एक बंदा काफ़ी है: मनोज बाजपेयी ने जिन पीसी सोलंकी का किरदार निभाया, वो क्यों हैं नाराज़?

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DMT : नई दिल्ली : (31 मई 2023) : –

ओटीटी चैनल ज़ी फ़ाइव पर 23 मई को कथित तौर पर आसाराम केस से जुड़ी फ़िल्म ‘एक बंदा काफ़ी है’ रिलीज़ हुई.

फ़िल्म में अभिनेता मनोज बाजपेयी ने इस मामले से जुड़े वकील पीसी सोलंकी का किरदार निभाया है.

फ़िल्म को लेकर कई विवाद भी सामने आए हैं और ख़ुद पीसी सोलंकी इस मामले को लेकर कोर्ट पहुंच गए हैं.

पीसी सोलंकी कौन हैं?

पेशे से वकील पीसी सोलंकी राजस्थान के जोधपुर शहर के उम्मेद चौक के पास तंग गलियों में रहते हैं.

इन्हीं तंग गलियों से होते हुए हम पीसी सोलंकी के घर पहुंचे जहां वह अपनी 82 वर्षीय माँ और 15 वर्षीय बेटे के साथ रहते हैं.

सामान्य सी क़द काठी और सरल स्वभाव के पीसी सोलंकी पढ़ाई-लिखाई को अपना पैशन बताते हैं.

अपनी शुरुआती शिक्षा के बारे में सोलंकी कहते हैं, “मैंने अपनी स्कूली पढ़ाई जोधपुर से ही की है. इसके बाद बीकॉम, एलएलबी, एलएलएम, सिक्योरिटी एनालिसिस एंड पोर्टफ़ोलियो डिसीज़न में पीजी डिप्लोमा, एक अन्य डिप्लोमा में गोल्ड मेडलिस्ट रहा. लॉ के आर्टिकल्स और एक क़िताब भी लिखी है.”

मनोज बाजपेयी की मुख्य भूमिका वाली फ़िल्म का ज़्यादातर हिस्सा अदालती कार्यवाही पर केंद्रित है. जिसमें अभियुक्त का किरदार आसाराम बापू से मिलता जुलता है.

फ़िल्म में अभियुक्त के ख़िलाफ़ लगे दुष्कर्म के आरोपों को लेकर अदालती सुनवाई और गवाहों की कथित तौर पर हत्या से लेकर केस कमज़ोर करने के लिए दिए गए प्रलोभनों और धमकियों के बारे में दिखाया गया है.

फ़िल्म की शुरूआत दिल्ली के कमला नगर पुलिस थाने में पीड़िता की ओर से शिकायत दर्ज कराने से होती है जिसके बाद आसाराम जैसे दिखने वाले किरदार की गिरफ़्तारी होती है. फ़िल्म में क़रीब आधा घंटे के बाद कोर्ट में पीसी सोलंकी की एंट्री होती है.

दिखाया जाता है कि अभियुक्त की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता पीड़िता को बालिग़ बताते हुए पोक्सो हटाने के लिए ज़िरह करते हैं. लेकिन पीसी सोलंकी ये साबित कर देते हैं कि इस केस में पोक्सो की धाराएं लगनी चाहिए.

इस तरह 2013 से चलती हुई अदालती कार्यवाही 2018 तक पहुंचती है और जिस दिन अदालत को अपना फ़ैसला सुनाना होता है, उस दिन पीसी सोलंकी एक कहानी सुनाते हुए रामायण का ज़िक्र करते हैं.

पीसी सोलंकी का किरदार निभा रहे मनोज बाजपेयी कोर्ट में कहते हैं, “यह रावण है, इसे कतई नहीं छोड़ा जाना चाहिए. इसने गुरु भक्ति के साथ विश्वासघात किया है. मासूम बच्चों के साथ विश्वासघात किया है.”

मनोज बाजपेयी ने एक टीवी इंटरव्यू में इसे अपने जीवन की सबसे अच्छी फ़िल्मों में से एक बताया है.

क्यों नाराज़ हैं पीसी सोलंकी?

एक ओर यह फ़िल्म चर्चा में है. दूसरी ओर, एडवोकेट पीसी सोलंकी इस फ़िल्म को लेकर ख़ासे नाराज़ हैं. वह बेहद हैरानी भरे लहजे में कहते हैं, “फ़िल्म में काफ़ी ऐसी बातें बताई गई हैं, जो सत्य नहीं हैं.”

“मैंने जो केस लड़ा था, उसी को लेकर यह फ़िल्म बनाई गई है. इसमें मेरा नाम भी इस्तेमाल किया गया है.”

