दुनिया के सात शक्तिशाली देश रूस और चीन को घेरने की तैयारी में

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DMT : हिरोशिमा : (19 मई 2023) : –

जापान के हिरोशिमा शहर को 1945 में हुए परमाणु हमले के लिए जाना जाता है, जिसमें ये पूरा शहर तबाह हो गया था.

लेकिन अब हिरोशिमा को दूसरे कारणों के लिए भी जाना जाएगा.

जापान ने विश्व को शांति का संदेश देने के लिए इस शहर का चुनाव किया है. यहाँ जी-7 मुल्कों के प्रतिनिधियों की अहम बैठक होने वाली है, जिसमें दुनिया को प्रभावित करने वाले कई अहम मुद्दों पर चर्चा होगी.

हिरोशिमा जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा का गृहनगर भी है. किशिदा के दफ़्तर ने पहले ही कहा है कि जी-7 परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया की बात करता है, इसलिए वो इस मौक़े पर परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

सालाना बैठक के लिए लगभग सभी राष्ट्राध्यक्ष शहर में पहुँच चुके हैं. बैठक के लिए अब तक अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन, यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला फ़ॉन देर लेयन, यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल, ब्रितानी पीएम ऋषि सुनक और इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी हिरोशिमा पहुँच चुकी हैं.

पहले दिन का कार्यक्रम

  • शुक्रवार को बैठक के पहले दिन सभी नेता हिरोशिमा पीस मेमोरियल पहुँचे और 1945 में हुए परमाणु हमले में मारे गए लोगों को याद किया.
  • ये मेमोरियल इकलौती वो इमारत है, जो अगस्त 1945 में अमेरिका के गिराए गए परमाणु बम के असर से कुछ हद तक बची रह गई.
  • इसके अलावा हमले में शहर की सभी इमारतें ज़मींदोज़ हो गई थीं.
  • इस हमले में अनुमानित एक लाख चालीस हज़ार लोगों की जान गई थी.
  • यहाँ एक बड़ी-सी घड़ी लगाई गई है जो दिखाती है कि परमाणु हमले को कितने दिन बीते हैं.
  • इसके बाद नेता ग्रैंड होटल में भोज में शामिल होंगे. इस दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रूस-यूक्रेन युद्ध और इस कारण पैदा हुई मुश्किलें और इंडो-पेसिफ़िक मुद्दे पर चर्चा होगी.
  • दिन के आख़िर में सभी नेता एक धार्मिक स्थल का दौरा करेंगे, जिसके बाद वो मियाज़िमा द्वीप पर आयोजित रात्रिभोज में शामिल होंगे.
बीबीसी हिंदी

आठ और मुल्कों को न्योता, क्या हैं मायने

किशिदा ने इस साल जी-7 देशों के अलावा यूरोपीय यूनियन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, कुक आइलैंड, दक्षिण कोरिया, वियतनाम को भी बैठक में शामिल होने का निमंत्रण दिया है.

इन देशों के अलावा इसमें कई वैश्विक संगठन जैसे आईएमएफ़, यूएन, डब्ल्यूटीओ भी शामिल होंगे.

ये काफ़ी हद तक इस बात की तरफ इशारा है कि इस बार जी-7 के एजेंडे में मुश्किल विषय हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा इस साल संगठन के एजेंडे में खाद्य संकट और कई देशों में बढ़ती महंगाई का मुद्दा शामिल है.

ये भी स्पष्ट होता जा रहा है कि वर्ल्ड ऑर्डर भी तेज़ी से बदल रहा है और इसमें दो ऐसे देश शामिल हैं जिनके रिश्ते पश्चिमी मुल्कों के साथ फ़िलहाल तल्ख़ बने हुए हैं. ये दोनों देश, रूस और चीन, जी-7 की इस बैठक की गेस्ट लिस्ट में शामिल नहीं हैं.

समय के साथ जी-7 में शामिल देशों की आर्थिक स्थिति पहले की तरह मज़बूत नहीं रही है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 1990 में इस संगठन में शामिल देशों का दुनिया की जीडीपी में 50 फ़ीसदी से अधिक योगदान था.

अब ये 30 फ़ीसदी के आसपास रह गया है और ऐसे में इसे और प्रभावशाली मित्र देशों की ज़रूरत है.

इस कारण किशिदा पश्चिमी देशों के इसका वैश्विक विस्तार करने की कोशिश में हैं.

उन्होंने भारत, ब्राज़ील, वियतनाम, इंडोनेशिया (आसियान समूह का सदस्य), दक्षिण कोरिया, कोमोरॉस (अफ़्रीकी संघ के प्रतिनिधि) और कुक आइलैंड (पेसिफ़िक द्वीपों के फ़ोरम के प्रतिनिधि) को बतौर मेहमान बैठक में शामिल होने का न्योता दिया है.

किशिदा ने बीते 18 महीनों में 16 विदेशी दौरे किए हैं, इनमें भारत, अफ़्रीका और दक्षिण पूर्वी देश शामिल हैं. वो बताना चाहते हैं कि चीन और रूस के संसाधनों और ताक़त के अलावा और भी विकल्प हैं.

