नितिन गडकरी ने ऐसा क्या कहा, जिससे उनके सियासी भविष्य पर हो रही है चर्चा

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DMT : New Delhi : (30 मार्च 2023) : –

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के एक बयान को लेकर इन दिनों ख़ूब चर्चा है. उनके बयान को उनके सियासी भविष्य से जोड़कर देखा जा रहा है.

दरअसल बीते रविवार को नितिन गडकरी ने नागपुर में एक समारोह में कहा था, “मैं देश में जैव ईंधन और वॉटरशेड संरक्षण सहित कई प्रयोग कर रहा हूँ. अगर लोग इन्हें पसंद करते हैं तो ठीक है… नहीं तो मुझे वोट मत दें. मैं पॉपुलर पॉलिटिक्स के लिए ज़्यादा मक्खन लगाने को तैयार नहीं हूँ.”

ये पहली बार नहीं है जब नितिन गडकरी के बयानों की चर्चा हो रही है.

इससे पहले जुलाई 2022 में भी उन्होंने ऐसा ही एक बयान दिया था और राजनीतिक हलकों में ये अटकलें तेज़ हो गई थीं कि क्या गडकरी राजनीति छोड़ने की सोच रहे हैं?

तब उन्होंने कहा था, “हमें राजनीति का मतलब समझने की ज़रूरत है. क्या ये समाज की भलाई के लिए है या सरकार में बने रहने के लिए? राजनीति महात्मा गांधी के ज़माने से एक सामाजिक आंदोलन का हिस्सा रही है. लेकिन आज जो हम देख रहे हैं, उसमें राजनीति सिर्फ़ सत्ता के लिए की जा रही है. मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि मुझे राजनीति छोड़ देनी चाहिए. राजनीति के अलावा ज़िंदगी में कई चीज़ें हैं, जो की जानी चाहिए.”

बीते साल अगस्त में ही नितिन गडकरी ने कहा था कि मौजूदा सरकार फ़ैसले लेने में देर करती है.

राजनीति के जानकार मानते हैं कि नितिन गडकरी के हालिया बयान को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता बल्कि उनके बीते महीनों में जिए बयानों को देखें तो ऐसा लगता है कि गडकरी और बीजेपी आलाकमान के बीच सब कुछ ठीक नहीं है.’अकेला केंद्रीय मंत्री जो अपनी शर्तों पर काम करता है’

गडकरी के ऐसे बयान जब भी आते हैं, तो हेडलाइन बनाते हैं.

क्योंकि मौजूदा समय में पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी के सामने इस तरह के बयान देने वाले वे इकलौते केंद्रीय मंत्री हैं.

महाराष्ट्र टाइम्स के संपादक श्रीपद अपराजित कहते हैं, “मोदी सरकार में ऐसे बेहद कम मंत्रालय हैं, जिनको उनके मंत्री चला रहे हैं और जिसमें सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से आदेश नहीं आते, बल्कि मंत्री फ़ैसले लेते हैं. परिवहन मंत्रालय उनमें से एक है. आप 2014 से पहले सड़क को लेकर किया गया काम देखिए और अब देखिए. पहले देश में सड़क बनाने की गति 2 किलोमीटर प्रति दिन हुआ करती थी, आज वो 28 किलोमीटर से अधिक है.”

गडकरी जब परिवहन मंत्री बने थे, तो उन्होंने 60 किलोमीटर प्रति दिन सड़क निर्माण का टारगेट रखा था.

श्रीपद अपराजित कहते हैं, “उनके बयान को ऐसे देखा जाना चाहिए. वे चाहते हैं कि वोटर उनके काम को देखें और वोट करें और इसलिए वो लोगों से वोट मांगने नहीं जाएँगे. ये समझना होगा कि इशारों में भले ही उन्होंने ये बात कही हो, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो राजनीति छोड़ना चाहते हैं क्योंकि उनके काम में तेज़ी आई है, कौन-सा ऐसा नेता होगा जो बेहतर काम करते हुए राजनीति छोड़ देना चाहे.”

श्रीपद कहते हैं कि केंद्र में मंत्री बनने से पहले उन्होंने महाराष्ट्र में मंत्री रहते हुए मुंबई में 50 से अधिक फ़्लाईओवर बनवाए थे. वो अपने काम और मेहनती अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं. ज़मीनी स्तर पर उनके काम के कारण उनकी पार्टी में और अपने क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रियता है.