“मैंने इस संबंध में कोर्ट में केस किया है. इस केस में प्रोड्यूसर, जी फ़ाइव और जिनके साथ मेरा अनुबंध हुआ था, उन सब लोगों को नोटिस जारी हो गए हैं. उन्होंने जवाब देने के लिए वक़्त मांगा है.”

“फिल्म को लेकर हुए एग्रीमेंट में मैंने बायोपिक और लाइफ़ स्टोरी राइट्स दिए थे. लेकिन, फिल्म में मेरे बचपन या जीवन से जुड़ी कोई बात नहीं है. बस एक केस को लेकर पूरी फ़िल्म बनाई गई है.”

सोलंकी दावा करते हैं कि उनसे इस फिल्म की स्क्रिप्ट भी फ़ाइनल नहीं करवाई गई थी.

सोलंकी बीबीसी को एग्रीमेंट समेत कई दस्तावेज़ दिखाते हुए कहते हैं, “एग्रीमेंट की सभी शर्तों का उल्लंघन करते हुए यह फ़िल्म बनाई गई है, इसलिए मैंने कोर्ट में केस किया है.”

पीसी सोलंकी कहते हैं, “फ़िल्म के बाद जोधपुर कोर्ट में एक याचिका लगी है कि आसाराम बापू को रावण बता दिया गया है. लेकिन, इस पूरे केस में मैंने कभी उन्हें ऐसा कुछ नहीं कहा है.”

एडवोकेट पीसी सोलंकी के ख़िलाफ़ लगाए आरोप पर फ़िल्म से जुड़े लोगों से पक्ष जानने का प्रयास किया गया है.

लेकिन, रिपोर्ट लिखे जाने तक उनका जवाब नहीं मिल सका है, जवाब आते ही इस कहानी को अपडेट किया जाएगा.

वो केस जिससे चर्चा में आए पीसी सोलंकी

भारत में पोक्सो कानून अस्तित्व में आने के बाद दर्ज हुआ ये पहला सबसे हाई प्रोफाइल मामला था जिसमें कथित संत आसाराम बापू के ख़िलाफ़ आरोप लगाए गए थे. इस मामले में वकील पीसी सोलंकी ने पीड़िता की ओर से पैरवी की थी.

करीब छह साल तक सुनवाई चलने के बाद कोर्ट ने इस मामले में आसाराम बापू को दोषी मानते हुए सज़ा सुनाई थी.

इस केस के बाद से ही पीसी सोलंकी देशभर में चर्चा में आ गए थे.

आसाराम बापू की ओर से राम जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी, मुकुल रोहतगी, केटीएस तुलसी और सिद्धार्थ लूथरा जैसे चर्चित वकीलों ने पैरवी की थी.

इसके बाद भी पीसी सोलंकी ने मज़बूती से केस की पैरवी करते हुए केस जीता और पीड़िता को न्याय दिलाया.

पीसी सोलंकी कहते हैं, “पोक्सो कानून बनने के बाद जोधपुर पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में मुझे पुलिस ऑफ़िसर्स को कानून की बारीक़ियां समझाने के लिए बुलाया गया. इस दौरान पोक्सो कानून को ख़ूब अच्छे से समझा और पढ़ा. यही सब केस के दौरान बहुत काम आया.”

वह बताते हैं, “आसाराम बापू से जुड़े केस के दौरान धमकियां और लालच मिले लेकिन मैंने कभी उन पर फोकस नहीं किया. सिर्फ़ पीड़िता को न्याय दिलाना ही लक्ष्य था और न्याय दिलाया.”

पीड़िता की ओर से केस लड़ने के लिए पीसी सोलंकी ने कोई फ़ीस नहीं ली.

वह कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए कई बार दिल्ली जाना होता था तब ज़रूर पीड़िता के पिता आने जाने का किराया देते थे.”

आसाराम केस पर क्या कभी किताब लिखेंगे?

इस सवाल पर एडवोकेट पीसी सोलंकी कहते हैं, “मैं निश्चित रूप से अपने लिए लिख रहा हूं कि इस स्टेज पर ऐसी एप्लीकेशन आई, यह जवाब आया, यह ऑर्डर हुआ, यह दलीलें दी गयीं, इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी, सुप्रीम कोर्ट गया. यह सब इस केस का रिकॉर्ड है. मैं पंद्रह मिनट में किसी को भी ये केस समझा सकता हूं क्योंकि मैंने केस के दौरान डेली नोट्स बनाए थे.”

जोधपुर में ही जन्मे पीसी सोलंकी अपने शहर को बख़ूबी पहचानते हैं और उन्हें शहर की चर्चित हस्तियों में गिना जाता है.

