अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत को लेकर दुविधा में भारत, तालिबान ने बढ़ाई मुश्किल

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DMT : अफ़ग़ानिस्तान  : (16 मई 2023) : –

भारत में अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास ने एक बयान जारी कर कहा है कि दूतावास के नेतृत्व में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है और फ़रीद मामुन्दज़ई ही भारत में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत हैं.

एक व्यक्ति ने नई दिल्ली स्थित अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास का कार्यभार संभालने का दावा किया था. सोमवार को दूतावास की तरफ़ से जारी बयान में उन दावों को ख़ारिज कर दिया गया है.

क्या है पूरा मामला

रविवार को अफ़ग़ानिस्तान की कुछ स्थानीय मीडिया ने दावा किया कि भारत में रह रहे कुछ अफ़ग़ान नागरिकों ने नई दिल्ली स्थित अफ़ग़ान दूतावास में कथित भ्रष्टाचार को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय को एक ख़त लिखा है.

मीडिया में यह भी दावा किया गया है कि मौजूदा राजदूत फ़रीद मामुन्दज़ई को काबुल वापस बुलाने का आदेश जारी कर दिया गया है और नई दिल्ली में ही पहले से ट्रेड काउंसलर के पद पर काम कर रहे क़ादिर शाह को कार्यकारी राजूदत बना दिया गया है.

सोमवार को जारी बयान में इन दावों का खंडन करते हुए कहा गया, ”वो व्यक्ति जो तालिबान की तरफ़ से ‘कार्यकारी राजदूत’ बनाए जाने का दावा कर रहा है, वही ग़लत जानकारियां फैलाने, मिशन के अधिकारियों के ख़िलाफ़ आधारहीन अभियान चलाने का ज़िम्मेदार है. इन आरोपों में मिशन में भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल हैं.”

बयान में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के आरोप एकतरफ़ा, पक्षपाती और झूठे हैं. बयान में यह भी कहा गया कि वो अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को यह जानकारी देना चाहते हैं कि वो उनके हित में भारत में सामान्य तरीक़े से काम करते रहेंगे.

फ़रीद मामुन्दज़ई 2020 से ही भारत में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत हैं.

क़ादिर शाह सही कह रहे हैं या फ़रीद मामुन्दज़ई यह तय करना मुश्किल है. बीबीसी ने दोनों से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी फ़ोन या मैसेज का जवाब नहीं दिया. लेकिन मामला सिर्फ़ दो दावों का नहीं है.

भारत से छपने वाले एक अंग्रेज़ी अख़बार ने अपने लेख में कहा है कि पिछले 25 अप्रैल को अफ़ग़ानिस्तान की विदेश मंत्रालय ने दो आदेश जारी किए थे. एक में मौजूदा राजदूत फ़रीद मामुन्दज़ई को काबुल वापस बुलाने का आदेश दिया गया था जबकि उसी दिन जारी हुए दूसरे आदेश में मौजूदा ट्रेड काउंसलर क़ादिर शाह को कार्यकारी राजदूत बनाया गया है.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. अख़बार हिंदू के अनुसार, अधिकारियों का कहना है कि उन्हें अभी तक दूतावास में किसी तरह के बदलाव की जानकारी नहीं मिली है.

मौजूदा मामले में क़ादिर शाह यह भी कह रहे हैं कि वो पुरानी सरकार यानी अशरफ़ ग़नी की सरकार के दौरान भारत आए थे और वो अफ़ग़ानिस्तान विदेश मंत्रालय के अधिकारी हैं.

भारत के पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि ऐसा 90 के दशक में भी हो चुका है. उस दौरान पहले नजीबुल्लाह की सरकार को मुजाहिदीनों ने हटा दिया था और फिर तालिबान ने मुजाहिदीनों की सरकार को हटा दिया था.

त्रिगुणायत के अनुसार, उस समय कई देशों में यह समस्या हुई थी कि अफ़ग़ानिस्तान दूतावास में तैनात लोग आपस में बंट गए थे और देशों के लिए भी समस्या पैदा हो गई थी कि नजीबुल्लाह या मुजाहिदीन या फिर तालिबान किसके समर्थित उम्मीदवार को आधिकारिक राजदूत माना जाए.

