इसराइल: अस्मिता और पहचान की जंग में उलझा दुनिया का एकमात्र यहूदी देश

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DMT : येरूशलम : (31 मार्च 2023) : –

तेल अवीव के मुख्य सड़क मार्ग पर जलते टायरों की लपटें बढ़ रही थीं और उसी दौरान अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर चले गए.

इसराइल के मुख्य एयरपोर्ट को बंद करना पड़ा, मानो बिन्यामिन नेतान्याहू ने पूरे मुल्क को ‘वेटिंग मोड’ पर रख दिया हो.

इसराइल की सड़कों पर सोमवार से ही अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है. देश के न्यायाधीशों की ताक़त को कम करने वाली सरकार के प्रस्ताव को लेकर शुरू हुआ विरोध चरम तक जा पहुंचा.

इस संकट की स्थिति में, सबकी नज़रें प्रधानमंत्री पर टिकी थीं, कि आख़िर वे क्या कदम उठाते हैं?

देश के नेशनल टीवी पर रात आठ बजे आने वाले शीर्ष न्यूज़ शो के समय में जब वो लाइव संबोधन के लिए आए तो उन्होंने शुरुआत में ही अपनी तुलना राजा सोलोमन की कहानी से की.

राजा सोलोमन की कहानी में राजा को दो महिलाओं में से एक बच्चे की वास्तविक मां का फ़ैसला करना था. इस कहानी का ज़िक्र करते हुए नेतान्याहू ने कहा कि उन्हें सुधार कार्यक्रम को लेकर दो पक्षों की दावेदारी में अपना फ़ैसला लिया है.

उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में बदलाव को फ़िलहाल संसद के अगले सत्र तक रोकने की घोषणा की है. साथ ही उन्होंने संसद में अपने विरोधियों की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए समझौते और बातचीत का संकेत भी दिया है.

उनकी घोषणा के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ. वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों ने कहा कि उनके विरोध के चलते प्रधानमंत्री को झुकना पड़ा है.

हालांकि उनके फ़ैसले से देश के अंदर हो रहे विरोध प्रदर्शन का आंदोलन भी दो हिस्सों में बंट गया है- विपक्ष के बड़े राजनीतिक दलों ने संसद में प्रधानमंत्री के फ़ैसले का बहुत ही सावधानी से स्वागत किया है वहीं सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे नेता अस्थायी रोक से संतुष्ट नहीं है. वे विरोध प्रदर्शन जारी रखने की अपील कर रहे हैं.

हालांकि इस संकट के अधीन कुछ बड़े संकट भी हैं- यहूदी धर्म वाले इसराइल में धर्म और सरकार की भूमिका को लेकर बंट गया है, सरकार की सत्ता पर ख़तरनाक नियंत्रण के मुद्दे और फ़लस्तीन के साथ राजनीतिक संबंधों के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं- यह सब संकट आने वाले दिनों और गहराने वाला है.

बेन्यामिन नेतान्याहू ने कहानी का ज़िक्र करते हुए कहा कि जिस तरह के एक माँ बच्चे को दो हिस्सों में काटकर बाँटने से इनकार कर देती है, उसी तरीक़े से वह नहीं चाहते हैं कि यह देश बंटे.

हालांकि उनके आलोचकों का कहना है कि उन्होंने सुधार को लेकर होने वाले विरोध को दबाने में काफ़ी समय लिया. आलोचकों के मुताबिक़, उन्होंने देश में विद्रोह को इस स्तर तक पहुंचा दिया.

हालांकि नेतान्याहू ने अपने आलोचकों में शामिल कुछ लोगों को पूरी समस्या के लिए दोष देते हुए कहा कि वे लोग बच्चे को दो भाग में काटने के लिए तैयार हैं. नेतान्याहू ने ये कहा कि वे ज़िम्मेदारी से क़दम उठाने के लिए तैयार है और कहा कि, ‘मैं देश को दो भागों में बांटने के पक्ष में नहीं हूँ.’

ज़ाहिर है कि ऐसा कहने के साथ उन्होंने लोगों का ध्यान उस ओर खींचा है कि नेतान्याहू ही अकेले ऐसे शख़्स हैं जो इस मुश्किल स्थिति में देश को बचा सकते हैं.

