DMT : मुरथल : (05 फ़रवरी 2023) : –
‘ट्रक लाइन ढाबा’। जी हां, अब उन ढाबों की यही पहचान रह गई है, जिन पर ट्रक वाले ही अकसर रुकते हैं। इन ढाबों की ओर आम लोगों का रुझान अब लगभग खत्म हो गया है। यह अलग बात है कि टेस्ट चेंज के लिए भले कोई कभी चला जाए। अब ट्रक लाइन ढाबों की जगह लोगों ने ‘स्टार’ ढाबों पर जाना शुरू कर दिया है। सबसे रोचक बात यह है कि ढाबों का प्रचलन ही ट्रक और लम्बे रूट की बसों की वजह से हुआ था, आज ट्रक लाइन ढाबे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
जमीनों की महंगी होती कीमतों के अलावा किराये और लीज राशि में बढ़ोतरी का असर भी इन ढाबों पर पड़ा है। दिल्ली-अमृतसर नेशनल हाईवे के अलावा हरियाणा के अधिकांश नेशनल व स्टेट हाईवे पर अब फैमिली ढाबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ट्रक चलाने वाले लोग अपनी लाइन के ही ढाबों पर रुकते हैं। यह उनकी मजबूरी भी है और जरूरत भी।
हमें तो डीजल ने लूटा, टायरों में कहां दम था
इस सफर पर दिखा कि ट्रक चालक अपने ट्रक पर कुछ लाइनें जरूर लिखवाते हैं। इन लाइनों में गंभीर संदेश तो होता ही है, लोग भी उन्हें पसंद करते हैं। सरकार के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान को भी ट्रक वाले आगे बढ़ा रहे हैं। डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का उन पर असर भी पड़ा है। एक ट्रक के पीछे लिखी ये लाइनें – ‘हमें तो डीजल ने लूटा, टायरों में कहांं दम था, हमें जहां भेजा गया, वहां का भाड़ा कम था’, उनकी दास्तां सुनाने को काफी हैं। लोगों को ट्रक वाले जागरूक भी करते हैं। ‘वाहन चलाते समय सौंदर्य दर्शन न करें, वरना देव दर्शन हो सकते हैं’। यह लाइन सेफ ड्राइविंग का ही तो संदेश दे रही है।
ट्रकों की करनी होती है चौकीदारी
जीटी रोड पर कुराड़ गांव के पास पंजाब हिमाचल ढाबे के संचालक सोनू कुमार बताते हैं कि ट्रक चालक किसी भी ढाबे पर रुकने से पहले आराम करने के लिए चारपाई, स्नान करने के लिए पानी व ट्रकों के खड़ा करने के लिए पर्याप्त जगह को अहमियत देते हैं। यही नहीं, ट्रकों की देखरेख भी ढाबे का चौकीदार करता है। इन सबकी गारंटी मिलने पर ढाबों पर ट्रकों की संख्या बढ़ती है। माल लोडिंग व अनलोडिंग में समय लगने पर ट्रक चालक कई-कई दिन तक ढाबे पर ही ठहरे रहते हैं। अन्यथा वे कंपनी में ब्रेक लगाते हैं। वह कहते हैं कि ट्रक लाइन के ढाबों में अब पहले वाली आमदनी नहीं रही। मगर अरसे से इस धंधे से जुड़े होने के कारण अब इसे छोड़कर दूसरा काम करना मुश्किल है।
खुद खाना पकानाकरते हैं पसंद
मान ढाबे पर ठहरे ट्रक चालक राज सिंह व कैंटर चालक जगतार सिंह बताते हैं कि कई बार महंगा माल होने के कारण मालिक सीधे कंपनी में रुकने की हिदायत देते हैं। माल सस्ता हो, खुद खाना पकाने का मन न हो या नहाने की बात आए तो ही ढाबे पर ठहरते हैं। पंजाब हिमाचल ढाबे पर चाय की चुस्कियां ले रहे चालक सर्बजीत व क्लीनर विक्रम बताते हैं कि सफर लंबा हो तो ही वे बीच में सुस्ताने के लिए ढाबों पर ठहरते हैं। अन्यथा खुद खाना पकाना पसंद करते हैं। जीटी रोड पर ट्रक लाइन ढाबे पर अधिकांश दाल व सब्जियों की एक प्लेट का रेट 70 से 80 रुपये है। चपाती का रेट 5 से 7 रुपये है। बगल या सामने वाले चमक दमक वाले ढाबों पर दाल व सब्जियों की एक प्लेट 250 से 425 रुपये तक मिलती है। इसके बावजूद ट्रक लाइन ढाबों को ग्राहकों का इंतजार रहता है।
