करौली दंगे का ख़ौफ़ आज भी लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा है

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DMT : करौली  : (01 अप्रैल 2023) : –

“एक साल बाद अब हालात ठीक हैं. कल डर की वजह से लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं. तीन दिन पहले ही सुरक्षा की वजह से इधर-उधर चले गए. कम से कम 40 प्रतिशत मुसलमान चले गए.”

“कल की वजह से तीन दिन पहले ही दुकानदार चले गए थे. अपना माल भरकर ले गए थे, अब लौटे हैं तो दुकान में जमा रहे हैं.”

31 मार्च 2023 की सुबह क़रीब दस बजे करौली के फूटाकोट चौराहे पर चूड़ियों के दुकानदार साबू ख़ान बीबीसी से यह बता रहे हैं.

वही फूटाकोट चौराहा जहां 2 अप्रैल 2022 में नव संवत्सर शोभायात्रा के दौरान सांप्रदायिक दंगा हुआ था. एक साल बाद यहां 30 मार्च 2023 को रामनवमी शोभायात्रा निकाली गई है.

बीते साल हुए दंगे, लूटपाट और आगजनी का ख़ौफ़ एक साल बाद आज भी लोगों के ज़हन में ज़िंदा है.

कितने मिटे दंगे के दाग़

करौली में हुए दंगे ने राजस्थान जैसे शांत माने जाने वाले प्रदेश को देशभर में चर्चाओं में ला दिया था. घटना के तुरंत बाद करौली छावनी में तब्दील हो गया, अगले ही दिन देशभर के मीडिया का जमावड़ा लग गया था.

एक साल बाद भी यहां दंगे के दाग़ मिटाने के प्रयास किए जा रहे हैं. फूटाकोट चौराहा और हटवाड़ा बाज़ार में सबसे पहले दंगा भड़का और सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ.

फूटाकोट चौराहा से टंटा हनुमान मंदिर की ओर चलें तो दोनों तरफ़ तीन-तीन मंज़िला दो मकान ज़मींदोज़ हो गए थे. इन मकानों में दुकानें भी बनी हुई थीं. वह अब फिर नए रूप में तैयार हो गए हैं.

यहां एक गणेशजी का मंदिर है, उसके ठीक सामने आगजनी से तबाह हुई दुकान आज भी जस की तस है. बिना छत और दीवारों की इस दुकान के पत्थरों पर कालिख़ है, यहां पुलिस के बैरिकेड भी रखे हुए हैं.

यहीं कई चूड़ियों की दुकानें हैं जो दंगे में सामान समेत जला दी गई थीं. उन्हें फिर से रंगरोगन किया गया है. फिर से रंग-बिरंगी लाख की चूड़ियों से भरा गया है.

दुकानों के टूटे शटर फिर से नए लगा दिए गए हैं. दीवारों पर आगजनी से लगे धुएं के निशानों को पेंट कर छिपा दिया गया है.

जिनका नुकसान हुआ वो कैसे भूलें

“करौली में रहते हुए पचास साल हो गए हैं. मुंबई में भी हमारा घर है. पिछले साल हुए दंगों में हमारी दुकान और मकान तोड़ दिया गया. दंगों में हमारा बीस लाख रुपए का नुकसान हुआ था.”

यह बताते हुए सुशीला नेमिचंद कोटिया की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

आंसू पोंछते हुए वह हमसे कहती हैं, “उस समय एसा लगता था कि श्मशान बन गया है यह एरिया. हमने हिम्मत नहीं हारी, फिर से हमने अपनी दुकान और मकान बनाया है. सरकार से नौ लाख का मुआवज़ा मिला था.”

“अभी भी लोगों को बहुत दुख है, लोगों का जो नुकसान हुआ है, उन्हें दर्द तो होगा ही.”

यहीं एक छोटी सी चूड़ियों की दुकान पर एक बुज़ुर्ग शख्स साबू ख़ान सिगड़ी पर लाख की चूड़ियां तैयार कर रहे थे.