प्रदर्शन को लेकर सेना की चेतावनी

पिछले साल नेतान्याहू के सत्ता में लौटने के बाद से विरोध प्रदर्शन काफ़ी बढ़ गया. हालाँकि नेतान्याहू इसराइल के इतिहास में सबसे धुर दक्षिणपंथी सरकार के मुखिया हैं, उन्होंने देश की न्यायिक व्यवस्था की ताक़त पर अंकुश लगाने की कोशिश की.

उन्होंने कट्टर दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों को एक साथ जोड़ते हुए सत्ता में अपनी वापसी की है और संकट के समय में उनका भरोसा उन पर और मज़बूत होता जा रहा है.

न्यायिक बदलाव से सरकार के पास न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली समिति पर पूरा नियंत्रण हो जाएगा और इससे सुप्रीम कोर्ट की वह अहम शक्तियों पर भी अंकुश लगेगा जिसके तहत ग़ैर संवैधानिक विधेयकों को क़ानून बनने से रोका जा सकता था.

इस बदलाव के प्रस्तावों के चलते ही आधुनिक इसराइल के दौर का सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद शुरू हुआ. वहीं नेतान्याहू के विरोधियों को आशंका है कि कट्टर दक्षिणपंथी लोगों की सरकार देश को उस दौर में ले जा सकती है जहां सत्ता पर क़ाबिज़ लोग भगवान के समान हो जाते हैं.

वहीं दूसरे लोगों का मानना है कि इन बदलावों से नेतान्याहू को भ्रष्टाचार के मामलों में मदद मिलती, हालाँकि नेतान्याहू लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों को ख़ारिज करते आए हैं.

वहीं बदलावों के पक्ष में भी लोग हैं. इन लोगों का कहना है कि इससे उन न्यायाधीशों पर अंकुश लगेगा जो देश के राष्ट्रीय राजनीतिक एजेंडे से अलग लगातार राजनीतिक विरोध का समर्थन कर रहे हैं. इन लोगों का मानना है कि इन न्यायाधीशों को देश की अल्पसंख्यक आबादी का समर्थन हासिल है.

लेकिन इन बदलावों का विरोध इसराइली सेना में काफ़ी फैल गया. कथित तौर पर ये कहा जा रहा है कि इसराइल के सैन्य प्रमुखों ने नेतान्याहू को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस विरोध के चलते इसराइली सेना की सैन्य क्षमता पर असर पड़ रहा है.

यही वजह है कि इसराइल के रक्षा मंत्री योआव गैलैंट ने सार्वजनिक तौर पर सुधारों पर रोक लगाने की मांग की. नेतान्याहू ने इसके बाद उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया जिसके बाद सोमवार को विरोध प्रदर्शन और बढ़ गया था.

सीज़फायर की स्थिति

माना जा रहा है कि इसकी वजह गठबंधन सरकार में कट्टर दक्षिणपंथी मंत्रियों से समझौते को लेकर चलने वाली बातचीत के चलते ही देश को संबोधित करने में नेतान्याहू को देरी हुई. सुधारों पर रोक के लिए उन्हें इन मंत्रियों को तैयार करने में समय लगा.

यह सोमवार की शाम तब स्पष्ट हुआ जब कट्टर दक्षिपंथी ज्यूइस पावर पार्टी के नेता और देश के रक्षा मंत्री इतामार बेन ग़दर ने कहा कि वे नेशनल गार्ड यानी राष्ट्रीय गार्ड की अपनी योजना को आगे बढ़ा पाएँगे, इसके लिए बजट से लाखों डॉलर का बजट आवंटित होना है.

राष्ट्रीय गार्ड एक तरह से सशस्त्र पुलिस बल होगा जो सीधे रक्षा मंत्री के अधीन होगा. पहले इस सेना के ज़रिए यहूदी और अरब लोगों की आबादी वाले शहरों में शांति बहाल करने की बात कही जा रहा है, इसको फ़लस्तीनी आबादी वाले हिस्से में भी तैनात करने की योजना है जहां अपराध ज़्यादा होता है.

