क्राइम पेट्रोल से बुराड़ी डेथ्स तक, क्राइम शो का ‘डरावना’ आकर्षण

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DMT : मुंबई : (03 अप्रैल 2023) : –

22 साल की मनोविज्ञान की छात्रा राखी कहती हैं कि रात में सुनसान सड़क पर चलते समय वो घबरा जाती हैं और ये पक्का करने के लिए कि कोई पीछा तो नहीं कर रहा है, वो बहुत सतर्कता रखती हैं.

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में रहने वाली राखी का कहना है कि वो सच्ची घटना पर आधारित क्राइम शो की प्रशंसक हैं क्योंकि उन्हें “अपराधी का दिमाग़ कैसे काम करता है” देखने में मज़ा आता है. लेकिन ये भी स्वीकार करती हैं कि वो ऐसे शो को लगातार देखने के बाद अपनी सुरक्षा के बारे में चिंतित महसूस करती हैं.

राखी उन हज़ारों भारतीयों में से हैं जो तेज़ी से लोकप्रिय होते सनसनीखेज़ और सच्ची घटना पर आधारित भारतीय क्राइम शो और पॉडकास्ट को स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर देख रहे हैं.

ये शोज़ भारत में जन्मे अपराधियों और उनके बुरे कामों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और देश के अपराध के इतिहास पर रोशनी डालते हैं.प्रशंसकों का कहना है कि ये शो भारतीय अपराधियों और अपराधों का एक शब्दकोश बना रहे हैं. जो पहले मौजूद नहीं था.

सच्ची घटना पर आधारित अपराध शो भारत के लिए नई नहीं है. 2000 के दशक की मसालेदार जासूसी पत्रिकाओं ने अक्सर अपने प्लॉट के लिए वास्तविक जीवन के अपराधों से प्रेरणा ली थी. जैसे कि क्राइम पेट्रोल और सीआईडी ​​जैसे टीवी शो. लेकिन इन शो में घटिया ग्राफिक्स और डायलॉग थे जो डर के बजाय हँसने को मज़बूर करते थे.

राखी कहती हैं, “वे आपको वास्तव में खुद को नुक़सान पहुंचाए बिना बेहद रोमांचकारी परिस्थितियों का अनुभव कराते हैं.”

ये शो अक्सर ध्यान खींचने के लिए आंत के सीन का इस्तेमाल करते हैं.

द बुचर ऑफ़ दिल्ली नामक डाक्यूमेंट्री सिरीज़ में हत्यारे द्वारा एक शरीर को कुचलने का एक सीन कई बार दोहराया जाता है.हालांकि यह सीन फ्रेम से बाहर है, जिसमें मृत शरीरों, बंधे हुए पीड़ितों और खू़न के छींटों की हल्की धुंधली तस्वीरें हैं.

यह शो एक प्रवासी कामगार चंद्रकांत झा की कहानी बयां करता है, जिसने 1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में कई गरीब प्रवासियों को मार डाला और उनके शवों को जेल के सामने फेंक दिया,इसके साथ ही पुलिस को ताने मारने वाले नोट भी फेंके.

क्राइम शो अपराध की स्थिति से निपटने के लिए तैयार करता है?

निर्देशक आयशा सूद का कहना है कि इस तरह के झकझोर देने वाले हिंसा का चित्रण एक सचेत निर्णय था, लेकिन चेतावनी यह थी कि हिंसा को वास्तव में दिखाए जाने के बजाय सुझाव दिया जाएगा.

आयशा सूद कहती हैं, “तथ्य यह है कि अपराध क्रूर थे और इस मामले को मीडिया, पुलिस और जनता ने सालों तक नज़रअंदाज़ किया गया था.”

“हम कभी-कभी केवल उन लोगों के बारे में सुनना चाहते हैं जो हमारे जैसे हैं. और समाचार इसे दर्शाता है. लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि क्रूरता हर वर्ग में होती है, और यह कि जहां कहीं भी हो, हमें इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.”

सूद का कहना है कि भारतीय अपराध शो विषयों के आधार पर दिखाया जाता है. ये शो देश में आपराधिकता और इसकी उत्पत्ति के आसपास की ज़रूरी बातचीत के लिए जगह बनाते हैं. कैसे आपराधिक व्यवहार से निपटा जाता है और सभी के लिए सुरक्षित जगह बनाने के लिए क्या किया जा सकता है.

द देसी क्राइम पॉडकास्ट भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के अपराधों पर रोशनी डालता है.