बीबीसी से बातचीत में साबू ख़ान बीते साल का वो मंज़र याद करते हुए कहते हैं, “एक साल पहले बहुत ख़राब स्थिति थी. हम भाग गए थे. लौट कर देखा तो सब मिट्टी में मिले हुए थे. मकान, दुकान सब मिट्टी के ढेर में तब्दील हो गए थे.”

वह कहते हैं, “लोगों में आज भी डर है, आदमी जल जाता है तो डर तो लगता ही है. कर्ज़ा लेकर बहुत मुश्किल से कामधंधा चला रहे हैं.”

लेकिन, इन सब के बावजूद लोगों के ज़हन में बीते साल के दंगे का ख़ौफ़नाक़ मंज़र बिलकुल ताज़ा है. जैसे कल ही बात हो.

डर के कारण लोगों ने घर छोड़ा, दुकानों से सामान निकाला

मोहम्मद कय्यूम 59 साल के हैं. वह पांच साल से किराये की दुकान में चूड़ियों का काम करते हैं. वह हमसे कहते हैं, “वो एक साल ऐसा बीता है कि हम दुकानदार पांच साल पीछे चले गए हैं और डर के साए में जी रहे हैं.”

साबू ख़ान बीबीसी से कहते हैं, “एक साल बाद अब हालात ठीक हैं. कल डर की वजह से लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं. सुरक्षा की वजह से इधर-उधर चले गए. कम से कम 40 प्रतिशत मुसलमान चले गए.”

“बीते दिन निकली शोभायात्रा का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, कल की वजह से तीन दिन पहले ही दुकानदार चले गए थे. अपना माल भर कर ले गए थे, अब लौटे हैं तो दुकान में जमा रहे हैं.”

क्या परिवारों को भी साथ लेकर गए हैं? बीबीसी के इस सवाल पर साबू ख़ान कहते हैं, “हां, परिवार समेत चले गए सारे.”

जब हमने उनसे पूछा कि क्यों चले गए, तो वे कहते हैं, “डर के कारण चले गए. डर था कि लाखों आदमी आ रहे हैं यह करेंगे वो करेंगे.”

“लोग अपनी सुरक्षा के लिए चले गए. लोगों में बीते साल की घटना का आज भी डर है. एक बार आदमी जल जाता है तो साहब डर तो लगता ही है.”

एक दिन पहले जब तीस मार्च को शोभा यात्रा निकल रही थी, तब हमें कई घरों पर ताले लगे हुए मिले. शहर भर की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था और दुकान-बाज़ार सब बंद थे.

‘डर रहता है कि फिर ऐसा हादसा न हो जाए’

शोभायात्रा निकलने वाले रास्ते पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे. पुलिसकर्मियों की संख्या भी कम नहीं थी.

स्थानीय लोगों ने नाम सार्वजनिक नहीं करने पर बताया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र से यात्रा निकाली जाने वाली थी. इसलिए वह लोग परिवार समेत एक दिन पहले ही ताला लगा कर कहीं गए हैं.

फूटाकोट चौराहा पर चूड़ियों का व्यवसाय करने वाले मोहम्मद यूनुस अपनी दुकान में सामान जमाते हुए हमसे कहते हैं, “बीते साल भी हादसा हो चुका है.”

“इसलिए इस बार शोभायात्रा से पहले ही हमने दुकानों से सामान निकाल कर दुकानें बंद कर दी थीं. यह डर रहता है कि फिर से ऐसा हादसा न हो जाए इसलिए दुकान बंद कर दी.”

हटवाड़ा बाज़ार में दुकान चलाने वाले धर्मेंद्र कहते हैं, “क़रीब तीस साल से यहां काम कर रहा हूं. इशारा करते हुए कहते हैं पिछली शोभायात्रा को यहीं घटना हुई थी.”