इस योजना का विरोध कर रहे लोगों और इसराइली पुलिस के एक तबके का मानना है कि ये गार्ड एक तरह से निजी लड़ाके होंगे. इसराइल के पुलिस ऑपरेशन के पूर्व प्रमुख ने मंगलवार को कहा कि ऐसे पुलिस बल से अराजकता उत्पन्न होगी, क्योंकि एक इलाक़े में दो-दो पुलिस बल तैनात होंगे.

बेन गविर की राजनीतिक पृष्ठभूमि एक हिंसक यहूदी श्रेष्ठतावादी आंदोलन के अनुयायियों में से है. इस आंदोलन को इसराइली संसद ने ग़ैर क़ानूनी घोषित किया हुआ है. वे नस्लवादी मामलों में, फ़लीस्तीनी विरोधी विचारों को भड़काने और आतंकवादी समूहों के समर्थन करने के लिए मामलों में दोषी ठहराए जा चुके हैं.

फ़लस्तीनियों के साथ तनाव

उनके समर्थकों ने सोमवार की रात इसराइली संसद के बाहर रैली निकाली. बाद में रास्ते से गुजरने वाले फ़लस्तीनियों पर हमले करते इन कट्टर दक्षिण पंथियों के वीडियो भी सामने आए हैं.

अपने क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक इलाक़े के फ़लस्तीनियों का मानना है कि इसराइली सरकार में अति राष्ट्रवादी दलों की मौजूदगी से यहूदी समुदाय बहुत उत्साहित है और ऐसे माहौल में फ़लीस्तीनियों पर हमले बढ़ सकते हैं.

सोमवार को येरूशलम में राजनीतिक संकट गहराने के बाद से वेस्ट बैंक के हवारा शहर में घरों और वाहनों पर हुए हमले में छह फ़लस्तीनी घायल हुए हैं.

पिछले सप्ताह वेस्टबैंक में फ़लस्तीनियों के हमले में दो इसराइली सैनिक घायल हो गए थे. इससे पहले, पिछले महीने दो इसराइलियों की हत्या के बाद सशस्त्र सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसमें एक आदमी की मौत हुई और सैकड़ों घायल हो गए.

नए क़ानून पर रोक, मगर कबतक?

हालाँकि इसराइल के कुछ सरकारी विरोधी प्रदर्शनकारी भी अपने ऊपर पुलिस कार्रवाई और वेस्टबैंक पर पुलिस कार्रवाई को मुद्दा बना रहे हैं. तेल अवीव में सुरक्षा बल पर तंज कसते हुए इन लोगों ने नारे तक लगाए हैं, “हवारा में आप लोग कहां थे?”

इन प्रदर्शनों के दौरान इसराइल के वामपंथियों और शांति समर्थक लोग भी नज़र आए, लेकिन उनकी भूमिका अहम नहीं थी. वैसे, विरोध प्रदर्शन की शुरुआत में ही फ़लस्तीनी झंडे के साथ विरोध कर रहे लोगों पर दूसरे प्रदर्शनकारियों ने हमला भी किया था.

हालांकि इस विरोध प्रदर्शन को लेकर प्रमुख विपक्षी दलों ने दावा किया है कि यह देश के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष इसराइलियों की ओर से सच्चे यहूदीवाद, देशभक्ति और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए किया गया प्रदर्शन है.

विरोध प्रदर्शनों में इसराइली झंडे ही दिखाई दे रहे थे. विपक्षी नेता यायिर लैपिड ने नेतान्याहू के धार्मिक और कट्टर दक्षिणपंथी गठबंधन को यहूदीवाद विरोधी और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया है.

ज़ाहिर है यह संघर्ष इसराइल की अस्मिता और पहचान का संघर्ष बन गया है. नेतान्याहू ने सुधारों पर कब तक के लिए रोक लगाई है, इसको लेकर कोई तय समय सीमा नहीं दी गई है और ना ही बातचीत की समय सीमा की घोषणा हुई है.

ऐसे में माना जा रहा है कि सोमवार को उनकी घोषणा युद्धविराम का प्रतीक है और संघर्ष फिर से शुरू होने वाला है.

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