सुकून त्यागी इस क्राइम पॉडकास्ट के बड़े प्रशंसक हैं.

उनका कहना है कि पॉडकास्ट ने उन्हें अपनी सुरक्षा के बारे में और ज़्यादा सतर्क कर दिया है और वह इस बात पर ध्यान देती हैं कि कैसे एक पीड़िता एक ख़तरनाक स्थिति से बच निकली है.

सुकून के लिए ये पॉडकास्ट एक ऐसी वास्तविकता को दर्शाता है जिसे वह हमेशा से जानती हैं. वह दिल्ली में रहती हैं, जो सबसे ज़्यादा क्राइम रेट के लिए जानी जाती है.

वो कहती हैं, “जिन अपराधों के बारे में बात की जाती है वे उन जगहों पर किए गए हैं जिन्हें आप जानते हैं या अक्सर जाते रहते हैं, इसलिए आप डर से खु़द को दूर नहीं कर सकते.”

  • ‘डर आपको सुरक्षित रखता है’
  • कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि महिलाएं सच्ची घटनाओं पर बनाए गए अपराध के शो ज़्यादा देखती हैं इसकी संभावना इसलिए ज़्यादा है क्योंकि वे पीड़ित से खु़द को ज़ोड़ कर देखती हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि ज़्यादातर पीड़ित महिला होती हैं. और क्योंकि यह उन्हें इस बात के आभास होने में मदद मिलती है कि अपराध क्यों और कैसे किया गया था और पीड़ित के समान स्थिति का सामना करने पर वे खुद को बचाने के लिए क्या कर सकती हैं.
  • हालांकि, आलोचकों का कहना है कि ऐसे शो और पॉडकास्ट कभी-कभी तथ्यात्मक रूप से ग़लत और बेकार तरीके से शोध किए हो सकते हैं.
  • मुंबई के क्राइम रिपोर्टर श्रीनाथ राव कहते हैं, ”ये शो नैतिक मुद्दों से भी भरे हुए हैं.”
  • “इस बारे में बहुत कम या कोई विचार नहीं है कि शो पीड़ित या अपराधी के परिवार को कैसे प्रभावित कर सकता है.”
  • दिल्ली के बुराड़ी में हुई मौतों पर बनी डॉक्यूमेंट्री जब 2021 में रिलीज़ हुई, तब इस दुखद घटना के कई मीम्स सोशल मीडिया पर सामने आयें. डॉक्यूमेंट्री जो देश में व्याप्त मानसिक स्वास्थ्य की ख़राब स्थिति को उजागर करने के उद्देश्य से बनाई गई थी, यह उद्देश्य कई लोगों में कामयाब नहीं हुआ क्योंकि उन्हे इसमें अपने चुटकुले का पंच लाइन मिल गया था.
  • उसी साल, सीरियल किलर जेफ़री डेहमर पर बनी नेटफ्लिक्स सिरीज़ ने विवाद खड़ा कर दिया जब पीड़ित के परिवार ने यह दावा किया कि उन्हें यह सिरीज़ ‘आघात करने वाली’ लगी.
  • 2019 में सीरियल किलर और बलात्कारी टेड बंडी पर बनी बायोपिक जिसमें अभिनेता ज़ैक एफ्रॉन मुख्य किरदार में थें उसे “बंडी के प्रतिभा को ग्लैमराइज़” करने और “उसे थोड़ा रॉकस्टार के तरह दर्शाने के लिए कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा.
  • हिंगोरैनी का कहना है, सच्ची घटना पर आधारित अपराध पर बने शो लोगों में बेचैनी को बढ़ावा दे सकते हैं या उन्हें असंवेदनशील बना सकता है.
  • उन्होंने कहा, जो अपराधी दिखाए जाते हैं वो अक्सर अपने झगड़ों को सुलझाने की ख़राब क्षमता रखते हैं जो फ़िर हिंसा और अपराध का सहारा लेते हैं. इन शो को देखने वाला व्यक्ति अनजाने में ऐसे व्यवहारों को आत्मसात कर सकता है.
  • हालांकि,आयशा सूद कहती हैं कि ये शो, जब अच्छी तरह से बनाए जाएं तो ये हमें अंदर देखने और हमारे आसपास क्या हो रहा है जानने के लिए प्रेरित करती हैं.
  • वह कहती हैं, “डर एक मज़बूत भावना है, यह आपको सुरक्षित रख सकता है”.

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