कहते हैं, “लोग अपने घरों पर ताला लगा कर चले गए, दुकानों से माल निकाल कर दुकानें बंद कर दीं. कई लोग अभी तक नहीं आए हैं, घरों पर ताले लग रहे हैं.”

धर्मेंद्र किराने की दुकान चलाते हैं. कहते हैं, “बीते साल मेरा एक लाख से ज़्यादा नुकसान हुआ था, दुकान के शीशे तोड़ दिए थे, कैरेट ले गए थे और दुकान से सामान ले गए थे.”

अब्दुल कय्यूम बीते साल के दंगों की दहशत का दर्द बताते हुए कहते हैं, “अरे साहब डर है. कल पूरे बाज़ार में दुकानदारों ने माल निकाल लिया था. कल मैंने अपनी दुकान में से आधे से ज़्यादा माल निकाल लिया था, सभी दुकानदार माल को घर ले गए थे.”

“कल हमने बाज़ार बंद रखा और अपनी दुकानें बंद रखीं थी, सब लोगों को डर था.”

दुकानें बंद थी, लोगों के घरों पर ताले लगे हुए थे. लोगों का भी कहना है और हमने भी ग्राउंड पर देखा है. लोगों में डर है इसके चलते लोगों ने दुकानों से सामान निकाल लिया था.

बीबीसी के इस सवाल पर करौली के पुलिस अधीक्षक नारायण टोगस बीबीसी से कहते हैं, “बांस की दुकानों पर बांस रखे हुए थे, इतनी भीड़ निकलनी थी तो उनको हमने ही हटवाया था जिससे उनका मिस यूज़ न हो जाए.”

“बाक़ी स्वाभाविक है कि पहले घटना हो चुकी है और इतनी भीड़ वहां से गुज़रेगी तो कोई भी भीड़ के अंदर कुछ कर न दे. इस अशंका को देखते हुए लोगों ने स्वयं अपने सामान वहां से हटाए.”

ग्रामीण इलाक़े से भी आए हज़ारों लोग

इस शोभा यात्रा के लिए ग्रामीण इलाक़ों में लोगों को शामिल होने के लिए आह्वान किया गया था. बाकायदा ग्रामीण लोगों को पीले चावल देकर न्योता दिया गया.

इस यात्रा में पंद्रह से बीस हज़ार तक लोग शामिल हुए. यात्रा में एक लाख लोगों के जुटने का अनुमान लगाया जा रहा था.

“लोगों में इस बार शोभायात्रा को लेकर उत्साह था. करौली के पास के गांवों से लोग शोभायात्रा में शामिल होने के लिए आए थे. इसके अलावा सपोटरा से, कैलादेवी से, गंगापुर, हिंडौन से भी आए.”

यात्रा के दौरान कैसा रहा शहर

शहर के माथुर स्टेडियम में ज़िले भर से लोग रामनवमी शोभायात्रा के लिए जुट रहे थे. यहीं से यात्रा बीते साल हुए दंगे वाले इलाक़े फूटाकोट, हटवाड़ा बाज़ार से होते हुए गुज़रनी थी.

कल यानी 30 मार्च को रामनवमी के अवसर पर शोभायात्रा निकाली गई. ठीक उसी रास्ते से जहां से एक साल पहले साल 2022 में नवसंवत्सर यात्रा निकलने के दौरान दंगा और आगजनी हुई.

यहीं से रामनवमी यात्रा गुलाब बाग़ होते हुए, हिंडौनगेट, फूटाकोट, हटवाड़ा बाज़ार, गणेशगेट, अंबेडकर सर्किल, कलेक्ट्री सर्किल से रामद्वारा तक पहुंची.

