चीन की मदद से हुआ सऊदी अरब और ईरान में अहम समझौता, क्या हैं इसके मायने?

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DMT : चीन  : (11 मार्च 2023) : –

मध्य पूर्व के दो प्रतिद्वंद्वी देश ईरान और सऊदी अरब ने दोस्ती के हाथ बढ़ाने के संकेत दिए हैं.

सात साल पहले दोनों देश ने भारी विवाद के बाद अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिए थे.

चीन में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियों के बीच चली चार दिन की बातचीत के बाद दोनों ने कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने की अप्रत्याशित घोषणा हुई.

सऊदी अरब में एक जाने-माने शिया धर्म गुरु को फांसी दिए जाने के बाद रियाद स्थित सऊदी दूतावास में ईरानी प्रदर्शनकारी घुस आए थे.

2016 में इस घटना के बाद सऊदी अरब ने ईरान से अपने रिश्ते तोड़ लिए थे. इसके बाद से सुन्नी बहुल सऊदी अरब और शिया बहुल ईरान के बीच भारी तनाव रहा है.

मध्य पूर्व में वर्चस्व की होड़ वाले दोनों देश एक-दूसरे को अपने लिए ख़तरा मानते रहे हैं. इस होड़ में दोनों देश लेबनान, सीरिया, इराक़ और यमन समेत मध्य पूर्व के कई देशों में प्रतिद्वंद्वी गुटों को समर्थन देते रहे हैं.

ईरान ने यमन में हूती विद्रोहियों का समर्थन किया था. इसके बाद विद्रोहियों ने 2014 में सऊदी समर्थक सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था. इसके बाद सऊदी अरब ने हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ भीषण हवाई हमले शुरू कर दिए थे.

सऊदी अरब लगातार ये आरोप लगाता रहा है कि हूती विद्रोही ईरान की मदद से उस पर हमले कर रहे हैं.

सऊदी अरब जिन हमलों की बात करता रहा है उसमें सबसे गंभीर था 2019 में उसके बड़े तेल संयंत्रों पर ड्रोन और मिसाइलों से किया गया वार. इस हमले में इन तेल संयंत्रों को भारी नुक़सान हुआ था और इससे सऊदी का उत्पादन बाधित हो गया था.

सऊदी अरब ने इस हमले के लिए ईरान को ज़िम्मेदार ठहराया था लेकिन ईरान का कहना था कि इसमें उसका कोई हाथ नहीं है.

पिछले सात साल के दौरान ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौते की कई कोशिशें हो चुकी हैं. लेकिन पिछले शुक्रवार को दोनों देशों का बयान काफी अहम है.

दोनों देशों ने कहा कि वे दो महीनों के अंदर अपने-अपने दूतावास खोल देंगे. साथ ही वे व्यापारिक और सुरक्षा सबंध दोबारा स्थापित करेंगे.

अमेरिका ने इस घटनाक्रम का स्वागत किया है लेकिन उसने सतर्क टिप्पणी की है. व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, “बाइडन प्रशासन इस क्षेत्र में तनाव घटाने के लिए ऐसी किसी भी पहल का समर्थन करता है.”

हालांकि उन्होंने कहा, “हालांकि ये अभी देखना बाकी कि क्या इस समझौते के लिए ज़रूरी कदम उठाएगा.”

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराने के लिए चीन का शुक्रिया अदा किया है.

उनके प्रवक्ता ने कहा, “गुटेरेस ने कहा है कि वह खाड़ी क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मदद के लिए तैयार हैं.”

इसराइली सरकार ने इस समझौते पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने इस फ़ैसले को इसराइल के लिए ख़तरनाक बताया है.

ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के वजह से इसराइल उस पर ज़्यादा से ज़्यादा दबाव बनाने का समर्थक रहा है.

फ्रैंक गार्डनर का विश्लेषण, बीबीसी के रक्षा संवाददाता

ईरान और सऊदी अरब के बीच इस समझौते ने मध्य पूर्व समेत पूरी दुनिया को चकित किया है क्योंकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है दोनों एक-दूसरे के पसंद नहीं करते.

दोनों के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरा अविश्वास रहा है. मध्य पूर्व में दोनों देश एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं.

सऊदी अरब ने यमन में निर्वासित सरकार का समर्थन किया है और ईरान ने हूती विद्रोहियों का. सिर्फ यमन में ही नहीं लेबनान, सीरिया और इराक जैसे देशों में भी दोनों एकदूसरे के ख़िलाफ़ खड़े दिखे हैं.

2015 में जब मक्का में हज यात्रा के दौरान मची भगदड़ में 139 ईरानी तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी तब भी ईरान और सऊदी अरब में झगड़ा हुआ था.

ईरान ने सऊदी अरब सरकार संवेदनहीनता का आरोप लगाया था और कहा था कि वह इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाएगा.