संघ का समर्थन और नागपुर से दिल्ली में एंट्री

बात है साल 2009 की,जब नितिन गडकरी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. 52 साल के गडकरी पार्टी के इतिहास में सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे.

उन्होंने तब एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था, “मैंने छात्र जीवन से राजनीति शुरू की. मैंने कार्यकर्ता के रूप में दीवारों पर पोस्टर चिपकाए हैं और आज पार्टी के शीर्ष पद की ज़िम्मेदारी दी गई है.”

जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस में गडकरी ये बात कह रहे थे, तो उनके साथ अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी मंच पर बैठे थे.

साल 2010 में जब इंदौर में बीजेपी नेशनल काउंसिल की बैठक हुई थी, तो लगभग 40 हज़ार से ज़्यादा कार्यकर्ता इंदौर पहुंचे थे. पार्टी में उनकी ख़ूब लोकप्रियता थी.

उस वक़्त, जब बैठक का आख़िरी दिन था तो गडकरी ने मन्ना डे का एक गाना गुनगुनाया था- ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये हंसाए, कभी ये रुलाए.

ये गाना गडकरी के राजनीतिक सफ़र को सरलता से बयां करता लगता है.

कभी जिसको दोबारा अध्यक्ष चुनने के लिए बीजेपी ने संविधान बदला था, आज वही गडकरी ना तो बीजेपी के संसदीय बोर्ड का हिस्सा हैं और ना ही केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य हैं.

नागपुर में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार विवेक देशपांडे लंबे वक़्त से संघ और बीजेपी को कवर करते रहे हैं.

वे कहते हैं, “2009 में संघ के सुझाव पर ही नितिन गडकरी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था. तब आरएसएस का आज के मुक़ाबले पार्टी में काफ़ी वर्चस्व था. लेकिन मुझे लगता है कि आरएसएस ने ऐसा करके कई लोगों को नाराज़ कर दिया, क्योंकि उस वक्त बीजेपी में कई बड़े नेता थे- सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, मुरली मनोहर जोशी, आडवाणी. ये लोग इस बात से आहत थे कि नागपुर से एक कम उम्र का जूनियर लड़का पार्टी का अध्यक्ष बना कर भेजा जा रहा है. जबकि सुषमा स्वराज हों या अरुण जेटली उन लोगों की राष्ट्रीय राजनीति में अधिक साख थी.”

मोदी और गडकरी के बीच मनमुटाव

जब गडकरी को दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनाने की बात आई, उस वक़्त तक पूर्ति समूह के घोटाले का मामला चर्चा में आ चुका था, जिसके सर्वेसर्वा गडकरी थे.

हालाँकि बाद में इस मामले में गडकरी के ख़िलाफ़ कुछ सामने नहीं आया, लेकिन वो दोबारा अध्यक्ष नहीं बन सके.

बीजेपी को लंबे वक़्त से कवर करने वाले पत्रकार मानते हैं कि उस समय बीजेपी का ही एक धड़ा पूर्ति घोटाले को लेकर ख़बरें लीक किया करता था, ये वो लोग थे जो गडकरी को पसंद नहीं करते थे.

नितिन गडकरी को आरएसएस का क़रीबी माना जाता है. माना जाता है कि नरेंद्र मोदी की इस सरकार के समय में भी गडकरी संघ के सबसे पसंदीदा हैं.

श्रीपद अपराजित कहते हैं, “बचपन से गडकरी आरएसएस की शाखा में जाते थे. वो नागपुर के महल के रहने वाले हैं. महल वो जगह है, जहाँ संघ की पहली शाखा लगी थी. तो ऐसे में उनका संघ के लिए झुकाव स्वाभाविक-सी बात है.”

कहा जाता है कि साल 2013 तक पार्टी का अध्यक्ष रहने के बाद संघ चाहता था कि वह प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार बनें.

सरकार में नितिन गडकरी का क़द

विवेक देशपांडे कहते हैं, “मुझे संघ के एक बड़े विचारक ने उस समय बातों-बातों में बताया था कि अगर नितिन गडकरी दोबारा अध्यक्ष चुन लिए जाते, तो वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होते. संघ का बड़ा तबका चाहता था कि गडकरी का नाम सामने आए, लेकिन पार्टी में नरेंद्र मोदी को लेकर ज़्यादा माहौल था. इसलिए आरएसएस कुछ कर नहीं पाया और गडकरी को नागपुर वापस आना ही पड़ा. तो एक प्रतिस्पर्धा तो थी जिसमें ज़ाहिर सी बात है कि संघ को पीछे हटना पड़ा.”

