डिब्रूगढ़ जेलः अमृतपाल को जहां रखा जाएगा, जानें वहां के बारे में सब कुछ

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DMT : डिब्रूगढ़  : (24 अप्रैल 2023) : –

‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह को गिरफ्त़ार कर असम की डिब्रूगढ़ जेल लाया जा रहा है.

अमृतपाल सिंह को मोगा के रोडे गांव से गिरफ़्तार किया गया. इसके बाद उन्हें बठिंडा के एयरफोर्स स्टेशन ले जाया गया, जहां से उन्हें डिब्रूगढ़ जेल लाया जा रहा है. वे 18 मार्च से ही फरार चल रहे थे.

पंजाब पुलिस के महानिरीक्षक (मुख्यालय) सुखचैन सिंह गिल ने आज सुबह एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में यह भी बताया कि अमृतपाल सिंह को असम की डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया है.

अमृतपाल सिंह के संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ से जुड़े कुछ लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) लगाने के बाद उन्हें पहले ही डिब्रूगढ़ स्थित सेंट्रल जेल में बंद किया जा चुका है.

अमृतपाल सिंह के चाचा हरजीत सिंह और उनके सहयोगी मार्च महीने से ही यहां बंद हैं. मार्च में उन्हें यहां पंजाब से गिरफ़्तार करके लाया गया था.

लिहाज़ा इस समय पूर्वोत्तर भारत की सबसे पुरानी जेलों में से एक ‘डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल’ मीडिया की सुर्ख़ियों में है.

जब से अमृतपाल के इन सहयोगियों को डिब्रूगढ़ जेल में लाया गया है तभी से जेल परिसर में बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है.

इतनी दूर डिब्रूगढ़ जेल में अमृतपाल के सहयोगियों को लाकर बंद करने के पीछे सरकार की रणनीति पर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजीव दत्ता कहते हैं, “दरअसल पंजाब में थाने के अंदर जिस तरह हथियारों के साथ अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने हंगामा किया था वैसा इतनी दूर असम आकर करना आसान नहीं है.”

वो कहते हैं, “यही कारण लगता है कि सरकार ने पंजाब और उसके आसपास के राज्यों की जेलों में एनएसए एक्ट के तहत गिरफ़्तार किए गए इन लोगों को नहीं भेजा, क्योंकि सुरक्षा के इतने इंतज़ाम हैं कि इतनी दूर डिब्रूगढ़ तक रेल और हवाई जहाज़ से पहुंचना अब आसान नहीं है.”

”इसके अलावा डिब्रूगढ़ जेल में वे लोग किसी तरह की गुटबाज़ी नहीं कर सकते. एक तो उन्हें अलग सेल में रखा गया है और इस जेल में भाषा उनकी सबसे बड़ी दिक़्क़त होगी. लिहाज़ा वो जेल के भीतर कुछ नहीं कर सकते.”

अमृतपाल के क़रीबी सात सहयोगियों से पहले 2017 में डिब्रूगढ़ जेल में शिवसागर से निर्दलीय विधायक और किसान नेता अखिल गोगोई को एनएसए एक्ट के तहत गिरफ़्तार कर रखा गया था.

असम सरकार के अनुसार राज्य में कुल 31 जेल हैं जिनमें छह सेंट्रल जेल, 22 ज़िला जेल, एक विशेष जेल है. राज्य में एक ओपन एयर जेल और एक उप-जेल है.

कैसे हैं सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम?

जेल में प्रवेश करने वाले गेट के बाहर आधुनिक हथियार के साथ सुरक्षाकर्मी तैनात हैं.

इसके अलावा जेल परिसर के चारों तरफ़ अतिरिक्त सीसी टीवी कैमरे लगाए गए हैं.

साल 1859-60 में ब्रिटिश सरकार के दौरान स्थापित हुई डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल इससे पहले इतनी ज़्यादा चर्चा में कभी नहीं रही और न ही कभी इस जेल में किसी अन्य राज्य से राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ़्तार किसी बंदी को लाकर रखा गया था.

पिछले महीने जिस समय अमृतपाल के साथियों को यहां लाया गया था उस समय डिब्रूगढ़ ज़िले के डिप्टी कमिश्नर बिस्वजीत पेगू ने पत्रकारों को यहां के सुरक्षा इंतजाम की जानकारी दी थी.

उन्होंने कहा था, “एनएसए एक्ट के तहत हिरासत में लिए गए सात लोगों को डिब्रूगढ़ लाया गया और उनको सेंट्रल जेल में रखा गया है. किसी भी अप्रिय घटना को टालने के लिए जेल के अंदर और बाहर कई स्तर पर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.”

डिप्टी कमिश्नर पेगू ने बताया था, “एनएसए में बंद व्यक्तियों को जिस सेल में रखा गया है, उसके आसपास भी कई स्तर के सुरक्षा बंदोबस्त किए गए हैं. असम पुलिस के अलावा केंद्रीय सैन्य बल के जवानों को भी जेल की सुरक्षा में तैनात किया गया है.”

