इमरान ख़ान या शहबाज़ शरीफ़: कौन होगा कितना ताक़तवर?

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DMT : इस्लामाबाद : (11 मई 2023) : –

24 मई 2021 की तारीख़ और जगह इस्लामाबाद, ये वो दिन था जब पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज़ शरीफ़ ने विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर पर बुलाया था.

इस डिनर के दौरान शहबाज़ शरीफ़ ने सत्ता में मौजूद इमरान ख़ान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विपक्षी दलों से एकजुट होने की अपील की थी.

इस विपक्षी एकजुटता में शहबाज़ शरीफ़ की पार्टी पीएमएल (एन), पीपीपी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम समेत 10 से अधिक पार्टियां शामिल थीं.

हालांकि पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) नाम का ये आंदोलन पहले ही शुरू हो चुका था लेकिन उस दिन से इसने रफ़्तार पकड़नी शुरू की.

बीते साल अप्रैल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने और उसे पास कराने के बाद पीडीएम को पहली सफलता मिली थी. इसके बाद उसके नेता शहबाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली क्योंकि वो विपक्ष के नेता था.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को आख़िरकार मंगलवार को गिरफ़्तार कर लिया गया और इस गिरफ़्तारी के साथ ही देश में सत्तारूढ़ पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) गठबंधन की एक और मुहिम पूरी हुई.

इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ पीडीएम की मुहिम में कई बडे़ चेहरे शामिल हैं, जिनमें शहबाज़ शरीफ़, मरियम नवाज़, आसिफ़ अली ज़रदारी, बिलावल भुट्टो ज़रदारी, मौलाना फ़ज़लुर्रहमान जैसे नाम हैं लेकिन शहबाज़ शरीफ़ एक बड़ा चेहरा बने हुए हैं क्योंकि वो प्रधानमंत्री भी हैं और उनके भाई नवाज़ शरीफ़ देश से बाहर हैं.

अब सवाल उठता है कि इमरान ख़ान के जेल जाने के बाद शहबाज़ शरीफ़ और पीडीएम की मुहिम किस दिशा में जाएगी और इमरान ख़ान के मुक़ाबले शहबाज़ शरीफ़ कितने मज़बूत होंगे?

सेना है सबके पीछे?

जनरल ज़िया उल हक़ की तानाशाही के दौर से पाकिस्तान की राजनीति को लेकर कहा जाता है कि वो आर्मी मैनेज्ड, आर्मी कंट्रोल्ड और आर्मी डिक्टेटेड होती है. पाकिस्तान की राजनीति में आर्मी के दख़ल की बात पूरी दुनिया के सामने जगज़ाहिर है.

पाकिस्तान की सेना पर आरोप लगते रहे हैं कि वो अपनी मनमर्ज़ी की सरकार बनाती है और जहां पर सेना प्रमुख को कार्यकाल में विस्तार नहीं मिलता है तो वो उस सरकार को गिराने में लग जाती है.

बीबीसी उर्दू सेवा के वरिष्ठ पत्रकार सक़लैन इमाम पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति को चार बड़े खांचों में देखने की सलाह देते हैं.

वो कहते हैं, “पहली बात ख़ुद राजनेता कितना मज़बूत है, दूसरा ये कि पाकिस्तान में विपक्ष की स्थिति किस तरह की है क्या वो प्रशासन को चलाने के लिए है या उसे परेशान करने के लिए है, तीसरी चीज़ ये कि क्षेत्रीय राजनीति कैसी चल रही है, मसलन चीन, भारत या अफ़ग़ानिस्तान में कैसे हालात हैं. इन सबसे बड़ा और चौथा फ़ैक्टर ये है कि अमेरिका क्या चाह रहा है.”

ये तीन से चार बड़े फ़ैक्टर ये तय करते हैं कि आर्मी की क्या भूमिका राजनीति में रहने वाली है. विश्लेषकों का कहना है कि पीडीएम को पावर में आर्मी ही लेकर आई है, जनरल बाजवा को ये महसूस होने लगा था कि इमरान ख़ान का क़द काफ़ी बड़ा होने लगा है.

साल 2021 से इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ एक मुहिम शुरू हो गई थी और तभी से ये देखने को मिला कि पाकिस्तानी सेना अमेरिका को अपने यहां से ड्रोन उड़ाने और ऑपरेशन चलाने की अनुमति देने लगी जबकि उससे पहले इमरान ख़ान ने अमेरिका को इतनी छूट नहीं दी हुई थी.

वहीं इमरान ख़ान के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते बहुत बेहतर नहीं थे. इमरान ख़ान के प्रधानमंत्री बनने के बाद डेढ़ साल तक इमरान अमेरिका की यात्रा पर भी नहीं गए थे और न ही अमेरिका ने उन्हें बुलाया.

इसमें कोई शक नहीं है कि इमरान ख़ान पाकिस्तान के सबसे बड़े और चर्चित राजनेताओं में से एक हैं. क्रिकेट की कामयाब पारी के बाद राजनीति के मैदान में भी उन्होंने अपने जौहर दिखाए हैं. उनको ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, बेनज़ीर भुट्टो के बाद ऐसा तीसरा राजनेता माना जाता है जिन्होंने सेना से टक्कर लेने की हिम्मत दिखाई.

शहबाज़ शरीफ़ कितने मज़बूत हैं?

इमरान ख़ान की तुलना अगर शहबाज़ शरीफ़ से करें तो वो राजनीति की पिच के ही खिलाड़ी रहे हैं. शहबाज़ 13 सालों तक पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहे और उन्हें मैन ऑफ़ डिवेलपमेंट कहा जाता रहा है.

वो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के छोटे भाई हैं. शहबाज़ शरीफ़ का जन्म पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ.

उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पाकिस्तान में ‘इत्तेफ़ाक़ ग्रुप’ को सफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसे उनके पिता मोहम्मद शरीफ़ ने शुरू किया था.

‘डॉन’ अख़बार के मुताबिक़ ‘इत्तेफ़ाक़ ग्रुप’ पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह है जिसमें स्टील, चीनी, कपड़ा, बोर्ड उद्योग जैसे कारोबार शामिल हैं और शहबाज़ शरीफ़ इस ग्रुप के सह-मालिक हैं.

शहबाज़ शरीफ़ शुरू में अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ को उनके कामों में मदद करते थे, फिर भाई की मदद से ही उन्होंने राजनीति में क़दम रखा.

शहबाज़ शरीफ़ ने लाहौर समेत पंजाब की तस्वीर बदलने का काम किया. पंजाब प्रांत में मेट्रो बस और ऑरेंज ट्रेन का श्रेय उन्हें ही जाता है. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि इस विकास के काम से अधिक आर्थिक लाभ नहीं हुआ और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे.

सक़लैन इमाम बताते हैं कि इमरान ख़ान के जेल जाने से शहबाज़ शरीफ़ और पीडीएम सरकार को जो सबसे बड़ा फ़ायदा होगा वो ये है कि जो पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ का आंदोलन था वो थोड़ा हल्का पड़ेगा, इससे इमरान ख़ान की प्रसिद्धी में कोई कमी नहीं आएगी.

वो कहते हैं, “गवर्नमेंट, फ़ौज, रेंजर्स, इलेक्शन कमिशन, ब्यूरोक्रेसी, डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन सब शहबाज़ शरीफ़ और पीडीएम के कंट्रोल में हैं. तो बड़े पैमाने पर हेरा-फ़ेरी संभव है.”

“शहबाज़ शरीफ़ और उनके साथी दूसरे राजनीतिक दलों को ये पता है कि सत्ता में आने के लिए फ़ौज के साथ गठबंधन करना है और ब्यूरोक्रेसी के ज़रिए शासन करना है. वो उपनिवेशों की तरह राज करेंगे. जैसे ब्रिटिश सरकार को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि लोग उनको कितना पसंद करते हैं वो बस शासन करना चाहते थे.”

पाकिस्तान में इस साल के आख़िर में आम चुनाव होने जा रहे हैं. सक़लैन इमाम का मानना है कि पीटीआई को वापस सत्ता में न आने देने के लिए ये पूरी मुहिम है क्योंकि अगर फिर चुनाव होते हैं तो इमरान ख़ान के सत्ता में आने की बहुत बड़ी संभावना है.

पीटीआई बनाम पीएमएल (एन) की जंग

पाकिस्तान के अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि इमरान ख़ान की प्रसिद्धी में फ़िलहाल कोई कमी नहीं आती दिख रही है. इस्लामाबाद में वरिष्ठ पत्रकार शहज़ादा ज़ुल्फ़िकार कहते हैं कि अब इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई को भी तोड़ने की कोशिशें हो सकती हैं.

वो कहते हैं, “इमरान ख़ान के प्रशंसक वैसे ही रहेंगे लेकिन अगर उनकी पार्टी तोड़ी जाती है तो उसमें कमी आ सकती है. उदाहरण के तौर पर ऐसी भी कोशिशें हो सकती हैं कि उन्हें छह महीने के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए और फिर चुनाव की घोषणा हो जाए. इस समय पीटीआई और पीएमएल (एन) के बीच लड़ाई है.”

शहज़ादा ज़ुल्फ़िकार मानते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम से शहबाज़ शरीफ़ मज़बूत होंगे ऐसा संभव नहीं है और साथ ही ये दो नैरेटिव की जंग है क्योंकि इमरान ख़ान ने ऐसा ही पहले नवाज़ शरीफ़, मरियम नवाज़ और शहबाज़ शरीफ़ के साथ किया था और एक तबके का मानना है कि जो उन्होंने किया था वही आज उनके साथ हो रहा है.

वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के 2017 में चुनाव लड़ने के लिए आजीवन अयोग्य क़रार दिए जाने के बाद से लंदन में रह रहे हैं. उनके बार-बार पाकिस्तान लौटने की अटकलें लगती रही हैं लेकिन वो अब तक स्वदेश नहीं लौटे हैं.

क्या नवाज़ शरीफ़ वापस लौटेंगे और शहबाज़ शरीफ़ क्या पीछे हटकर मरियम नवाज़ के लिए सीट छोड़ेंगे? इस सवाल पर शहज़ादा ज़ुल्फ़िकार कहते हैं कि यह निर्भर करता है कि इमरान ख़ान की पार्टी का हश्र क्या होता है, उस सूरत में नवाज़ शरीफ़ को वापस लौटना पड़ेगा और अपनी बेटी के साथ चुनावी मैदान में कूदना पड़ेगा.

“मरियम नवाज़ एक करिश्माई नेता हैं और वो बड़ी रैलियां करती रही हैं. अगर नवाज़ शरीफ़ वापस लौटते हैं तो ही पीटीआई को टक्कर दे पाएंगे क्योंकि मेरा मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ अंतरिम अवधि के लिए आएं हैं.”

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान ये साफ़ है कि राजनीतिक अस्थिरता के बीच पाकिस्तान की आर्थिक हैसियत लगातार गिरती जा रही है.

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर अब सिर्फ़ 4.2 अरब डॉलर रह गया है और महंगाई दर 35 फ़ीसद तक पहुंच गई है.

साथ ही आर्थिक पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के साथ अब तक कोई सहमति नहीं बन पाई है. अगर इसी तरह से राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बनी रहते है तो देश की और ख़राब स्थिति हो सकती है.

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