लेकिन इस शहर से लेकर पूरे देश में नाम कमाने का सफर पीसी सोलंकी के लिए काफ़ी चुनौतियों से भरा रहा.

वह कहते हैं, “मैंने ग़रीबी देखी है. हम जाति से दर्जी हैं. आर्थिक रूप से बेहद सामान्य परिवार रहा है. मां सिलाई का काम करती थीं. उस दौरान मैं और बहनें भी सिलाई के काम में उनका हाथ बंटाते थे.”

वह बताते हैं, “मैंने भी उन दिनों खूब सिलाई की है. ट्यूशन पढ़ाए हैं.”

बीबीसी से बातचीत में वह कहते हैं, “जीवन में कुछ ऐसा बदलाव आया कि मैं अकेला पैरेंट रहा हूं.”

ये कहते ही सोलंकी भावुक हो जाते हैं.

वह कहते हैं, “बच्चा भी प्री मेच्योर पैदा हुआ, उस दौरान बहुत संघर्ष झेलना पड़ा है. लेकिन, अब मेरी बुज़ुर्ग मां दो बच्चों का ख़्याल रखती हैं, मेरा और मेरे बेटे का.”

जब मरती मछलियों के लिए पहुंचे कोर्ट

इस एक केस से इतर पीसी सोलंकी ने दूसरे मामलों में चुनौतियों का सामना किया है.

जोधपुर के गुलाब सागर तालाब का ज़िक्र करते हुए पीसी सोलंकी कहते हैं, “उस समय मुझे धमकियां मिली थीं.”

वह कहते हैं, “एक समय मैंने वहां मछलियों को मरते देखा. मुझे पता चला कि गणेश विसर्जन के दौरान पीओपी और ज़हरीले पेंट से बनी मूर्तियों को विसर्जित करने से पानी दूषित होता है, इस कारण मछलियों की मौत हुई है.”

“मैंने इस मामले में कोर्ट में रिट लगाई, उस समय मुझे बहुत धमकियां मिलीं. लेकिन, इस मामले में कोर्ट के फैसले से जीवन में मुझे बहुत प्रेरणा मिली.”

“संभवतः देश में वह पहला अदालती फैसला था जिसमें ये तय किया गया कि मूर्तियां पीओपी और टॉक्सिक पेंट से नहीं बनेंगी और मूर्तियां एक मीटर से ज़्यादा नहीं होगी.”

पीसी सोलंकी के लिए कितना मुश्किल था ये सफर?

पीसी सोलंकी कहते हैं, “आसाराम केस के बारे में क़ाफ़ी लोगों को पता था. इस बारे में बात करते थे और निश्चित रूप से लोगों ने कहा कि तुम अपना ध्यान रखना, सावधानी रखनी चाहिए.”

“मैं उनसे कहता था कि यह एक मुक़दमा ही है, मेरे लिए और मैं सिर्फ़ मुक़दमा लड़ रहा हूं.”

वह कहते हैं, “इस केस के दौरान मैं जीवन की परेशानियों से भी गुज़र रहा था. वो परेशानियां मेरे लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण थीं.”

“मेरे बुज़ुर्ग माता-पिता और उस दौरान मेरा तीन साल का बच्चा था. मेरी जिम्मेदारियां भी बहुत थीं.”

“एक चैलेंज़ मेरे लिए मेरी ज़िम्मेदारियों का था और दूसरा इस केस का. लेकिन, सामंजस्य बिठाकर चुनौतियों को स्वीकार किया.”

सोलंकी बताते हैं, “केस के दौरान गवाहों की हत्याएं हो रही थीं लेकिन कभी डर नहीं लगा क्योंकि पिता ने एक ही बात सिखाई थी कि जो आया है उसका जाना निश्चित है. मौत से कभी डरना मत, सिर्फ़ ग़लत काम से डरना.”

“कोर्ट के आदेश से केस के दौरान पांच सुरक्षाकर्मी मिले थे. तब मैं स्कूटर पर जाता था. एक पुलिसकर्मी मेरे पीछे स्कूटर पर बैठता था. अन्य दुपहिया वाहनों पर साथ चलते थे.”

वह कहते हैं, “जब केस का फ़ैसला आया तो एक बात की ख़ुशी थी कि हमने इस केस को अच्छे से लड़ा. सभी अधिवक्ता साथियों का बहुत सहयोग रहा. सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं.”

“जब मुक़दमा चल रहा था तब मैं सोशल मीडिया पर इन सब बातों से दूर रहा. मैं आज भी फेसबुक, ट्विटर और इंस्टा पर नहीं हूं. मैं सिर्फ़ अपने काम पर ही फोकस करता हूं.”

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