करौली पुलिस अधीक्षक नारायण टोगस ने बीबीसी से कहा, “इस यात्रा को लेकर लोगों के अंदर भ्रांतियां थीं. उसको हमने समय रहते लोगों को विश्वास दिलाया कि हम सुरक्षा के लिए तैयार हैं, भय के बिना दुकानें खोलें. हमने आयोजकों को शर्तों के तहत पालन करने के निर्देश दिए थे. शांतिपूर्ण माहौल में यात्रा निकली.”

यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए 750 की संख्या में फोर्स लगाई गई थी, जिसमें आरएसी थी, सिविल के अंदर आदमी लगाए ताकि सभी पर नज़र रख सकें. शोभायात्रा बेहद शांतिपूर्ण रही इसलिए लोग फ़ोन कर तारीफ़ कर रहे हैं.”

इस यात्रा से पहले कई लोगों को हिरासत में लेकर कई थानों में रखा गया था. बीबीसी के इस सवाल पर पुलिस अधीक्षक टोगस कहते हैं, “बीते साल घटना में 131/2022 नंबर जो मुकदमा था, उसमें कुछ अभियुक्त यात्रा से एक दिन पहले हमने अरेस्ट किए थे. यात्रा में तीन लोगों की गतिविधियां ठीक नहीं थीं, उनको हमने राउंड अप किया था.”

शोभायात्रा के चलते भरतपुर रेंज आईजी गौरव श्रीवास्तव यात्रा से दो दिन पहले ही करौली आए. उन्होंने पैदल चल कर यात्रा का रूट देखा था.

एक साल में हुई पुलिस कार्रवाई

करौली में नवसंवत्सर के अवसर पर साल 2022 में निकाली गई शोभायात्रा के बाद राज्य के कई अन्य ज़िलों में भी सांप्रदायिक विवाद और दंगे हुए थे.

राज्य के करौली में हुई इतनी बड़ी सांप्रदायिक घटना के एक साल बाद भी पुलिस चार्जशीट तक फाइल नहीं कर पाई है. एक साल बाद भी जांच जारी है.

करौली की घटना के बाद से ही राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन करौली में तनाव ख़त्म करने के लिए प्रयास कर रहा था. दोषियों पर सख़्त कार्रवाई के दावे किए जा रहे थे.

लेकिन, एक साल बाद भी पुलिस दंगे के सभी अभियुक्तों को गिरफ़्तार तक नहीं कर पाई है.

करौली में किसी बड़े आयोजन से पहले पुलिस समझाइशों का दौर चलाती है. भारी फोर्स तैनात करनी पड़ती है.

करौली पुलिस अधीक्षक नारायण टोगस बीबीसी से कहते हैं, “बीते साल हुई घटना के बाद थाना कोतवाली में 131 नंबर मुकदमा दर्ज हुआ था. इसमें 129 अभियुक्त हैं, जिनमें से 95 को गिरफ्तार कर चुके हैं. बाक़ी की गिरफ्तारी करना शेष है.”

“बीते साल की घटना के बाद क्या एहतियात बरतते हैं, इस सवाल पर पुलिस अधीक्षक टोगस कहते हैं, त्योहारों पर हमने सस्पेक्ट लोगों पर नज़र रखी और उनको पाबंद किया. उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी.”

वो कहते हैं, “जहां घटना हुई थी उन इलाकों में दस पिकेट पर हमारे जवान तैनात रखते हैं. सिगमा मोटर साइकिलों पर गश्त करते हैं और नज़र रखते हैं.”

“बीते साल की घटना के बाद से इसी रूट पर हमने दो यात्रा निकाली, जिससे दोनों समाजों का भाईचारा बना रहे. दोनों की खाई पाटी जा सके. दोनों समाजों के लोगों को बुलाकर समझाइश और शांति समिति की बैठकों के ज़रिए भी आपसी भाईचारे के लिए प्रयास करते हैं.”

पुलिस अधीक्षक कहते हैं, “इस मामले की जांच में और जो अभियुक्त सामने आ रहे हैं, हम उनका नाम भी मुक़दमें में जोड़ रहे हैं.”

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