DMT : सऊदी अरब : (16 फ़रवरी 2023) : –
सऊदी अरब में फांसी पर चढ़ाए गए लोगों के परिजनों ने बीबीसी को बताया है कि उन्हें सज़ा दिए जाने के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई थी.
देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक नई रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2015 के बाद से सऊदी अरब में मौत की सज़ा दिए जाने की दर दोगुनी हो गई है.
साल 2015 में ही सऊदी की सत्ता किंग सलमान और उनके बेटे मोहम्मद बिन सलमान के हाथों में आई थी.
मुस्तफ़ा अल खय्यात को सज़ा-ए-मौत से पहले उनके परिजनों को नहीं बताया गया था कि उन्हें मारा जाने वाला है.
परिवार को दफ़्न करने के लिए शव भी नहीं दिया गया. ना ही उन्हें क़ब्र के बारे में बताया गया. परिवार ने आख़िरी बार फ़ोन पर खय्यात से बात की थी. जेल से अपनी मां के लिए उनके आख़िरी शब्द थे, “सब ठीक है, मुझे अब जाना है, मैं ख़ुश हूं कि आप ठीक हैं.”
वो उन 81 लोगों में से एक थे जिन्हें 12 मार्च, 2022 को मौत की सज़ा दी गई. ये सऊदी के इतिहास में एक साथ दी गई सबसे बड़ी मौत की सज़ा थी.
यूरोपियन सऊदी ऑर्गेनाइज़ेशन के साथ मिलकर ‘रिप्रीव’ नाम के समूह ने सऊदी अरब में फांसी पर चढ़ाए गए लोगों के बारे में रिपोर्ट बनाने पर काम किया है.
साल 2010 से इकट्ठा किए गए डेटा के अनुसार
- साल 2015 में किंग सलमान के सऊदी अरब की कमान संभालने के बाद से देश में लोगों को मौत की सज़ा दिए जाने की दर लगभग दोगुना हो गई है. इसी साल किंग सलमान के बेटे मोहम्मद बिन सलमान को सऊदी अरब का उत्तराधिकारी बनाया गया था.
- विद्रोहियों और प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए मौत की सज़ा नियमित तौर पर दी जा रही है, ये अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों का उल्लंघन है जिनके तहत सिर्फ़ बेहद गंभीर अपराध के मामले में ही मौत की सज़ा दी जा सकती है.
- साल 2015 के बाद से कम से कम ऐसे 11 लोगों को मौत की सज़ा दी गई है जो अपनी गिरफ़्तारी के समय नाबालिग थे. हालांकि सऊदी अरब बार-बार ये दावा करता रहा है कि वो नाबालिगों के लिए मौत की सज़ा को रोक रहा है.
- सऊदी अरब की जेलों में प्रताड़ित किया जाना आम बात है. बच्चों को भी प्रताड़ित किया जाता है.
पिछले साल ‘रिप्रीव’ ने सऊदी अरब में 147 लोगों को मौत की सज़ा दिए जाने का डेटा इकट्ठा किया था. समूह का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है. समूह का ये भी कहना है कि सऊदी अरब ने विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ भी मौत की सज़ा का इस्तेमाल ग़ैरवाजिब ढंग से किया गया है. इनमें घरेलू महिला कर्मचारी और छोटे स्तर के ड्रग अपराधी भी शामिल हैं.
लगभग एक साल बाद भी अधिकारियों ने मुस्तफ़ा के परिवार को ये नहीं बताया है कि उन्हें और अन्य लोगों को किस तरह से मौत की सज़ा दी गई थी. उनके बड़े भाई यासिर का कहना है कि ये परिवार के लिए एक त्रासदी है.
“हमें नहीं पता कि उन्हें सम्मानजनक रूप से दफ़नाया गया था या समंदर या रेत में फेंक दिया गया था. हमें कुछ भी नहीं पता है.”
यासिर ने पहली बार इस बारे में सार्वजनिक रूप से बात की है. वो अब जर्मनी में रहते हैं. साल 2016 में सऊदी अरब से भागने के बाद जर्मनी ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी. यासिर को डर था कि कहीं उनका अंजाम भी भाई जैसा ही ना हो.
अपने भाई को याद करते हुए यासिर कहते हैं कि “वो बहुत प्यारा, सामाजिक और चर्चित था. साल 2011 के बाद से मुस्तफ़ा सऊदी सरकार के ख़िलाफ़ शिया समुदाय के प्रदर्शन में लगातार शामिल हो रहे थे.”
मुस्तफा को साल 2014 में हिरासत में लिया गया था. उनकी मौत के बाद एक अधिकारिक बयान में बताया गया था कि मुस्तफ़ा और तीस अन्य लोगों को एक जैसे अपराधों के लिए मौत की सज़ा दे दी गई है. ये अपराध थे सुरक्षाकर्मियों की हत्या, बलात्कार, लूट, बम बनाना और अफ़रा-तफ़री पैदा करना है अवैध रूप से ड्रग और हथियारों का कारोबार करना.