2016 में सऊदी अरब में प्रमुख शिया धर्मगुरु निम्र अल-निम्र सहित 47 लोगों को आतंकवाद के आरोपों में फांसी पर चढ़ा दिया गया.

इसके बाद तेहरान में प्रदर्शनकारी सऊदी अरब के दूतावास में घुस गए. इस घटना के बाद सऊदी अरब और ईरान के राजनयिक रिश्ते ख़त्म हो गए थे.

साफ़ है कि जिस तरह की घटनाएं पहले हो चुकी हैं, उसके बाद दोनों एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते. लेकिन दोनों के बीच हालिया समझौते के बाद हम ये मान रहे हैं के वे इस क्षेत्र के वास्तविक राजनीतिक यथार्थ को समझते हैं.

दोनों को पता है कि वे एक ख़तरनाक क्षेत्र में रह रहे हैं और बेहतर यही है कि यहां अपनी भूमिका निभानी है तो उन्हें आपसी दुश्मनी को छोड़ना होगा.

अब देखना ये है कि कागज़ पर हुआ ये समझौता ज़मीनी स्तर पर कितना उतर पाता है.

इस मामले में चीन की एंट्री बेहद दिलचस्प है. यह समझौता चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मध्यस्थता में हुआ है. इसे मध्य पूर्व में चीन की बढ़ती भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है.

हालांकि खाड़ी क्षेत्र से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को इस क्षेत्र में अमेरिका की घटती दिलचस्पी को तौर पर नहीं देखा जा सकता. लेकिन सऊदी अरब और इस क्षेत्र के कुछ दूसरे देशों को लगता है कि वे अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए अकेले अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकते.

इस क्षेत्र के देश ये देख चुके हैं कि अरब स्प्रिंग के दौरान किस तरह अमेरिका ने मिस्र के होस्नी मुबारक सरकार को उसके हाल पर छोड़ दिया था. अरब देशों ने ये भी देखा कि रूस सीरिया की असद सरकार का किस तरह साथ दिया, जबकि उनके ख़िलाफ़ मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर मामले थे.

इसके अलावा जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी विदेश नीति में पूर्वी इलाक़े और एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को तवज्जो देने का ऐलान किया तो अरब देशों को लगा कि वह अपनी सुरक्षा ज़रूरतों के लिए अमेरिका पर और ज़्यादा विश्वास नहीं कर सकता.

हालांकि अमेरिका अभी भी सऊदी अरब की सुरक्षा की गारंटी देने वाला देश है और हथियारों के मामले में उसका प्रमुख सप्लायर भी है. लेकिन अब अरब देश अपने राजनयिक रिश्तों को डाइवर्सिफाई करने की कोशिश कर रहे हैं.

बहरहाल, चीन की मध्यस्थता में जो समझौता हुआ है, उसे न तोड़ना खाड़ी में दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

समझौते पर किसने क्या कहा?

वांग यी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय उथलपुथल के इस दौर में समझौते के तौर पर एकअच्छी ख़बर मिली है.

वहीं व्हाइट हाउस की प्रवक्ता केरिन जीन-पियरे ने कहा कि अमेरिका में यमन में युद्ध के ख़ात्मे के किसी भी कोशिश का समर्थन करता है. यही वजह है कि आपने राष्ट्रपति को इन गर्मियों में इस इलाक़े का दौरा करते देखा.

उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति बाइडन ने जुलाई में इस इलाक़े में तनाव कम करने की कोशिश और राजनयिक रिश्तों को मज़बूत करने के कदमों को अमेरिकी विदेश नीति की बुनियाद बताया था. खाड़ी क्षेत्र में तनाव कम करना अमेरिका की प्राथमिकता है हम इस समझौता का समर्थन करते हैं.”

सऊदी अरब और ईरान के बीच कूटनीतिक संबंध बहाल करने के फ़ैसले का पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र ने भी स्वागत किया है.

चीन में हुई वार्ता के बाद सऊदी अरब और ईरान सात साल बाद कूटनीतिक संबंधों की बहाली पर सहमत होने की घोषणा की है.

पाकिस्तान विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये कूटनीतिक पहल क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ाने में सहयोग करेगी.

पाकिस्तान ने बयान में चीन की तारीफ़ करते हुए लिखा है, “इस ऐतिहासिक समझौते में चीन के दूरदर्शी नेतृत्व की ओर से निभाई गई भूमिका की सराहना करते हैं जो सकारात्मक जुड़ाव और सार्थक संवाद की शक्ति को दिखाता है. हम इस सकारात्मक गतिविधि के लिए सऊदी अरब और ईरान के इस्लामी गणराज्य के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना करते हैं.”

पाकिस्तान ने कहा है कि वो मध्य पूर्व क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा और ये पहल बाक़ी क्षेत्रों में सहयोग और समृद्धि का उदाहरण बनेगी.

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