एक तरफ़ मोस्कवा नदी और क्रेमलिन है और दूसरी तरफ़ स्टालिन के युग के अपार्टमेंट. शोरगुल भरे यहां के सादोवोये रिंग रोड पर 21वीं सदी में बनी गगनचुंबी इमारतें हैं.

यहां की पतली-पतली सड़कों का जाल रूस के अतीत की याद दिलाता है, जहां जगह-जगह 19वीं सदी के चर्च और आलीशान बंगले बने हुए हैं.

पिछली फ़रवरी में मैं वहीं था जब मेरे पास एक दोस्त का फ़ोन आया. यह दोस्त यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर ख़ारकीएव में पैदा हुआ था और अब मॉस्को में काम करता था.

उसने पूछा कि पुतिन क्या वाक़ई यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू करने जा रहे हैं? हम दोनों ही इस ख़बर पर भरोसा नहीं करना चाहते थे.

लेकिन रूस के आक्रामक अतीत को देखते हुए, मैंने ये महसूस किया कि युद्ध अब अपरिहार्य था.

युद्ध शुरू होने के बाद से लाखों रूसी लोग रूस छोड़ चुके हैं. उनमें मैं और बीबीसी रूसी सेवा के मेरे कई सहयोगी भी शामिल हैं.

लेकिन अधिकांश लोग जो रूस में रुक गए, उनके लिए रूस के बाहर की ज़िंदगी वैसी ही है जैसी हमेशा हुआ करती थी, ख़ासकर बड़े शहरों में.

ज़मोस्कवोरेचिये में अधिकांश दुकानें, कैफ़े, व्यवसाय और बैंक खुले हुए हैं. अधिकांश पत्रकार और आईटी विशेषज्ञ यहां से चले गए हैं लेकिन उनकी जगह बाकी लोगों ने भर दी है.

दुकानदार बढ़ती महंगाई की शिकायत करते हैं लेकिन यहां दुक़ानों में इम्पोर्टेड सामानों की जगह स्थानीय उत्पादों ने ले ली है.

क़िताब की दुकानों पर हर तरह की क़िताबें उपलब्ध है हालांकि जिन क़िताबों को काम का नहीं समझा जाता है उन्हें प्लास्टिक कवर में बेचा जाता है.

यहां की लोकप्रिय कार शेयरिंग सर्विस अभी भी चल रही है लेकिन अब इनके बेड़े में अब चीन में बने कारों की संख्या बढ़ गई है.

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका समेत कई मुल्कों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. लेकिन इन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद रूस 1990 के दशक की आर्थिक बदहाली जैसी हालत में नहीं पहुंचा है.

हालांकि बेलफ़ास्ट के रूसी अकादमिक अलेक्जेंडर टिटोव का कहना है, “बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस संकट से होकर गुजर रहा है.”

रूस का ये मौजूदा संकट धीरे-धीरे बढ़ने वाला है. थोड़ा बारीकी से देखें तो इसके संकेत हर जगह मौजूद दिखते हैं.

यूक्रेन की सीमा के पास और युद्ध से तहस-नहस ख़ारकीएव से महज़ 80 किलोमीटर दूर बेलगोरोद में लोग मोर्चे पर लगातार जा रहे मिलिटरी ट्रकों के काफ़िले के आदी हो गए हैं.

अगर वे उस शहर पर रूसी बमबारी से बेचैन होते हैं जहां उनके दोस्त और रिश्तेदार रहते हैं तो भी वो इसे ज़ाहिर न करने की कोशिश करते हैं.

मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि स्थानीय गवर्नर की ओर से आयोजित स्ट्रीट फ़ेस्टिवल में अच्छे खासे लोग आते हैं.

लेकिन साथ ही ये ख़बर भी है कि यहां से स्थानीय डॉक्टर बड़े पैमाने पर अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं. इसका कारण ये है कि स्थानीय अस्पतालों में युद्ध से बड़ी संख्या में घायलों को संभालने के लिए उनके पास पूरी तैयारी नहीं हैं.

यहां के निवासी खुद को छोड़ दिया गया महसूस करते हैं. सीमा के पास स्थित कस्बे शेबेकिनो के लोग ग़ुस्से में हैं. यहां सीमा के दोनों तरफ़ से बमबारी होना रोज़ाना की बात हो गई है.

