भारत क्यों चाहता है रिलायंस जैसी निजी कंपनियां पेट्रोल-डीज़ल न करें निर्यात?

Hindi New Delhi

DMT : नयी दिल्ली : (02 अप्रैल 2023) : –

भारत सरकार ने शनिवार को पेट्रोल और डीज़ल के निर्यात पर लगी पाबंदी को बढ़ा दिया है.

माना जा रहा है कि घरेलू बाज़ार में रिफ़ाइंड ईंधन की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया है.

बीते शुक्रवार को समाप्त हुए पिछले पूरे वित्त वर्ष में पेट्रोलियम पदार्थों और डीज़ल के निर्यात पर पाबंदी आयद थी.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, शनिवार रात को जारी किए गए ताज़ा नोटिफ़िकेशन में ये नहीं बताया गया है कि ये पाबंदी कब ख़त्म होगी.

इसके मुताबिक़, रिफ़ाइनरियों को अपने कुल सालाना पेट्रोलियम निर्यात का 50% और डीज़ल निर्यात का 30% घरेलू बाज़ार में बेचना होगा.

पाबंदी को बढ़ाने से प्राइवेट भारतीय रिफ़ाइनरियां, रूसी ईंधन ख़रीदने और फिर उसे उन यूरोपीय देशों समेत अन्य देशों को निर्यात करने से हतोत्साहित होंगी, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध के कारण रूस से तेल खरीदना बंद कर रखा है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी जैसी प्राइवेट भारतीय कंपनियां भारी रियायती दरों पर रूसी तेल ख़रीद कर उसे घरेलू बाज़ार में बिक्री करने की बजाय बड़े पैमाने पर निर्यात कर अत्यधिक मुनाफ़ा कमा रही थीं.

इसी के मद्देनज़र भारत सरकार ने पिछले साल ये पाबंदी लगाई.

निजी कंपनियों के बर्ताव से घरेलू बाज़ार में आपूर्ति का पूरा भार सरकारी रिफ़ाइनरी कंपनयों पर आ गया और उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित कम क़ीमत पर तेल की बिक्री करनी पड़ रही है.

सस्ते तेल से किसे फ़ायदा?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की निजी कंपनियां जितने बड़े पैमाने पर सस्ते रूसी तेल का आयात कर रही हैं उससे विदेशी मुद्रा भंडार पर भविष्य में संकट आ सकता है.

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, मई से नवंबर 2022 के बीच सात महीने में भारत ने तेल के लिए रूस को 20 अरब डॉलर का भुगतान किया जो कि पिछले दस सालों में भारत की ओर से किए गए भुगतान से कहीं अधिक है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जब भारत सरकार ये दावा करती है कि राष्ट्रीय हित में वो रूसी तेल को आयात कर रही है तो लोग उम्मीद करते हैं कि इससे जनता का फ़ायदा होगा.

आम लोगों के लिए पेट्रोल या डीज़ल की कीमतें अपरिवर्तित हैं. लेकिन यूक्रेन युद्ध से पहले दिल्ली में डीज़ल की क़ीमत 87 रुपये थी जबकि अभी ये 90 के क़रीब है.

भारत से ख़रीदे गए रूसी तेल का तीन चौथाई निजी कंपनियों रिलायंस और रूसी नियंत्रित नायरा एनर्जी द्वारा ख़रीदे गए.

रिलायंस जितना भी कच्चा तेल खरीदती है, उसका एक तिहाई रूस से आता है, जबकि युद्ध शुरू होने से पहले महज़ 5% था.

रूस को 20 अरब डॉलर का भुगतान

इसका मतलब ये भी हुआ कि सरकारी तेल कंपनियां इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को सस्ते रूसी तेल का बहुत कम हिस्सा हासिल होता है.

जबकि ये सरकारी कंपनियां ही 90 प्रतिशत घरेलू तेल आपूर्ति करती हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि निजी कंपनियां जो रूसी कच्चे तेल का आयात कर रिफ़ाइन करके फिर से निर्यात करती हैं, मुनाफ़े का अधिकांश हिस्सा ले जा रही हैं. और उन्हें रिकॉर्ड मुनाफ़ा हो रहा है.

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और अर्थशास्त्री प्रवीन चक्रवर्ती के अनुसार, भारत ने रूस को तेल खरीद के बदले पिछले साल के आखिरी सात महीनों में 20 अरब डॉलर दिए वो आम जनता के लिए नहीं बल्कि चंद निजी कंपनियों के अकूत मुनाफ़े के लिए किया गया.

उनके अनुसार, यूक्रेनी नागरिकों की लाश पर कुछ निजी भारतीय कंपनियों को मुनाफ़ा पहुंचाने कि लिए किया गया.

रूस से तेल का आयात

आर्थिक मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह ने बीबीसी से एक बातचीत में कहा था, “रूस से अब तक भारत क़रीब एक प्रतिशत कच्चे तेल का आयात करता था. अब कच्चे तेल का आयात 20 फ़ीसद से भी ज़्यादा चला गया है.”

भारत रूस से क़रीब रोज़ाना 12 लाख बैरल कच्चा तेल ख़रीद रहा है. कच्चे तेल के अलावा भारत रूस से खाने का तेल और फ़र्टिलाइज़र भी आयात कर रहा है.

आयात तो बढ़ ही रहा है, लेकिन दूसरी चिंता यह है कि भारत के निर्यात में कमी आ रही है. एक आंकड़े के मुताबिक़ आयात क़रीब 400 फ़ीसद बढ़ गया है और निर्यात क़रीब 14 फ़ीसद कम हो गया है.

भारत और रूस ने स्थानीय मुद्रा (रुपया और रूबल) में व्यापार करने का फ़ैसला किया था.

भारतीय रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2022 में ही इसकी घोषणा की थी और आरबीआई ने रूसी बैंकों को भारत में वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की अनुमति भी दे दी थी.

रूसी बैंकों में भारतीय रुपए का ढेर

वोस्ट्रो अकाउंट खुलने से भारत के साथ व्यापार करने वाले देशों को आयात या निर्यात करने पर डॉलर की जगह रुपये में भुगतान करने की सुविधा मिलती है.

भारत में वोस्ट्रो अकाउंट खुल तो गए, लेकिन अब तक रूस के साथ रुपये में ज़्यादा लेन-देन नहीं हो पा रहा है क्योंकि भारत का आयात ज़्यादा होने के कारण रूस में भारतीय रुपया जमा होता जा रहा है.

रूस के बैंक नहीं चाहते कि उनके यहां रुपये का ढेर जमा होता रहे.

प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह के अनुसार, भारत अब तक क़रीब 30 अरब डॉलर का कच्चा तेल ख़रीद चुका है और रूस के बैंकों में वो पैसे पड़े हैं.

उनके मुताबिक, “रूस उस भारतीय पैसे को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है क्योंकि उस पर प्रतिबंध लगा है. इसलिए रूस के पास जमा रुपए का मूल्य घटता जा रहा है. रूबल की क़ीमत भी डॉलर की तुलना में कम होती जा रही है.”

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