जेल में इतनी चौकसी क्यों?

इससे पहले असम पुलिस के महानिदेशक जीपी सिंह ने एक ट्वीट के जवाब में लिखा था, “पंजाब से एनएसए हिरासत में लिए गए सात व्यक्ति आए हैं. चार लोग 19 मार्च को लाए गए थे. एक व्यक्ति 20 मार्च को और दो लोग 21 मार्च को लाए गए हैं.”

दरअसल अमृतपाल और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई से जुड़ा ये मामला बेहद संवेदनशील है. ऐसे में डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर स्थानीय प्रशासन बेहद सतर्क दिखाई दे रहा है.

डिब्रूगढ़ शहर के बीचों बीच असम ट्रंक रोड के पास फूल बागान इलाक़े में मौजूद ये सेंट्रल जेल लगभग 47 बीघा ज़मीन (76,203.19 वर्ग मीटर) में फैली हुई है. साल 1859-60 से शुरू की गई इस जेल के मुख्य परिसर के चारों ओर क़रीब 30 फ़ीट से ऊंची दीवारें बनी हुई है.

दरअसल 1991 के जून महीने में डिब्रूगढ़ जेल में बंद प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन उल्फ़ा यानी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम के पांच हाई प्रोफ़ाइल कैडर जेल से फ़रार हो गए थे.

1990 के दशक में उल्फ़ा ने राज्य में सबसे ज़्यादा हिंसा की थी. उस घटना के बाद अधिकारियों ने जेल की दीवारों की ऊंचाई बढ़ाने का फ़ैसला किया था.

ऐसे में अमृतपाल के सात साथियों को पंजाब से यहां इतनी दूर डिब्रूगढ़ जेल लाने की घटना को लेकर कई वरिष्ठ वकील भी आश्चर्यचकित थे.

पिछले 53 साल से डिब्रूगढ़ ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायालय में वकालत कर रहे वरिष्ठ वकील जोगेंद्र नाथ बरुआ ने बीबीसी से कहा था, “मुझे इस कोर्ट में वकालत करते हुए 53 साल बीत गए हैं लेकिन मैंने डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल की इतनी चर्चा पहले कभी नहीं सुनी.”

”मेरी जानकारी में इससे पहले बाहर के राज्य से किसी भी एनएसए एक्ट के तहत बंदी को डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में नहीं लाया गया.”

“केवल 1975 के आपातकाल के समय इस जेल में मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम के तहत कुछ लोगों को गिरफ़्तार कर रखा गया था. बाहर के राज्य से एनएसए बंदी को इस जेल में लाने का यह पहला मामला है.”

ब्रिटिश शासन के दौरान बनीजेल

डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल की स्थापना को लेकर वकील बरुआ कहते हैं, “ये जेल ब्रिटिश शासन के दौरान बनी थी. भले ही जेल प्रशासन के रिकॉर्ड में इस जेल की स्थापना का आधिकारिक साल 1859-60 बताया गया है”

”लेकिन पुराने तत्थों में ब्रिटिश प्रशासन ने सबसे पहले साल 1843 में सेंट्रल जेल वाली जगह एक अदालत स्थापित कर बिसागाम सिंगफो नामक एक कुख्यात अपराधी और उसके कुछ साथियों पर मुक़दमा चलाया था.”

“1843 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस जगह आपराधिक प्रक्रिया अदालत बना दी थी और अपराधियों को सज़ा देने के बाद यहां लाकर रखा गया था.”

83 साल के बरुआ बताते हैं, “सिंगफो की गिरफ़्तारी के बाद उस समय ब्रिटिश सरकार में ऊपरी असम के उपायुक्त रहे डेविड स्कॉट ने जिस जगह को कोर्ट में तब्दील किया था वो मौजूदा डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल के वार्ड नंबर 1 वाली जगह थी क्योंकि उस समय वो ईंट की एकमात्र चिनाई थी.”

डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल की स्थापना के बारे में जानी-मानी लेखक प्रोफ़ेसर दीपाली बरुआ ने 1994 में प्रकाशित अपनी किताब ‘अर्बन हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया ए केस स्टडी’ में लिखा, “1840 में ब्रिटिश शासन ने डिब्रूगढ़ जेल की इमारत के निर्माण के लिए 2700 रुपये की मंज़ूरी दी थी.”

“डिब्रूगढ़ जेल के निर्माण में ख़र्च को कम करने के लिए उस समय क़ैदियों को काम पर लगाया गया था. उस दौरान ये जेल एक बाड़े से घिरी हुई थी जिसमें एक अस्पताल भी था.”

“जब 1853 में ब्रिटिश अधिकारी मिल असम आए तो उन्होंने डिब्रूगढ़ जेल की ख़स्ता हालत देखते हुए ईंट के पक्के भवन का निर्माण करने का प्रस्ताव दिया.”