एक स्थानीय परिवार सेंट पीटर्सबर्ग गया था. वो परिवार ये देखकर हैरान रह गया कि सेंट पीटर्सबर्ग में कुछ भी नहीं बदला है जबकि उनके क़स्बे के लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह से पलट गई है.

मुझे बताया गया कि एस्टोनिया और लात्विया की सीमा के पास पस्कोव में माहौल ‘सामान्य’ बना हुआ है. यहां हर कोई ऐसा जताता है कि जैसे युद्ध के कारण उनकी ज़िंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ा हो.

पोस्कोव 76वां गार्ड्स एयर असॉल्ट डिवीज़न का मुख्य ठिकाना है. इसी कुख्यात डिवीज़न के जवानों पर कीएव के बाहर बूचा में युद्धापराध करने के आरोप हैं.

शहर से स्थानीय कब्रिस्तान के लिए एक नई बस सेवा शुरू की गई है जहां यूक्रेन में बड़ी संख्या में मारे गए सैनिकों को दफ़नाया जा रहा है. ये एक ब्रिज के नीचे है जहां किसी ने लाल रंग से ‘PEACE’ लिख दिया है.

मेरे एक एक दोस्त फ़िनलैंड की सीमा के पास स्थित पेत्रोज़ावोदस्क जा रही ट्रेन में सवार थे. ट्रेन में कुछ किशोर गेम खेल रहे थे.

इनमें किसी ने पूछा कि दोनेत्स्क रूस में है या यूक्रेन में? इनमें से किसी को इसका पता नहीं था, जबकि इस जगह पर उनकी ही सरकार ने कब्ज़ा कर लिया है.

मेरे दोस्त ने बताया कि ऐसा नहीं लगा कि युद्ध से इन लोगों को कोई मतलब भी है.

उन्होंने बताया कि ऐसा लगता है कि पेत्रोज़ावोदस्क अपने उजाड़ वाले दिनों में लौट चुका है. यहां दुकानें खाली हैं, दुक़ानों में कोई विदेशी ब्रांड नहीं है और सामान की क़ीमतें आसमान छू रही हैं.

क्या रूसी नागरिक यूक्रेन में हो रही बर्बरता का समर्थन करते हैं या वे ज़िंदा बचे रहने के लिए बस दिखावा कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा?

ऊपरी माहौल देखकर अंदाज़ा लगाना और लोगों से बातचीत कर के किसी भी स्पष्ट नतीजे पर पहुंचना कठिन है. समाजविज्ञानी और रायशुमारी करने वालों ने लोगों के मन की थाह लगाने की कोशिश की लेकिन रूस में बोलने या सूचनाएं पाने की आज़ादी नहीं है इसलिए ये बताना बहुत मुश्किल है कि लोग ईमानदारी से अपनी बात कह रहे हैं.

रायशुमारी इस बात का संकेत देती है कि अधिकांश रूसी नागरिक अगर युद्ध का समर्थन नहीं कर रहे, तो भी वे निश्चित तौर पर इसका विरोध भी नहीं करते.

यह अनिच्छा विदेश में रहने वाले रूसी लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है. जो लोग पढ़ने के लिए यहां से बाहर गए हैं और रूस पर ख़बरें लिख रहे हैं (जिनमें मैं भी शामिल हूं) उनका मानना है कि बहुत थोड़े लोग युद्ध का खुलकर समर्थन कर रहे हैं और थोड़ी ही संख्या में लोग खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं.

अधिकांश रूसी नागरिक मौजूदा हालात को समझने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनका कहना है कि ये उनका चुनाव नहीं था. वे कहते हैं कि वे समझ नहीं पा रहे और बदलाव तो चाहते हैं लेकिन खुद को असहाय पा रहे हैं.

क्या वे इस युद्ध को रोक सकते थे?

कुछ का मानना है कि अगर अधिक से अधिक लोग अपनी आज़ादी के लिए खड़े हुए होते और पश्चिम और यूक्रेन के ख़तरे को बढ़ाचढ़ा कर पेश किए जाने वाले सरकारी टीवी के प्रोपेगैंडा को लोगों ने चुनौती दी होती, तो शायद संभव है.