अनिल त्रिगुणायत के अनुसार, क़ादिर शाह को चार्ज डे अफ़ेयर्स तो बनाया जा सकता है, उसके लिए किसी इजाज़त की ज़रूरत नहीं होती है. उनके अनुसार, इसके लिए अफ़ग़ानिस्तान की सरकार काबुल स्थित भारत के टेक्निकल मिशन को सूचना दे सकती है और भारत उसको मान्यता दे सकता है.

अप्रैल 2022 में तालिबान ने चीन और रूस में यही किया था. तालिबान ने नए अधिकारी को कार्यकारी राजदूत बना दिया था जिसके बाद तत्कालीन राजदूत ने इस्तीफ़ा दे दिया था.

पाकिस्तान, ईरान और उज़्बेकिस्तान में भी तालिबान समर्थित राजनयिक दूतावास का कार्यभार संभाल रहे हैं. जबकि 60 से ज़्यादा देशों में अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास बंद पड़े हैं क्योंकि वहां तैनात राजदूत ने तालिबान की सत्ता को मानने से इनकार कर दिया था और दूतावास को चलाने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं थे.

तालिबान के साथ सुधरते रिश्ते का संकेत?

कुछ लोग कह रहे हैं कि भारत ने अगर तालिबान की बात मान ली और नई दिल्ली स्थित दूतावास में बदलाव को स्वीकार कर लिया तो इसे तालिबान को मान्यता देने की तरफ़ एक क़दम माना जा सकता है.

इस पर अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि दुनिया के बहुत सारे देश किसी ना किसी तरह तालिबान से रिश्ते बनाए हुए हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, “हाल ही में दोहा में हुए यूएन कॉन्फ़्रेंस में भी इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि तालिबान से काम चलाने लायक़ रिश्ता बनाए रखा जाए. भारत ने भी अपना एक टेक्निकल मिशन खोला हुआ है जिसकी काउंसलर स्तर के एक अधिकारी देख-रेख करते हैं.”

भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंध

भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं. 1947 तक भारत की सीमा भी अफ़ग़ानिस्तान से सटी हुई थी.

90 के दशक में तालिबान जब सत्ता में आए थे तो भारत ने उनको मान्यता नहीं दी थी. लेकिन 2001 में 9/11 हमलों के बाद अमेरिकी सेना अफ़ग़ानिस्तान में आ गई और तालिबान की सत्ता चली गई.

भारत ने इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पिछले 20 सालों में तीन अरब डॉलर से भी ज़्यादा का निवेश किया.

त्रिगुणायत के अनुसार, भारत मानवीय आधार पर अफ़ग़ानिस्तान की मदद लगातार कर रहा है.

उन्होंने कहा कि ‘तालिबान ने भारत से आग्रह किया है कि अफ़ग़ानिस्तान में जो परियोजना रुक गई है, भारत उसे दोबारा शुरू करे. लेकिन जब तक वहां सुरक्षा की स्थिति बेहतर नहीं होगी, तब तक भारत वहां दोबारा काम शुरू नहीं कर सकता है.’

तालिबान को मान्यता?

अनिल त्रिगुणायत के अनुसार, तालिबान को आधिकारिक रूप से स्वीकार करने का फ़िलहाल तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.

इसकी एक ख़ास वजह बताते हुए त्रिगुणायत कहते हैं, “अमेरिका की सेना जब अफ़ग़ानिस्तान से हटी और तालिबान का क़ब्ज़ा हुआ उस समय भारत यूएन सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष था. भारत की ही अध्यक्षता में ही प्रस्ताव पास किया गया था.”

वो आगे कहते हैं, “उस प्रस्ताव में तालिबान के लिए जो शर्तें लगाई गई थीं वो पूरी नहीं हुई हैं. तालिबान को लेकर भारत की भी यही सोच है जो दुनिया के दूसरे देशों की है. इसलिए फ़ौरन तालिबान को मान्यता देने या उच्च स्तर पर उनसे बातचीत की कोई संभावना नहीं है.”

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