यासिर का कहना है कि उनके भाई के ख़िलाफ़ कभी कोई सबूत पेश नहीं किया गया. वो कहते हैं कि जब मुस्तफ़ा को 80 अन्य लोगों के साथ मौत की सज़ा दी गई तब वो अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ अपील करने की कोशिश कर रहे थे.
“ना सिर्फ़ उन्होंने उनकी जान ली बल्कि जानबूझकर उन्हें बदनाम किया और ऐसे आरोप लगाए जो उन्होंने किए ही नहीं थे.”
सऊदी के ‘असली शासक’
सत्ता में आने के बाद सऊदी के ‘असली शासक’ प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा था कि वो सऊदी अरब को आधुनिक बनाने के प्रयास कर रहे हैं.
साल 2018 में दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि उनका देश मौत की सज़ा को कम से कम करने के प्रयास कर रहा है. सऊदी अरब पश्चिमी देशों का अहम सहयोगी भी है.
लेकिन लगभग पांच साल बाद, मौत की सज़ा देने के मामले में सऊदी अरब अब भी सबसे आगे है. हालांकि सऊदी अरब की जी-20 की अध्यक्षता और कोविड महामारी के दौरान फ़ांसी दिए जाने में ख़ामोशी भी रही थी.
‘रिप्रीव’ की निदेशक माया पोया का कहना है कि क्राउन प्रिंस ने जैसा कहा था ठीक उसके उलटा किया है. ‘रिप्रीव’ का दफ़्तर पूर्वी लंदन में है.
माया फ़ोया कहती हैं, “बड़े पैमाने पर लोगों को मौत की सज़ा देना और लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को बर्बरता से कुचलना उनकी ही निगरानी में हुआ है.”
अजीब रहस्य
माया फ़ोया कहती हैं कि मौत की सज़ा दिए जाने के मामलों में एक तरह का अजीब रहस्य भी है. वो बताती हैं कि रिप्रीव ने जिन मामलों को देखा है उनमें से अधिकतर में मौत की सज़ा पाने वाले कई लोगों को पता ही नहीं था कि उन्हें ये सज़ा दी जाने वाली है.
“उनके परिजनों को भी इस बारे में पता नहीं था. ऐसे लोग हैं जिन्हें गिरफ़्तार किया गया, मुक़दमा चलाया गया, मौत की सज़ा दी गई और फिर मार भी दिया गया और ये सब गुप्त तरीक़े से हुआ.”
माया फोया के मुताबिक कुछ परिवारों को सोशल मीडिया के ज़रिए अपने प्रियजनों को मौत की सज़ा दिए जाने के बारे में पता चला. वो कहती हैं कि अधिकारिक जानकारी ना दिया जाना हर मामले में ‘सबसे निर्दयी और परेशान करने वाला था.’
सऊदी अरब में आमतौर पर गला काटकर मौत की सज़ा दी जाती है. पहले इस तरह की सज़ा सार्वजनिक स्थानों पर दी जाती थी. जिन लोगों को मौत दी जाती थी उनका नाम और अपराध सरकार की वेबसाइट पर प्रकाशित होता था.
लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मृत्युदंड का प्रयोग अब और अधिक अस्पष्ट हो गया है.
सऊदी अरब की न्याय व्यवस्था
हमने जितने भी लोगों से बात की उनमें से कोई भी इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं था कि मौत की सज़ा अब किस तरह से दी जाती है. हालांकि ये भी माना जाता है कि गोली मारकर भी मौत की सज़ा दी जा रही है.
बर्लिन से संचालिन यूरोपियन सऊदी ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर ह्यूमन राइट्स के निदेशक अली अदुबीसी कहते हैं कि मौत की सज़ा सऊदी अरब की न्याय व्यवस्था का हिस्सा है और इसकी बुनियाद ही गलत है.
वो कहते हैं, “वहां किसी भी तरह की स्वतंत्र सिविल सोसायटी या मानवाधिकार समूह काम नहीं कर सकते हैं. अगर हम इन मामलों पर ध्यान नहीं देंगे तो ख़ामोशी से लोगों को मारा जाता रहेगा.”
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मौत की सज़ा पाने वाले 81 में से 41 लोग शिया समुदाय से थे और सऊदी अरब की न्याय व्यवस्था में ‘बड़े पैमाने पर और व्यवस्थागत दुर्व्यवहार’ से ये संकेत मिलते हैं कि इनमें से किसी को भी निष्पक्ष सुनवाई का मौक़ा नहीं मिला होगा.
मानवाधिकार समूहों का कहना है कि उन्हें इन लोगों को प्रताड़ित किए जाने के बारे में भी जानकारी मिली है.
शारीरिक यातनाएं
साल 2014 में मुस्तफ़ा की गिरफ़्तारी के 12 महीने बाद यासिर को अपने भाई से मिलने का मौक़ा मिला था. जो देखा था उससे वो सहम गए थे.
