जहांगीरपुरी: हनुमान जयंती पर हिंसा का एक साल, अब कैसा है माहौल ?

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DMT : जहांगीरपुरी : (06 अप्रैल 2023) : –

मस्जिद के सामने भगवा झंडे, उकसाऊ नारे और बुलडोज़र की कार्रवाई.

एक साल पहले दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाक़े की इन तस्वीरों ने भारत में सांप्रदायिक सद्भाव पर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे.

अब एक साल बाद यहां का मंज़र बदला हुआ हुआ है. रमज़ान की शाम, इफ़्तारी का वक़्त और हाथों में खाने का सामान लिए मस्जिद की तरफ बढ़ते नमाजी.

पिछले साल हनुमान जयंती पर हुई हिंसा ने इस साल भी लोगों के मन में कई तरह के डर पैदा किए हैं, लेकिन इस बार माहौल शांतिपूर्ण है, हालांकि पुलिस और स्थानीय लोग अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरत रहे हैं.

मस्जिद और मंदिर के पास बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात खड़े हैं और हर दो-दो घंटे पर संकरी गलियों में सायरन बजाते हुए पेट्रोलिंग कर रहे हैं.

सबसे पहले हम जहांगीरपुरी में ब्लॉक सी के उस चौराहे पर पहुंचे, जहां से सौ कदम बाएं चलने पर पहले मस्जिद और फिर कुछ कदम दूर मंदिर आता है.

पिछले साल हनुमान जयंती पर हुए दंगे के बाद यह चौराहा कई दिनों तक पुलिस छावनी में तब्दील रहा था. उस समय किसी को भी मस्जिद वाली सड़क पर आने जाने की अनुमति नहीं थी.

हनुमान जयंती को लेकर डर

इसी चौराहे पर रहीमा की छोटी सी दुकान है. पिछले साल दंगे के तीन दिन बाद इलाके में प्रशासन ने अवैध निर्माण को हटाने की कार्रवाई की थी.

इस कार्रवाई में बुलडोजर रहीमा की दुकान पर भी चला था, जिसके बाद एक टूटी दुकान से सिक्के चुनते हुए रहीमा के परिवार की सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों ने बहुत से लोगों को ग़मगीन किया था.

पिछली बार जब रहीमा से मुलाकात हुई थी तो वे टूटी दुकान को देखकर अपने आंसू रोक नहीं पा रहीं थीं.

अब रहीमा कहती हैं, “बहुत मेहनत के बाद दुकान को फिर से शुरू किया है. हनुमान जयंती को लेकर डर लग रहा है. हमारा घर मस्जिद वाली सड़क पर है. दंगा फसाद की स्थिति में पुलिस बैरिकेड लगा देती है तो हम घर से भी बाहर नहीं निकल पाते हैं.”

वे कहती हैं, “घर के लिए आटा, चावल और तेल खरीदने जा रहे हैं. घर में एक महीने का राशन रहना चाहिए. हम तो बस यही चाहते हैं कि कोई दंगा फसाद न हो.”

‘हम दंगा फसाद नहीं चाहते’

चौराहे पर ही मौजूद दो मंजिला गुप्ता जूस कॉर्नर दूर से दिखाई देता है. दुकान पर नया रंग बताता है कि अब सब अच्छा चल रहा है. पिछले साल बुलडोजर कार्रवाई में गणेश कुमार गुप्ता की यह दुकान भी टूट गई थी.

दुकान पर मौजूद गणेश गुप्ता के बेटे राजन गुप्ता कहते हैं, “काफ़ी नुकसान हुआ लेकिन अब सब ठीक है. इलाके में शांति है. हनुमान जयंती को लेकर लोगों के मन में थोड़ा डर ज़रूर है.”

गुप्ता जी से बात करने के बाद हम मस्जिद की तरफ बढ़े. सड़क पर हमारी मुलाकात शेख़ असलम से हुई. इनका घर भी पिछले साल तोड़ दिया गया था.

असलम कहते हैं, “अभी पांच दिन पहले उन्होंने (हिंदू समुदाय के लोग) रामनवमी के दिन भी रैली निकाली थी. अब फिर हनुमान जयंती पर जुलूस आएगा.”

“हिंदुओं की शोभायात्रा से परेशानी नहीं है, बस हम लड़ाई नहीं चाहते. पिछली बार तीन महीने तक दुकानें नहीं खुल पाईं थी, हम दाने-दाने को मोहताज हो गए थे.”

लोगों से बात करने के बाद हम उन अभियुक्तों के घर की तरफ बढ़े जिनका नाम जहांगीरपुरी हिंसा में सामने आया था.

सबसे पहले हम सोनू चिकना के घर पहुंचे. सोनू पर जहांगीरपुरी हिंसा में पिस्तौल इस्तेमाल करने का आरोप है. हाथ में पिस्तौल लिए उनकी कुछ तस्वीरें पिछले साल सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थीं जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने उन पर आर्म्स एक्ट में भी मुकदमा दर्ज किया था.

दो मंज़िल के छोटे से मकान के अंदर ही सोनू की मां आसिया बीबी दुकान चलाने का काम करती हैं.

सोनू कहां हैं? यह सवाल पूछने पर वे कहती हैं, “वो गांव गया है. दो अप्रैल को पुलिस भी पता करनी आई थी लेकिन वो घर नहीं है.”