अधिकांश रूसियों ने खुद को राजनीति से दूर रखना चुना और क्रेमलिन को उनका भविष्य तय करने दिया. लेकिन कहते हैं कि सिर झुकाने का मतलब विचलित करने वाला नैतिक समझौता है.

युद्ध से दूर रहते हुए रूसी नागरिकों को ये दिखावा करना पड़ रहा है कि ये आक्रमण कोई अपवाद नहीं है. वो ये दिखावा करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें उन यूक्रेनियों की ओर से आंखें मूंद लेनी चाहिए जो हज़ारों की तादाद में मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं.

और ये सब उस ‘स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन’ के नाम पर हो रहा है, जिसका दावा रूस करता है.

रूसी नागरिकों को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि ये नॉर्मल है कि सेना के जवान स्कूलों में जाकर उनके बच्चों को बताते हैं कि युद्ध एक अच्छी चीज़ है.

कि युद्ध का समर्थन करना पादरियों के लिए सामान्य बात है और उन्हें शांति के लिए प्रार्थना बंद कर देनी चाहिए. कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अब विदेश यात्रा नहीं कर सकते और व्यापक दुनिया का वे हिस्सा नहीं रहे. कि लोग जिन स्वतंत्र मीडिया वेबसाइटों को पढ़ते थे, उन्हें रूस ने ब्लॉक कर सही ही किया था.

ये भी कि कैमरे से ली गई तस्वीरों को सासंद ट्विटर पर पोस्ट कर रहे हैं और अब यह प्रदर्शन रूसी ताक़त का सकारात्मक प्रतीक हो गया है. और ये कि युद्ध के बारे में अपने मन की बात कहने पर सालों तक के लिए जेल जाना एक सामान्य बात है, चाहे आप काउंसलर हों या पत्रकार.

लेकिन फिर रूसी नागरिक इसके विरोध में प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे हैं?

शायद यह बात ओपिनियन पोल्स की बजाय रूस का इतिहास बेहतर ढंग से समझाता है.

जबसे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आए हैं, उन्होंने इसे छिपाया नहीं कि वो रूस का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं और दुनिया में इसकी सम्मानजनक स्थिति बहाल करना चाहते हैं.

अपने भाषणों और लेखों में उन्होंने अपने इस विश्वास को साफ़ किया है कि पूरब और पश्चिम, दुनिया के दोनों हिस्सों में रूस का विशेष स्थान है. रूस की अलग परंपरा, धर्म और काम करने का अपना तरीक़ा है और रूसियों को सम्मान की चाहत है.

पुतिन पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि ये संदेश सदियों से चला आया है और इसमें किसी बदलाव की संभावना नाकाबिले बर्दाश्त है.

ये पुतिन के पसंदीदा खेल जूडो के ‘चोकहोल्ड’ (हाथ से गर्दन को फांसी की तरह पकड़ने का पैंतरा) जैसा है. पुतिन के इस विज़न की क़ीमत रूसियों ने अपनी आज़ादी गवां कर और यूक्रेनियों ने अपनी जान गवां कर अदा की है. हर बार तबाही और बर्बादी के बाद ही रूस की आंखें खुली हैं.

साल 1989 में अफ़ग़ानिस्तान में हार के बाद गोर्बाचेव का युग आया. इससे पहले 1905 में जापान से हार के बाद रूस में संवैधानिक सुधार हुए और उससे पहले 1856 में क्रीमियाई युद्ध में हार के बाद ग़ुलामों के हालात बदले.

रायशुमारी करने वालों ने एक पैटर्न की पहचान की है. वो ये कि अधिकांश रूसी कहते हैं कि वे लड़ाई को ख़त्म करने के लिए शांति समझौते का समर्थन करेंगे. लेकिन वे स्वतंत्र यूक्रेन को किस तरह की गारंटी देंगे, ये अभी भी साफ़ नहीं है.

देर सवेर इस सवाल का जवाब देना तो होगा ही और रूसी नागरिकों को इस सवाल का सामना करना पड़ेगा कि उनके देश ने क्या किया है.

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