यासिर ने बताया, “हम गिरफ़्तारी के एक साल बाद उनसे मिलने गए थे और वो इस हालत में भी नहीं थे कि खड़े होकर हमें सलाम भी कर सकें.”
“वो खड़े होने की कोशिश करता और फिर गिर जाता, जब हमने उनसे इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि ये प्रताड़ना की वजह से है.”
“उसके शरीर पर चोट के निशान थे. ये बिजली के झटके दिए जाने की वजह से हुए थे.”
हिरासत में लिए गए एक अन्य व्यक्ति की बहन ने हमें बताया कि उन्हें भी शारीरिक यातनाएं दी गई थीं.
हुसैन का मामला
ज़ैनब अबु अल ख़ैर के भाई हुसैन 2014 से ही जेल में हैं. वो बताती हैं, “उसने बताया कि उसे उल्टा करके पैरों से बांधकर लटकाया गया और फिर पीटा गया. उसने कभी सोचा भी नहीं था कि ज़बरदस्ती लिए गए बयान को सुनवाई में स्वीकार कर लिया जाएगा.”
मूल रूप से जॉर्डन के रहने वाले हुसैन एक अमीर सऊदी परिवार के ड्राइवर थे. उन्हें जॉर्डन-सऊदी सीमा पर कार में ड्रग्स के साथ गिरफ़्तार किया गया था. ज़ैनब मानती हैं कि ये ड्रग उनके भाई के नहीं थे.
कनाडा में अपने घर से बीबीसी से बात करते हुए वो कहती हैं कि हुसैन की गिरफ़्तारी के बाद से ही उनका परिवार रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहा है.
उनका एक बेटा अपाहिज़ है और उनकी गिरफ़्तारी के बाद उनकी चौदह साल की बेटी की ‘पैसों के बदले शादी’ कर दी गई.
पिछले साल नवंबर में सऊदी अरब ने ड्रग अपराधों में फांसी की सज़ा पर लगाई गई अनाधिकारिक रोक को हटा दिया था.
संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार कार्यालय इस क़दम को ‘अफ़सोसनाक़’ मानता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस फ़ैसले के 15 दिनों के भीतर ही 17 लोगों को मौत की सज़ा दे दी गई.
ज़ैनब बताती हैं हुसैन के साथ जेल में क़ैद कई पुरुषों को इसके बाद से ले जाया गया है और वो फिर कभी नहीं लौटे हैं.
हुसैन और ज़ैनब दोनों ही इसके बाद से डरे हुए हैं. वो कहती हैं, “मैं उसके बारे में बात भी करती हूं तो दिल बहुत ज़ोर से धड़कने लगता है.”
“मैं दिन रात उसके बारे में सोचती हूं, मुझे बुरे सपने आते हैं. ये खयाल परेशान करता है कि वो उसका गला काट देंगे.”
“आप ये कल्पना नहीं कर सकते कि ये सब कितना मुश्किल है. कई बार मैं बस अकेले बैठती हूं और रोती रहती हूं.”
जैनब इस बात को लेकर भी ग़ुस्सा हैं कि सऊदी अरब जो कर रहा है, बाक़ी देश उसे ऐसा करने दे रहे हैं.
पिछले साल मार्च में, 81 लोगों को मौत की सज़ा दिए जाने के चार दिन, तत्कालीन ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मोहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात की थी.
जॉनसन सऊदी अरब को और अधिक तेल उत्पादन करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे ताकि रूस के तेल पर निर्भरता कम हो.
हालांकि ब्रितानी प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा था कि जॉनसन ने सऊदी अरब में मानवाधिकारों के मुद्दे पर भी चिंता प्रकट की थी.
सत्ता में आने के बाद से मोहम्मद बिन सलमान ने कई तरह के सुधार किए हैं. इनमें महिलाओं को कार चलाने की अनुमति देना भी शामिल है. हालांकि इस दौरान राजनीतिक दमन भी बढ़ गया है.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने बीबीसी से कहा है कि वह सऊदी अरब में मौत की सज़ा दिए जाने के बढ़ते चलन से चिंता में है.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा, “ख़ासकर हम, मौत की सज़ा दिए जाने और ये सज़ा बरक़रार रखे जाने की बढ़ रही संख्या को लेकर चिंतित है, इसमें बाल अपराधियों की दी जा रही सज़ा भी शामिल है, और ऐसे अपराधों में भी ये सज़ा दी जा रही है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौत की सज़ा दिए जाने के अति गंभीर अपराधों में नहीं आते हैं जैसे ड्रग से संबंधित अपराध.”
जिन लोगों के परिजन जेलों में हैं, उनके लिए ये बहुत परेशान करने वाला समय है. हुसैन की बहन परिवार के चैट ग्रुप पर नज़र बनाए रखती हैं.
“इस तनाव से गुज़रना कोई ज़िंदगी नहीं है, हर सुबह, हर शाम हमें ये चैक करना होता है कि वो ज़िंदा हैं या नहीं.”