आसिया बीबी कहती हैं, “बेटा करीब सात महीने बाद बेल पर बाहर आया, फिर कुछ दिन बाद पुलिस पकड़ कर ले गई थी. कभी कहीं से पुलिस पकड़ने आती है.”

हाथ में पिस्तौल के सवाल पर मां कहती हैं, “वो पिस्तौल तो दंगे के समय ही उसने किसी के हाथ से ली थी. वो उसकी नहीं थी. सोनू के अलावा मेरे दो और बेटों पर केस हुआ है. तीनों घर पर नहीं है.”

सोनू चिकना के घर के सामने ही एक हिंदू परिवार रहता है. इस परिवार की महिला कहती हैं, “मोहल्ले में तो हिंदू-मुस्लिमों के बीच कोई लड़ाई नहीं है. आधी रात को भी आवाज़ दो तो लोग मदद के लिए आते हैं. हां ये ज़रूर है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती.”

सोनू चिकना की गली में लोगों से बात करने पर मालूम चलता है कि पुलिस के डर से सोनू घर से कुछ दिनों के लिए भाग गया है, क्योंकि पुलिस प्रिवेंटिव एक्शन के तहत कुछ लोगों को पकड़कर ले जा रही है.

संकरी गलियों में दर्जनों मीट की दुकानों को पार करते हुए जब हम अंसार के यहां पहुंचे तो हमारी मुलाक़ात उनकी पत्नी सकीना से हुई.

सकीना, अंसार पर हुई मेन स्ट्रीम चैनलों की रिपोर्टिंग से काफी नाराज़ दिखाई देती हैं. काफी देर बात जब वे बात करने को तैयार हुई तो उन्होंने कहा कि अंसार घर पर नहीं हैं. अभी घर रहना ठीक भी नहीं है.

अंसार के घर के पास ही एक मंदिर है जहां से भजन कीर्तन की तेज आवाजें सुनाई दे रही हैं. इसी तरफ इशारा करते हुए सकीना कहती हैं, “जब कानों में मस्जिद से अजान की आवाज पड़ती है तब हमें रोजा खोलना होता है, लेकिन मंदिर से इतनी आवाज़ आती है कि हमें घड़ी देखकर रोजा खोलना पड़ता है, बावजूद हमने कभी किसी से इसकी शिकायत नहीं की है.”

सकीना कहती हैं, “हम मोहल्ले में हिंदू-मुस्लिम मिलकर रहते हैं. हिंदुओं को नुकसान पहुंचाने का काम मेरे पति कर ही नहीं सकते. मेरी एक बेटी खुद सात साल हिंदू परिवार में पली बढ़ी है.”

जहांगीरपुरी हिंसा के बाद जीवन की परेशानियों पर बात करते हुए वे कहती हैं, “घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. घर में दो जवान बेटियां हैं. उनकी शादी कैसे करेंगे यही डर सताता रहता है.”

इसके बाद हम कुछ और अभियुक्तों के यहां पहुंचे लेकिन कोई भी अभियुक्त हमें घर पर नहीं मिला.

सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था

अभियुक्तों के परिवारों से मिलने के बाद मस्जिद की तरफ बढ़ते हुए सड़क पर बड़ी तादाद में मुस्तैद खड़े पुलिसकर्मी दिखाई देते हैं.

इलाके में सुरक्षा की क्या तैयारियां हैं इस सवाल के जवाब में वहां मौजूद एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ग्यारह थानों से पांच पांच बाइक बुलाई गई हैं जो हर दो घंटे पर इलाके में पेट्रोलिंग कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि हनुमान जयंती पर शांतिपूर्ण तरीके से शोभायात्रा निकले उसके लिए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई गई है और शांति बनी रहे उसके लिए प्रिवेंटिव एक्शन के तहत कुछ लोगों को पुलिस ने हिरासत में भी लिया है.

जहांगीरपुरी हिंसा के मुस्लिम अभियुक्तों का केस लड़ने वाले वकील महमूद प्राचा कहते हैं, “दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में हिंसा के केस चल रहे हैं. करीब 90 प्रतिशत लोग बेल पर बाहर हैं.”

मंदिर की चाबी शेख सिद्दीक के पास

आखिर में हमारी मुलाकात ब्लॉक सी के काली माता मंदिर के सामने दुकान चलाने वाले शेख सिद्दीक से हुई.

शेख बताते हैं इलाके में हिंदू-मुस्लिमों के बीच कोई खाई नहीं है. दोनों एक दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं. बाहर के लोग आकर यहां माहौल खराब करते हैं, जो हम नहीं चाहते.

वे कहते हैं, “हम पिछले करीब बीस साल से मंदिर के सामने दुकान चला रहे हैं. सालों से मंदिर की चाबी पापा के पास रहती है. सोचिए दंगा होने के अगर कोई परेशानी होती तो मंदिर वाले पापा को चाबी क्यों देते?”

यहां तक की शेख सिद्धिक का फ्रिज भी मंदिर परिसर में रखा हुआ है. वे कहते हैं, “यहां किसी को कोई परेशानी नहीं है, कुछ लोग इस भाईचारे को खराब करना चाहते है.”

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