अपनी गेस्ट लिस्ट से वो उन देशों को संगठन की तरफ आकर्षित करना चाहते हैं, जिन्हें ‘ग्लोबल साउथ’ कहा जाता है.

‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल एशिया, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका के उन विकसित देशों के लिए किया जाता है, जिनके रूस और चीन के साथ जटिल राजनीतिक और आर्थिक संबंध हैं.

रूस-यूक्रेन मुद्दा रहेगा अहम

इस साल बैठक में वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रूस-यूक्रेन युद्ध और साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा जैसे मुद्दों पर बातचीत होनी है.

बीते साल जी-7 की सालाना बैठक जर्मनी के बवारिया में हुई थी. ये बैठक रूस के यूक्रेन पर हमले के कुछ महीनों बाद हुई थी और इसमें युद्ध को लेकर काफ़ी चर्चा हुई.

सदस्य देशों ने रूस के हमले को “बर्बर, बिना उकसावे का, अनुचित और ग़ैर-क़ानूनी” करार दिया था.

सदस्य देशों ने कहा कि वो आर्थिक स्तर पर, मानवीय, सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर यूक्रेन की तब तक मदद करेंगे “जब तक युद्ध ख़त्म न हो”.

बीते साल की बैठक में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की वीडियो लिंक के ज़रिए शामिल हुए थे और उन्होंने जी-7 के देशों से हथियारों की गुज़ारिश की थी.

उनका कहना था कि उन्हें उम्मीद है कि “सर्दियाँ शुरू होने से पहले” युद्ध ख़त्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

बीते साल ज़ेलेन्स्की ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी सेना को अब रूस के कब्ज़े में गए यूक्रेनी क्षेत्रों को छुड़ाना है. इसके लिए उनकी सेना को अधिक हथियार तो चाहिए ही, अधिक वक़्त भी चाहिए.

रूस के मुद्दे पर क्या एकजुट होंगे मुल्क?

ये स्पष्ट है कि किशिदा यूक्रेन पर रूस के हमले के मुद्दे पर सभी देशों को रूस के ख़िलाफ़ “एकजुट होता” दिखाना चाहते हैं. लेकिन यही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

जी-7 के सदस्य देश रूस के ख़िलाफ़ अधिक प्रतिबंध लाना चाहते हैं, ताकि ऊर्जा निर्यात से होने वाली उसकी आमदनी पर चोट की जा सके.

उनका मानना है कि रूस पर आर्थिक चोट का असर युद्ध के मैदान पर पड़ेगा.

लेकिन हो सकता है कि कई मेहमानों को ये पसंद न आए. उदाहरण के तौर पर भारत ने अब तक खुलकर यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना नहीं की है.

आज़ादी के वक्त से भारत के रूस के साथ मज़बूत संबंध रहे हैं.

रूस के निर्यात पर पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल ख़रीदना जारी रखा है.

भारत का कहना है कि वो महंगा तेल क्यों ख़रीदे, अगर उसे सस्ता तेल मिल रहा है.

लेकिन भारत इसमें अकेला है, ये कहना सही नहीं होगा.

कोरोना महामारी से उबर रही अर्थव्यवस्थाओं के लिए युद्ध ने और मुश्किलें पैदा की है, ये मुल्क महंगाई और अनाज संकट की मार झेल रहे हैं.

उन्हें डर है कि अगर रूस पर और प्रतिबंध लगाए गए तो वो अनाज समझौते से हाथ खींच लेगा, जो यूक्रेन से अनाज निकाल कर दूसरे देशों तक पहुँचाने के लिए अहम है.

ऐसा हुआ तो अनाज की कमी से कारण महंगाई और भी बढ़ जाएगी.

लेकिन कुछ मुल्कों के लिए रूस पर प्रतिबंध बिल्कुल अलग मसला हो सकता है.

सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ़ साउथ एशियन स्टडीज़ में विज़िटिंग फेलो न्युगेन ख़ा गियांग कहते हैं, “ऐतिहासिक तौर पर वियतनाम रूस के क़रीब रहा है. वो अपने हथियारों का 60 फ़ीसदी और खाद का 11 फ़ीसदी रूस से आयात करता है.”

“इंडोनेशिया रूस पर पूरी तरह से निर्भर नहीं है, लेकिन रूस से बड़ी मात्रा में हथियार ख़रीदता है. ये दोनों रूस के साथ अपने रिश्ते बेहतर करना चाहते हैं.”

“मुझे नहीं लगता है कि ये दोनों मुल्क रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों का समर्थन करेंगे. ऐसा करने से उन्हें कितना लाभ होगा, ये पुख़्ता तौर पर कहना मुश्किल है, लेकिन उनके लिए ऐसा करना आर्थिक और राजनीतिक मुश्किलें पैदा कर सकता है.”

