अमेरिका: डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए इन शर्तों को मानने के लिए तैयार हैं जो बाइडन

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DMT : अमेरिका : (28 मई 2023) : –

कई हफ्तों की रस्साकशी के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और हाउस रिपब्लिकन स्पीकर केविन मैकार्थी कर्ज़ सीमा को बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गए हैं.

ये न सिर्फ अमेरिका बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी राहत भरी ख़बर है, क्योंकि इस सैद्धांतिक सहमति से अमेरिका के डिफ़ॉल्ट होने का ख़तरा भी टलता हुआ नज़र आ रहा है.

अमेरिका पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की धुरी है इसलिए इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.

हालांकि अभी इस पर कांग्रेस की मुहर लगनी बाकी है.

अमेरिका की ट्रेज़री ने पहले चेतावनी दी थी कि अगर कोई समझौता नहीं हुआ तो 5 जून को देश डिफ़ॉल्ट हो जाएगा.

अमेरिका की अर्थव्यवस्था 23 ट्रिलियन डॉलर की है. भारत और दूसरे देशों के तरह अमेरिका का बजट भी घाटे में चलता है, यानी सरकार को टैक्स से जितनी आमदनी होती है उससे कहीं अधिक उसके खर्चे होते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति को और कर्ज लेने के लिए अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी चाहिए होती है.

रिपब्लिकन पार्टी के वरिष्ठ सांसदों का कहना है कि जब तक सरकार आने वाले सालों में अपने खर्च को कम नहीं करती है, तब तक वे कर्ज़ की सीमा नहीं बढ़ाएंगे, वहीं डेमोक्रेट्स ने कुछ टैक्स बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है.

किन शर्तों पर हुआ समझौता?

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राष्ट्रपति बाइडन और हाउस स्पीकर केविन मैकार्थी के बीच हुए समझौते की जानकारी आधिकारिक तौर पर अभी जारी नहीं की गई है, लेकिन अमेरिका में बीबीसी के सहयोगी सीबीएस ने बताया कि ग़ैर-रक्षा मदों पर सरकारी खर्च को दो साल तक के लिए स्थिर रखा जाएगा और फिर 2025 में इसमें एक प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाएगी.

शनिवार देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में हाउस स्पीकर केविन मैकार्थी ने कहा कि उन्होंने दिन में दो बार राष्ट्रपति जो बाइडन से फ़ोन पर बात की थी.

उन्होंने कहा, “हफ्तों की बातचीत के बाद हम सैद्धांतिक रूप से एक समझौते पर आ गए हैं. हमें अभी भी बहुत काम करना है, लेकिन मेरा मानना है कि सैद्धांतिक रूप से हुआ समझौता अमेरिका के लोगों के हित में है.”

मैकार्थी ने कहा कि खर्च में ऐतिहासिक कटौती की गई है. लोगों को ग़रीबी से निकालकर वर्कफोर्स में लाया जाएगा. न कोई नया टैक्स और न ही कोई नया सरकारी कार्यक्रम शुरू किया जाएगा.

बुधवार को कांग्रेस में बिल पर मतदान होना है. मैकार्थी ने कहा कि वे रविवार तक बिल को पूरा कर लेंगे और मतदान से पहले राष्ट्रपति जो बाइडन से बात करेंगे. यह सरकार की ज़िम्मेदारी है.”

उन्होंने कहा कि यह एग्रीमेंट अमेरिका के लोगों के लिए अच्छी ख़बर है, क्योंकि यह अमेरिका को डिफ़ॉल्ट होने बचाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो आर्थिक मंदी आती और लाखों लोगों की नौकरियां जा सकती थीं.

अब इसके बाद बाइडन और मैकार्थी, दोनों को अपनी अपनी पार्टी के सांसदों को इस समझौते पर वोट के लिए समझाना होगा.

मुश्किलें क्यों आ रही हैं?

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विपक्षी रिपब्लिकन सांसदों का कहना है कि सरकार का इतना पैसे ख़र्च करना लगातार जारी नहीं रह सकता. इसके लिए वे जिस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह है ‘अनसस्टेनेबल’.

अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं, इसलिए डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडन कल्याणकारी योजनाओं में कटौती करके अलोकप्रिय नहीं होना चाहते.

जबकि विपक्षी रिपब्लिकन नेता उन्हें बढ़ते सरकारी ख़र्च के मुद्दे पर घेर रहे हैं. रिपब्लिकन सांसदों की मांग है कि जो बाइडन वादा करें कि वे बजट में कटौती करेंगे, चुनाव से ठीक पहले कटौती के लिए राज़ी होना राजनीतिक तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए घातक हो सकता है.

विपक्षी सांसदों की ये मांग भी है कि सरकारी अनुदान पाने की शर्तों को और सख़्त बनाया जाना चाहिए.

कर्ज़ की सीमा या ‘डेट् सीलिंग’ क्या है?

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डेट् सीलिंग दरअसल वह अधिकतम रक़म है, जिसे अमेरिकी सरकार अपने ख़र्चे पूरे करने के लिए उधार ले सकती है. यह रक़म अमेरिकी कांग्रेस यानी संसद तय करती है.

भारत और अमेरिका सहित दुनिया के अनेक देशों का बजट घाटे में चलता है, यानी सरकार को टैक्स से जितनी आमदनी होती है उससे कहीं अधिक उसके खर्चे होते हैं.

ऐसी स्थिति में सरकार को अपने बिल चुकाने के लिए कर्ज़ लेना पड़ता है.

अमेरिका में यह एक सामान्य प्रक्रिया है. अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए अमेरिकी कांग्रेस कर्ज़ की सीमा को घटाती और बढ़ाती रहती है.

1960 से लेकर अब तक कर्ज़ की सीमा में अमेरिकी संसद ने 78 बार बदलाव किया है. यहां समझने वाली बात ये भी है कि डेट् सीलिंग भविष्य के ख़र्चों के लिए नहीं है, उसका फ़ैसला बजट में होता है.

कर्ज़ लेने की सीमा का संबंध उन बिल में से एक है जिनकी तत्काल अदायगी होनी है यानी डॉलर सरकार पहले ही ख़र्च कर चुकी है या करने का वादा कर चुकी है, और अब उसे लेनदारों को पैसे चुकाने हैं, मसलन, सरकारी कर्मचारियों का वेतन और पेंशन वग़ैरह.

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