अमित शाह के आक्रामक तेवर से क्या बीजेपी को बिहार की सत्ता मिल पाएगी?

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (04 अप्रैल 2023) : –

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रविवार की नवादा में की गई रैली उनके आक्रामक रुख़ के लिए चर्चा में है.

रैली के दौरान उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, ”दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण मैं सासाराम नहीं जा सका. वहां लोग मारे जा रहे हैं, गोलियां चल रही हैं. मैं अपने अगले दौरे में वहां ज़रूर जाऊंगा.”

उन्होंने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार शरीफ़ और सासाराम में आग लगी हुई है, “मैंने सुबह गवर्नर साहब को फ़ोन किया तो लल्लन सिंह जी बुरा मान गए कि आप क्यों बिहार की चिंता करते हो?”

उन्होंने कहा कि ”दंगा मुक्त बिहार बनाना है तो यहां की चालीस की चालीस सीटें मोदी जी को दीजिए, दंगा करने वालों को उल्टा लटका कर सीधा कर देंगे.”

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार सरकार को सासाराम का कार्यक्रम रद्द करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया.

अमित शाह पर विपक्ष की प्रतिक्रिया

सोमवार को बिहार विधानसभा को हंगामे के बीच स्थगित करना पड़ा. बिहार के संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने अमित शाह के बारे में कहा कि उन्होंने शांति की अपील करने के बजाय तनाव बढ़ाने वाला भाषण दिया है. मुख्यमंत्री की जगह राज्यपाल से स्थिति पर चर्चा को भी उन्होंने ग़लत बताया.

जेडीयू के नेताओं ने ट्वीट कर कहा कि भाषण में बीजेपी की हताशा दिखती है. राजीव रंजन सिंह ने लिखा, “नवादा में आपके भाषण से स्पष्ट है कि बड़का झुट्ठा पार्टी (BJP) हताश हो गई है और बौखलाहट में है.”

टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने लिखा, “गृह मंत्री ने बिहार में दंगाइयों को उल्टा लटकाने की बात कही. गुजरात में वो रेप करने वालों और हत्यारों को रिहा कर लड्डू खिलाते हैं.”

भाषण रणनीति का हिस्सा?

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर का कहना है बिहार में अमित शाह की भाषा में तल्ख़ी पिछले कुछ समय से दिख रही है. वो कहते हैं, “नवादा में दिए भाषण में उन्होंने संयम खो दिया. गृह मंत्री के नाते उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.”

“राजनीतिक भाषण का स्तर गिर गया है. बीजेपी अपने बूते पर बिहार में सरकार नहीं बना पा रही है. यही कारण हो सकता है कि बीजेपी की आक्रमकता बढ़ गई है.”

हालांकि जानकार इस बात से इनकार नहीं करते कि मुमकिन है कि ये एक रणनीति का हिस्सा हो.

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “कई लोग दंगों की टाइमिंग और जगह पर भी सवाल उठा रहे हैं. कोई भी पार्टी बयान देती है तो उसके पीछे रणनीति होती है.”

बिहार में दो जगहों पर दंगे हुए. बिहारशरीफ़ में जो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा में है और दूसरी जगह सासाराम में हुआ.

वहीं, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी जहां भी चुनाव लड़ती है, वो इसी आक्रमक तरीके से लड़ती है.

वो कहते हैं, “बीजेपी के नेता जहां भी जाते हैं इसी तरह से आक्रमक तरीके से अपनी बात रखते हैं. चाहे वो भ्रष्टाचार के बारे में बात करें या दूसरे मुद्दे पर. यूपी, बंगाल या दूसरे राज्य में उनकी शैली यही है. इसका परिणाम भी उन्हें मिलता है और एक आम वोटर को वही प्रभावित करता है.”

उनके मुताबिक़, जहां दंगे हुए, उन इलाकों में पहले भी तनाव होता रहा है. ये काफ़ी संवेदनशील इलाके रहे हैं.

ध्रुवीकरण की कोशिश?

बिहार में जाति की राजनीति हमेशा हावी रही है, ये माना जाता है कि मुस्लिम-यादव समीकरण आमतौर पर आरेजेडी के साथ ही रहा है.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “”बीजेपी चाह रही है कि जातीय ध्रवीकरण नहीं हो. वो सांप्रदायिक आधार पर ऐसी स्थिति बनाने की कोशिश कर रही है कि जातीय आधार पर हिंदू न बंटें. वहीं आरजेडी-जेडीयू की कोशिश है कि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां एक साथ रहें.”

ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि धार्मिंक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिशों में बीजेपी कई जगह पर कामयाब हुई है. बिहार के पड़ोसी राज्य यूपी में इसका साफ़ असर दिखा था.

हालांकि मणिकांत ठाकुर मानते हैं कि बिहार की स्थिति यूपी से अलग है और वहां जातीय आधार पर लोग ज़्यादा सक्रिय दिखते रहे हैं.

वो कहते हैं, “हालांकि पिछले कुछ चुनावों में बिहार में भी इसकी झलक मिली है. एक समुदाय किसी के पक्ष में एकजुट होता है तो दूसरा पक्ष इसके जवाब में एकजुट होता है.”

महागठबंधन का जवाब देने की कोशिश?

“बीजेपी इसी को और मज़बूत करने की कोशिश कर रही है. बीजेपी जातीय आधार पर मज़बूत महागठबंधन का जवाब तैयार कर रही है.”

मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि बिहार के गांवों में नज़र आने लगा है कि हिंदु एकजुट करने की बात करते हैं. उनके मुताबिक़, “गांव-देहात में भी महंगाई और दूसरे मुद्दों के बजाय लोग हिंदू-मुसलमान के मुद्दों पर बात करने लगे हैं, ये बढ़ा तो इसका फ़ायदा बीजेपी को मिलेगा.”

अमित शाह का भाषण नवादा में दिया गया. सुरूर अहमद का कहना है कि सासाराम, बिहार शरीफ़ में कोइरी समुदाय की मौजूदगी बहुत है और बीजेपी इन्हें टार्गेट करना चाहती है.

वो कहते हैं, “कुशवाहा समुदाय के सम्राट चौधरी को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया है. बीजेपी कुर्मी, कोइरी (कुशवाहा) जातियों को साथ लाना चाहती है.”

बिहार में ओबीसी वोट बैंक में यादवों के बाद सबसे ज़्यादा संख्या बल कुर्मी-कोइरी का है. यादवों की आबादी तकरीबन 15 फ़ीसदी है, तो कुर्मी-कोइरी की सात फ़ीसदी के क़रीब.

कुर्मी-कोइरी में भी कोइरी की आबादी ज़्यादा है. ऐसे में आरजेडी के यादव वोट बैंक का मुक़ाबला अगर किसी भी पार्टी को करना है तो उसमें कुर्मी-कोइरी वोट बैंक अहम भूमिका निभा सकता है.

हालांकि अजय कुमार कहते हैं कि इस तरह की प्रतिक्रिया (अमित शाह की) किसी भी पार्टी के लिए आम है. वो कहते हैं “सभी पार्टियां अपनी बात रखती हैं, विधानसभा में भी पार्टियों ने अपनी बात रखी, कार्रवाई नहीं चल पाई.”

जेडीयू-आरजेडी के मुद्दों पर हावी बीजेपी?

महागठबंधन पर बीजेपी की तरफ़ से आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने दंगों को रोकने के लिए और दंगों के बाद हालात पर काबू पाने के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए.

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने अपने कैंपेन में बेरोज़गारी और महंगाई का मुद्दा उठाया था. लेकिन अब जानकार मानते हैं कि ध्रुवीकरण अगले चुनावों में फिर से हावी रहेगा.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “पिछले चुनाव में लगा था कि तेजस्वी एक युवा नेता के तौर पर बुनियादी मुद्दों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन अब वो छवि मंद पड़ गई है. अब फिर से वो आरक्षण, मंडल कमीशन की बातें उठा रहे हैं और लोगों को लगने लगा है कि कुछ बड़ा बदलाव नहीं आ रहा है.”

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “बीजेपी ने ये कहना शुरू कर दिया है कि बिहार में जंगलराज लौट आया है. इसके पीछे बीजेपी की यही मंशा है कि लालू-राबड़ी के शासन में लगे आरोपों को फिर से साबित किया जाए.”

ठाकुर ये भी कहते हैं कि इस बात में सच्चाई है कि बिहार में पिछले कुछ समय में क़ानून व्यवस्था पहले जैसी नहीं रही है.

वो कहते हैं, “इसके आलावा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सामन्जस्य नहीं है. राजनीतिक खींचतान के कारण प्रशासनिक मज़बूती कमज़ोर दिख रही है.”

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