ऐसे में किशिदा के लिए बेहतर होगा कि वो अपना ध्यान परमाणु ख़तरे की तरफ रखें और हिरोशिमा में हो रही इस बैठक में सदस्य देशों का ध्यान रूस की तरफ से संभावित परमाणु हमले के ख़तरे की तरफ खींचें.

वो बैठक में शामिल प्रतिनिधियों को दिखा सकते हैं कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल क्यों कभी नहीं किया जाना चाहिए.

इसके लिए उन पर थोड़ा दबाव यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की की तरफ से भी रहेगा, क्योंकि यूक्रेन भी युद्ध की त्रासदी झेल रहा है.

दूसरी तरफ जी-7 के बाहर रहने वाले कई मुल्कों की ये शिकायत रही है कि पश्चिमी मुल्क उनकी समस्याओं को नज़रअंदाज़ करते हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि बैठक में उन्हें शामिल करना अच्छी शुरूआत है.

न्युगेन ख़ा गियांग कहते हैं, “वो यूक्रेन युद्ध, वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी गति, पूर्वी एशिया के सामने सुरक्षा चिंताएँ और ताइवान और साउथ चाइना सी को लेकर तनाव जैसे उन्हें प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे जी-7 देशों को बता सकते हैं.”

चीन से निपटने की कोशिश

ताइवान, ताइवान की खाड़ी और साउथ चाइना सी में चीन के सैन्य अड्डे- ये ऐसे अहम मुद्दे हैं जो बीते साल चर्चा में छाए रहे.

पश्चिमी मुल्कों वाले इस संगठन में एकमात्र एशियाई सदस्य जापान है.

ऐसे में जी-7 का मंच किशिदा के लिए ताइवान की सीमा के नज़दीक चीन के ‘सैन्य ताक़त के प्रदर्शन’ का जवाब देने के लिए अहम है.

जापान पश्चिमी मुल्कों को ये संदेश देना चाहता है कि यूक्रेन को लेकर आपकी लड़ाई हमारी है लेकिन ये एकतरफ़ा नहीं होनी चाहिए, हमारे मुद्दे भी आपके लिए अहम होने चाहिए.

लेकिन रूस की तुलना में चीन दुनिया के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है क्योंकि वो वैश्विक सप्लाई चेन का बेहद अहम हिस्सा है.

हाल के दिनों में चीन के दौरे पर गए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोप को चेतावनी दी थी कि “हमें ऐसी लड़ाई का हिस्सा नहीं बनना चाहिए जो हमारी नहीं है”.

उनके बयान से पश्चिमी और यूरोपीय मुल्कों में मामूली तनाव आया. लेकिन इसने इस डर को हवा दे दी कि ये देश पूर्वी एशिया का रुख़ कर सकते हैं.

जानकार कहते हैं, चीन की बात अलग है. उसकी बातों को गंभीरता से लिया जाता है क्योंकि पश्चिमी मुल्कों की तरह हर बार सरकार बदलने के साथ मुद्दों को लेकर उसका स्टैंड नहीं बदलता.

रही अमेरिका की बात, तो बीते एक साल में यूक्रेन की मदद के अपने वादे से वो पीछे नहीं हटा है, न ही ताइवान के मुद्दे पर ही उसने अपने पैर पीछे खींचे हैं.

वो जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपिंस और ऑस्ट्रेलिया के साथ रिश्ते गहरे कर रहा है, पेसिफ़िक में भी वो मुल्कों की तरफ दोस्ती की हाथ बढ़ा रहा है.

लेकिन जी-7 के सामने चीन की सैन्य महत्वाकांक्षा, चीन से जुड़ा अकेला मुद्दा नहीं है.

चीन की तरफ से आर्थिक दबाव भी उनके लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है. अपने ख़िलाफ़ क़दम के लिए उसने 2019 में ऑस्ट्रेलिया से होने वाले आयात को बंद कर दिया.

2017 में उसने दक्षिण कोरिया के साथ ऐसा किया था.

अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि जी-7, चीन के ख़िलाफ़ किस तरह के क़दम उठा सकेगा, क्योंकि जापान और यूरोपीय संघ दोनों के साथ चीन के मज़बूत व्यापारिक रिश्ते हैं.

ग्लोबल साउथ के लिए तो ये और भी मुश्किल है, क्योंकि आर्थिक तौर पर कई मुल्कों के चीन के साथ बेहद मज़बूत रिश्ते हैं.

लैटिन अमेरिका के साथ चीन के व्यापारिक रिश्ते फल-फूल रहे हैं. इस इलाक़े की जीडीपी में चीन का योगदान 8.5 फ़ीसदी है.

ब्राज़ील चीन से जितना आयात करता है, उससे कहीं अधिक उसे निर्यात करता है.

अफ़्रीका के दो मुल्क, घाना और ज़ाम्बिया चीनी कर्ज़ के बोझ तले दबे हैं.

हालाँकि चीन कहता है कि वो अमेरिका की तरफ़ से पड़ रहे आर्थिक दबाव की मुश्किल झेल रहा है और मानता है कि किसी मुल्क को किसी दूसरे पर आर्थिक दबाव नहीं डालना चाहिए.

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