देशपांडे कहते हैं, “मुझसे साल 2014 की शुरुआत में संघ के एक व्यक्ति ने कहा था कि मोदी ‘दीर्घद्वेषी’ व्यक्ति हैं (यानी एक ऐसा व्यक्ति जो किसी के लिए अपनी नापसंदगी लंबे वक़्त तक रखता है). ऐसे में अगर वो किसी नेता या कार्यकर्ता को पसंद नहीं करते हैं, तो उनकी नापसंदगी लंबे वक़्त तक जारी रहेगी.”

जब साल 2014 में मोदी सरकार की कैबिनेट बनी, तो गडकरी उसमें ‘हैवीवेट’ मंत्री माने गए. उन्हें परिवहन मंत्रालय के साथ-साथ जहाज़रानी मंत्रालय भी मिला.

साल 2017 में उमा भारती से जल संसाधन मंत्रालय लेकर गडकरी को दे दिया गया.

2014 में जब गोपीनाथ मुंडे की मौत हुई, तो उन्हें ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी दिया गया.

लेकिन मोदी 2.0 सरकार में उनका हैवीवेट पोर्टफ़ोलियो कम कर दिया गया. इस बार उन्हें परिवहन मंत्रालय तो मिला, लेकिन जल संसाधन मंत्रालय नहीं दिया गया.

इसकी जगह एमएसएमई यानी लधु-मध्यम उद्योग मंत्रालय मिला. लेकिन 2021 में ये मंत्रालय भी उनसे वापस ले लिया गया.

जब बीते साल महाराष्ट्र में राजनीतिक ड्रामा चला और एकनाथ शिंदे के साथ बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई, तो बीजेपी की ओर से देवेंद्र फडणवीस ही पिक्चर में दिखाई दिए. जबकि महाराष्ट्र में बीजेपी के सबसे बड़े क़द का नेता होने के बावजूद भी गडकरी इन सबसे दूर ही रहे.

विवेक देशपांडे कहते हैं, “नितिन गडकरी को पार्टी की राजनीति से दूर रखने की कोशिश हो रही है. लेकिन उनका जिस तरह का काम है और जिस तरह परिवहन मंत्रालय मोदी सरकर के टॉप परफ़ॉर्मिंग मंत्रालयों में से एक है, ऐसे में उनसे ये मंत्रालय लिया नहीं जाएगा. क्योंकि उनके पास ऐसा करने की वजह नहीं है और ये उनके लिए ठीक नहीं होगा कि वो एक बेहतरीन मंत्री से मंत्रालय वापस ले लें. मुझे नहीं लगता है कि अब 2024 से पहले वो ऐसा करने की कोशिश करेंगे.”

कई जानकार मानते हैं कि संघ में ज़बरदस्त पैठ रखने वाले गडकरी को मोदी-शाह की बीजेपी में एकदम दरकिनार नहीं किया जा सकता. इससे संघ परिवार भी नाराज़ हो सकता है.

जब सोनिया गांधी ने की गडकरी की तारीफ़

बात है साल 2018 की जब सोनिया गांधी ने गडकरी के लिए प्रशंसा से भरा एक पत्र लिखा था.

सोनिया गांधी ने परिवहन मंत्री की ओर से रायबरेली में उठाए गए सकारात्मक क़दम की सराहना की थी और विकास कार्य में तेज़ी लाने के लिए धन्यवाद दिया था.

श्रीपद अपराजित कहते हैं कि नितिन गडकरी मोदी सरकार के अकेले ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें विपक्ष की नेता ने तारीफ़ों वाला खत लिखा.

विवेक देशपांडे भी कहते हैं कि बीजेपी के इस वक़्त गडकरी अकेले ऐसे नेता हैं, जिनके विपक्ष के नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं.

वे कहते हैं, “गडकरी तब पिक्चर में फिर सक्रिय होंगे, जब बीजेपी को ऐसे नेता की ज़रूरत होगी जो अन्य दलों को साथ मिला कर चल सके. संघ बहुत दूर का सोचता है और उसे पता है कि एक वक़्त ऐसा आएगा, जब पार्टी बहुमत नहीं ला पाएगी तब गडकरी जैसे नेता पर दारोमदार होगा. गडकरी हिंदू-मुसलमान की राजनीति नहीं करते और वो कठिन समय में बीजेपी के काम आएँगे.”

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