DMT : New Delhi : (28 फ़रवरी 2023) : – आर्टिफिशल इंटेंलीजेंस का जैसे-जैसे विकास हो रहा है, इशके साथ खतरा शब्द भी शिद्दत से जुड़ा है। तेजी से विकसित हो रही टेकनोलॉजी के जितने फायदे हैं इतने ही नुकसान विशेषज्ञ गिना रहे हैं। हाल ही में गूगल का आर्टिफिशल टूल ‘चैटजीपीटी’ चर्चा में है।
ये नया सिस्टम ऐसा कॉन्टेट लिख सकता है जो बहुत ही सटीक होता है और इंसानों के लिखे जैसा ही प्रतीत होता है। ये नया टूल गूगल के लिए ख़तरा बनकर उभरा है।
तकनीक के जानकार मानते हैं कि फिलहाल इसमें कमियां हैं लेकिन कुछ ही समय में यह टूल गूगल को ही मात दो देगा। ऐसा इसलिये क्योंकि जानकार मानते हैं कि ये प्रोग्राम मानव मस्तिष्क को तेज़ी से कॉपी कर रहा है और
इस तरह की नई तकनीक छात्रों को साइबॉर्ग यानि आधे इंसान और आधी मशीन में बदल देगी।
चैटजीपीटी के चर्चा में आने के बाद एक बार फिर से सायबॉर्ग पर चर्चा होने लगी है। आइए जानते हैं क्या हैं सायबॉर्ग और क्या है इस तकनीक के नुकसान और फायदे…
अब तक सायबॉर्ग तकनीक विकलांगों और बुजुर्गों के लिए वरदान मानी जा रही थी। इस टेक्नोलॉजी की मदद से बहुत से बूढ़े लोग चलने से लेकर अपने रोजमर्रा के कार्य आसानी से कर रहे हैं।
तकनीक हर दिन हज़ार कदम आगे बढ़कर नये आयाम स्थापित करती है। नया दौर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का है तो इन दिनों एआई पर सरकार भी न केवल काम कर रही हैं बल्कि इसके खतरे और फायदे दोनों का आकलन तेज़ी से जारी है। बीते दिनों रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर जब बात की और इसके दुरुपयोग की आशंका भी जतायी तो इस नयी तकनीक पर एक नयी बहस भी शरू हो गई। दूसरी और 5जी भले ही अभी दुनिया के सारे देशों में शुरू नहीं हुआ लेकिन जापान जैसे देशों में 6जी के ट्रायल होने लगे। जापान की टेलीकॉम कंपनी डोकोमो, एनईसी और फुजीत्शू ने इसके लिये नोकिया के साथ हाथ भी मिलाया है। इन सबके बीच जो सबसे चर्चित बात है वह चर्चा है इंसान के सायबॉर्ग बन जाने की। यानि 6 जी का ट्रायल शुरू हुआ और इंसान के शरीर में 6जी सिम प्लांट होगा जो फोन की तरह काम करेगा। यानि वह सायबॉर्ग (मशीनी मानव) बन जायेगा। सायबॉर्ग ऐसे इंसान को कहते हैं जिसके शरीर के कुछ अंग टेक्नोलॉजी की सहायता से कंट्रोल किए जाते हैं।
सायबॉर्ग यानि ‘साइबरनेटिक ऑर्गेनिज्म। अगर आपने हॉलीवुड फिल्म टर्मिनेटर देखी होगी तो आपको सायबॉर्ग का कॉन्सेप्ट समझने में बिलकुल मुश्किल नहीं होगी। दरअसल काफी अरसे से बायोलॉजी, फिजिक्स और तकनीक के क्षेत्र में ऐसी खोजें हो रही हैं, जो शायद भविष्य में हमें साइबोर्ग बना दे।
क्या है Cyborg?