लम्बे रूट पर चलने वाले ट्रक व हैवी वाहन चालकों को आराम करने के लिए जगह भी चाहिए। नहाने का प्रबंध भी हो और खाने के पैसे भी कम चुकाने पड़ें, यह उनकी पहली प्राथमिकता रहती है। अब तो स्थिति यह हो चली है कि ‘स्टार’ ढाबों पर ट्रक वालों को रुकने भी नहीं दिया जाता। ट्रक लाइन ढाबों पर जहां उन्हें 100 रुपये में भरपेट खाना मिल जाता है, वहीं स्टार ढाबों पर एक दाल के लिए 200 से 250 रुपये देने पड़ते हैं।
लंबे सफर पर निकलने से पहले हर कोई खाने-पीने के इंतजामों के बारे में एकबारगी अवश्य सोचता है। ऐसे में सामान लेकर लंबे सफर पर निकलने वाले कैंटर, ट्रक, ट्राला, कंटेनर समेत अन्य मालवाहक वाहनों के चालक भी इससे अछूते नहीं हैं। इमरजेंसी के लिए वे खाना पकाने का इंतजाम करके निकलते हैं और रुटीन में ढाबे ही उनके ठिकाने हैं। कई दशक पहले ठसाठस भरे रहने वाले चुनींदा ढाबों को छोड़ दें तो बाकी वीरान ही नजर आते हैं।
वाहन चालकों की मानें तो मालिकों के कहे अनुसार वे अपने वाहनों को लेकर सीधे कंपनी में जाकर लोड-अनलोड करने को तवज्जो देते हैं। इसका सीधा असर ढाबों के कारोबार से जुड़े लोगों की आय पर पड़ रहा है। जीटी रोड पर दिल्ली से सटा मुरथल जोन ढाबों के लिए देशभर में मशहूर रहा है। कई दशक पहले इस जोन में 80 से अधिक छोटे-बड़े ढाबे चलते थे। इन पर ट्रक चालकों के अलावा आम आदमी भी सस्ते में पराठे, लस्सी, दाल, खीर समेत कई स्वादिष्ट खाना खाते थे। ट्रक चालक तो यहां आकर नहाने के बाद खाना खाकर चरपाई पर घंटों सुस्ताते थे। पिछले दो दशक से अब इनकी जगह स्टार ढाबों ने ले ली। स्टार ढाबा संचालकों ने अपने यहां पर मालवाहक वाहनों के रुकने की मनाही लागू कर दी ताकि कारों व अन्य वाहनों में आने वाले लोग व उनके परिवार बिना हिचक आएं। इसका असर यह हुआ कि ढाबों की कैटेगिरी अलग-अलग हो गयी।
कमाई पर लगता रहता है ब्रेक
जीटी रोड पर गांव लडसौली के ठीक सामने संदीप कुमार कई दशक से ढाबा चला रहे हैं। पहले मुरथल में चलाते थे मगर धीरे-धीरे वहां जमीन महंगी होने के कारण किराया बूते से बाहर हो गया। ऐसे में वे वहां से छोड़कर करीब 10 किलोमीटर आकर यहां पर जम गए। लेकिन अब पहले वाली बात नहीं। ट्रक चालकों का बजट कम होने के कारण वे अकसर हॉफ प्लेट दाल व रोटी का ऑर्डर करते हैं। इससे पर्याप्त आय होती नहीं। संदीप बताते हैं कि बाइक व कार सवार लोगों से कमाई होती है, लेकिन ये लोग अकसर नहीं आते। अकसर 24 घंटे में 15-20 ट्रक आकर रुकते हैं तथा कई बार यह संख्या 50 तक भी पहुंच जाती है। ज्यादा ट्रक रुकने पर अगले कई दिन का खर्च निकल जाता है। उनका कहना है कि कुल मिलाकर अब ट्रक लाइन के ढाबे घाटे का सौदा साबित हो रहे हैं। जीटी रोड स्थित मान ढाबा के सतीश कुमार, सुदामा ढाबा संचालक हरि सिंह व शिव ढाबा के नरेश आदि का कहना है कि मुरथल इलाके में अब ट्रक लाइन ढाबों में मुनाफा कमाने के बारे में सोचना बेमानी सा लगता है। जमीन या शेड का भारी भरकम किराया, स्टाफ का वेतन, बिजली-पानी व अन्य खर्च निकालने के बाद तो कई बार मालिक के हाथ खाली रह जाते हैं। कभी-कभी ही मुनाफा आ पाता है। उनकी मानें तो यहां ढाबों की संख्या घटती जा रही है। इनकी जगह अब चमक-दमक वाले ढाबों ने ले ली।