“जेल में तब 50 क़ैदी थे और उनमें से कुछ क़ैदी सड़क और पुल बनाने तथा कुम्हार और लोहार के रूप में कार्यरत थे. 1857-58 में जेल में बंदियों की दैनिक औसत संख्या 45 थी.”

महिला कैदियों के लिए चार वार्ड

दरअसल ब्रिटिश सरकार ने डिब्रूगढ़ में एक सैन्य अड्डा स्थापित किया था. साल 1840 में ही डिब्रूगढ़ को ज़िला मुख्यालय बनाया गया था. ऐसी जानकारी है कि इस जेल के निर्माण के समय ही यहां 500 से ज़्यादा क़ैदियों को रखने की क्षमता रखी गई थी.

भारत सरकार के एक फ्लैगशिप कार्यक्रम के तहत कुछ साल पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम ने डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल का दौरा किया था. उस दौरान जेल में क़ैदियों के लिए महज़ एक ही मुख्य रसोई थी.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र करते हुए कहा था कि महिला क़ैदियों के लिए भी उसी रसोई में खाना बनता था और बाद में महिला वार्ड में खाना भेजा जाता था.

आयोग की रिपोर्ट में पुरुष क़ैदियों के लिए 24 वार्ड होने का ज़िक्र था जबकि महिला क़ैदियों के लिए अलग चार वार्ड होने की बात कही गई थी.

जेल मेंक्या-क्या है ?

हालांकि आज भी इस जेल में सभी क़ैदियों के लिए एक ही मुख्य रसोई है. डिब्रूगढ़ ज़िला एवं सत्र न्यायालय के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी एम हुसैन ने बताया था, “फ़िलहाल डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में एक मुख्य रसोई है जिसको थोड़ा बड़ा करने के लिए मरम्मत का काम चल रहा है.”

इस समय जेल में मौजूद क़ैदियों और सुविधाओं के बारे में प्रशासनिक अधिकारी हुसैन ने बताया, “बीते फ़रवरी महीने के मौजूदा स्टेटमेंट के अनुसार इस समय डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में कुल 445 क़ैदी बंद हैं. इनमें 430 पुरुष क़ैदी हैं और 15 महिला क़ैदी हैं.”

“इन क़ैदियों में दो विदेशी नागरिक शामिल हैं. वर्तमान में इस जेल की पंजीकृत क्षमत़ा 680 है लेकिन यहां कभी भी क़ैदियों की अधिक भीड़ नहीं रहती.”

“इसके अलावा जेल में पीने के साफ़ पानी की पूरी व्यवस्था है. जेल में पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग कुल 94 शौचालय की व्यवस्था है.”

“जेल के अंदर एक अस्पताल है जिसमें एक चिकित्सक, नर्स, लैब टेक्नीशियन, फ़ार्मासिस्ट समेत कई स्टाफ़ हैं. जेल में एक स्कूल भी है जहां एक शिक्षक नियुक्त किया हुआ है.”

”जेल के अंदर एक बड़ा गार्डन है जहां सज़ायाफ़्ता क़ैदियों से काम करवाया जाता है. कई क़ैदियों को हस्तशिल्प की ट्रेनिंग दी जाती है और उनसे घरेलू उपयोग के सामान बनवाए जाते हैं.”

इस जेल में कुख्यात अपराधी, डकैत, अंडर ट्रायल क़ैदियों समेत उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे कई बड़े अपराधी हैं.

ज़िला प्रशासन के एक अधिकारी के अनुसार इस जेल में गंभीर अपराध या फिर चरमपंथी संगठनों के खूंखार कैडरों को रखने के लिए एक अत्याधिक सुरक्षित सेल है. आमतौर पर उस सेल की तरफ़ दूसरे क़ैदियों को जाने नहीं दिया जाता.

आपातकाल और डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल

आपातकाल के समय इस जेल में 19 महीने गुज़ारने वाले और डिब्रूगढ़ के वरिष्ठ वकील असीम दत्ता अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “उस समय एनएसए एक्ट नहीं था इसलिए मुझे 25 जून 1975 में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया था.”

“हमें आम क़ैदियों की तरह नहीं रखा गया था. सुरक्षा बंदियों के लिए जेल में कपड़ों से लेकर खाने-पीने की सभी सुविधाएं थी. आम क़ैदियों से हमारे काम करवाए जाते थे.”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में असम क्षेत्र के संघचालक रह चुके असीम दत्ता के अनुसार 1975 में डिब्रूगढ़ जेल में पुरुषों के लिए 11 वार्ड थे और महिलाओं के लिए महज़ एक ही वार्ड था.

वो कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि डिब्रूगढ़ जेल में क़ैदियों की सुविधाओं से संबंधित कोई बड़ा परिवर्तन हुआ होगा. खाने-पीने की सुविधा पहले से ठीक हुई होगी और आजकल क़ैदियों को मच्छरदानी दी जाती है लेकिन आम क़ैदी वहां तकलीफ़ में ही दिन गुज़ारते हैं.”

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