6जी नेटवर्क की शुरूआत से इंसान यह खुद तय करेगा कि आने वाले भविष्य में उसका रंग, रूप, सोचने और समझने की शक्ति कैसी होगी ? साइबोर्ग भविष्य के मानव को लेकर एक परिकल्पना है। साइबोर्ग वो इंसान होंगे, जिनके शरीर के भीतर कई तरह की मशीनें और ब्रेन चिप लगी होंगी। इन मशीनों और ब्रेन चिप की मदद से इंसान की शारीरिक और मानसिक क्षमता आज के मुकाबले कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगी। ट्विटर किंग एलन मस्क की निजी कंपनी न्यूरालिंक ने इस क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में कई बड़ी खोजों को अंजाम दिया है। न्यूरालिंक में काम कर रहे वैज्ञानिक एक खास तरह की चिप बनाने की कोशिश में है जो सीधे हमारे मस्तिष्क के न्यूरल नेटवर्क से जुड़े होंगे।सायबॉर्ग बनाने के पीछे एलन मस्क का तर्क है कि भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक बहुत बड़ा खतरा इंसानों के समक्ष खड़ा है। ऐसे में इंसानों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए भविष्य में साइबोर्ग बनना होगा। और वह इसी पर काम कर रहे हैं। हमारी ये तकनीक भविष्य में इंसानों की मानसिक और शारीरिक क्षमता को बढ़ाने का काम करेगी, जिससे वो आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को काउंटर कर सकेंगे।
नयी तकनीक के खतरे
इंसान के शरीर में चिप्स इंप्लांट होंगी तो जाहिर है कि इससे उसे संक्रमण का खतरा रहरेगा। अब इसे पॉजिटिव पहलू की तरह देखें क्योंकि आज भी बहुत से लोग पेसमेकर, स्टेंट, कृत्रिम घुटने आदि के साथ काम कर रहे हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं। जिस तरह फोन को ट्रैक किया जा सकता है उसी तरह चिप लगे व्यक्ति को भी ट्रैक करना बेहद आसान हो जायेगा लेकिन यह तभी होगा जब जरूरी होगा ।
माइक्रोचिप को जब शरीर में इम्प्लांट किया जाता है. इस तरह वह आपके शरीर की जानकारी इकठ्ठा कर हर गतिविधि के बारे में बता देती है। इसके खराब होने का भी खतरा रहता है। ऐसे में इन्हें बदलने के लिए आपको फिर से सर्जरी करानी पड़ेगी।
फायदे
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी विकलांग व्यक्ति का इलाज संभव होगा। इंसान के बॉडी पार्ट को किसी मशीन से रिप्लेस किया जा सकेगा।हो सकता है कि 6G SIM कार्ड को लोगों की बॉडी में ही इंटीग्रेट किया जाए।
इस चिप की मदद से भविष्य में इंसानों के व्यवहार, उनकी सोचने समझने की क्षमता और शारीरिक शक्ति को बढ़ाया या घटाया जा सकेगा। चिप की सहायता से इंसान के मस्तिष्क और मशीन के साथ एक इंटरफेस बनाने में भी मदद मिलेगी।
दुनिया का पहला सायबॉर्ग
मशीनी मानव या साइबॉर्ग यानी पूरे या आधे शरीर के किसी हिस्से में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस फिट कर किसी खास अंग की क्षमता बढ़ाकर काम करने वाले लोग। ऐसे लोगों की संख्या कम है, लेकिन आने वाले समय में ऐसे लोगों का पूरा समाज होगा। दुनिया के पहले साइबॉर्ग नील हॉर्बिंसन बने जो अपनी तीसरी इलेक्ट्रॉनिक आंख आईबॉर्ग से रंगों को देखते नहीं, सुनते हैं।
ब्रिटेन के नील हॉर्बिंसन दुनिया के पहले ऐसे शख्स हैं जिनकी तीन आंख हैं। नील के मस्तिष्क में एक ऐसा एंटीना फिट है जो पीछे से दोनों आंखों के लगभग बीच में है। नील की यही तीसरी आंख है, जिससे वे किसी भी रंग को देखते नहीं हैं बल्कि सुनते हैं। वे ध्वनियों के आधार पर रंगों को पहचानते हैं।
दरअसल नील के मस्तिष्क में एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो परमानेंटली इंटीग्रेटेड है। यह टेक्नोलॉजी रंगों को ध्वनियों में ट्रांसफॉर्म करके नील के दिमाग में भेजती है और नील ध्वनि से रंगों को पहचान लेते हैं। नील की बॉडी में परमानेंट फिक्स यह डिवाइस 360 रंगों को ध्वनियों में बदल सकती है। नील इससे अल्ट्रासाउंड और अल्फा रेड एनर्जी को भी पहचान लेते हैं जो सामान्य मनुष्य के लिए असंभव है, इसलिए भी नील दुनिया के पहले साइबॉर्ग कहे जाते हैं।
नील को अपने दिमाग में इस तरह की डिवाइस की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि वे दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें जन्म से ही एक्रोमेटोप्सिया है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें जन्मे बच्चे केवल ग्रे स्केल ही देख सकते हैं यानी कि नील को हर रंग सफेद या काला ही नजर आता था।
साइबॉर्ग लोगों की मदद के लिए नील ने 2010 में साइबॉर्ग फाउंडेशन की स्थापना की है। यह उन लोगों की मदद करता है जिनके कुछ अंग कुदरती तरीके से कार्य नहीं करते। फाउंडेशन फिंगरबॉर्ग, स्पीेडबॉर्ग और साइबरनेटिक नोज लगाने के लिए मदद करता और साइबॉर्ग लोगों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ता है।